प्राचीन भारत में कला और स्थापत्य
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
चैत्य बौध्दों के मंदिर का काम करता था और विहार निवास का। चैत्य पायो पर खड़ा बड़ा हॉल जैसा होता था, और विहार में एक केंद्रीय शाला होती थी जिसमें सामने के बरामदे की और एक द्वार होता था। विहार चैत्यों के पास बनाए गए। उनका उपयोग वर्षा काल में बौध्दो के निवास के लिए होता था। शिलाखंडीय वास्तुकला सातवाहन काल में ही पाई जाती है। यह संरचनाएं अधिकतर स्तूप के रूप में है। स्तूप गोल स्तंभकार ढांचा है जो बुद्ध के किसी अवशेष के ऊपर खड़ा किया जाता था।
सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी। सभी अभिलेख इसी भाषा में और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। राजाओं ने प्राकृत में पुस्तकें भी लिखी। "गाथासतसई" सातवाहन राजा की रचना बताई जाती।
गुप्त काल में मानव शरीर का प्रस्तुतीकरण कलात्मक हो गया। मानव शरीर की आकृतियों की मुद्राओं में और लचीलापन आ गया। तिगवा का विष्णु मंदिर, भूमर और खोह के शिव मंदिर, नचना-कुठार का पार्वती मंदिर और सांची के बौद्ध स्तूप सभी पत्थरों से बने हैं, इसी काल के हैं। बिहार के बोधगया में बोधि मंदिर और झांसी जिला के देवगढ़ का दशावतार मंदिर भी इसी काल का है।
मंदिर के प्रवेश द्वार अत्यंत जटिल अलंकार वाले होते थे। मंदिरों में शिखर भी बनाए जाते थे। देवगढ़ के मंदिर के प्रमुख प्रवेश द्वार में प्रतिमा देखी जा सकती है, इसमें पक्षी, पूर्णघट, मिथुन के अलावा बोने लोगों की प्रतिमाएं शामिल है। इस काल की अन्य प्रमुख विशेषताओं में दरवाजों के चौखट के ऊपर शंख और कमल के चित्र के अद्भुत चित्रण देखे जा सकते हैं। देवगढ का मंदिर इस तरह के प्रतीकों का एक उदाहरण है। इस काल के गुफा स्थापत्य को बौद्ध स्थापत्य कहा जा सकता है। गुफाओं को काटकर बनाए गए स्थापत्य में इस काल में अजंता और बाघ की गुफाएं सबसे प्रसिद्ध कही जाती है।
अजंता में कुल मिलाकर 28 गुफाएं हैं। अजंता की गुफाओं का स्थापत्य दो चरणों में संपन्न हुआ। सातवाहन काल में 5 गुफाओं को बनाया गया जबकि अन्य 23 गुफाएं वाकाटक काल में बनाई गई थी। इनमें से गुफा संख्या 19 और गुफा संख्या 26 चैत्य हैं अन्य सभी गुफाएं विहार है। अजंता के भित्ति चित्रकला संपूर्ण गुफा स्थापत्य को चार चांद लगा देती है। अजंता की गुफाओं की दीवारें, छत, चौखट, दरवाजे और स्तंभ सभी पर भित्ति चित्र बने हुए है।
अजंता की गुफाओं में यक्ष, गंधर्व और अप्सराओं को भी चित्रित किया गया है। प्रकृति के विषय में कलाकारों की गंभीर सहानुभूति देखने को मिलती है। वृक्षों, पुष्पों, हाथी, बंदरों, हिरण जैसे पशुओं के चित्रों का चित्रांकन भी किया गया है। मानव आकृतियां सौंदर्य बोध से युक्त है। स्त्रियां पतली कमर वाली और पूर्ण स्तनों वाली हैं। आंखें कमलनयनी के सामान है। इनके आभूषण और केश सज्जा चित्रात्मक है।
बाघ की गुफाएं, अजंता की गुफाओं के उत्तर-पश्चिम में लगभग 150 मील की दूरी पर स्थित है। अजंता की तुलना में बाघ की गुफाओं की कला अधिक साधारण और सादगी युक्त मालूम पड़ती है। इनमें कुछ गुफाओं के मुख्य हॉल के साथ छतो को सहारा देने के लिए स्तंभ बनाए गए हैं। बाघ की गुफाओं में भी भित्ति चित्रकला का अस्तित्व था जो अब लुप्त हो गया है।
इस काल को मूर्तिकला में कई नव परिवर्तनों का युग भी कहा जा सकता है। इस काल की मूर्तिकला काफी समृद्ध है। विष्णु की प्रतिमाओं में नर पशु आकृति और मानव आकृति दोनों का निरूपण देखा जा सकता है, जो विष्णु के वराह अवतार से परिलक्षित होता है। विष्णु के शंख तथा चक्र को पुरुषों के रूप में मानवीकृत स्वरूप दिया जाने लगा। बुद्ध की प्रतिमाओं में पहले की अपेक्षा कहीं अधिक मुद्राएं देखी जाने लगी। बुद्ध की प्रतिमाओं के चारों और व्यापक अलंकरण दिखलाई पड़ने लगा। मथुरा और सारनाथ में इस काल में मूर्तिकला की विशिष्ट शैलियों का विकास देखा जा सकता है।
सारनाथ की बुद्ध प्रतिमाओं को कला इतिहासकारों के द्वारा प्राचीन भारतीय इतिहास के संपूर्ण काल में बनाई गई सभी प्रतिमाओं में सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया जाता रहा है। इस काल की प्रतिमाओं में पशुओं की विशाल प्रतिमा खेरागढ़, उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुई है जो मटियाले चुना पत्थर पर बनाई गई थी। इसे वर्तमान में लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में रखा गया है। इस काल की टेराकोटा कला का विशेष महत्व था। इनमें पशुओं, सामान्य मनुष्यों देवी-देवताओं जिनमें दुर्गा, कार्तिकेय, सूर्य आदि सम्मिलित है, पाए गए हैं।
600 ई• के बाद मंदिरों में तीन प्रकार की स्थापत्य शैलियों का वर्णन मिलता है नागर, द्रविड़ तथा वेसर। नागर मंदिर की आधारभूत योजना वर्गाकार होती थी। इसके प्रत्येक हिस्से के मध्य में अनेक उभार होते थे। द्रविड़ शैली के मंदिरों की सबसे बड़ी विशेषता इन के सूचीस्तंभीय(पिरामिड) शिखर है, जिनका उत्थान छोटी-छोटी मंजिलों के रूप में होता है, जो अंत में पतले शीर्ष का रूप ले लेती है।
द्रविड़ शैली में बने मंदिरों में वर्गाकार गर्भगृहों के चारों ओर से छातवाले विशाल मंडप घिरे होते हैं। बाहरी दीवारें अर्धस्तंभों के द्वारा अलग-अलग ताखों में बंटी होती है। वेसर शैली एक शंकर शैली है। वेसर का शाब्दिक अर्थ खच्चर होता है। इसे परिभाषित करना अधिक कठिन है, क्योंकि उत्तर अथवा दक्षिण भारतीय शैलियों से ली गई विशेषताओं का कोई निश्चित अनुपात नहीं है। कल्याणी के चालुक्यों और होयसालों के समय बने दक्कन के मंदिर, इस शैली में बने मंदिरों के उदाहरण है।
एलोरा की गुफाएं पश्चिम भारत में बौद्ध गुफा स्थापत्य के अंतिम चरण का प्रतिनिधित्व करती है। इसमें नए परिवर्तन देखने को मिलते हैं, जैसे मंदिरों के आकार में वृद्धि, प्रतिमाओं की संख्या और अलंकरण में बढ़ोतरी। एलोरा गुफाओं को भव्य कैलाशनाथ मंदिर के कारण भी जाना जाता है। इस मंदिर को पथरीली पहाड़ी को तराश कर आठवीं शताब्दी में बनाया गया। इसमें मुख्य मंदिर की निचली और ऊपरी मंजिलें हैं।
मंदिर की बाहरी संरचना द्रविड़ शैली की कही जाती है। इन मंदिरों की सतहों पर विष्णु और शिव की प्रतिमाएं उत्कृष्ट की गई है। बादामी और ऐहोले, प्रारंभिक स्थापत्य काल का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐहोले में दो प्रभावशाली गुफा मंदिर विद्वान है, एक जैन तथा दूसरा शैव, और दोनों की दीवारें अत्यधिक अलंकृत है। बादामी की गुफाएं लाल बलुआ पत्थरों की पहाड़ी को काटकर बनाया गया है, जिसका रुख एक तालाब की ओर है। गुफा स्थापत्य की योजना सरल है- एक बरामदा, स्तंभों वाला एक कक्ष और छोटे वर्गाकार गर्भग्रह है। दीवारें और छतें तराशी हुई है।
पल्लव मूर्तिकला की अपनी विशेषताएं हैं, जो गुप्त-कालीन उत्तर-भारत की मूर्ति कला से भिन्न है। मानव आकृतियों के चेहरे गोलाकार, शरीर पतले और अंग पतले बनाए गए हैं। पल्लव के गुफा मंदिर, अजंता और एलोरा की अपेक्षा छोटे और कम जटिल है।
इस काल में मंदिर स्थापत्य तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि और अलंकरण देखा गया तथा क्षेत्र शैलियों का स्वतंत्र विकास हुआ। इस काल के स्थापत्य और कला में मूर्तिकला की लोकप्रियता और धर्मों का व्यापक संस्थानीकरण प्रतिबिंबित होता है। इस काल का कला और स्थापत्य धार्मिक प्रतीकों के इर्द-गिर्द रहा। इसके विकास में शासकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिन्होंने इसे संरक्षण प्रदान किया।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box