रोमन साम्राज्य में दासप्रथा
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
रोम में 326 ई• पू• के बाद स्वतंत्र रोमन किसानों को ग़ैर-मुक्त श्रमिकों में बदलना मुश्किल हो गया। 300 ई• पू• के बाद धनी जमीदारों ने इटली और विदेशों की ज्यादा से ज्यादा जमीनें अपनी झोली में डाल ली, जिससे श्रमिकों की कमी की समस्या उत्पन्न हुई। रोम में किसानों ने कर्ज-गुलामी के खिलाफ संघर्ष किया और उसमें कामयाब रहे। लेकिन वह अपनी जमीन पर अपना कब्जा बरकरार नहीं रख सके।
कुलीन वर्ग गुलाम-श्रम का इस्तेमाल अपनी विशाल जायदादों "लैटीफुंडिया" में उत्पादन के लिए करते थे। गुलाम पहले से ही यूनान और पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मौजूद थे। यहां गुलामों को पकड़ा तथा खरीदा बेचा जाता था। कई सदियों तक गुलाम भूमध्यसागर क्षेत्र में व्यापार का एक महत्वपूर्ण माल थे। यूनान तथा रोम में होने वाले युद्धों ने गुलाम व्यापार को फलने-फूलने का अवसर दिया।
इटली, स्पेन, गाल और अफ्रीका के लैटीफुंडिया ने गुलामों की लगातार बढ़ती संख्या को खपत की। रोमन लैटीफुंडिया पर ही प्राचीन गुलामी विकास के शीर्ष पर पहुंची। "पी.ए. ब्रंट" ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया है कि 225 ई• पू• में इटली की कुल आबादी 50 लाख थी। जिसमें 6 लाख गुलाम थे। 225 से 43 ई• पू• के बीच गुलामों की संख्या में वृद्धि हुई और यह संख्या 6 लाख से बढ़कर 30 लाख पहुंच गई।
आगस्टस द्वारा किए गए साम्राज्य के पुनर्गठन से स्पेन और गाल में कृषि एवं गुलामी का विस्तार हुआ। गुलाम-श्रम पर आधारित लैटीफुंडिया कृषि अर्थव्यवस्था का आधार बनी। तीसरे "प्यूनिक युद्ध" ने गुलामों के व्यापार को बढ़ावा दिया। युद्धबंदी बड़ी संख्या में भूमध्यसागरीय बंदरगाह पर लाए जाते थे। "डेलोस" गुलामों के व्यापार के लिए भूमध्यसागर में सर्वर प्रमुख बंदरगाह बन गया।
गुलामों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए समुद्री डाकुओं का हमला हमेशा बना रहा। गुलाम हासिल करने के लिए साम्राज्य के दूरदराज के पिछड़े इलाकों में समुद्री डाकुओं के हमलों और सैनिक कार्रवाई नियमित रूप से चलती रही।
रोमन राज्य के पास एक सुनिश्चित पर्याप्त बल था ताकि गुलाम खुद को आजाद करने की कोशिश न करें। रोमन समाज ने जो कानून बनाए थे वह गुलामों को हर तरह के अधिकार से वंचित करते थे। यह मुक्त लोगों को गुलामों से कोई हमदर्दी नहीं रखने की सीख देते थे। गुलामों के साथ इस कदर दूरव्यवहार किया जाता था कि उन्हें यह भी होश नहीं रहता था कि वह भी इंसान हैं। एक इलाके से पकड़े गए गुलामों को एक साथ नहीं रखा जाता था। एक इलाके के गुलाम को दूसरे इलाकों के गुलाम के साथ मिला दिया जाता था। इससे यह सुनिश्चित होता था कि गुलाम आपस में एकजुटता के संबंध नहीं बना पाएं।
किसी एक जायदाद में काम करने वाले गुलाम विभिन्न बोलियां बोलते थे। गुलामों के बीच बंधुत्व पर आधारित कोई संबंध नहीं था और ना ही उनका कोई परिवार होता था। गुलाम की अपनी कोई पहचान नहीं थी। वह अपना कोई नाम तक नहीं रख सकते थे। उन्हें उनके मालिक के दिए गए नाम से बुलाया जाता था।
रोम में गुलामों द्वारा विद्रोह भी किया गए। हमारे पास गुलामों के तीन प्रमुख विद्रोह की जानकारियां। इनमें से सबसे गंभीर विद्रोह 73-71 ई• पू• का "स्पार्टाकस" विद्रोह था। पहला बड़ा गुलाम विद्रोह (136-132 ई• पू•) सिसिली में हुआ जिसे पहला "गुलाम युद्ध" कहा जाता है। पहले गुलाम युद्ध की शुरुआत 136 ई• पू• में हुई जब "एयुनस" नामा के गुलाम ने अपने मालिक की हत्या कर दी। दूसरा गुलाम विद्रोह(104-102 ई• पू•) सिसली में हुआ जिसे दूसरा "गुलाम युद्ध" के नाम से जाना जाता है। "सेल्वियस" और "ट्राईफोन" ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया।
रोमन अर्थव्यवस्था के हर एक क्षेत्र में गुलाम-श्रम मौजूद था। दस्तकारी उत्पादन में 90% हिस्सा गुलामों का था। गुलामों को सरकारी दफ्तरों में क्लर्क के रूप में नियुक्त किया जाता थे। राज्य की मिल्कियत वाले गुलामों की भी एक श्रेणीं थी जिन्हें मेहनत मशक्कत वाले कामों के लिए प्रशासन के सबसे निचले स्तर पर रखा जाता था। गुलामों में भी श्रेणीबद्धता थी। एक सिरे पर हुनरमंद गुलाम थे जिन्हें लैटीफुंडिया में कामकाज की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। शानदार कारीगरों और प्रशासनिकर्मियों की एक छोटी सी जमात भी इस समूह से आती थी।
इसके बाद अर्ध कुशल और अकुशल गुलाम थे जिन्हें कृषि उत्पादन या घरेलू कामकाज में लगाया जाता था। अकुशल कृषक गुलामों को अकसर जंजीरों से बांधकर रखा जाता था। जंजीरों में बंधे गुलाम न्यूनतम श्रेणीं के थे। लैटीफुंडिया के गुलामों को छोटे-छोटे दलों में बांट दिया जाता था। हर एक दल की निगरानी के लिए एक व्यक्ति होता था जो खुद भी गुलाम होता था। लैटीफुंडिया को 150-200 एकड़ की इकाई में बांट दिया जाता था और गुलामों के हर एक दल को एक-एक इकाई का कामकाज सौंप दिया जाता था।
प्राचीन रोम में जितने बड़े पैमाने पर गुलामों का इस्तेमाल हुआ वह समूचे मानव इतिहास में अभूतपूर्व है। यूनान की तरह रोम महज गुलामों वाला समाज नहीं था बल्कि एक "गुलाम समाज" था। "फिनले" के मुताबिक यूनानी-रोमन समाज को एक गुलाम समाज माना जा सकता है क्योंकि वहां उत्पादन में गुलामों का बहुत बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता था। ज्यादातर मार्क्सवादी चिंतकों का भी यही विचार है। मार्क्सवादी इतिहासकारों ने यूनानी-रोमन समाज-रचना को एक गुलाम समाज रचना-कहा है। रोम समाज में तमाम उत्पादन गुलाम श्रम पर आधारित था।
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box