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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

नूरजहाँ

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नूरजहाँ नूरजहाँ मुगल काल की एक प्रभावशाली महिला थीं, जो अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता और अस्थिर स्वभाव के लिए जानी जाती थीं। 1600 के दशक में एक महिला के रूप में सत्ता के लिए उनका सफर उल्लेखनीय है। हालाँकि वह आधिकारिक तौर पर मुगल साम्राज्य की शासक नहीं थीं, लेकिन इतिहासकारों ने नूरजहाँ को सिंहासन के पीछे की असली शक्ति के रूप में चिन्हित किया है। राजनीतिक रूप से चतुर और करिश्माई व्यक्ति के रूप में उसने जहाँगीर की सहभागी के तौर पर साम्राज्य पर शासन किया तथा अधिकांश समय वह उससे अधिक निर्णायक और प्रभावशाली बनी रही। विद्वानों का मानना है कि नूरजहाँ एक बहुमुखी प्रतिभा की महिला थीं। वह एक मानवतावादी थीं जो गरीबों और ज़रूरतमंदों के मामलों से जुड़ी हुई थीं। साथ ही वह एक प्रतिभाशाली लेखिका थीं जिन्होंने मुगल दरबार की महिलाओं के बीच साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया।  नूरजहाँ अन्य मुगल शाही महिलाओं से अलग थीं। अन्य महिलाओं ने साम्राज्य को संतान प्रदान करके शक्ति प्राप्त की, लेकिन नूरजहाँ को जहाँगीर से कोई संतान नहीं थी। नूरजहाँ की शक्ति उनकी व्यक्तिगत योग्यता से आई थी। हालाँकि मुगल साम्राज्...

जहाँआरा बेगम

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जहाँआरा बेगम जहाँआरा बेगम बादशाह शाहजहाँ और मुमताज़ महल की बेटी थीं। जहाँआरा का जन्म अजमेर में 23 मार्च 1614 ई में हुआ था। जब वह चौदह वर्ष की थी, तभी से अपने पिता के राजकार्यों में हाथ बंटाती थी। 1631 में मुमताज़ की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बाद जहाँआरा को शाही मुहर सौंपी गई। उसी समय से उनके कंधों पर मुग़ल साम्राज्य की जिम्मेदारी आ गई। बादशाह शाहजहाँ अपनी पत्नी की मौत से इतने दुखी थे कि उन्होंने एकांत का जीवन गुज़ारना शुरू कर दिया। शाहजहाँ ने ऐसी स्थिति में अपनी किसी दूसरी महिला को महल के मामलों की ज़िम्मेदारी सौंपने के बजाय अपनी बेटी जहाँआरा को पादशाह बेगम बनाया और उनके वार्षिक वजीफ़े में चार लाख रूपये और बढ़ा दिए जिससे उनका वार्षिक वजीफ़ा दस लाख हो गया। इस प्रकार उन्हें मुग़ल साम्राज्य की पादशाह बेगम (पहली महिला) या 'बेगम साहब' की उपाधि मिली। यह पहली बार था कि किसी राजकुमारी को पादशाह बेगम का ताज पहनाया गया था। शाहजहाँ की पसंदीदा बेटी होने के नाते, उसने अपने पिता के शासन के दौरान महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव डाला और उस समय उसे "साम्राज्य की सबसे शक्तिशाली महिला" के र...

रजिया सुल्तान

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रजिया सुल्तान   रजिया सुल्तान का शासन मध्यकालीन भारत के पितृसत्तात्मक समाज में एक मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि वह समाज में मौजूद पुरुष प्रधानता के वर्चस्व को उलटने में कामयाब रही। रजिया ने इतिहास की पहली महिला शासक बनकर न केवल इतिहास रचा बल्कि दिल्ली के तख्त पर साल 1236 ई• से 1240 ई• तक शासन भी किया। रजिया सुल्तान का जन्म 1205 में भारत के बदायूं में हुआ था। वह शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश की बेटी थी और उसके तीन भाई थे। दिल्ली सल्तनत में जब बेगमो को सिर्फ महलो के अंदर रखा जाता था तब रजिया सुल्तान ने महल से बाहर निकलकर शासन की बागडोर सम्भाली। रजिया सुल्तान को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान था, जिसकी बदौलत उसे सल्तनत की पहली महिला शासक बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उसने दुसरे सुल्तान की पत्नियों की तरह खुद को “सुल्ताना” कहलवाने के बजाय सुल्तान कहलवाया क्योंकि वो खुद को किसी पुरुष से कम नही आंकती थी। उसका शासन न केवल उसके लिंग के कारण असाधारण था, बल्कि इसलिए भी कि उसके पिता ने उसे उसके सौतेले भाइयों के उत्तराधिकारी के रूप में चुना, जो पूरी तरह से उसकी योग्यता और बुद्धिमत्ता के आधार पर था। यह चुनाव उ...