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मार्कस गार्वे / UNIA / नागरिक अधिकार आंदोलन

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मार्कस गार्वे / UNIA / नागरिक अधिकार आंदोलन मार्कस गार्वे का जन्म 17 अगस्त, 1887 को जमैका के सेंट एनबे में हुआ था। 14 साल की उम्र में वे किंग्स्टन चले गए, जहाँ उन्होंने एक प्रिंटर चालक के रूप में काम किया और मजदूरों की दयनीय जीवन स्थिति से परिचित हुए। जल्द ही उन्होंने खुद को समाज सुधारको में शामिल कर लिया। गार्वे ने 1907 में जमैका में प्रिंटर्स यूनियन हड़ताल में भाग लिया और 'द वॉचमैन' नामक अखबार स्थापित करने में मदद की। जब वे अपनी परियोजनाओं के लिए धन जुटाने के लिए द्वीप छोड़कर गए, तो उन्होंने मध्य और दक्षिण अमेरिका का दौरा किया और पाया की बड़े पैमाने पर अश्वेत लोग भेदभाव के शिकार थे। गार्वे ने पनामा नहर क्षेत्र का दौरा किया और उन परिस्थितियों को देखा जिसके तहत वेस्ट इंडियन लोग रहते और काम करते थे। वे इक्वाडोर, निकारागुआ, होंडुरास, कोलंबिया और वेनेजुएला भी गए और देखा की हर जगह अश्वेतों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। मध्य अमेरिका की इस स्थिति से दुखी होकर गार्वे वापस जमैका लौट आए और जमैका की औपनिवेशिक सरकार से मध्य अमेरिका में वेस्ट इंडियन श्रमिकों की ...

खुश्चेव की विदेश नीति

खुश्चेव की विदेश नीति निकिता खुश्चेव 1953 से 1964 तक सोवियत संघ के नेता थे। खुश्चेव ने एक ऐसी विदेश नीति अपनाई जिसका उद्देश्य सोवियत हितों को बढ़ावा देना और दुनिया भर में सोवियत प्रभाव का विस्तार करना था। 8 फरवरी 1955 को मालनकोव ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद बुलगानिन प्रधानमंत्री बना और निकिता खुश्चेव को दल का सचिव बनाया गया। इन दोनों के द्वारा अपनाई गई विदेश नीति को "बुलगानिन खुश्चेव कूटनीतिज्ञता" के नाम से जाना जाता है। किंतु 3 साल बाद 1958 में खुश्चेव ने स्वयं को प्रधानमंत्री एवं दल के सचिव के रूप में स्थापित कर लिया। बुलगानिन के पतन के बाद खुश्चेव विदेश नीति का वास्तविक प्रमुख बन गया। इसके बाद आंतरिक एवं विदेशी राजनीति में निकिता खुश्चेव सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में उभरा। उसे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और आंतरिक विषयों की पर्याप्त जानकारी थी, इसी योग्यता के बल पर वह विदेश नीति को एक नया रूप देने में सफल हुआ। 1955-56 के मध्य खुश्चेव के उत्कर्ष के साथ सोवियत संघ एक "सुपर शक्ति" बन गया। स्तालिन के विकास कार्यों का लाभ खुश्चेव को विरासत में मि...