बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

अमेरिका के संविधान का निर्माण


प्रश्न:- (1787) अमेरिका के संविधान के निर्माण का विस्तार से वर्णन कीजिए।

परिचय:- 1776 में जिस समय अमेरिका को आजादी मिली, तब वहां कॉन्टिनेंटल कांग्रेस के अलावा कोई भी केंद्र सरकार नहीं थी। जिसका प्रमुख उद्देश्य युद्ध के संचालन को देखना था। क्योंकि इस कांग्रेस में विधानमंडल, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका जैसी एक भी संस्था नहीं थी। 1777 में कॉन्टिनेंटल कांग्रेस ने संघ के अनुच्छेदों की नियमावली (article of confederation) को अपनाया तथा राज्यों की स्वीकृति के लिए भेज दिया। इस संघ को विदेशों के साथ राजनीतिक संबंधों का संचालन करने तथा रक्षा आदि मामलों में अधिकार प्राप्त थे, लेकिन न तो यह कर लगा सकता था और न ही व्यापार तथा वाणिज्य से संबंधित इसे कोई अधिकार प्राप्त था। इस नियमावली के अधीन प्रत्येक अमेरिकी राज्य को प्रभुता संपन्न तथा स्वतंत्र मान लिया गया लेकिन उनसे अपेक्षा की गई कि वह कांग्रेस की सिफारिशों को अवश्य लागू करें। इस संघ में प्रत्येक राज्य को अलग-अलग एक-एक वोट प्राप्त था। बिना राज्यों की अनुमति के नियमावली में संशोधन नहीं किया जा सकता था। प्रत्येक राज्य के अपने अलग-अलग न्यायालय थे। धन के लिए कांग्रेस राज्यों पर निर्भर थी क्योंकि उसके पास कर लगाने का कोई अधिकार नहीं था।

वाशिंगटन, मेडिसन तथा हैमिल्टन जैसे प्रमुख व्यक्तियों का विचार था कि कांग्रेस को व्यापार तथा वाणिज्य से संबंधित पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए तथा उन्होंने इस दिशा में कार्य करना आरंभ कर दिया। 1786 में अन्नापोलिस नामक स्थान पर अंतर्-राज्य व्यापार की समस्याओं को लेकर एक सम्मेलन हुआ जिसमें न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, पेंसिलवेनिया तथा वर्जीनिया के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सभा में यह निर्णय लिया गया कि इस प्रकार के प्रश्नों को तब तक हाल नहीं किया जा सकता जब तक कि संघ की नियमावली के अनुच्छेदों में परिवर्तन न किया जाए। अतः हैमिल्टन ने प्रस्ताव रखा कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक ऐसी सभा होनी चाहिए जिसमें कि अमेरिका के सभी राज्य उपस्थित हो। कांग्रेस ने इसे तुरंत ही स्वीकार कर लिया तथा इसके लिए आवश्यक कदम उठाए।

इस उद्देश्य से मई 1787 में फिलाडेल्फिया में एक सम्मेलन हुआ जो अमेरिका में अब तक हुए सभी सम्मेलनों में महान माना जाता है। इसमें रोड्स द्वीप को छोड़कर शेष 12 राज्यों के 55 प्रतिनिधि इसमें सम्मिलित हुए। प्रमुख नेताओं में वॉशिंगटन, फ्रैंकलिन मेडिसन, जेम्स विल्सन, एलेग्जेंडर, हैमिल्टन, एडमंड आदि शामिल हुए। सभा की अध्यक्षता के लिए सर्वसम्मति से वाशिंगटन को चुना गया।

इस सभा के अधिकांश प्रतिनिधि एक प्रकार की केंद्र सरकार देखना चाहते थे जो अपने आदेशों का पालन कर सकें, अपने कर्जो का भुगतान कर सके, आर्थिक स्थिति को सुधार सके तथा बाहर अमेरिका के हितों की रक्षा कर सकें। फिलाडेल्फिया सम्मेलन नियमावली में संशोधन करने के लिए बुलाया गया था लेकिन इसके प्रतिनिधियों ने महसूस किया कि कन्फडरेशन की नियमावली में इतनी त्रुटियां हैं की उन्हें संशोधन द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता। अतः इसके प्रतिनिधियों ने एक नए संविधान की रचना का कार्य शुरू कर दिया।

संविधान की रचना के लिए एक कमेटी नियुक्त की गई। जिसने राज्यों के प्रतिनिधियों के अलग-अलग विचारों पर परीक्षण किया। वर्जीनिया के प्रतिनिधि एडमंड रंडोल्फ ने सुझाव दिया कि निम्न सदन के सदस्य सीधे जनता द्वारा तथा उच्च सदस्य के सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाया करें। उसकी योजना में कार्यपालिका तथा न्यायपालिका का भी प्रावधान था। उसने यह भी सुझाव दिया कि सभा में प्रतिनिधित्व हर राज्य की अपनी जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए। किंतु छोटे राज्यों ने इसका विरोध किया। छोटे राज्यों ने संघ को यह धमकी दी कि यदि जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया गया तो वे कंफडरेशन से अलग हो जाएंगे।

दक्षिण राज्य जहां दास रहते थे, ने भी समस्या उत्पन्न की। उन्होंने जोर दिया कि प्रतिनिधित्व देते समय उन राज्यों में रहने वाले गुलामों की संख्या को भी जोड़ा जाना चाहिए। जबकि उत्तरी राज्य गुलाम-प्रथा को समाप्त करना चाहते थे। 

संविधान का एक ड्राफ्ट तैयार करने के लिए सभा ने अपनी कार्रवाई वर्जीनिया के प्रतिनिधि के सुझाव को लेकर जिसमें की जनसंख्या के आधार पर राज्यों को वोट डालने के अधिकार पर जोर दिया गया था, प्रारंभ कर दी। लेकिन छोटे राज्यों के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए तुरंत ही न्यूजर्सी की ओर से एक प्रस्ताव पेश कर दिया गया। वाद-विवाद निरंतर चलता रहा, जिसने की निराशावाद का रूप धारण कर लिया। अंत में कनेक्टिकट राज्य ने एक ऐसा प्रस्ताव सुझाया, जिसमें दोनों पक्षों ने स्वीकार कर लिया। इस प्रस्ताव में यह प्रावधान था कि सभा में दो सदन होने चाहिए तथा प्रतिनिधियों की संख्या राज्य की जनसंख्या के आधार पर होनी चाहिए जबकि उच्च सदन में प्रत्येक राज्य को समान प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। साथ ही उसने यह भी सुझाव दिया कि जिन राज्यों में गुलाम रह रहे हैं, उन गुलामों का 3/5 भाग निम्न सदन में गोरों की संख्या के साथ जोड़ा जाना चाहिए। इस व्यवस्था को "3/5 समझौते" के नाम से भी जाना जाता है।

मुख्य विवादों को सुलझा लिया गया लेकिन इसके बावजूद भी सदस्यों में मतभेद रहा जिन्हे न सुलझाया जा सका, इसलिए पूर्ण रूप से इससे कोई भी सहमत नहीं हुआ। इस सभा में यह निश्चित किया गया कि इसे 9 राज्य की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाए। स्वीकृति मिलते ही संविधान लागू हो जाएगा। अतः सभा ने इसे राज्यों की स्वीकृति के लिए तुरंत ही भेज दिया। 

डेलावेयर प्रथम राज्य था जिसने दिसंबर 1787 ईस्वी में इस संविधान को अपनी स्वीकृति प्रदान की। 1788 तक पेंसिलवेनिया, न्यूजर्सी, जॉर्जिया, कनेक्टिकट, मैसाचुसेट्स, मेरीलैंड, साउथ कैरोलिना, न्यू हेंपशायर, वर्जिनियां तथा न्यूयॉर्क ने इसे अपनी स्वीकृति दे दी। शेष 2 राज्यों उत्तरी कैरोलिना तथा रोड आईलैंड ने इसे यह जानकर अपनी स्वीकृति दी थी कि अब इस संविधान को लागू होने से नहीं रोका जा सकता। 11 राज्यों की स्वीकृति मिलते ही संविधान लागू हो गया। अमेरिका की सरकार के उद्देश्य संविधान की भूमिका में स्पष्ट रूप से दिया गया है जैसे न्याय, प्रजातांत्रिक शांति, सामूहिक सुरक्षा तथा सामान्य जनकल्याण आदि। अमेरिका संघात्मक गणतंत्र है, अतः संविधान के द्वारा सरकार की शक्तियों को राष्ट्र और राज्य में विभाजित कर दिया गया है। सरकार की शक्तियों को कार्यकारिणी, विधायिका और न्यायपालिका में इस प्रकार बांटा गया है कि इनमें संतुलन बना रहे। 

उदाहरण के लिए कानून पारित होने पर राष्ट्रपति अपने वीटो शक्ति द्वारा प्रतिरोध लगा सकता है लेकिन दोनों सदनों का दो तिहाई बहुमत उसे भी रद्द कर सकता है। पारित हो जाने के बावजूद भी कानून अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा असंवैधानिक करार दिया जा सकता है। 

संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान सर्वाधिक प्राचीन लिखित तथा विश्व का सबसे छोटा संविधान है। जिसमें लोकतांत्रिक संप्रभुता स्पष्ट रूप से झलकती है। संविधान की प्रस्तावना में ही कहा गया है कि "हम संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग इस संविधान का निर्माण करते हैं"। अमेरिका की कांग्रेस दो सदनों (सीनेट तथा निम्न सदन) में विभाजित है। सीनेट का प्रधान अमेरिका का उपराष्ट्रपति तथा निम्न सदन का प्रधान बहुमत दल का नेता होता है। दोनों सदनों को अपने-अपने क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त हैं, अतः मतभेद की स्थिति में दोनों सदनों के प्रतिनिधि मिलकर रास्ता खोजते हैं। कुछ क्षेत्रों में दोनों सदनों को अलग-अलग विशेष शक्तियां प्रदान की गई है। जैसे राजस्व विधेयक केवल निम्न सदन में ही प्रस्तुत किया जा सकता है तथा सीनेट की दो तिहाई स्वीकृति के बिना अमेरिका की विदेशों से की गई कोई भी संधि लागू नहीं हो सकती। संविधान की रूपरेखा तैयार करने में मेडिसन का बड़ा हाथ था। उसने कहा "यह संविधान न तो राष्ट्रीय और न संघीय है अपितु यह दोनों का मिश्रण है।

(अमेरिका के सुप्रसिद्ध इतिहासकार "चार्ल्स ए. बियर्ड" ने अपनी पुस्तक "संयुक्त राज्य के संविधान का एक आर्थिक विश्लेषण" में 1780 ईस्वी के दशक को संकट काल कहा है। उनके अनुसार इस समय व्यापारिक वर्ग एक दृढ़ केंद्र सरकार की स्थापना करना चाहता था। जो व्यवसाय को प्रोत्साहन दे सके, व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा कर सके और सार्वजनिक ऋणों पर अधिक मुनाफा दे सके।)

अमेरिकी संविधान के द्वारा कानून की व्याख्या करने, झगड़ों को निपटाने तथा दंड निर्णय आदि के उद्देश्य से न्यायालयों की स्थापना की गई। जिसकी शक्तियों को संघ न्यायालय तथा राज्य के न्यायालयों में विभाजित कर दिया गया है। राज्य के न्यायालय विधानसभाओं से पारित कानूनों के अंतर्गत मुकदमों को निपटाते हैं, जबकि संघीय न्यायालय का मुख्य कार्य विदेशी समझौतों तथा संधियों व कांग्रेस द्वारा लाए गए कानूनों से संबंधित मुकदमों को निपटाना है। संघीय न्यायालय संविधान का अभिभावक तथा नागरिकों के अधिकारों का संरक्षक है। इस प्रकार अमेरिकी संविधान विश्व का पहला लिखित संविधान तो है ही, शक्ति पृथक्करण, नियंत्रण और संतुलन, लोकप्रिय संप्रभुता तथा अध्यक्षात्मक शासनप्रणाली भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

निष्कर्ष:- अमेरिकी संविधान के निर्माण में नेताओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके राज्यों के प्रतिनिधि संविधान के पक्ष में एकमत नहीं थे। इसलिए निरंतर संविधान की प्रस्तावनाओं उनका विरोध किया जाता रहा। किंतु आगे चलकर ज्यादातर अमेरिकी राज्यों ने संविधान में संशोधन करवाकर अपनी स्वीकृति प्रदान की। इस संविधान में व्यक्तिगत तथा सामूहिक हितों पर विशेष ध्यान दिया गया तथा सभी राज्यों के प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता दी गई। इस संविधान के परिणामस्वरूप अमेरिका में दासो की स्थिति भी सुधरने लगी और उनके राजनीतिक जीवन का मार्ग खुल गया।

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