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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

हुमायूँनामा

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हुमायूँनामा जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम का जन्म लगभग 1523 ई. में हुआ था। जब वह केवल दो वर्ष की थी तब हुमायूँ की माता माहम बेगम ने उसे गोद ले लिया। इस प्रकार जब बाबर 1525 ई. में हिन्दुस्तान जीतने के लिये काबुल से रवाना हुआ तब गुलबदन की उम्र केवल दो वर्ष थी। बाबर इस अन्तिम भारतीय अभियान के समय अपने परिवार को काबुल ही छोड़ आया था। 1529 ई. में गुलबदन, माहम बेगम के साथ भारत आ गई। दूसरे ही वर्ष जब बाबर की मृत्यु हुई तो उसकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी। जब वह दस वर्ष की थी तब महाम बेगम की मृत्यु हो गई और गुलबदन इससे बहुत उदास रहने लगी।  हुमायूँ, गुलबदन बेगम से अधिक स्नेह करता था। चौसा में शेरशाह के द्वारा पराजित होने के बाद उसने गुलबदन को लिखा था कि, "मैं तुम्हे बहुत याद करता रहता था और कभी-कभी पछताते हुए कहता था कि काश तुम्हे अपने साथ ले आता। किंतु जिस समय हलचल मची तो मैंने ईश्वर के प्रति अपनी भावना प्रकट कर कहा कि,"ईश्वर को धन्य है कि मैं गुलबदन को न लाया।” कन्नौज के युद्ध में हुमायूँ की पराजय के बाद वह काबुल में ही रही। 1545 ई. में हुमायूँ के काबुल लौटने पर वह प्...

बाबरनामा

बाबरनामा बाबर की आत्मकथा "बाबरनामा" अथवा "तजुक-ए-बाबरी” जीवन-चरित्र भी है और इतिहास भी है। इसीलिये यह दूसरी बहुत सी आत्मकथाओं से अधिक महत्व रखती है। बाबर ने जिन्दगी में कभी भी दो वर्षों तक एक ही स्थान पर ईद नहीं मनाई थी। ऐसे व्यक्ति ने कहीं पर भी स्वयं इतिहासकार होने का दावा ही नहीं किया परन्तु फिर भी आज यह मान्यता है कि आत्मकथाओं में बाबरनामा निश्चय ही एक ऐसी उच्च कोटि की रचना है जिसके आधार पर बाबर को आत्मकथा लेखकों का शिरोमणि माना जा सकता है। बाबरनामा को पढ़ते समय जहां हम एक और रोमांचक साहित्य-सागर देखते है वहीं दूसरी ओर इतिहास के अमूल्य रत्न भी हमारे हाथ लग जाते हैं। इसीलिये Denison Ross ने लिखा है कि,"बाबर के आत्म-संस्मरण को सभी समयों के साहित्य में सबसे अधिक सम्मोहनकारी और रोमांटिक रचनाओं में स्थान मिलना चाहिये।" A.S Beveridge ने इस आत्मकथा का मूल्यांकन करते हुये लिखा है कि, "बाबर की आत्मकथा एक अनमोल ग्रन्थ है जिसकी तुलना सन्त आगास्टाइन और रूसो के स्वीकृति पत्रों तथा गिब्बन और न्यूटन की आत्मकथाओं से की जा सकती है। बाबर की इस अनूठी आत्मकथा का आधार ...