बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

एथेंस नगर - राज्य तथा राजनीतिक संरचना

एथेंस नगर-राज्य में सभा लोकतंत्र की बुनियादी संस्था थी। एथेंस में जन का मतलब सिर्फ वही लोग थे जिन्हें हम नागरिक कह सकते हैं। महिलाएं इसमें शामिल नहीं थी। सिर्फ व्यस्क पुरुषों को ही नागरिक होने का विशेषाधिकार प्राप्त था। जनसभा में तमाम लोग शामिल नहीं होते थे जो पोलिस के मूलनिवासी नहीं थे। स्पार्टा में यह गैर-नागरिक "पेरीओइकोइ" तथा एथेंस में "मेटिक" कहलाते थे। पोलिस की दूसरी विशेषता एक परिषद की उपस्थिति थी। यह शासन का ठोस कामकाज संभालती थी। राजशाही के अंतर्गत कबीलों के प्रमुखों और बुजुर्गों को लेकर गठित परिषद एक सलाहकार निकाय थी। इलियड और ओडिसी में राजा महत्वपूर्ण मुद्दों पर परिषद से सलाह करता था।

यूनानी लोकतंत्र में एथेंस का एक विशेष महत्व है। एथेंस के राजनीतिक ढांचे के बारे में जानकारी दूसरे राज्यों की तुलना में ज्यादा व्यापक है। 594 ई• पू• में सोलन का सुधार एथेंस में लोकतंत्र की उत्पत्ति का एक महत्वपूर्ण चरण था। एथेंस में लंबे समय से सभा की बैठक नहीं हुई थी। सोलोन ने नागरिकों की सभा बुलाकर उसे पुनर्जीवित किया। उसने 400 सदस्यों की एक नई परिषद गठित की। नई परिषद "ब्यूल" कहलाई। एथेंस की पुरानी परिषद जो कुलीन वर्ग के अधीन थी, को भंग नहीं किया गया, लेकिन उसकी शक्तियां सीमित कर दी गई। 

ब्यूल अब राजनीतिक सत्ता का मुख्य केंद्र थी। इसकी सदस्यता का आधार वंशगत नहीं बल्कि संपत्ति थी। सोलोन ने एथेंस के नागरिकों को 4 वर्गों में बांट दिया। नागरिक का वर्ग उसकी संपत्ति के आधार पर निश्चित होता था। पहले वर्ग में वह लोग थे जिनके पास 500 मेडीमनोइ (अनाज की मात्रा मापने की एक इकाई) गेहूं या उसके बराबर के मूल्य की शराब या तेल का उत्पादन होता था।

दूसरे वर्ग में वे नागरिक थे जिनकी संपत्ति में कम से कम 300 मेडिमनोइ का उत्पादन होता था। तीसरे वर्ग में वे नागरिक थे जिनकी संपत्ति में कम से कम 200 मेडिमनोई का उत्पादन होता था। इसमें छोटे और मध्यम किसान शामिल थे। सबसे नीचे चौथा वर्ग था जिसकी संपत्ति में 200 मेडिमनोई से कम उत्पादन होता था। इसमें गरीब किसान, कारीगर और भूमिहीन शामिल थे। ब्यूल की सदस्यता सिर्फ पहले तीन वर्गों के लिए थी। चौथे वर्ग को इससे बाहर रखा गया था।

सार्वजनिक पदों पर बहाली चारों वर्गों के इस विभाजन के आधार पर की जाती थी। पहले के दो वर्गों के पास तमाम मुख्य पद रहते थे। तीसरे वर्ग को छोटे-मोटे पद दिए जाते थे। चौथे वर्ग को सिर्फ सभा की बैठकों में हिस्सा लेने का अधिकार था। सोलोन ने जो संपत्ति की योग्यता तय की थी उसने नागरिकों के राजनीतिक अधिकार निश्चित किए। इसके बाद क्लाइसथीनिज ने जो लोकतांत्रिक ढांचा स्थापित किया उसकी प्राथमिक इकाई "डीम" थी।

सभी नागरिक किसी न किसी डीम के सदस्य थे। डीम एक भौगोलिक इकाई थी जिसमें राजनीतिक उद्देश्य से एथेंस का पोलिस विभाजित किया गया था। कुल मिलाकर 200 डीम थे। यह अपने नागरिकों की सूची रखते थे। इनकी अपनी निर्वाचित सरकार थी जिसमें सभा और अधिकारी शामिल थे। डीम 3 प्रकार के थे तटीय डीम, नगरीय डीम और दूरदराज के ग्रामीण डीम। क्लाइसथीनिज ने ब्यूल की रचना में भी तब्दीलियां की।

ब्यूल की सदस्यता तमाम नागरिकों के लिए खोल दी गई। 30 साल से अधिक आयु वाला नागरिक ब्यूल का सदस्य बन सकता था। इस पर कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रशासन संबंधी ढेर सारी जिम्मेदारियां थी। इसे अपने कामकाज के लिए रोजाना बैठके करनी पड़ती थी। कर वसूली की देखरेख ब्यूल करता था। यह विदेशी संबंधों की देखरेख करता था। जहाजों और बंदरगाहों की देखभाल करता था। एथेंस की सभा "एक्लेसिया" कहलाती थी। सभी नागरिकों को सभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने और मतदान करने का अधिकार था। इसकी सदस्यता के लिए निम्नतम आयु 18 वर्ष थी।

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