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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

सोवियत संघ की विदेश नीति तथा उद्देश्य

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सोवियत संघ की विदेश नीति तथा उद्देश्य बोल्शेविकों ने सत्ता प्राप्त करने के बाद मार्क्स के सिद्धांतों के अनुसार रूस में आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की। भूमि जमीदारों से छीनकर कृषकों में बाँट दी गयी। लेकिन राज्य की ओर से कृषि करने की कोई व्यवस्था नहीं की गयी। गरीब किसानों के पास जमीन तो थी लेकिन पूँजी का अभाव था। जिसके चलते बहुत-सी जमीनें बंजर पड़ गई और अनाजों का उत्पादन भी कम होता गया। उद्योगों पर भी मजदूरों का नियंत्रण कायम हो गया था। 1920 में सरकार ने एक आदेश निकालकर कारखाने के समस्त उत्पादन और वितरण का भार अपने हाथ में ले लिया। उत्पादित मालों का वितरण मुफ्त होने लगा। जिसके चलते व्यापार बन्द हो गया। बैंक भी बन्द कर दिये गये और सबकी जगह पर एक "पिपुल्स बैंक" की स्थापना हुई। परन्तु, यह व्यवस्था भी सन्तोषजनक नहीं हो सकी। कारखानों में उत्पादन कम हो गया, क्योंकि लोगों को काम करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। निजी लाभ बन्द कर दिया गया था। इतना ही नहीं 1921 ई. में हुए गृह युद्ध और विदेशी आक्रमण से रूस की हालत काफी खराब हो गयी थी, और जो बचीकुची स्थिति थी, उसे 1921-22 के भयंकर अक...

सोवियत एवं अस्थायी सरकार का द्वैत शासन / अप्रेल थिसिस

सोवियत एवं अस्थायी सरकार का द्वैत शासन / अप्रेल थिसिस रूस में 1917 की फरवरी क्रांति के बाद जब ज़ार शासन को उखाड़ फेंका गया और उसकी जगह एक अस्थायी सरकार ने ले ली, साथ ही स्थानीय परिषदों का उदय हुआ, जिन्हें सोवियत कहा जाता है। उदारवादी और उदारवादी समाजवादी गुटों से बनी अस्थायी सरकार ने शुरू में लोकतांत्रिक प्रणाली द्वारा देश का मार्गदर्शन करने की कोशिश की। अस्थायी सरकार के अधिकार को सोवियतों द्वारा चुनौती दी गई, जो श्रमिकों, सैनिकों और किसानों की परिषदें थीं जो पूरे रूस के शहरों और कस्बों में उभरी थीं। सोवियतें विशेष रूप से पेट्रोगार्ड सोवियत, जमीनी स्तर के राजनीतिक और सामाजिक संगठन के शक्तिशाली केंद्र बन गए। वे मजदूर वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करते थे और उन्हें आम लोगो का समर्थन प्राप्त था, जो भूमि सुधार, रोटी की कमी और युद्ध के प्रयासों को जारी रखने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों में अस्थायी सरकार की असमर्थता से निराश थे। अस्थायी सरकार और सोवियतों के बीच सत्ता के इस द्वंद्व ने एक जटिल और अक्सर तनावपूर्ण राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी। अस्थायी सरकार के पास औपचारिक अधिकार और अंतरराष्ट्रीय मान्यत...