इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के कारक
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प्रश्न:- इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति की उत्पत्ति के कारको का वर्णन कीजिए।
परिचय:- 18 वीं सदी के उत्तरार्ध में अंग्रेजी अर्थव्यवस्था तेजी से बदलने लगी। परिणामस्वरूप कारखानों के स्वरूप वाला औद्योगिकरण हुआ जिसमें कामगार दिहाड़ी मजदूर की तरह एक ही स्थान पर काम करते थे। 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति के परिणामस्वरूप इंग्लैंड में सर्वप्रथम सामंत वर्ग की अवधारणा से मध्यम वर्ग का उदय हुआ। ये मध्यम वर्ग के उद्योगपति और व्यापारी ही थे जिन्होंने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति को सफल बनाया। औपनिवेशिक क्षेत्रों के शोषण व दास व्यापार से पर्याप्त पूंजी उपलब्ध हो सकी। कृषि क्रांति से छोटे कृषक स्वतंत्र मजदूर में परिवर्तित हो गए जिससे सस्ता श्रम उपलब्ध हुआ। तकनीकी व वैज्ञानिक क्षेत्र में व्यापक विकास एवं नए-नए आविष्कार, जैसे- वाष्प इंजन, फ्लाइंग शटल, स्पिनिंग जेनी आदि ने औद्योगिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। लोहा, कोयला व अन्य प्राकृतिक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता ने भी इसमें योगदान दिया।
इंग्लैंड में ही औद्योगिक क्रांति होने का मुख्य कारण वहाँ पर तकनीकों व नवीन व्यापार प्रणालियों का मध्यम वर्ग द्वारा आत्मसात् करना था जिसमें सरकार की भूमिका भी सहायक रही। "डब्ल्यू. जे. एश्ले" के अनुसार कृषि क्रांति ने ही औद्योगीकरण के मार्ग को प्रशस्त किया। इतिहासकारों ने औद्योगिक क्रांति के कारणों का विश्लेषण अपने अपने ढंग से किया है।
जलवायु और भौगोलिक कारक:- इंग्लैंड के पास विस्तृत समुद्र तट और कई बंदरगाह जैसी भौगोलिक सुविधाएं मौजूद थी जो विदेशी व्यापार को बढ़ाने में सहायक साबित हुई। कई नदियों के कारण भारी सामानों की आवाजाही आसान हो गई। इससे उत्पादों पर आने वाली लागत कम हो गई। इंग्लैंड की नमीयुक्त जलवायु कपड़े के उत्पादन के लिए अनुकूल थी। सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि कोयला व इस्पात के खान एक दूसरे के आस-पास ही थे। इसके परिणामस्वरूप उद्योग भी इन्ही खानों के इर्द-गिर्द ही स्थापित किए गए। ब्रिटेन के पास कोयले का समृद्ध सुरक्षित भंडार था।
कृषि की भूमिका:- "रोबर्ट ब्रेनर" का मानना है कि ब्रिटेन में पूंजीवाद की शुरुआत कृषि वर्ग संबंध में हुई जिसने औद्योगिक पूंजीवाद का मार्ग प्रशस्त किया। इतिहासकार इस बात को स्वीकार करते हैं कि इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति कृषि क्रांति से जुड़ी हुई थी। "बाड़ आंदोलन" से कृषि कार्य में बदलाव आया और भूमि के टुकड़ों की चकबंदी की गई। निर्जन स्थानों तथा मैदानों को भी खेती योग्य बनाया गया। इससे कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई। सबसे महत्वपूर्ण बात इससे आत्मनिर्भर किसानों का उदय हुआ।
परिणामस्वरूप कई किसान औद्योगिक कार्यों के लिए मुक्त हो गए और इसने किसानों को राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़ा। बढ़ती आबादी, शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों के कारण कृषि उत्पादन के लिए बाजार विस्तृत हुआ और नए प्रयोगों के अनुकूल वातावरण बना। अनुकूल कृषि परिस्थितियों के कारण अतिरिक्त आय का सृजन हुआ। आम लोगों की क्रय शक्ति बढ़ने लगी जिसे वह विनिर्मित वस्तुओं पर खर्च करने लगा। कृषि ने औद्योगिककरण के लिए काफी हद तक आवश्यक पूंजी मुहैया करवाई। समृद्ध किसान सड़कों, नहरो और संचार के साधनों को बेहतर बनाने में योगदान देने लगे।
बाजार की भूमिका:- इंग्लैंड कोयला और खनिज संपदा के मामले में समृद्ध था और उसके पास स्वयं को किसी भी माहौल में आसानी से ढालने वाले परिश्रमी लोग थे। बढ़ती संपत्ति के कारण इंग्लैंड के भीतर वस्तुओं की मांग बढ़ गई, जिसकी पूर्ति उत्पादन की पद्धति व्यवस्था से संभव नहीं थी। विनिर्माता व्यापारी और किसानों पर वस्तुओं की आपूर्ति के लिए दबाव बढ़ गया। "बाडेन" के अनुसार इंग्लैंड का बाजार और इनका विदेशी बाजार इतना व्यापक था कि उनकी मांग की पूर्ति उत्पाद के नए तौर-तरीके से ही संभव हो सकती थी।
1780 के दशक के बाद ब्रिटिश उद्योगों के सस्ते उत्पादों ने यूरोप के बाजारों में अपनी पैठ बना ली थी। इंग्लैंड का वाणिज्यिक विस्तार औपनिवेशिक व्यापार पर इसके आधिपत्य के कारण हुआ। इस दौरान इंग्लैंड का निर्यात 90% तक पहुंच गया। इससे इंग्लैंड वासियों की क्रय शक्ति में भारी बढ़ोतरी हुई। "ई.बी. शूंपीटर" के अनुसार 1784-1788 में इंग्लैंड और वेल्स का कुल विदेशी व्यापार 31 मिलियन पाउंड प्रतिवर्ष था।
बढ़ती आबादी की बढ़ती मांग से निवेश के लिए बाजार के अवसरों के द्वार खुल गए। मांग में वृद्धि के कारण उपभोक्ता वस्तुओं की किस्में बढ़ गई और कई पुरानी चीजों का स्थान मशीन से बनी नई वस्तुओं ने ले लिया। घरेलू बाजार पूंजीगत वस्तुओं के लिए प्रमुख बिक्री केंद्र मुहैया कराता था। आंतरिक मांग की पूर्ति के लिए कोयला और लोहे के उत्पादन में भारी वृद्धि की गई।
परिवहन का विकास:- औद्योगिक, कृषि और बाजार के विस्तार के साथ-साथ परिवहन और संचार का होना भी अति आवश्यक था। 18वीं शताब्दी में समुद्री मार्ग इंग्लैंड का राजमार्ग बन गया। इस दौरान संसदीय अधिनियम के द्वारा नई सड़कों का निर्माण करवाया जाने लगा। इंजीनियरों ने सड़क निर्माण के प्रौद्योगिकी की में क्रांति ला दी। देश के अंदर नदियों में नौकाचालन का आश्चर्यजनक विकास हुआ। यह नहर परिवहन व्यवस्था एक विश्वसनीय, सस्ता और उच्च क्षमता वाली व्यवस्था थी, जिससे ब्रिटिश व्यापारियों के परिवहन की समस्याएं समाप्त हो गई। उच्च वर्ग के लोगों ने घोड़ों के दलों द्वारा खींचे जाने वाले स्टेज कोचेज का इस्तेमाल शुरू कर दिया, जिससे जीवन शैली बदल गई।
नई सड़कों और नहरों के कारण भारी कच्चे मालों की लागत में भारी कमी आई और इससे वाणिज्यिक और औद्योगिक व्यापारी अपने स्टॉक-होल्डिंग्स को कम कर सके।
पूंजी की भूमिका:- इरिक विलियम्स का कहना है कि औद्योगिक क्रांति को वित्तीय सहायता देने के लिए पूंजी का एक बड़ा हिस्सा दास व्यापार से आया था। 1700 -1780 के बीच कच्चे सूत का आयात 1 मिलियन से बढ़कर 5 मिलियन पाउंड हो गया। 1750 से 1769 के बीच सूती वस्त्रों का निर्यात बढ़कर दस गुना हो गया। व्यापार से आए पैसों से पूंजीगत संसाधन उपलब्ध हुए। "हैमिल्टन" के अनुसार मूल्य क्रांति ने पूंजीवाद की प्रगति में योगदान दिया क्योंकि मजदूरी दर मूल्यों से कम थी। इससे काफी लाभ हुआ और औद्योगीकरण का मार्ग तैयार हुआ। उनका तर्क है कि मूल्य में हुई वृद्धि से उद्योगपतियों को बड़ा फायदा हुआ। इस प्रकार पूंजी की कमी समाप्त हो गई और बचत को बढ़ावा मिला। विदेशी जहाजरानी, भवनों और निर्माण गतिविधि, कृषि सुधार और नहरों के निर्माण में भारी निवेश किया गया।
प्रौद्योगिकी और आविष्कार:- इंग्लैंड में भाप इंजन का आविष्कार होना एक बड़ी सफलता थी और यह औद्योगीकरण में तीर्व विकास का कारण बना। लोहा और कोयला दोनों भाप बनाने वाले प्रमुख कारक थे। 1709 में इस्पात उत्पादन में महत्वपूर्ण सफलता मिली जब लोहे को पिघलना शुरू किया गया। लोहे की ढलाई कम लागत में बड़े पैमाने पर होने लगी। इस प्रकार मशीन को चलाने के लिए लकड़ी के स्थान पर लोहे का उपयोग होने लगा। 1770 के दशक में लोहे से बने हल से कृषि में सहायता मिली।
निष्कर्ष:- इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति अनुकूल परिस्थितियों का परिणाम थी। इंग्लैंड में आर्थिक, वाणिज्यिक, जनसांख्यिकी विकास और परिवर्तनशील समाज मौजूद था। इन सभी कारकों ने औद्योगिकरण में सहयोग दिया। आर्थिक जीवन के तकनीकी विकास ने औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाया। एक क्षेत्र की सफलता ने कई अन्य क्षेत्रों को प्रभावित किया। मशीनरी और नई प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग से श्रम प्रभावित होने लगा। इसके परिणामस्वरूप परिवहन और बाजार के संगठन में सुधार आया।
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