मार्कस गार्वे / UNIA / नागरिक अधिकार आंदोलन

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मार्कस गार्वे / UNIA / नागरिक अधिकार आंदोलन मार्कस गार्वे का जन्म 17 अगस्त, 1887 को जमैका के सेंट एनबे में हुआ था। 14 साल की उम्र में वे किंग्स्टन चले गए, जहाँ उन्होंने एक प्रिंटर चालक के रूप में काम किया और मजदूरों की दयनीय जीवन स्थिति से परिचित हुए। जल्द ही उन्होंने खुद को समाज सुधारको में शामिल कर लिया। गार्वे ने 1907 में जमैका में प्रिंटर्स यूनियन हड़ताल में भाग लिया और 'द वॉचमैन' नामक अखबार स्थापित करने में मदद की। जब वे अपनी परियोजनाओं के लिए धन जुटाने के लिए द्वीप छोड़कर गए, तो उन्होंने मध्य और दक्षिण अमेरिका का दौरा किया और पाया की बड़े पैमाने पर अश्वेत लोग भेदभाव के शिकार थे। गार्वे ने पनामा नहर क्षेत्र का दौरा किया और उन परिस्थितियों को देखा जिसके तहत वेस्ट इंडियन लोग रहते और काम करते थे। वे इक्वाडोर, निकारागुआ, होंडुरास, कोलंबिया और वेनेजुएला भी गए और देखा की हर जगह अश्वेतों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। मध्य अमेरिका की इस स्थिति से दुखी होकर गार्वे वापस जमैका लौट आए और जमैका की औपनिवेशिक सरकार से मध्य अमेरिका में वेस्ट इंडियन श्रमिकों की ...

अमेरिका के गृह युद्ध के कारण एवं परिणाम


प्रश्न:- अमेरिका के गृह युद्ध के कारण एवं परिणाम का वर्णन कीजिए।

परिचय:- अमेरिका ने 1763 से 1793 के बीच तीन दशकों में अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। फलस्वरुप 4 जुलाई 1776 को अमेरिका के 13 उपनिवेशों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। स्वतंत्रता की घोषणा ने सभी उपनिवेशों को स्वतंत्र राज्य घोषित किया। अमेरिका के संविधान में यह घोषणा की गई थी कि "सब मनुष्य जन्म से बराबर है" किंतु यह बात गौरे लोगों पर लागू होती थी कालो पर नहीं। स्वतंत्रता की घोषणा के बाद भी काले लोगों की स्थिति दास जैसी बनी रही। इन काले लोगों को स्वतंत्रता के अधिकार दिलाने के लिए अमेरिका के उत्तरी तथा दक्षिणी राज्यों के बीच 4 वर्ष तक संघर्ष चला। अमेरिका के इतिहास में इसे गृह-युद्ध के नाम से पुकारा जाता है। इस संघर्ष के अंत में अब्राहम लिंकन के प्रयासों के कारण 1863 में दास प्रथा की समाप्ति की घोषणा की गई। लिंकन ने यथार्थ रूप में संयुक्त राष्ट्र का निर्माण किया। इसके अलावा संघ के राज्यों में भी आपसी द्वेष की भावना व्याप्त थी। भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि से भी संघ के सदस्यों में असमानता थी। उत्तरी राज्य जहां साधन संपन्न थे वहीं दक्षिणी राज्य पिछड़े हुए तथा अर्ध विकसित थे। 

गृह-युद्ध के कारण:-

आर्थिक असमानता:- अमेरिका के उत्तरी तथा दक्षिणी राज्यों के बीच आरंभ से ही आर्थिक असमानता थी। 1861 में दक्षिण की तुलना में उत्तरी अमेरिका कहीं ज्यादा अच्छी स्थिति में था। संघ के 34 राज्यों में से 23 राज्य सभी उत्तर में सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त तीस हजार मील रेल व सड़कों में से लगभग बीस हजार मील उत्तर की सीमाओं में थी। अमेरिका की अधिकांश खाने, उद्योग, बैंक इत्यादि भी उत्तरी राज्यों में मौजूद थे। वहां बड़े बड़े उद्योगों का विकास तीव्र गति से हो रहा था। इन राज्यों में सूती कपड़े, ऊनी वस्त्र, जूते, चमड़े का सामान, लकड़ी की वस्तुएं बड़े पैमाने पर उत्पादित होती थी। इन कारखानों में मशीनों की सहायता से काम होता था। 

उत्तरी राज्यों के विपरीत दक्षिण राज्यों का आर्थिक जीवन कृषि पर आधारित था। कृषि के लिए उपयुक्त व यांत्रिक शक्ति से संचालित होने वाले यंत्रों का विकास उस समय तक नहीं हुआ था। इन राज्यों के किसान अपनी खेती के लिए गुलामों के श्रम पर निर्भर थे। 1860 तक समस्त अमेरिकी उद्योगों का केवल 10% भाग दक्षिण में स्थित था। इस प्रकार आर्थिक विषमता के कारण उत्तर तथा दक्षिण राज्यों में बहुत बड़ा मतभेद था। इसी मतभेद को समाप्त करने के लिए अब्राहम लिंकन ने ग्रह-युद्ध में भाग लेकर संघीय व्यवस्था को मजबूत बनाने का कार्य किया।

दास प्रथा:- उत्तरी राज्य दास-प्रथा समाप्त करना चाहता थे परंतु दक्षिण वालों के लिए यह आर्थिक हित का प्रश्न था। दास-प्रथा का झगड़ा बहुत पुराना था, इसलिए इसको गृह-युद्ध का प्रमुख कारण माना जाता है। "प्रो• एलसम" का मानना है कि गृह-युद्ध का मौलिक कारण दास-प्रथा थी। 18वीं शताब्दी के अंत में अमेरिका के आम लोग दास व्यापार को बुरी नजरों से देखने लगे थे। दक्षिण अमेरिका में भी दास-प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी, किंतु यह कार्य कानून द्वारा न होकर व्यक्तियों के हृदय परिवर्तन द्वारा हो रहा था। किंतु इसी बीच उद्योगों की उन्नति के कारण दास व्यापार बहुत लाभदायक व्यवसाय बन गया और इसलिए अब कोई भी इस लाभदायक व्यवसाय को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। धीरे-धीरे दास-प्रथा अमेरिका की राजनीति में अत्यंत जटिल प्रश्न बन गया। 

इस प्रकार उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के राज्य दास्ता के प्रश्न पर एकमत नहीं थे। उत्तरी अमेरिका के राज्य इसको जहां समाज के लिए कलंक समझते थे, वहीं दक्षिण अमेरिका के राज्य के लिए यह एक आवश्यक बुराई थी, जिसे समाप्त नहीं किया जा सकता था। दोनों पक्षों में से कोई भी समझौते के लिए तैयार नहीं था।

अब्राहम लिंकन का निर्वाचन:- अमेरिका के इतिहास में अब्राहम लिंकन का निर्वाचन महत्वपूर्ण था। 4 मार्च 1861 को अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया। 1860 के निर्वाचन में डेमोक्रेटिक पार्टी की फूट के फलस्वरुप रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार लिंकन को विजय प्राप्त हुई थी। गृह-युद्ध में लिंकन का मुख्य उद्देश्य संघ की रक्षा करना था, जबकि दक्षिण के राज्य दास्ता को बनाए रखने के लिए संघ से अलग हो रहे थे। वास्तव में लिंकन के भारी बहुमत से विजयी होने के कारण दक्षिणी राज्यों को यह चिंता हो गई थी कि नई सरकार उनकी संस्थाओं तथा विशिष्ट सभ्यताओं को नष्ट कर देगी। इस भावना ने दक्षिण के राज्यों को संघ से अलग होने के लिए प्रेरित किया।

राजनीतिक भाषणबाजी:- उत्तेजनापूर्ण भाषणों द्वारा दोनों वर्ग के नेताओं ने जनता की भावनाओं को उभारा। नेताओं के तर्कों और नारों ने दोनों और भय तथा ऊंच-नीच की भावना जागृत की। उत्तरी नेताओं द्वारा दक्षिणवासियों की जो आलोचनाएं की गई उनमें से अधिकांश स्वार्थपूर्ण और अपमानजनक थी। फलत: दक्षिणवासियों में आशंका,भय,घृणा और द्वेष पैदा हुआ। दूसरी ओर दक्षिणवासियों द्वारा दास-प्रथा को फैलाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे थे उनके कारण उत्तर में लिंकन को भय हुआ कि कहीं समस्त देश में दास प्रथा न फैल जाए।

अनेक दक्षिणी नेता दास व्यापार खोलने का पक्ष ले रहे थे। इसके विपरीत उत्तर में विभिन्न पत्रकारों, पादरियों और राजनीतिज्ञों ने दास-प्रथा की बुराइयों तथा दास मालिकों के इरादों को बढ़ा चढ़ाकर बताया।

राज्यों का संघ से पृथक होना:- चुनाव में लिंकन की जीत दक्षिण के राज्यों पर वज्र की भांति गिरी। अनेक दक्षिण नेताओं ने चुनाव से पूर्व ही यह तय कर लिया था कि वे रिपब्लिकन राष्ट्रपति के अधीन संघ में नहीं रहेंगे। इस दिशा में पहला कदम कैरोलिना द्वारा उठाया गया। जब लिंकन ने राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया उस समय तक दक्षिण के सात राज्य संघ से अलग हो चुके थे। इन राज्यों ने मिलकर 4 फरवरी 1861 को एक "दक्षिण परिसंघ" बनाया। इस परिसंघ ने जेफरसन डेविस को अपना राष्ट्रपति चुना और एलेक्जेंडर स्टीफेंस को उपराष्ट्रपति। राष्ट्रपति बनने के बाद लिंकन ने परिसंघ के राज्यों को यह आश्वासन भी दिया कि उनमें प्रचलित दास प्रथा में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, किंतु परिसंघ के राज्यों पर लिंकन के भाषण का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। लिंकन ने विद्रोही राज्यों को वश में लाने के लिए एक स्वयंसेवक सेना का गठन किया। विद्रोही राज्यों ने भी अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सेना एकत्र की और दोनों पक्षों में युद्ध प्रारंभ हो गया।

युद्ध के परिणाम:- गृह युद्ध में अमेरिका के इतिहास में एक नवीन युग एवं अध्याय का समावेश किया। इस संघर्ष ने अमेरिका के सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक मूल्य में वृद्धि की। 

सदृढ़ राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना:- इस युद्ध में संघ राज्यों के अधिकारों के विवाद को सुलझा दिया। इस संघर्ष ने अमेरिका के राजनीतिक एवं प्रशासनिक केंद्रों को सदृढ़ किया। राष्ट्रीय एकता अब सुरक्षित थी तथा कोई भी राज्य संघ से पृथक होने के अधिकार की मांग नहीं कर सकता था। दक्षिण के जिन राज्यों ने काले कानून पास किए थे, उन्हें वे कानून वापस लेने पड़े। संविधान में संशोधन द्वारा मुक्त दासों को अमेरिका की नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किए गए और घोषणा की गई कि संयुक्त राज्य अमेरिका के किसी भी नागरिक को जाती, रंग अथवा पूर्ण अधीनता के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इस गृह-युद्ध के संबंध में प्रो. एच.बी. पार्किस ने लिखा है कि "इस युद्ध में उत्तर की विजय ने राष्ट्रीय एकता की शक्तियों को मजबूत बनाया और राज्यों के अधिकारों के सिद्धांत को अंतिम पराजय दी। गृह-युद्ध ने काफी लंबे समय के लिए रिपब्लिक दल की प्रभुता और लिंकन की स्थापना की और 1912 तक एक भी राष्ट्रपति डेमोक्रेटिक दल से नहीं चुना गया।

जन-धन की हानि:- युद्ध में दोनों पक्षों का व्यापक नरसंहार हुआ। मृतकों के अतिरिक्त ऐसे भी हजारों लोग थे जो अपाहिज या बीमार होकर घर लौटे। युद्ध में दोनों पक्षों का पर्याप्त धन लगा। संघ सरकार का व्यय तीन लाख डोलर हो चुका था। इसके अतिरिक्त दक्षिण व्यय और संपत्ति का व्यापक विनाश भी उल्लेखनीय है। सरकारी ऋण पर दिया गया ब्याज और सैनिकों, विधवाओं तथा अनाथो को दी गई पेंशन ने सरकार की रही सही कमर तोड़ दी।

दास-प्रथा की समाप्ति:- नए गणतंत्र ने दास-प्रथा का सदा के लिए अंत कर दिया। लिंकन की 1862 की घोषणा तथा दूसरे भाषणों में निग्रो को हमेशा के लिए स्वतंत्र करने का संकल्प लिया। अप्रैल 1864 में सीनेट ने संविधान में दास-मुक्ति संबंधी संशोधन स्वीकार कर लिया, किंतु यह प्रतिनिधि सभा में गिर गया था। बाद में जब कुछ राज्यों ने दास प्रथा को समाप्त कर दिया तो कांग्रेस ने भी वाद विवाद के पश्चात मुक्ति संशोधन स्वीकार कर लिया। 18 दिसंबर 1865 को यह संशोधन घोषित कर दिया गया। अब नीग्रो दासो को भी जनगणना में शामिल किया गया। इससे दक्षिणी राज्यों का कांग्रेस में प्रतिनिधित्व बढ़ गया।

औद्योगिक प्रसार:- ग्रह युद्ध ने दक्षिण के कृषि अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया, किंतु उत्तर के व्यापारिक विकास पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा। संयुक्त राज्य में युद्ध काल में कीमतें युद्धपूर्व की अपेक्षा 117% बढ़ गई जबकि मजदूरी में केवल 43% वृद्धि हुई। जिससे लाभ की मात्रा बढ़ गई। मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाने लगा ताकि उत्पादन की मांग को पूरा किया जा सके। विकसित तकनीकी प्रणालियों द्वारा उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाने लगा। हाथ के श्रम का स्थान मशीनों ने ले लिया।

सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन:- देश में लाखों निग्रो स्वतंत्र कर दिया गए, लेकिन इससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। वह लक्ष्यहीन हो गए। परिणामस्वरूप नीग्रो लोगो की भूख से मरने की स्थिति हो गई। जब संघ सरकार को इनकी स्थिति का अनुभव हुआ तो उनके भोजन, कपड़ा और चिकित्सा का प्रबंध किया गया। नीग्रो लोगों के साथ मारपीट और दुर्व्यवहार भी सामान्य बातें हो गई थी। औद्योगिक क्रांति और तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास के कारण देहाती क्षेत्र नगरीय क्षेत्रों में बदल गए। न्यूयॉर्क, शिकागो, बोस्टन, बाल्टीमोर आदि नगर आकर्षण के केंद्र बन गए। इन नगरों में विदेशों के अप्रवासी भी बड़ी संख्या में आकर बसने लगे। शहरी जीवन की मांग ने तकनीकी के विकास को प्रोत्साहित किया। 

सड़कों पर विद्युत की रेलगाड़ियां चलने लगी। संचार व्यवस्था के लिए टेलीफोन के खंभे गाड़े जाने लगे। विज्ञान के यह आशीर्वाद केवल शहरों को मिले, इसलिए ग्रामीण और शहरी लोगों के बीच का अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगा। शहरों में महिलाएं घरों से निकलकर बाहर कार्यालयों व फैक्ट्रियों में काम करने लगी। स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दिया जाने लगा। इससे उनके जीवन स्तर में सुधार आया। इस प्रकार ग्रह-युद्ध के पश्चात आम व्यक्ति के सामाजिक मूल्यों में पर्याप्त विकास हुआ।

निष्कर्ष:- इस प्रकार अमेरिका के गृह-युद्ध ने वहां के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पुनर्निर्माण का आधार तैयार किया। कुछ राष्ट्रवादी लेखकों ने ग्रह युद्ध को संघर्ष की संज्ञा दी और उन्होंने इस युद्ध को अमेरिका के लिए लाभकारी बताया। इस प्रकार अमेरिका के गृह-युद्ध ने दास्ता तथा संघे शक्ति के प्रभुत्व संबंधी प्रश्नों का समाधान कर अमेरिका में पुनर्निर्माण के युग का मार्ग प्रशस्त किया।

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