हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन
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इनके बीच जो अंतर था वह उनका इस्तेमाल करने वाले वर्गों के बीच अंतर का सूचक है। प्रथम कोटि की कलाकृतियों का उपयोग उच्च वर्ग के लोगों में होता था और द्वितीय कोटि का जनसामान्य में। हड़प्पा की स्त्रियां छोटे लहंगे पहनती थी जो ऊन या सूत के बने होते थे। वह बहुत प्रकार की शैलियों की चोटियां गूंथती थी और जुड़े बनाती थी। कुछ मूर्तियों के बालों की सज्जा तथा फूल अथवा आभूषणों का दिखना यह बतलाता है कि यह औरतें समाज में या तो ऊंचा दर्जा रखती थी ये देवियां है।
हड़प्पा काल के बच्चे अपना समय खिलौना से खेलने में व्यतीत करते थे। हड़प्पा के स्थलों से बहुत सारे खिलौने पाए गए हैं। इनमें गेंद चक्को सहित गाड़ियां अथवा पहियों पर बैठे जंतु, सीटीयां, झुनझुने इत्यादि प्रमुख हैं। हड़प्पा के बच्चे लड्डू से भी खेलते थे। टेराकोटा के बने कुत्तों से पता चलता है कि हड़प्पा वासी कुत्तों को पालते थे। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा जैसे स्थानों से कुछ गूंथते हुए अथवा चक्की पीसते हुए औरतों को दिखलाया गया है इससे स्पष्ट होता है कि औरतों का खाद्यान्न में महत्वपूर्ण योगदान रहता होगा।
हड़प्पा का समाज काफी अनुशासित था। हड़प्पा के लोग राजा की वजाय परिषद द्वारा शासित होते थे। हड़प्पा राज्य शहरी अभिजात जैसे व्यापारी कर्मकांड विशेषज्ञ एवं विभिन्न प्रकार के संसाधनों जैसे जमीन और मवेशी आदि पर नियंत्रण रखने वाले परस्पर प्रतिस्पर्धी समूह से मिलकर बना था, जिनका अपना अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग सीमा में नियंत्रण था।
हड़प्पा के लोग कृषि किया करते थे। यह शायद लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे। इस हल को आदमी खींचते थे या बैल, इस बात का पता नहीं है। फसल काटने के लिए शायद पत्थर के हंसिए का प्रयोग होता था। हड़प्पा के लोग बहुत सारे पशु पालते थे। वे बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पालते थे। वे गधे और ऊंट भी रखते थे और इन पर बोझा ढोते थे। घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ो से मिलता है। हड़प्पा के लोग पत्थर के बहुत सारे औजारों और उपकरणों का प्रयोग करते थे। जैसे कुल्हाड़ी, आरी, छुरा और बरछा।
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