हुमायूँनामा
जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम का जन्म लगभग 1523 ई. में हुआ था। जब वह केवल दो वर्ष की थी तब हुमायूँ की माता माहम बेगम ने उसे गोद ले लिया। इस प्रकार जब बाबर 1525 ई. में हिन्दुस्तान जीतने के लिये काबुल से रवाना हुआ तब गुलबदन की उम्र केवल दो वर्ष थी। बाबर इस अन्तिम भारतीय अभियान के समय अपने परिवार को काबुल ही छोड़ आया था। 1529 ई. में गुलबदन, माहम बेगम के साथ भारत आ गई। दूसरे ही वर्ष जब बाबर की मृत्यु हुई तो उसकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी। जब वह दस वर्ष की थी तब महाम बेगम की मृत्यु हो गई और गुलबदन इससे बहुत उदास रहने लगी। हुमायूँ, गुलबदन बेगम से अधिक स्नेह करता था। चौसा में शेरशाह के द्वारा पराजित होने के बाद उसने गुलबदन को लिखा था कि, "मैं तुम्हे बहुत याद करता रहता था और कभी-कभी पछताते हुए कहता था कि काश तुम्हे अपने साथ ले आता। किंतु जिस समय हलचल मची तो मैंने ईश्वर के प्रति अपनी भावना प्रकट कर कहा कि,"ईश्वर को धन्य है कि मैं गुलबदन को न लाया।”
कन्नौज के युद्ध में हुमायूँ की पराजय के बाद वह काबुल में ही रही। 1545 ई. में हुमायूँ के काबुल लौटने पर वह प्रसन्न थी। 1557 ई. में ही वह भारत लौटी और अकबर ने उसे यथोचित सम्मान दिया। 1575 ई. में वह हज करने के लिये मक्का के लिये रवाना हुई और 1582 ई. में वह वहीं से फतहपुर सीकरी लोटी। भारत लौटने के बाद उसने अकबर के आदेश पर “हुमायूँनामा” की रचना की।
गुलबदन बेगम को उनके भतीजे अकबर ने अपने भाई हुमायूँ की कहानी लिखने के लिए नियुक्त किया था। अकबर अपनी चाची से बहुत प्यार करता था और उसकी कहानी कहने की कला को जानता था। अकबर ने अपनी चाची से अपने भाई के जीवन के बारे में जो कुछ भी याद हो उसे लिखने के लिए कहा था।
गुलबदन की रचना से यह पता नहीं चलता है कि उसका विवाह कब हुआ। परन्तु उसके विवरण से यह अन्दाजा लगता है कि 17 वर्ष की आयु में वह एक विवाहित स्त्री थी। उसका पति खिज्र ख्वाजा खां को चगताई वंश में बिशेष महत्व प्राप्त था। गुलबदन को हरम की स्त्रियों का विश्वास प्राप्त था और विशेषकर खानजादा बेगम व माहम बेगम उस पर अत्यधिक कृपालू थी। उसने भी इनके साथ सदैव ही सम्मान व सौहाद्र का व्यवहार किया। 1603 ई. में गुलबदन बेगम की मृत्यु हो गई। उसके प्रति अकबर के दिल में इतना अधिक सम्मान था कि उसने स्वयं जनाजे को कुछ दूर तक कंधा दिया था।
हुमायूँ के जीवन, उसकी लड़ाइयों, उसके दुःख और संकट वगैरह का जिक्र बेगम ने विस्तार से हुमायूँनामा में किया है। राजनीतिक घटनाओं के अलावा इस किताब में सामाजिक रीति-रिवाजों का हवाला भी मिलता है। शादी-ब्याह की रस्मों और "मुगल हरम" के रीति-रिवाजों का विवरण बेगम बड़े चाव से करती हैं। किताब का वह हिस्सा जो हुमायूँ से संबधित है, तीन भागों में बँटा हुआ है:
1) पहले हिस्से में हुमायूँ के सिंध छोड़ने से काबुल पहुँचने और कामरान को अंधा करने तक की घटनाएँ दी गई हैं।
2) दूसरे हिस्से में हुमायूँ की सिंघ से ईरान की यात्रा और काबुल की जीत का जिक्र है। ये हालात खुद हुमायूँ की बेगम हामिद बानो ने गुलबदन को बताए थे।
3) तीसरे हिस्से में खिज्र ख्वाजा और दूसरे रिश्तेदारों के बयान किए हुए हालात हैं। हुमायूँ के सिंध छोड़ने से पहले की राजनीतिक घटनाओं और सैनिक गतिविधियों को संक्षेप में बयान किया गया है। महत्वपूर्ण लड़ाइयों को सिर्फ चंद शब्दों में पेश किया गया है। लेकिन "हरम" की बेगमों के जीवन, हुमायूँ का अपनी मां और बहनों से गहरा प्यार, मिर्जा हिंदाल की शादी की रस्मों जैसी घटनाओं को बेगम ने काफी विस्तार से लिखा है। हुमायूँ को सिंध में जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा उनका हाल दिया गया है। हुमायूँनामा हमें बताता है कि कामरान को समझाने के लिए खानजादा बेगम को भेजा गया था लेकिन कामरान ने बेगम के सुझाव को ठुकरा दिया। ये जानकारी हमें किसी दूसरे स्रोत से नहीं मिलता।
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि, "जिस समय बाबर की मृत्यु हुई उस समय वह मात्र 8 वर्ष की बालिका थी और इसलिये उसे जो कुछ भी याद रहा उसे उसने दूसरों द्वारा दी गई जानकारी से मिलाकर लिखा। इसीलिये बाबर सम्बन्धी उसका विवरण बहुत ही संक्षिप्त है।" उसने अपनी रचना को दो भागों में बांटा है।
एक में बाबर सम्बन्धी घटनायें तथा दूसरे में हुमायू का इतिहास है। बाबर के इस संक्षिप्त विवरण में भी उसने अनेक महत्वपूर्ण तथ्य दिये हैं। पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी को पराजय के बाद बाबर ने जिस प्रकार दिल खोलकर दान दिया था, गुलबदन ने उसका बड़ा ही रोचक वर्णन किया है। उसके अनुसार न केवल उसने अपने सम्बन्धियों को उपहार भेजे अपितु अनेक फकीरों और सन्तों को भी भेंट भेजीं। गुलबदन के बाबर-सम्बन्धी विवरण से यह भी जानकारी मिलती है कि वह अपने सम्बन्धियों से किस प्रकार स्नेह करता था। अपने सम्बन्धियों से निश्चित दिन मिलने में किसी भी प्रकार का प्राकृतिक प्रकोप उसके आड़े नहीं आ सकता था। गुलबदन ने काबुल से आगरा की यात्रा की कई रोचक घटनाओं का वर्णन किया है जिससे मालुम पड़ता है कि बाबर कितनी उत्सुकता से उनकी प्रतिक्षा कर रहा था। हुमायू के प्रति बाबर का स्नेह भी गुलबदन ने बड़े ही रोमांचित ढंग से लिखा है। मिर्जा हिन्दाल के प्रति बाबर के स्नेह की जानकारी भी उसी की रचना से मिलती है। उसने बाबर की मृत्यु का कारण इब्राहीम लोदी की माता द्वारा दिया गया विष बताया है जिसकी पुष्टि दूसरी रचनाओं से भी होती है।
उसकी रचना के अधिकतर भाग में हुमायू सम्बन्धी जानकारी अधिक है। प्रो. Syed Ali Nadeem Rezavi ने उसके जानकारी के सूत्रों को तीन भागों में बांटा है- (1) "गुलबदन बेगम की अपनी जानकारी पर आधारित हुमायूँ के सिन्ध की और प्रस्थान तक का तथा हुमायू के काबुल पहुँचने के समय से मिर्जा कामरान के अंधे बनाये जाने का इतिहास; (2) हमीदा बानो बेगम द्वारा वर्णित सिंध से ईरान तक की यात्रा और काबुल विजय की घटनायें; (3) खिज्र ख्वाज खां तथा अन्य सम्बन्धियों द्वारा वर्णित घटनायें।”
गुलबदन एक स्त्री थी और स्वाभाविक रूप से उसमें युद्धों और युद्ध रचनाओं के प्रति कम रूचि थी। इसीलिये उसने साधारणतया युद्धों का बड़ा ही कम वर्णन किया है। हुमायूँ के गोंड़ पर अधिकार का विवरण केवल कुछ पंक्तियों में है। चौसा के युद्ध के सम्बन्ध में भी वह बहुत ही कम जानकारी देती है। उसने लिखा है कि, "मुगल सैनिक असावधान थे कि शेर खां ने पहुँच कर आक्रमण कर दिया। सेना पराजित हुई और अधिकांश लोग एवं परिवार वाले बन्दी बना लिये गये। गुलबदन ने सक्का द्वारा हुमायूँ को चौसा नदी में डूबने से बचाने की घटना का वर्णन किया है। उसके अनुसार हुमायूँ ने उसे दो दिन तक बादशाह बनाया और अपने अमीरों को आज्ञा दी कि वे उसका अभिवादन करें। सक्का निजाम अथवा सुम्बुल को उसने इस समय में राज्य के पूरे अधिकार दिये थे। इसी प्रकार से उसने कनौज के युद्ध का भी बहुत कम वर्णन दिया है। मालदेव द्वारा विश्वासघात करने की नीति तथा जैसलमेर के राजा से हुये युद्ध का वर्णन भी बहुत कम है।
गुलबदन बेगम ने अपनी जानकारी के आधार पर जिन बातों का वर्णन किया है उनमें महल के भीतर की घटनाओं तथा बेगमों के तात्कालीन जीवन पर काफी प्रकाश पड़ता है। उसने लिखा है कि माहम बेगम को हुमायूँ के पुत्र न होने की कितनी चिन्ता थी और उसने किस प्रकार प्रयत्न करके मेवा जान से उसका विवाह कराया। मेवा जान द्वारा पुत्र जन्म पर माहम बेगम ने उत्सव के लिये जिस प्रकार की तैयारियाँ कराई उनका विवरण गुलबदन बेगम ने खुलकर किया है। इसी प्रकार हुमायूँ के आरम्भिक अभियानों की सफलता पर भी माहम वेगम ने उत्सव की तैयारियां की थीं।
कन्नौज के युद्ध में पराजित होने पर जब हुमायूँ आगरा पहुँचा तो गुलबदन बेगम ने भाइयों को पुनः संगठित करने के जो प्रयास किये उनका उसने रोचक वर्णन किया है और जब कुछ समय के लिये सब भाई संगठित हो गये तब हुमायूँ ने जिस प्रकार से इस अवसर पर उत्सव मनाया उसका गुलबदन ने विस्तार से वर्णन किया है। गुलबदन की रचना से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि हुमायू को अपनी माता, बहनों व बेगमों से कितना अधिक स्नेह था और वह उनके लिये कितना चिंतित रहता था। गुलबदन के इस विवरण से हमें यह भी पता चलता है कि उस समय अमीरों व मिर्जाओं का सामाजिक व साँस्कृतिक जीवन कैसा था और किस प्रकार मिर्जा लोग एक दूसरे के विरुद्ध कार्य कर रहे थे।
गुलबदन ने हुमायूँ की सिन्ध यात्रा तथा हमीदा बेगम से उसके विवाह को विस्तार से लिखा है। गुलबदन के अनुसार लगभग 40 दिन तक हमीदा बानो से विवाह का आग्रह चलता रहा। अन्त में हमीदा बानो की माता दिलदार बेगम के कहने पर वह राजी हुई। ऐसा अनुभव होता है कि गुलबदन को विवाह के सम्बन्ध में अनेक जानकारियाँ दिलदार बेगम से मिली होंगी। उसने हिन्दाल मिर्जा के विवाह का वर्णन और भी अधिक विस्तार से किया है और विभिन्न सम्बन्धियों के न केवल बैठने के स्थान को बताया है अपितु विवाह के लिये बनाये गये घर का बहुत ही बारीकी से विवरण दिया है। उसने दावत में दिये गये अनेक व्यंजन का वर्णन किया है। इस प्रकार गुलबदन बेगम उत्सवों आदि के विवरण में सिद्ध मालुम पड़ती है। वह उस समय के रीति-रिवाजों का वर्णन करने में भी अनूठी है।
उसने मिर्जा शाह हुसैन द्वारा हुमायू को पहुंचाये गये अनेक कष्टों को लिखा है और उसके अनुसार शाह हुसैन ने ही उसे मजबूर किया था कि वह कन्धार चला जाये। गुलबदन की रचना से हमें जानकारी मिलती है कि हुमायू ने खानजादा बेगम को कामरान को समझाने के लिये भेजा था परन्तु फिर भी कामरान ने अपने नाम का खुतबा पढ़वाने का आग्रह किया। स्त्रोतों के आधार पर उसने हुमायूँ की काबुल-विजय के बाद की घटनाओं का वर्णन भी किया है। कामरान ने हुमायू को काबुल के संघर्ष के समय जो कष्ट दिये थे उन्हें गुलबदन ने भी भोगा था इसलिये गुलबदन उनका वर्णन अधिक अच्छी तरह से करने में समर्थ थी। उसने इस काल के उन आमोद-प्रमोदों का वर्णन किया है जिनका कभी-कभी शान्ति के समय में मजा लिया जाता था। प्रो. Rezavi के अनुसार,"इस काल के इतिहास की भी विशेषता स्त्रियों के जीवन के सजीव चित्र एवं उनके चरित्र का रोचक विवरण है। सुलेमान मिर्जा मीरान शाही की पत्नी हरम बेगम द्वारा सेना के नेतृत्व का उल्लेख बेगम ने बड़े स्पष्ट रूप से किया है। मिर्जा कामरान की मूर्खता एवं हरम बेगम से ईश्क की घोषणा के दुष्परिणाम की गुलबदन बेगम ने विस्तार से चर्चा की है।"
इसके अतिरिक्त प्रो. Rezavi के अनुसार, "बेगम ने मिर्जा हिन्दाल के प्रति हुमायु के शोक एवं बेगेमों के विलाप तथा उसकी लाश के दफ़न का भी विस्तार से उल्लेख किया है। मिर्जा कामरान के बन्दी बना लिये जाने पर हुमायूं ने जिस प्रकार उसकी हत्या के विरुद्ध आपत्ति प्रकट की उसका गुलबदन बेगम ने बड़े मार्मिक शब्दों में उल्लेख किया है।" उसकी रचना में कामरान को अन्धा करने की घटना नहीं मिल पाती है। सम्भवतः इसका कारण था कि वह इस हृदय दहला देने वाली घटना को लिखना नहीं चाहती थी।
अपने कुछ समकालीन लेखकों के विपरीत, गुलबदन ने बिना किसी अलंकरण के, जो कुछ भी उन्हें याद था, उसका तथ्यात्मक विवरण लिखा। उन्होंने जो लिखा वह न केवल हुमायूं के शासन की अनिश्चितता, उसके परीक्षणों और कठिनाइयों का वर्णन करता है, बल्कि हमें मुगल हरम में जीवनशैली की एक झलक भी देता है। यह सोलहवीं शताब्दी में मुगल राजघराने की किसी महिला द्वारा लिखा गया एकमात्र लेखन है।
हुमायूँनामा जन्म, विवाह और अन्य सम्बन्धित राजकीय समारोहों के बारे में जानकारी से परिपूर्ण है। यह शासक की औपचारिक दरबार के बाहर एक आम इंसान के रूप में गतिविधियों की बात करता है। उनका वृत्तांत काफी हद तक याददाश्त पर आधारित है, जो उन्होंने सुना और याद रखा। फिर भी यह हरम में रहने वालों का आँखों देखा वृत्तांत है। हुमायूँनामा मुगल हरम के जीवन पर अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है जैसे राजसी सत्ता के व्यक्तिगत/सामाजिक संबंध, आन्तरिक टकराव, आदाब (नियम/शिष्टाचार/राजसी आचरण) की भूमिका आदि पर। उनके वर्णन से पता चलता है कि शाही महिलाओं की शादी और सामाजिक शिष्टाचार के मामलों में विशेष स्थिति थी। यह भी दर्शाता है कि महिलाएँ अक्सर राजनैतिक मध्यस्थों की भूमिका निभाती थी। यह वृत्तांत मुगलों के प्रारंभिक काल में हरम में पर्दा की स्थिति पर भी रोशनी डालता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका प्रचलन तुलनात्मक रूप से कम कठोर था। यह दर्शाता है कि हरम की प्रमुख महिला मुख्य रानी नहीं थी, बल्कि राजमाता थी, जो अक्सर राजा के सलाहकार के रूप में काम करती थी। हुमायूँ का बार-बार दिलदार बानू बेगम के यहाँ जाना इसकी पुष्टि करता है।
वास्तव में, गुलबदन बेगम का हुमायूँनामा इस अवधि के 'जीवंत अनुभवों और सामाजिक, राजनैतिक वास्तविकताओं का चित्रण' है। गुलबदन का वृत्तांत न केवल मुगल घराने के घरेलू जीवन पर रोशनी डालता है बल्कि यह सार्वजनिक/निजी स्थानों और लिंग सम्बन्धों बनाम राजनैतिक शक्ति की सीमाओं के बारे में भी सुझाव भी देता है। गुलबदन की रचना का अत्यधिक महत्व है क्योंकि उसने जिन घटनाओं का वर्णन किया है उसमें से अनेक उसने स्वयं अपनी आँखों से देखी थीं। आरम्भिक घटनाओं की जानकारी उसने सम्भवतः उन हरम की स्त्रियों से प्राप्त की थी जो कि उन घटनाओं के समय जीवित थीं। इस क्षेत्र में खानजादा बेगम माहम बेगम आदि से अधिक सहायता मिली थी। हुमायूँनामा मूलरूप से फ़ारसी भाषा में लिखा गया है मगर इसमें तुर्की तथा फ़ारसी शब्दों का मिश्रण है। इससे ऐसा अनुभव होता है कि रचियता न केवल विदूषी थी अपितु पढ़ने लिखने की शोकीन भी थी। गुलबदन बेगम का तिथिक्रम कहीं-कहीं दोषपूर्ण है और उनके द्वारा दिया गया राजनैतिक वर्णन बड़ा ही अखरता है। इस कमी के बाद भी उसने हुमायूँ के व्यक्तिगत गुणों और उसकी कमियों का जिस प्रकार चित्रण किया है वह निश्चित ही रोचक है।
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