बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

चित्र
बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

नूरजहाँ

नूरजहाँ

नूरजहाँ मुगल काल की एक प्रभावशाली महिला थीं, जो अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता और अस्थिर स्वभाव के लिए जानी जाती थीं। 1600 के दशक में एक महिला के रूप में सत्ता के लिए उनका सफर उल्लेखनीय है। हालाँकि वह आधिकारिक तौर पर मुगल साम्राज्य की शासक नहीं थीं, लेकिन इतिहासकारों ने नूरजहाँ को सिंहासन के पीछे की असली शक्ति के रूप में चिन्हित किया है। राजनीतिक रूप से चतुर और करिश्माई व्यक्ति के रूप में उसने जहाँगीर की सहभागी के तौर पर साम्राज्य पर शासन किया तथा अधिकांश समय वह उससे अधिक निर्णायक और प्रभावशाली बनी रही। विद्वानों का मानना है कि नूरजहाँ एक बहुमुखी प्रतिभा की महिला थीं। वह एक मानवतावादी थीं जो गरीबों और ज़रूरतमंदों के मामलों से जुड़ी हुई थीं। साथ ही वह एक प्रतिभाशाली लेखिका थीं जिन्होंने मुगल दरबार की महिलाओं के बीच साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया। 

नूरजहाँ अन्य मुगल शाही महिलाओं से अलग थीं। अन्य महिलाओं ने साम्राज्य को संतान प्रदान करके शक्ति प्राप्त की, लेकिन नूरजहाँ को जहाँगीर से कोई संतान नहीं थी। नूरजहाँ की शक्ति उनकी व्यक्तिगत योग्यता से आई थी। हालाँकि मुगल साम्राज्य में शक्तिशाली महिलाएँ थीं, लेकिन उनमें से किसी ने भी नूरजहाँ की तरह इतनी शक्ति प्राप्त नहीं की थी और न ही साम्राज्य को नियंत्रित नहीं किया था।

मुगल साम्राज्य में महिला शक्ति की वास्तविक परिभाषा नूरजहाँ थीं। उन्होंने मुगल हरम की महिलाओं के बारे में समकालीन और साथ ही आधुनिक विचार को बदल दिया, जिनका उद्देश्य केवल खुद को सुंदर बनाना था। वह कला और वास्तुकला में योगदान देकर उसकी प्रमुख संरक्षक बन गईं। नूरजहाँ हरम की महिलाओं में एकमात्र ऐसी महिला थी जिन्होंने बाघों और शेरों का शिकार किया और कभी पर्दा नहीं किया। विद्वान रूबी लाल ने भी लिखा है की वह एक निशानेबाज थीं, जो अक्सर अपने पति के साथ शिकार अभियानों पर जाती थीं। 
नूरजहाँ ने जिस मुगल परिवार में विवाह किया था, उसमें शाही महिलाओं की स्थिति मजबूत और प्रमुख थी। पत्नियाँ, माताएँ और मौसियों की राय को महत्व दिया जाता था। इतिहासकारों के अनुसार मुगल राज्य में महिलाओं की भागीदारी तुर्क-मंगोल विरासत से जुड़ी थी, क्योंकि मंगोल और तैमूर साम्राज्य के तहत महिलाएँ शक्तिशाली हस्तियाँ थीं जो राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेती थीं। हालाँकि, नूरजहाँ की तरह किसी भी महिला ने कभी भी साम्राज्य की कमान पूरी तरह से नहीं संभाली थी। नूरजहाँ के पास जिस तरह का अधिकार था, वह अधिक प्रत्यक्ष था। उनके कई पुरुष समकालीन नूरजहाँ से डरते थे क्योंकि रूढ़िवादी पितृसत्ता में उनकी स्थिति को स्वीकार करना मुश्किल था। 

जहाँगीर से पहले महिलाएँ मौज-मस्ती के लिए बहुत कम यात्रा करती थीं। उन्हें हरम के भीतर ही सीमित रखा जाता था। नूरजहाँ ने महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र से अवगत कराकर उनपर लगे प्रतिबंधो को कम किया। जिससे उनपर लगी बंदिशें खत्म होने लगीं तथा महिलाओं की स्थिति बदलने लगी। यह नूरजहाँ द्वारा संचालित और प्रेरित सुख-सुविधा ही थी जिसने महिलाओं के लिए मौज-मस्ती का रास्ता खोला। चूँकि महिलाएँ अब अपने मनोरंजन के लिए अधिक बार बाहर जाने लगीं, इसलिए हरम की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मुगल देहात के दूर-दराज के इलाकों में विश्राम स्थल बनाए गए। नूरजहाँ द्वारा संरक्षित स्थल थे नूर अफशां गार्डन (राम बाग), शालीमार बाग, डल झील, हरि पर्वत किला, मानसबल झील तथा मोती महल।

सम्राट से शादी के तीन साल बाद नूरजहाँ हरम में प्रमुखता से उभरी। उसने अपने पति जहाँगीर के साथ शासन करके रूढ़ी दलो को चुनौती दी। समकालीन विद्वान फ़रीद भक्करी के अनुसार नूरजहाँ ने जहाँगीर के शासनकाल के दौरान और बाद में वित्तीय और सैन्य मामलों में मुगल दरबार की सेवा की। वह निम्न स्तर की महिलाओं के मामलों में गहरी दिलचस्पी लेती थी- अनाथ लड़कियों के लिए दहेज देती थी। उसने अपने आस-पास के शाही पुरुषों और महिलाओं को कपड़े, गहने, घोड़े, हाथी और नकदी के उपहार दिए और गरीबों को भी बहुत सारा पैसा दिया। नूरजहाँ की उदारता ने उसे कई लोगों से सद्भावना और प्रशंसा अर्जित करवाई।

जहाँगीर अपने शासनकाल के अंतिम पाँच वर्षों (1622-1627) में शराब और अफीम के कारण इतना अस्वस्थ हो गया कि नूरजहाँ ने प्रशासन अपने हाथों में ले लिए। उसने दरबार में अपार शक्ति और प्रभुत्व प्राप्त किया और जल्द ही एक शक्तिशाली, साधन संपन्न और सम्मानित महिला बन गई। उसकी सफलता ने उसकी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ा दिया और राज्य के मामलों में उसका प्रभाव और सक्रिय भागीदारी बढ़ गई। यह भारतीय इतिहास में पहली बार था कि किसी महिला को ऐसा करने की अनुमति दी गई थी। आदेश में उसके हस्ताक्षर में नूरजहाँपादशाहबेगम लिखा जाता था, जिसका अनुवाद “नूरजहाँ महिला सम्राट” है।

नूरजहाँ के हस्तक्षेप के बावजूद भी शराब पीने और नशीली दवाओं के सेवन ने जहाँगीर की शाही व्यवसाय करने की क्षमता को बाधित किया। मुगल दरबार में ब्रिटिश राजदूत - थॉमस रो और डच ईस्ट इंडिया कंपनी के दो अन्य प्रतिनिधियों द्वारा लिखे गए लेखों में इसका उल्लेख किया गया है, जिनका 1620 के दशक में मुगल साम्राज्य के साथ लेन-देन था। इन सभी लोगों के अनुसार जहाँगीर की लत ने नूर को अधिक से अधिक शक्ति हासिल करने में मदद की। हालाँकि, फ़रीद भक्करी जैसे मुगल इतिहासकारों ने जहाँगीर के शराब पीने और अन्य ज्यादतियों को राजसी व्यवहार माना। विद्वान रूबी लाल का मानना है कि यूरोपीय लोगों के विपरीत, मुगल विद्वानों ने नूर के उत्थान को उसके पति की लत से नहीं जोड़ा। इसके बजाय उन्होंने उसकी महत्वाकांक्षा और चालाकी को उसके उत्थान का श्रेय दिया है।

नूरजहाँ का प्रशासनिक कौशल उसके शासन के दौरान अमूल्य साबित हुआ क्योंकि उसने अपने पति की अनुपस्थिति में साम्राज्य की सीमाओं की रक्षा की। विद्वान रूबी लाल के अनुसार 1626 में, सम्राट जहाँगीर को कश्मीर जाते समय विद्रोहियों ने पकड़ लिया था। विद्रोही नेता महाबत खान को जहाँगीर के खिलाफ तख्तापलट करने की उम्मीद थी। तब नूरजहाँ युद्ध के हाथी पर सवार होकर युद्ध में उतरी और अपने पति को रिहा कराने के लिए हस्तक्षेप किया।

विद्वान भक्करी की तज़किरा, ज़ख़ीरत-उल-ख़वानिन नूरजहाँ पर एक अलग अध्याय है। उन्होंने न केवल उनके सामाजिक और राजनीतिक महत्व को पहचाना बल्कि उन्हें एक आत्मनिर्भर प्रतिनिधि भी माना, जो अपने लिंग के बावजूद अपने पति या पिता पर निर्भर नहीं थी। हालाँकि शाह नवाज़ खान द्वारा लिखित मआसिर-उल-उमरा में, उन्होंने उनके पिता एत्मादुद्दौला की जीवनी के भीतर उनकी चर्चा करके उनके राजनीतिक महत्व को कम कर दिया। साथ ही उनके काम में नूरजहाँ के जीवन और गतिविधियों का वर्णन है, जो इस दावे को मजबूत करता है कि मुगल दरबार में कुलीन वर्ग की तस्वीर को पूरा करने के लिए उनका उल्लेख करना महत्वपूर्ण है। शाह नवाज़ ने शाही संप्रभुता के लिए नूरजहाँ के विशाल महत्व को स्वीकार किया, लेकिन वे उन्हें एक स्वायत्त व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने के लिए राजी नहीं थे। भक्करी के विपरीत, शाह नवाज ने नूर को चालाक और षडयंत्रकारी बताया और प्रशासनिक मामलों में उसके प्रभाव को उसके चतुर, चालाक स्वभाव का परिणाम बताया।

भक्करी ने उनकी प्रशंसा की और शाह नवाज़ ने उनके साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार किया। यह ध्यान देने योग्य है कि नूरजहाँ ने अपने पिता के खिलाफ शाहजहाँ के विद्रोह से निपटने में कामयाबी हासिल की, जिसके बारे में भक्करी ने कहा है कि, 'बेगम ने राजनीति और सभी मर्दानगी में नाम कमाया'। यह एक दिलचस्प कथन है और भक्करी द्वारा नूरजहाँ की प्रशंसा पुरुष केंद्रित तत्व को दर्शाता है। वह उनकी प्रशंसा इसलिए नहीं करते कि वह एक महिला थीं, बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि उनके अनुसार उनके पास ऐसे गुण हैं जो वास्तव में 'मर्दानगी' को परिभाषित करते हैं। संप्रभुता का प्रयोग एक 'मर्दाना गुण' माना जाता था और अगर नूरजहाँ ऐसा करने में सक्षम थीं, तो वह एक महिला नहीं थीं, बल्कि एक ऐसी महिला थीं जो 'मर्दानगी' के गुणों से संपन्न थीं।

विद्वान रूबी लाल का मानना है कि हरम में अपने पति के साथ और अंततः शासन में नूरजहाँ का प्रभाव उसके पारिवारिक संबंधों के माध्यम से बढ़ा। उसने 1611 से 1620 तक एक 'जुंटा' के माध्यम से दरबार पर अपना दबदबा कायम रखा, जिसमें मुख्य रूप से उसके करीबी रिश्तेदार शामिल थे। जहाँगीर ने सबसे महत्वपूर्ण दरबारी कार्यालय वित्त, जासूस और सैन्य नियुक्तियों को नूर के पिता और भाइयों के हाथों में सौंप दिया था। इन सबने उसे गठबंधन-निर्माण के माध्यम से राज्य के मामलों को आकार देने में मदद की। हालाँकि, जुंटा सिद्धांत का विद्वान नूरुल हसन ने विरोध किया उन्होंने तर्क दिया कि नूरजहाँ के परिवार के सदस्यों ने जहाँगीर से नूरजहाँ की शादी से बहुत पहले मुगल दरबार में अपनी वफादारी और समर्पण के कारण उच्च प्रशासनिक पद प्राप्त कर लिए थे।

अंततः नूरजहाँ तेजी से प्रभावशाली शाही सलाहकारों का हिस्सा बन गई। उसने व्यापारियों से वस्तुओं पर शुल्क देने का आदेश दिया और एशिया और यूरोप से व्यापारिक संबंध विकसित किए। उसने अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति भी बनाए रखी और अन्य देशों की महिलाओं से पत्र और व्यक्तिगत उपहार प्राप्त किए। वह दक्कन में चल रहे अभियान के बारे में विचार-विमर्श करने और भारत के साथ व्यापार के लिए विदेशी राजनयकों के अनुरोधों का आकलन करने में जहाँगीर की सहायता करती थी। जहाँगीर ने भी योग्य अधिकारियों और कुलीनों को सम्मानित करने, उनके पदों में वृद्धि करने तथा स्थानीय प्रशासन को निर्देश देने के लिए नूरजहाँ से सलाह मांगी।

हालांकि, दरबार के कुछ सदस्यों ने नूरजहाँ के उत्थान पर आपत्ति जताई। 1612 की शुरुआत में, अकबर के भाइयों में से एक ने जहाँगीर को एक पत्र लिखा था जिसमें भारतीय मुसलमानों और खुरासानियों को तरजीह देने की उसकी नीति की निंदा की गई थी। पत्र में नूरजहाँ और उसके परिवार के प्रभुत्व को निशाना बनाया गया था। नूरजहाँ के उत्थान और उसके परिवार के उच्च सरकारी पदों से परेशान एक और व्यक्ति महाबत खान था, जो महारानी और उनके इर्द-गिर्द एकजुट हुए ईरानी गुट को पसंद नहीं करता था।

नूरजहाँ के अगले सार्वजनिक कदम से पता चलता है कि वह एक उत्साही और कल्पनाशील महिला थी, जो निश्चित रूप से राज्य की शक्ति को अपने दिमाग में रखती थी। शासक की मां के आदेशों को हुक्म कहा जाता था, जबकि शाही पत्नी, राजकुमारी या राजकुमार की पत्नी के आदेशों को निशान कहा जाता था। सम्राट के आदेशों को फरमान कहा जाता था। नूरजहाँ पहली मुगल महिला थीं जिन्होंने अपने अधिकार से आदेश जारी किए और ये आदेश उनके पति के फरमानों से बहुत अलग नहीं थे। यह कर्ज और राजस्व संग्रह, भूमि अनुदान, सैन्य मामलों और आपराधिक मामलों के बारे में थे। हुक्म और निशान पर 'माँ', 'बेटी' या 'बहन' के हस्ताक्षर होते थे। लेकिन नूरजहाँ ने अपने नाम से एक सम्राट के रूप में हस्ताक्षर किए - नूरजहाँ पादशाह बेगम। पादशा का अर्थ है संप्रभु या सम्राट; यह वही शब्द था जो जहाँगीर के नाम के साथ दिखाई देता था। यह हस्ताक्षर एक सार्वजनिक घोषणा थी कि वह अपने पति की मौन स्वीकृति के साथ एक सम्राट की भूमिका निभा रही है।

आदेश जारी करना मुगल शासकों के विशेषाधिकारों में से एक था और वे इस्लामी संप्रभुता के आधिकारिक संकेत थे। 1617 में नूरजहाँ और जहाँगीर दोनों के नाम वाले सोने और चाँदी के सिक्के प्रचलन में आने लगे। यह पहली बार था कि किसी महिला का नाम मुगल सिक्के पर दिखाई दिया था और केवल नूरजहाँ के नाम वाले भी कुछ सिक्के थे। संप्रभुता के इस्लामी सिद्धांत के अनुसार, सिक्के और फरमान (शाही आदेश) शाही विशेषाधिकार थे, लेकिन यह तथ्य कि इन्हें नूरजहाँ के साथ साझा किया गया था, यह दर्शाता है कि दरबारी राजनीति में वह कितनी प्रभावशील थी।

नूरजहाँ ने प्रशासन, राजनीति और संस्कृति में अपने कौशल का उपयोग करके खुद को शानदार ढंग से स्थापित किया। वह अपने शाही आदेश खुद जारी करती थी। नूरजहाँ झरोखा में, महल की दीवार से निकली एक नक्काशीदार बालकनी में बैठती थी जहाँ से सरकारी काम-काज संचालित होता था। पहले या बाद में कोई भी मुगल रानी वहाँ नहीं बैठी थी। 1610 और 20 के दशक में जब वह सत्ता के शिखर पर थी, तो राजकुमार और दरबारी उसकी सलाह लेते थे और उसके आदेशों का पालन करते थे क्योंकि उसे अपने पति का विश्वास और भरोसा प्राप्त था। नूरजहाँ के नाम पर पूरे साम्राज्य में बहुत सारी जागीरें थीं। 1617 में, जहाँगीर ने नूरजहाँ को टोडा का परगना जागीर के रूप में भेंट किया, जिससे सालाना 2,000,000 रुपये की आय होती थी। यहाँ तक कि जब 1622 में उसके पिता की मृत्यु हो गई, तो उसकी सारी संपत्ति उसे हस्तांतरित कर दी गई। उसने उन सभी असाधारण सम्मानों का आनंद लिया जो उस समय या उससे पहले किसी भी महिला के लिए अनसुने थे। विद्वान पीटर वैनडेन ब्रोके ने कहा कि जहाँगीर की मृत्यु के समय, नूरजहाँ के पास ‘राजा द्वारा छोड़ी गई संपत्ति से अधिक’ थी।

इस्लामी दुनिया में निर्माण कार्य करवाना राजनीतिक सत्ता का एक महत्वपूर्ण साधन था। उस समय महिलाओं को निर्माण गतिविधियों में भाग लेने के लिए जाना जाता था और यह उन महत्वपूर्ण तरीकों में से एक था जिसके माध्यम से वे शाही संप्रभुता में भाग लेती थीं। डच यात्री फ्रांसिस्को पेल्सर्ट ने वास्तुकला के प्रति नूरजहाँ के संरक्षण के बारे में कहा है की "उसने सभी दिशाओं में बहुत महंगी इमारतें बनवाईं जैसे 'सराय’ या यात्रियों और व्यापारियों के लिए रुकने की जगह, और ऐसे बगीचे और महलों का निर्माण करवाया जो पहले किसी ने नहीं देखा था"।

1618 में नूरजहाँ ने जालंधर में नूरमहल सराय नामक अपनी पहली सार्वजनिक इमारत का निर्माण किया। पुरुष यात्रियों के लिए एक आवास बनवाकर और उसके प्रवेश द्वार पर अपना नाम खुदवाकर नूरजहाँ ने वास्तुकला को राज्यकला में बदल दिया। उनकी विरासत शानदार मकबरों और मस्जिदों में देखी जा सकती है। उन्होंने श्रीनगर की पत्थर मस्जिद भी बनवाई। 1621 में अपने पिता की मृत्यु के बाद इतिमादुद्दौला के मकबरे का निर्माण करवाया। इतिहासकार मुहम्मद हुदी और मुहम्मद खान ने कहा है कि दान के मामले में नूरजहाँ अपनी उदारता में बेहद उदार थीं, उन्होंने अपने संसाधनों का उपयोग ऐसे स्मारकों के निर्माण के लिए किया जो न केवल उपयोगी और आवश्यक थे बल्कि व्यापार की दृष्टि से भी जरूरी थे।

नूरजहाँ द्वारा वास्तुकला को संरक्षण देने की बात का उल्लेख समकालीन ग्रंथों में बहुत कम मिलता है। इसका पता शिलालेखों और यूरोपीय यात्रियों के लेखों से बेहतर चलता है। विद्वान फ्रांसिस्को पेल्सर्ट के अनुसार रानी ने अपनी छवि और प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए पूरे देश में महल और सराय बनवाई तथा वित्तीय लाभ के लिए निर्माण कार्य करवाए। नूरमहल सराय की वास्तुकला और डिजाइन मुगल और हिंदू संस्कृतियों का मिश्रण है। नूरजहाँ ने इसके अग्रभाग को आलंकारिक स्वर्गदूतों, अप्सराओं, मोरों, शेरों, हाथियों, घोड़ों पर सवार पुरुषों, पक्षियों और कमल की एक अद्भुत श्रृंखला के पैनलों से सजाया था। इन सभी ने स्थानीय हिंदू आबादी को आकर्षित किया। 

नूरजहाँ के शासनकाल में निर्मित इतिमादुद्दौला का मकबरा रानी की कलात्मक क्षमता और उनकी समझ और ज्ञान का सबसे बेहतरीन उदाहरण माना जा सकता है। उनके देखरेख में बनाया गया यह मकबरा देखने में अदभुत है। इस कलाकृति में फारसी प्रभाव के साथ-साथ यूरोपीय, भारतीय प्रभावों का भी पता लगाया जा सकता है। इस मकबरे में सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया। मुगलों के लिए गर्मियों में आराम करने का पसंदीदा स्थान कश्मीर था, जहाँ उन्होंने कई खूबसूरत बगीचे बनवाए थे। नूरजहाँ को बगीचों से बहुत लगाव था और उन्होंने आनंद और सुंदरता के लिए कई बगीचे बनवाए और उनका नवीनीकरण भी करवाया। यहां तक कि नूरजहाँ ने अपने लिए लाहौर के शाहदरा बाग में मकबरे का निर्माण करवाया। 17 दिसंबर 1645 में उनकी मृत्यु के बाद उन्हें उसी में दफनाया गया। 

एक रानी के रूप में नूरजहाँ ने पर्दा नहीं किया। नूरजहाँ हरम की महिलाओं में अकेली ऐसी महिला है जिन्होंने बाघों और शेरों का शिकार किया। उन्होंने अपने समय की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को चुनौती दी। उनका अपना दरबार भी था जहाँ वह जनरलों, राजनेताओं, अधिकारियों, दर्शकों और पुरुषों से मिलती थीं और राज्य के मामलों पर चर्चा करती थीं। यहां तक कि जब सम्राट अस्वस्थ होते थे तो मंत्रियों से सलाह-मशवरा करती थी और फैसले लेती थीं। वह प्रमुख प्रशासकों को लिखित आदेश भेजती थीं और जरूरत पड़ने पर हिसाब मांगती थीं। उन्हें शाही मुहर का प्रभार दिया गया था, जिसका अर्थ था कि किसी भी दस्तावेज, रिकॉर्ड या आदेश को कानूनी वैधता मिलने से पहले उनकी सलाह और सहमति आवश्यक थी। जब भी जहाँगीर कोई नया आदेश जारी करता था, तो वह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।

भारतीय इतिहास में नूरजहाँ के अलावा किसी भी महिला ने इतने लंबे समय तक इतनी शक्ति नहीं संभाली। उन्होंने मुगल साम्राज्य को प्रभावित करने और आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और उत्तरी और मध्य भारत का एक बड़ा हिस्सा शामिल था। वह उस समय की सबसे अनोखी और खूबसूरत वास्तुकला की संरक्षक थीं। उनके पिता का मकबरा ताजमहल की प्रेरणा था और इसे बेबी ताजमहल के नाम से भी जाना जाता है। उनका अपना इत्र और कपड़े का व्यापार था। वह कई कपड़ा और पोशाक जैसे नूरमहली पोशाक, पंचटोलिया बदला (चांदी के धागे वाला ब्रोकेड), किनारी (चांदी के धागे वाला फीता) आदि की संस्थापक थीं। नूरजहाँ को फर्श-ए-चांदनी, चंदन के रंग के कालीन की एक शैली को लोकप्रिय बनाने का श्रेय भी दिया जाता है।

नूरजहाँ उन महिलाओं की प्रवक्ता बन गईं जिनके पास संरक्षण देने और इतिहास में अपनी आवाज़ रखने की शक्ति और धन था। जहाँगीर के स्वास्थ्य में गिरावट के बाद नूरजहाँ ने साम्राज्य पर शासन करके अपार राजनीतिक शक्ति प्राप्त की और सम्राट की अनुमति से सिक्के ढालने और फ़रमान जारी करने के लिए खुद को योग्य साबित किया। कला और वास्तुकला के क्षेत्र में उनके योगदान ने उनकी शक्ति को और बढ़ाया। अंततः मुगल महिलाएँ समाज में अपनी उपस्थिति की घोषणा करने वाली महिलाएं बन गईं। नूरजहाँ ने अपनी उपस्थिति से मुगल महिला इतिहासलेखन में एक नई गतिशीलता जोड़ी और दुनिया को यह भी बताया कि शाही महिलाएँ भले ही दीवारों के पीछे हों, लेकिन राजनीति और वास्तुकला में वह किसी पुरुष से कम नहीं ।




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

18वीं शताब्दी “अंधकार युग”

यूनानी इतिहासलेखन परंपरा

रोमन इतिहासलेखन परंपरा