बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

चित्र
बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

यूनानी इतिहासलेखन परंपरा

यूनानी इतिहासलेखन परंपरा

परिचय:- इतिहासलेखन परंपरा का आरंभ यूनानीयों द्वारा किया गया। उन्होंने ही सबसे पहले वास्तविक इतिहासलिखने की कला सीखी, उसके उद्देश्यों, इसके कार्यों और इसके नियमों को बतलाया। यूनान के हीरोडोटस (480-430 ई•पू) को इतिहास का जनक कहा जाता है। इतिहासलेखन के क्षेत्र में यूनानीयों का योगदान सराहनीय है। प्राचीन यूनान में अतीत की सुरक्षा के प्रयास साहित्यिक कृतियों में दृष्टिगोचर होते है। यूनान के प्रारंभिक लेखकों का ध्यान समकालीन लेखन पर ही था। परंतु समय बीतने के साथ-साथ यूनानी इतिहासलेखन परिपक्व होता गया। प्राचीन यूनानी अपने परिवार के पूर्वजों को आस्था और सम्मान प्रदान करते थे। अपने पूर्वजों की स्मृति और वंशावली को सहेजने के उद्देश्य से उन्होंने अपनी कृतियों की रचना की। इनकी कृतियों में भूगोल, समाजशास्त्र और मानवशास्त्र संबंधी जानकारी भी समाहित है। किंतु विद्वान शाटवेल ने यूनानी कृतियों की आलोचना की है और कहा है कि इन्होंने इतिहास का मार्ग अवरुद्ध कर दिया तथा इनमें इतनी अधिक काल्पनिक सामग्रियां है कि इनमें यथार्थ, कल्पना और लोकरुचि का पता लगाना बहुत कठिन है।

यूनान में इतिहासलेखन का आरंभिक स्वरूप वीरगाथा के रूप में दिखाई देता है। युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले वीरों की स्तुति में लिखे गए गीत अतीत का विवरण प्रस्तुत करने के आरंभिक प्रयास माने जाते हैं। होमर नामक काव्यकार ने इन गीतों को संकलित करके लिखित रूप दिया। होमर द्वारा रचित कविताओं में पर्याप्त ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त होती है। आधुनिक इतिहासकार होमर की कृतियों को वास्तविक इतिहास नहीं मानते।

उनके अनुसार यह कविताएं लोकगीतों पर आधारित है और दीर्घकाल तक लोक में प्रचलित रहने के कारण इनमें विभिन्न कालों की जानकारी मिली-जुली है। तब भी होमर द्वारा रचित इलियड और ओडिसी जैसे महाकाव्य की यूनानी साहित्य में बहुत प्रतिष्ठा है। शाटवेल के अनुसार यूनानीयों के लिए होमर की कविताओं का वही महत्व था, जो यहूदियों के लिए “ओल्ड टेस्टामेंट” का था। इन्होंने यूनानी बौद्धिक जीवन को बहुत प्रभावित किया है।

इतिहासलेखन की एक अन्य प्रवृत्ति के दर्शन हेसियोड की कविताओं में होता है। हेसियोड ने वीरों और देवताओं के आपसी संबंधों को प्रदर्शित करने वाली रचनाएं लिखी। वीर पुरुषों के वंशो को देवताओं से संबंधित बताने की प्रवृत्ति उसकी रचनाओं में दृष्टिगोचर होती है। उसने इतिहास की युग चक्रवादी अवधारणा प्रस्तुत की है:- स्वर्ण युग, रजत युग, कांस्य युग, लोह युग। इसके अनुसार चक्रात्मक प्रक्रिया के तहत युग परिवर्तन होता है और ऋतु परिवर्तन के समान ही युग भी आते जाते रहते हैं। विद्वान कालिंगवुड ने हेसियोड के युग-चक्रवादी सिद्धांत की आलोचना की और इसे अनैतिहासिक माना है। उसके अनुसार धार्मिक विचारों पर आधारित कथाओं में इतिहास का अंश नहीं है। 

छठी शताब्दी ई• पू• में यूनान में परिवर्तनकारी घटनाएं घटी। कल्पना और पौराणिकता के स्थान पर तर्क और चिंतन के आधार पर घटनाओं की व्याख्या के प्रयास किए गए। ईरानिया द्वारा यूनानीयों के कुछ भाग अधीन कर लेने से दोनों संस्कृतियां निकट आई और निश्चय ही चिंतन और लेखन पर इस पारस्परिक संपर्क का प्रभाव पड़ा। 

छठी शताब्दी ई• पू्• में यूनानी पुरोहितों, न्यायाधीशों और उच्चअधिकारियों की तालिकाओं, राजाओं की वंशावली के लेखो को संरक्षित रखने का कार्य प्रारंभ हुआ। लेखकों ने नगर, निगमो, जातियों, राजवंशों और मंदिरों की परंपराओं के साथ-साथ लोक प्रचलित किंवदंतियों को भी लेख बद्ध किया। परीक्षण, खोजबीन और अनुसंधान के आधार पर इतिहास रचना की प्रवृत्ति विकसित होती गई। इस प्रवृत्ति के लक्षण निम्नलिखित इतिहास लेखकों के विवरण में दृष्टिगोचर होते हैं।

हेकेटियस:- इनके लेखन में परीक्षण आधारित इतिहासलेखन की विशेषताएं पाई जाती है। इसने मिस्र की यात्रा कर ट्रैवल्स अराउंड द वर्ल्ड तथा बुक ऑफ जीनियोलाजी नामक पुस्तकें लिखी। प्रथम पुस्तक में उसने फारस का वर्णन किया है जबकि द्वितीय में प्राचीन वंशावली का विवेचन करते हुए कल्पित और आधारहीन प्राचीन आख्यानों की आलोचना की है। सत्य के प्रति निष्ठा व्यक्त करते हुए उसने लिखा है -”मैं वही लिखता हूं जो मुझे सत्य प्रतीत होता है क्योंकि यूनानीयों की अनेक कहानियां है जो मुझे हास्यास्पद लगती है”। इसने प्राचीन अख्यनोंं में विद्यमान कल्पित और पौराणिक विवरणों को इतिहास में सम्मिलित नहीं किया है। 

हेरोडोटस:- हेरोडोटस को इतिहास का जनक माना जाता है। “हिस्ट्री” शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग इन्होंने ही किया था। इनका इतिहासलेखन पौराणिक तथा धार्मिक होने के स्थान पर मानवतावादी प्रतीत होता है। यह कार्यों के होने के पीछे मानवीय क्रिया को स्वीकार करते हैं। इनकी प्रथम रचना यूनानी-एशियाई संबंधों पर आधारित है। 

इस रचना में लीडिया के कोसेस के काल से लेकर यूनानीयों और पारसिकों के बीच हुए संघर्ष का विवरण है। यूनानीयों द्वारा पर्शियन राजा जर्गजीज को पराजित करने का विर्णन इसमें मिलता है। हेरोडोटस ने कोसेस की वंशावली, साम्राज्य विस्तार और उत्थान-पतन का विवेचन किया है। कोसेस के पश्चात लीडिया पर कुरुष और कंबुजिया का अधिकार स्थापित हो गया। कंबुजिया का अधिकार एशिया और मिस्र पर हो जाने पर मिश्र से संबंधित उल्लेख भी हेरोडोटस ने अपने ग्रंथ में समाहित किए हैं। कंबुजिया के बाद डेरियस और जर्गजीज ने यूनान पर अधिकार करने के प्रयास किए। यूनानीयों ने जर्गजीज को बुरी तरह परास्त किया। हेरोडोटस के विवरण में यूनानीयों द्वारा पर्शियन राजा जर्गजीज की सेनाओं के विध्वंस का विवरण मिलता है। इसके साथ ही उसने भूमध्यसागरीय और एशियाई लोगों के विषय में भी लिखा है। उसने अपने लेखन में राजनीतिक वर्णन के साथ ही सामाजिक रीति रिवाज पर भी प्रकाश डाला है। इतिहास लिखते समय उसने संपर्क में आने वाले दूसरे देश के विषय में जानकारी देने की प्रवृत्ति भी उसके लेखन में विद्यमान है। इसके लेखन में शत्रु सेना की वीरता की प्रशंसा भी की गई है। मानव के द्वारा किए गए कार्यों के पीछे विद्यमान कारणों की खोज भी इसके लेख में उपस्थित है। उन्होंने यूनानी और बर्बर जातियों के युद्ध के कारण सामने लाना अपने इतिहासलेखन का प्रमुख उद्देश्य बताया है। विद्वान बार्नेज ने लिखा है “इतिहासलेखन के क्षेत्र में हेरोडोटस का यश एक रचनात्मक कलाकार के रूप में सदैव अमर रहेगा। 

उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ में दिलचस्प कथाओं का भी समावेश है। साथ ही अन्य देशों के बारे में लिखे गए विवरण सुनी-सुनाई बातों पर आधारित है इसलिए उनमें पौराणिकता और अविश्वसनीयता पाई जाती है।

थूसीडायडीज (456-396 ई•पू•):- यूनानी इतिहासलेखन की परंपरा में थूसीडायडीज का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने यथार्थ निरूपण पर बल दिया। इनके लेखन की एक अन्य विशेषता उसका वर्ण्य-विषय पर स्वयं को केंद्रित रखना भी है। राजनीतिक इतिहासलेखन में संलग्न रहने के कारण उन्होंने सांस्कृतिक तत्वों की अपने लेखन में उपेक्षा की है। अपने ग्रंथ में लेखन प्रविधि को स्पष्ट करते हुए उसने वास्तविकता पर आधारित तथ्यों को अपने इतिहास में स्थान दिया है। उसका कथन है कि उसकी कृति पूर्ववर्ती ऐतिहासिक रचनाओं से श्रेष्ठ है क्योंकि उसमें किवदंतीयों और पुराण कथाओं को स्थान नहीं दिया गया है

इन्होंने पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास लिखा है। इसमें वह अपने राज्य एथेंस के अन्य प्रतिद्वंदी यूनानी राज्यों के साथ हुए संघर्षों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते है। युद्ध के आरंभ होने के पूर्व से ही अपने ग्रंथ की रचना आरंभ कर दी थी। इन्होंने युद्ध के समय घटित घटनाओं का यथार्थ विवरण देने का प्रयास किया। एथेनियन क्रांति के विवरण को प्रस्तुत करने हेतु तत्कालीन व्यक्तियों के विचारों को जानने का प्रयास किया। इस अर्थ में इन्होने समसामयिक स्रोतों का भरपूर उपयोग किया है। उसके लेखन में युद्ध के कारणों की खोज तथा एथेंस की पराजय के कारणों की व्याख्या भी प्राप्त होती है। इनका उद्देश्य अपने लेखन के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को अतीत की समस्याएं प्रस्तुत होने पर उनके समाधान में समर्थ बनाने वाली सूझ प्रदान करना था। एक विषय वस्तु पर केंद्रित रहना इनकी विशेषता है। विद्वान बर्ने ने लिखा है कि उसने तथ्यों के विवरण में ऐतिहासिक परिपेक्ष में काल तथा भौगोलिक कारकों की उपेक्षा की। इसने इतिहास का क्षेत्र राजनीति तक सीमित करके इसके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भुला दिया।

विद्वान कालिंगवुड ने हेरोडोटस को इतिहास का जन्मदाता और थूसीडायडीज को मनोवैज्ञानिक इतिहास का जनक माना है। थूसीडायडीज ने यूनानी इतिहास लेखन परंपरा में नवीन आयाम जोड़े। ऐतिहासिक यथार्थता पर बल, तथ्यात्मक प्रस्तुतीकरण, मानवीय इच्छा की प्रबलता और समसामयिक स्रोतों के भरपूर प्रयोग ने उसके इतिहास को विशिष्टता और प्रामाणिकता प्रदान की है।

पॉलीबियस (198-11 ई• पू•):- ग्रीको-रोमन इतिहास लेखन में पॉलीबियस का विशिष्ट योगदान है। इन्हें रोम में इतिहासलेखन की प्रेरणा प्राप्त हुई। इन्होंने 40 जिल्दो में रोमन साम्राज्य के इतिहास और संवैधानिक विकास पर अपना ग्रंथ “इतिहास” लिखा। इसमें 164 ई• पू• से 146 ई• पू• तक का रोमन साम्राज्य का इतिहास सम्मिलित है। इसमें रोम और यूनान दोनों राज्यों के तथ्यपरक निष्पक्ष इतिहास की जानकारी शामिल है। ग्रंथ की 40 जिल्दो में से 5 आज प्राप्त होती है जिनमें पॉलीबियस की इतिहासलेखन प्रवृत्ति पर प्रकाश पड़ता है। इनके लेखन में तथ्यों तथा सत्य पर बल मिलता है। इनका कथन है कि यदि किसी जीव की आंखे निकाल ली जाए तो वह बेकार हो जाता है उसी प्रकार यदि इतिहास से भी सत्य को निकाल दिया जाए तो वह व्यर्थ हो जाएगा। इसने स्रोत चयन हेतु प्रयुक्त सामग्री को स्पष्ट करते हुए इतिहासलेखन की प्रविधि को बताया है। साथ ही व्यक्ति, स्थान और घटनाक्रम का परिचय अपने लेखन में दिया है। इनका कथन है कि किसी नीति या व्यवस्था की सफलता-असफलता के कारणों का पता लगाया जाना चाहिए। किसी भी घटना का केवल उल्लेख करना तो रूचीपूर्ण होता ही है किंतू जब उसे कारणों के साथ वर्णित किया जाता है तब इतिहास का अध्ययन उपयोगी बन जाता है। यह मानते हैं कि प्रत्येक घटना के कुछ संभावित और असंभावित कारण होते हैं।

इसने रोमन साम्राज्य के पतन का कारण रोमवासियों का विलासप्रिय जीवन बताया है। पॉलीबियस ने इतिहास की अवधारणा को सार्वभौमिक माना है। इस अर्थ में वह इतिहास को देश और काल की सीमा से परे मानवता के लिए उपयोगी अध्ययन मानता है। यह मानते हैं कि अतीत की घटनाओं से शिक्षा लेकर मनुष्य अपने चरित्र में सुधार कर सकता है। भाग्य के स्थान पर मानवीय इच्छाशक्ति की प्रबलता में इनका विश्वास था। यह घटना के घटित होने में मानवीय इच्छा को मान्यता देते है। इनके अनुसार जीवन में आने वाले सुख-दुख भाग्य की अपेक्षा काल और परिस्थितियों पर आश्रित होते है। मानव अपनी इच्छा शक्ति के द्वारा परिस्थितियों पर नियंत्रण करने का प्रयास करता है। इतिहास के युग चक्रवादी सिद्धांत को स्वीकार करते हुए यह उत्थान, विकास, पतन और अंत को प्राकृतिक नियम पर आधारित बताते हैं। 

जेनोफेन:- यह पौराणिक शैली में लिखे गए उम्र के ग्रंथ की आलोचना करते हैं। इसनेे अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्ध, कृषि, व्यापार, खेलकूद, दर्शन, शिक्षा आदि विभिन्न विधाओं पर लिखा है। इनकी प्रमुख कृति एनाबेसिस है। इन्होंने हेलेनिका नामक ग्रंथ की रचना करके थूसीडायडीज की कृति के आगे का इतिहास लिखा। इनकी अन्य कृति वेज एंड मिंस में यूनानी राजनीति में विद्यमान आर्थिक तत्वों का विवेचन है।

स्टोइक पोसोडोनियस:- पॉलीबियस द्वारा आरंभ की गई विश्व इतिहास लेखन की परंपरा को पोसोडोनियस ने आगे बढ़ाया। इसने 52 जिल्दों में इतिहास नामक कृति में 144 ई•पू• से 82 ई•पू• तक की गतिविधियों का विवरण लिखा है। इसके अतिरिक्त “भूगोल” नामक ग्रंथ की रचना की है।

स्ट्रेबो:- इनकी प्रसिद्ध कृति भूगोल है। इस ग्रंथ में इसने ऐतिहासिक भूमिका प्रस्तुत करते हुए पूर्ववर्ती भूगोलविदों के योगदान की चर्चा की है। इसने देश-विदेश की यात्राएं कर भौगोलिक स्थलों के विषय में जानकारी एकत्र की। भौगोलिक जानकारियों के साथ यह सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों की भी चर्चा करते है। इनके ग्रंथ से भारत के विषय में भी विविध सूचनाएं मिलती है। हिस्टोरिकल मेमोरीज नामक पुस्तक में इसने सिकंदर की उपलब्धियों की चर्चा की है।

निष्कर्ष:- इस प्रकार हम देखते हैं कि यूनान में छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्धिक क्रियाकलापों की अभिव्यक्ति के एक साधन के रूप में इतिहास नामक ज्ञान की एक शाखा की उत्पत्ति हुई। यूनानी लेखकों के काल में यह परंपरा पल्लवित होती रही। इतिहासलेखन में यूनानीयों के योगदान को व्यक्त करते हुए थाम्पसन ने लिखा है- यूनानीयों ने सभी प्रकार का इतिहास लिखा। उन्होंने ही पहले वास्तविक इतिहास लिखने की कला सीखी, उसके उद्देश्यों, कार्यों और नियमों को प्रतिपादित किया। यूनानी विज्ञान और दर्शन की भांति इतिहास के भी जन्मदाता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

18वीं शताब्दी “अंधकार युग”

रोमन इतिहासलेखन परंपरा