फासीवादी इटली की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक विशेषताएं
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प्रश्न:- फासीवादी इटली की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
परिचय:- 1922 में सत्ता में आने वाला बेनिटो मुसोलिनी पहला तानाशाह था। 1925 तक तानाशाही लागू करने वाले फासीवादी पार्टियां 40 से भी अधिक राष्ट्रों में फैल चुकी थी। महायुद्ध के कारण इटली को जन-धन की अपार हानि हुई थी, जिसकी वजह से उसके ऊपर कर्ज का भारी बोझ लाद दिया गया। इटली ने युद्ध में विशाल धनराशि लगाई। वह युद्ध में लाभ अर्जित करने के लिए शामिल हुआ, लेकिन उसे घोर निराशा मिली। आर्थिक संकट के कारण इटली में अराजकता फैलने लगी। वहीं दूसरी तरफ वहां की सरकार हाथ पर हाथ धरे चुपचाप बैठी हुई थी। इसी परिस्थितियों में इटली में एक ऐसी पार्टी का जन्म हुआ, जिसने इटली के शासन के स्वरूप को बदल दिया। यह पार्टी "फासिस्ट" कहलाती थी और इसके समर्थक फासीवादी। फासीवादी जिस भी बात अथवा व्यवस्था के विरुद्ध होते थे वह उसकी भर्त्सना कर अपनी पहचान करा देते थे। वह स्वयं को एक नई सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्था के निर्माता के रूप में देखा करते थे। इनका आधार राष्ट्र की सेवा हुआ करता था। यह एक अधिक शक्तिशाली राष्ट्र चाहते थे, जो विजय द्वारा अपनी सीमाओं का विस्तार कर सके।
1922 से लेकर 1928 तक मुसोलिनी एक गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री था। जिसमें फासीवादी, राष्ट्रवादी तथा रूढ़िवादी शामिल थे। मुसोलिनी ने सम्राट, बड़े व्यापारियों, सेना, और चर्च के साथ समझौते किए। उसने अपने विरोधियों के प्रति हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया। इस प्रकार वह इटली को एक राज्य के रूप में परिवर्तित करने में सफल रहा।
राजनीतिक विशेषताएं:- निर्वाचन कानून में 1924 में परिवर्तन किया गया। जिसमें मुसोलिनी की फासीवादी पार्टी तथा उसके समर्थक को संसदीय सीटों में से 66% सीटें दे दी गई। इस कारण प्रधानमंत्री के रूप में मुसोलिनी की स्थिति मजबूत हो गई। इटली की समाजवादी पार्टी द्वारा इसकी भर्त्सना की गई। बदले में फांसीवादियो ने समाजवादीयों के प्रतिनिधी जियाकोमो मेलिआटी का अपहरण कर उसे मौत के घाट उतार दिया। वामपंथियों ने इसके लिए मुसोलिनी को उत्तरदाई ठहराया। अत: संसद में मुसोलिनी के विरोधियों ने इस हत्या के विरोध में संसद से अपना नाम वापस लेने का निर्णय किया। इन्हें आशा थी कि संसद के बहिष्कार की घटना विक्टर इमानुएल तृतीय को मुसोलिनी को उसके पद से बर्खास्त करने में प्रेरित करेगी। किंतु सम्राट ने ऐसा नहीं किया और मुसोलिनी अपने पद पर बना रहा।
जनवरी 1925 में उसने सम्राट के साथ एक समझौता किया जिसके फलस्वरूप उसे संसद की सहमति के बिना ही कानून लागू करने की शक्ति मिल गई। इसके परिणाम स्वरूप उसे फासीवादी पार्टी को छोड़कर सभी राजनीतिक पार्टियों को प्रतिबंधित करने, प्रेस पर नियंत्रण रखने, श्रमिक संघों को प्रतिबंधित करने, सरकार को चलाने के लिए फासीवादी अधिकारियों को नियुक्त करने तथा राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार करने और विद्रोह को कुचलने के लिए पुलिस और सेना के अधिकारों को बढ़ाने की अनुमति मिल गई।
1928 में, दूसरे निर्वाचन कानून के चुनाव में मतदाताओं के उम्मीदवारों को फासीवाद तक सीमित कर दिया गया। उम्मीदवारों की यह सूची मुसोलिनी तथा फासीवाद परिषद द्वारा तैयार की गई थी। इन उपायों के माध्यम से इटली एक दलीय राष्ट्र बन गया। जिसका नेतृत्व मुसोलिनी के हाथ में था। मुसोलिनी ने एक तानाशाह के रूप में अपनी शक्तियों को ग्रहण किया था। किंतु उसके बावजूद भी सम्राट के पास मुसोलिनी को बर्खास्त करने की शक्ति थी। वह सेना, पुलिस तथा बड़े व्यापारियों और चर्च के समर्थन पर निर्भर था। इसलिए वह सदा भयभीत रहता था कि यह उसके अधिकार को चुनौती दे सकते हैं।
इटली में मुसोलिनी के शासन का महत्वपूर्ण पहलू प्रभावशाली प्रचार था। विद्वान "डेनिस मैक स्मिथ" ने तर्क दिया है कि मुसोलिनी के सबसे महत्वपूर्ण कार्य कुशलता स्वयं को महामानव के रूप में प्रचारित करके खुद को लोगों की नजरों में चढ़ाना था।
आर्थिक विशेषता:- मुसोलिनी द्वारा किए गए सर्वाधिक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक निगमित राज्य की स्थापना थी। इसकी अवधारणा पूंजी तथा श्रम के बीच विवाद को समाप्त करने पर आधारित थी। निगम प्रणाली ने उद्योगों पर सरकार का अधिक नियंत्रण स्थापित किया। इस प्रणाली ने श्रम की तुलना में व्यापार का पक्ष लिया। 1934 तक स्टील, वस्त्र, कोयला, नौवहन, विद्युत और टेलीफोन जैसे उद्योगों को नियंत्रित करने के लिए कुल 22 निगमों की स्थापना की गई। फासीवादियों ने उपभोक्ता उद्योगों की तुलना में भारी उद्योगों को अधिक महत्व दिया। जैसे कोयला, स्टील, परिवहन और हथियार। निगमों द्वारा श्रमिकों के अधिकारों का अत्यंत कड़ाई के साथ हनन किया जा रहा था। हड़ताल को प्रतिबंधित और यूनियनों को बंद कर दिया गया था। निगम राज्य ने उद्योगों की स्थापना करने में सहायता तो की थी, परंतु यह इटली के लंबे समय से चले आ रहे आर्थिक समस्याओं में कोई सुधार नहीं ला पाया।
1922 और 1929 के बीच में बजट के संतुलन के लिए एक उदारवादी नीति को अपनाया गया। जिसने उद्योग तथा कृषि के विस्तार में सहायता की। मुसोलिनी द्वारा एक हानिकारक आर्थिक नीति अपनाई गई। जिसमें पाउंड की तुलना में लीरा के मूल्य को अत्यधिक उच्च स्तर पर निर्धारित किया गया। इसके परिणामस्वरूप अनेक निर्यात योग्य इतावली वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो गई। जिससे कारो और वस्त्रों की विदेशों में बिक्री कम हो गई। 1936 में मुसोलिनी ने इस गलती को महसूस किया तथा लीरा का अवमूल्यन कर दिया।
मुसोलिनी द्वारा अपनाई गई एक अन्य आर्थिक नीति के तहत राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता के लिए अभियान चलाया गया। ऐसा इटली की अर्थव्यवस्था की आयात पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से किया गया था। विदेशी आयात पर करों की दर ऊंची रखी गई जिसका उद्देश्य उद्योग की रक्षा करना था। सरकार उत्पादकता में सुधार लाने के लिए उद्योगों को ऋण तथा आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराती थी। मुसोलिनी द्वारा "अनाज के लिए संघर्ष" की योजना को लागू किया गया। इस योजना के अंतर्गत 1925 के बीच गेहूं के आयात को 75% तक कम कर दिया गया। किंतु फासीवादी आर्थिक नीतियां असफल रही। आत्मनिर्भरता कभी भी हासिल नहीं की जा सकी, यहां तक कि कृषि क्षेत्र में भी नहीं।
सामाजिक विशेषताएं:- मुसोलिनी ने अपनी शासन कि अकुशलता से लोगों का ध्यान हटाने तथा विदेशों में यह भ्रामक संदेश प्रसारित करने का प्रयास किया कि इटली के पास बहुत अधिक सैन्य शक्ति है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था। सार्वजनिक मीडिया द्वारा एक "गतिशील एवं कार्रवाई करने वाले व्यक्ति" के रूप में मुसोलिनी को प्रस्तुत किया गया। इटली की जनता पर उसकी ताकत की परिकल्पना अतिप्रचार द्वारा की गई। अनेक "मुसोलिनी हमेशा सही है" वाले पोस्टर भी जगह-जगह लगाए गए।
इस दिशा में कार्य करते हुए मुसोलिनी कैथोलिक चर्च के साथ अच्छे संबंध स्थापित करना चाहता था। फरवरी 1921 में उसने पोप के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके माध्यम से इटली के लोगों का एकमात्र धर्म के रूप में कैथोलिकवाद की घोषणा की गई तथा वेटिकन सिटी को स्वतंत्र सत्ता प्रदान की गई। यह समझौता मुसोलिनी के सर्वाधिक टिकाऊ सुधारों में से एक था क्योंकि उसने चर्च तथा राष्ट्र के बीच पिछले 50 वर्षों से चले आ रहे संघर्ष को समाप्त कर दिया और अनेक कैथोलिक लोगों के बीच फासीवादी शासन की लोकप्रियता में पर्याप्त वृद्धि की। कैथोलिक पादरियों को राज्य की ओर से वेतन दिया जाने लगा।
पोप को बड़े तथा छोटे पादरियों को नियुक्त करने का अधिकार मिल गया। फासिस्ट सिद्धांतों तथा शासन का विरोध करने वाले व्यक्ति इन पदों पर नियुक्त नहीं किए जा सकते थे। राज्य के प्राथमिक तथा सामाजिक शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य घोषित कर दी गई।
लेकिन मुसोलिनी तथा वेटिकन के बीच संबंध 1939 के दशक के अंतिम वर्षों में तनावपूर्ण हो गए। यह तनावपूर्ण संबंध इटली के तानाशाह द्वारा सीमा विरोधी कानून को लागू करने पर प्रारंभ हुआ। इस कानून के जरिए यहूदियों को व्यवसाय करने, व्यापार करने तथा सेना में भर्ती होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पोप ने इस सीमा विरोधी कानून की निंदा की, जिसका बड़ी संख्या में इटलीवासियों द्वारा जोरदार विरोध किया गया और बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया गया। 1943 में उत्तरी इटली में नाजीवादियो ने बड़े पैमाने पर यहूदियों को यातनाएं दी।
निष्कर्ष:- फांसीवादियो ने इटली में ऐसी तानाशाही का निर्माण किया जिसका विरोध करने वालो की सजा मौत तय की गई। इसकी नीतियों ने इटली को एक राष्ट्र राज्य का दर्जा दिलवाया। फांसीवादियों की यही गतिविधियां जर्मनी और जापान में भी आरंभ हुई। इटली के फांसीवादियो ने इटली के सभी क्षेत्रों को अपने अनुसार ढालने का प्रयास किया इसलिए उन्होंने सभी क्षेत्रों में अपनी नीतियां लागू की। प्रचार प्रसार का कार्य करके लोगों को मुसोलिनी के प्रति निष्ठावान बनाया गया, तथा फासीवादी गतिविधियों को राष्ट्रहित के रूप में देखा जाने लगा।
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