जियाउद्दीन बरनी और उनकी रचना तारीख-ए-फिरोजशाही
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प्रश्न:- जियाउद्दीन बरनी के इतिहास के सिद्धांत के विशिष्ट तत्वों को उजागर कीजिए और तारीख-ए-फिरोजशाही का सल्तनत काल के स्रोत के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
परिचय:- बरनी का जन्म सन 1284 या 1285 में हुआ था। उनकी दो महत्वपूर्ण कृति "तारीख-ए-फिरोजशाही" तथा "फतवा-ए-जहांदारी" है। वह स्वयं हमें बताते हैं कि, यह कृतियां उन्होंने दूसरों की सहायता के लिए लिखी थी। उनका बचपन शाही राजधानी के नजदीक बीता और उन्हें बहुत अच्छी शिक्षा मिले। अपनी कृतियों में उन्होंने 46 विद्वानों का उल्लेख किया है जिनसे उन्होंने शिक्षा पाई। एक विद्वान के रूप में उन्हें जो प्रशिक्षण मिला था वह उनके धार्मिक राजनीतिक दृष्टिकोण को निर्धारित करता है। कुछ अमीरों से उनके नजदीकी संबंध थे। बरनी अमीरों के उस वर्ग में शामिल थे, जिसने फिरोजशाह तुगलक के बजाय किसी अन्य राजकुमार को मोहम्मद तुगलक के उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी पर बिठाने की कोशिश की थी। अपने अंतिम दिनों में वह गरीब हो गए थे और उनका सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया गया था। उन्होंने कई बार अपनी दयनीय स्थिति का उल्लेख किया है।
बरनी मानते थे कि इतिहास लेखन एक उत्तम कार्य है जिसके द्वारा वे अपने सभी पापों का प्रायश्चित कर सकते हैं। एक बात जिसके लिए वे विशेष रूप से शर्मिंदा थे, वह था कि उन्होंने मुहम्मद तुगलक की उस समय आलोचना नहीं की जब उन्हें उसके अधार्मिक तथा क्रूर कृतियों को देखने का मौका मिला था।
उनके अनुसार इतिहास लोगों को ईश्वरीय वचनों, पैगंबर साहिब के कार्य तथा शासकों से परिचित कराता है। किसी कार्य के अच्छे तथा बुरे परिणाम को दिखाकर इतिहास लोगों के लिए एक प्रकार की चेतावनी का कार्य भी करता है। यह राजाओं तथा अमीरों को यह दिखाता है कि दूसरों के अनुभवों से शिक्षा लेकर सही निर्णय किस प्रकार लिया जाए। इसके अलावा इतिहास को पढ़े बिना "हदीस" को भी नहीं समझा जा सकता जो मुसलमानों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। बरनी के कुछ भौतिक उद्देश्य भी थे जिनकी वजह से उसने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में एक के बाद एक पुस्तक लिखी। उन्हें आशा थी की तत्कालीन शासक फिरोजशाह तुगलक प्रसन्न होगा, उन्हें इनाम देगा और उनकी गरीबी का अंत हो जाएगा।
बरनी यह एकदम स्पष्ट कर देता है कि उनकी रचना अमीर एवं कुलीन वर्ग के लोगों के लिए लिखी गई है केवल वही इतिहास को समझ सकते हैं और उसे लाभ उठा सकते हैं। वह राजसत्ता को एक गैर-इस्लामी संस्था समझते थे इसलिए बादशाहो को निजात पाने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत थी। वह कहते हैं कि बादशाह के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह इस्लाम का संरक्षण करें, शरीयत को लागू करें और गैर मुसलमानों को दंड दे। राज्य का यह भी दायित्व है कि वह सभी तरह की अनैतिकता का निषेध करें। शासन का कार्यभार पवित्र एवं धार्मिक व्यक्तियों को सौंपा जाना चाहिए। दार्शनिकों तथा बुद्धिजीवियों को शासन में कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए। बरनी के अनुसार एक संस्था के रूप में बादशाहत को भय के द्वारा कायम रखा जा सकता है।
उन्होंने एक मजबूत तथा कुशल सेना की आवश्यकता पर बल दिया उन्होंने सलाह दी कि सेना को सतर्क रहने के लिए जरूरी है कि उसे नियमित रूप से प्रशिक्षण मिले। वे मानते थे कि आदर्श मुस्लिम समाज एक खास श्रेणीक्रम में व्यवस्थित था जिसमें सभी के पेशे सुनिश्चित थे और शासन का यह कर्तव्य था कि वह उस को कायम रखें।
उनकी नजर में निम्न कुल में जन्मे लोगों का कोई वजूद नहीं था। वह मानते थे कि नीचे खानदान में जन्म लेने वालों को सरकारी सेवा में नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने मोहम्मद तुगलक की कटु आलोचना की क्योंकि उसने निम्न कुल के तथा शुद्धीकरण द्वारा मुस्लिम बनने वाले लोगों को ऊंचे ऊंचे पद दे दिए थे। उन्होंने मोहम्मद तुगलक को बिगाड़ने के लिए दार्शनिकों तथा बुद्धिजीवियों को दोषी ठहराया है। भविष्य में होने वाले राजाओं को बरनी की सलाह है कि वे दार्शनिकों तथा बुद्धिजीवियों का दमन करें क्योंकि वह मुस्लिम धर्म के विरोधी हैं।
शिक्षकों को उनकी सलाह थी कि वे निम्न कुल के लोगों को शिक्षा न दें क्योंकि हुनर सीखकर वे नौकरी में लग जाते हैं और इस प्रकार सामाजिक उथल-पुथल को जन्म देते हैं। वह व्यापारियों को सबसे अधम वर्ग मानते थे और चाहते थे कि राजा यह भलीभांति देख ले कि वे किसी तरह अमीर न हो पाए। उनके अनुसार किसी राजा की सफलता के लिए उसकी नीतियां काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं। इसी प्रकार अलाउद्दीन की आर्थिक सुधारों के बारे में उनका विचार है कि वे सुधार साम्राज्य की शक्ति तथा सुरक्षा के लिए जरूरी थे।
तारीख-ए-फिरोजशाही:- बरनी ने अपनी यह रचना 1357-58 ई• में पूरी की। उनकी यह रचना मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन के विकास को दर्शाते हैं। इस रचना में उन्होंने अपना ध्यान केवल हिंदुस्तान पर केंद्रित किया है क्योंकि वह जानते थे कि मुस्लिम शासकों का मध्य एशिया की घटनाओं से अब कोई संबंध नहीं है। इस रचना का दोष है कि इसका कालानुक्रम दोषपूर्ण है।
बरनी केवल एक क्षेत्र की राजनीतिक घटनाओं पर विचार करते हैं। उनके विभिन्न अध्ययन अलग-अलग शासनकाल पर आधारित है। हर अध्याय के आरंभ में वे शाही राजकुमारों तथा विभिन्न अमीरों की सूची देते हैं। उन्होंने फिरोजशाह तुगलक के शासन काल को 11 अध्याय में बांटा है। इसमें फिरोजशाह तुगलक के शासन काल की सामान्य विशेषताओं का चित्रण किया गया है। वह अन्य लोगों के माध्यम से राजनीति के बारे में स्वयं अपने विचारों का समावेश कर देते हैं। उन्होंने अपनी रचना में विविध ऐतिहासिक व्यक्तियों के मध्य वार्तालाप को दर्शाया है।
अपनी रचना में बरनी तिथि का संकेत कभी-कभार ही करते हैं और जब करते भी हैं तो वह गलत होती हैं। इसका कारण वे हालात हो सकते हैं जिसमें वे लिख रहे थे। उन्हें केवल वे घटनाएं याद है और उन्हीं का उल्लेख करते हैं जो किसी कारण से श्रंखला में जुड़ी हुई हो और जिनका उनके ऊपर प्रभाव हो।
वार्तालाप को लिपिबद्ध करने कि उन्होंने जो तकनीक अपनाई है वह और भी ज्यादा रोचक है। उसे देखकर ऐसा लगता है मानो वार्तालाप के समय वे स्वयं वहां मौजूद हो या जैसे उनके पास वार्तालाप की नकल मौजूद हो। इस कारण उनका इतिहास पढ़ने में अधिक रोचक हो जाता है। इस रचना में बरनी ने अपने परिवार के लोगों या उनके संग- साथ वालों या फिर प्रत्यक्षदर्शियों से सुनी सुनाई सूचनाओं का उपयोग किया है हालांकि उन लोगों के नाम पते का उल्लेख नहीं करते। जब तक उन्हें किसी ईमानदार तथा ईश्वर से डरने वाले मुसलमान के शब्द मिले और जब तक उपलब्ध सूचना उनके दृष्टिकोण के अनुरूप रही तब तक उन्होंने उसकी विश्वसनीयता में संदेह नहीं किया।
बरनी हर अध्याय के अंत में सल्तनतकालीन राजनीति के किसी-न-किसी पहलू के विकास की रूपरेखा करते हैं। उदाहरण के लिए वह दर्शाते हैं कि विभिन्न सुल्तानों का दंड के प्रति क्या दृष्टिकोण था। उनकी रचनाओं में जो सूचनाएं दी गई हैं वे केवल राजनीतिक तक सीमित नहीं है। उनमें राजस्व तथा प्रशासन संबंधी सूचनाओं के अलावा साधू, सन्यासियों, हकीमों, कवियों और अमीरों आदि की सूचियां भी दी गई है।
इस युग में सल्तनत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा उसका स्वरूप क्या था इसकी जानकारी हमें बरनी के लेख से मिलती है। वे बताते हैं कि बलबन ने सत्ता का एकीकरण किस प्रकार किया, खिलजीयों के शासनकाल में सल्तनत का स्वरूप किस प्रकार बदला। विशेष रूप से अलाउद्दीन के शासनकाल में जब उसे मंगोलो के आक्रमण के खतरे का सामना करना पड़ा तो राज के स्वरूप में परिवर्तन आए, और मुहम्मद तुगलक ने किस प्रकार भीषण उपायों द्वारा विघटन को रोकने की कोशिश की। इसमें संदेह नहीं कि बरनी की रचनाओं का उपयोग करते समय काफी सावधानी की जरूरत है क्योंकि पर्याप्त तथ्य देने में उनकी दिलचस्पी नहीं है।
निष्कर्ष:- जियाउद्दीन बरनी दिल्ली सल्तनत के इतिहास को ग्यासुद्दीन बलबन से आरंभ करके उसे फिरोजशाह तुगलक के शासन काल के छठे वर्ष तक ले जाते हैं। उत्तरी भारत के इतिहास के कठिन तथा संकटग्रस्त समय के संदर्भ में वह हमारी सूचना के प्रमुख स्रोत है। इस युग के संदर्भ में बरनी ऐसे विद्वान के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनसे परिवर्ती इतिहासकार जैसे फरिश्ता, सरहिंदी, बदायूनी और निजामुद्दीन अहमद अपनी सूचनाएं ग्रहण करते हैं। उनकी रचनाएं उन विवादों की जड़ भी है जो उस युग से संबंधित आधुनिक इतिहास लेखन में परेशानी का कारण बनी हुई है।
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