साम्राज्यवाद पूंजीवाद का उच्चतम चरण है।
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प्रश्न:- साम्राज्यवाद पूंजीवाद का उच्चतम चरण है। प्रथम विश्व युद्ध की उत्पत्ति को समझने के लिए इस कथन का उपयोग किस सीमा तक किया जा सकता है?
परिचय:- साम्राज्यवाद से तात्पर्य उस साम्राज्य से है जिसका उदय पूंजीवाद के युग में हुआ। साम्राज्यवाद उस पूंजीवादी प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जिसके द्वारा पूंजीवादी देश विश्व के उन देशों पर जो पूंजीवादी नहीं है, अपना अधिपत्य स्थापित करते हैं। विद्वान इसकी व्याख्या के विषय में एकमत नहीं है। 19वीं सदी के अंत तक बीसवीं सदी के शुरू में पूंजीवाद अपनी उन्नति के शिखर पर पहुंच चुका था। पूंजीवादी व्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली औद्योगिक एवं बैंकिंग संगठनों का निर्माण हुआ। उन्होंने पूंजीवाद व्यवस्था के मूलभूत ढांचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए। अर्थव्यवस्था में ठोस परिवर्तनों के साथ ही पूंजीवादी राष्ट्रों के शासक वर्ग की राजनीति में परिवर्तन आए। इस प्रकार पूंजीवादी व्यवस्था अपने विकास की एक नई व्यवस्था में ढल गई। इसे ही "साम्राज्यवाद" कहते हैं। इसके फलस्वरुप उपनिवेशों की छीना-झपटी होने लगी और युद्धों के द्वारा ही यह उपनिवेश प्राप्त किए जा सकते थे तथा साम्राज्यवाद ने युद्ध को अवश्यंभावी बना दिया। प्रथम विश्व युद्ध भी इसी का परिणाम है।
साम्राज्यवाद पूंजीवादी कि उस प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जिसके द्वारा पूंजीवादी देश अपना विस्तार उन क्षेत्रों में करते हैं जो पूंजीवादी नहीं थे। पूंजीवाद और साम्राज्यवाद में घनिष्ठ संबंध है। अतीत के साम्राज्य विस्तार के अभियान में किसी क्षेत्र पर प्रभुता स्थापित करना इसका केंद्र बिंदु था। यह साम्राज्य विस्तार राजनीति की अपेक्षा पूंजी की सुरक्षा और उसकी वृद्धि से अधिक प्रेरित होता था। साम्राज्यवाद में आर्थिक शोषण शामिल है और इस शोषण की प्रक्रिया को पूंजीवादी व्यवस्था से बढ़ावा मिला।
अपने व्यापारिक विस्तार के लिए पश्चिमी देशों में अपने विस्तार की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई। उनकी मंशा दुनिया भर से सोना-चांदी को मुद्रा के रूप में अपने पास बटोरने की थी। 17वीं सदी के मध्य से 18वीं सदी का दौर वाणिज्यिक मुद्रा के निर्माण का दौर था। वही 1870 के दशक से औद्योगिक पूंजी निवेश का दौर शुरू हो गया। इसके साथ ही एकाधिकार, उग्र राष्ट्रवाद की विचारधारा के साथ पूंजीवादी देश संपूर्ण विश्व को हड़प लेने के लिए आपस में टकराने लगे। इस तरह हम कह सकते हैं कि पूंजीवाद की मूलभूत तीन अवस्थाओं के साथ साम्राज्यवाद का फैलाव हुआ। वाणिज्यिक पूंजीवाद, औद्योगिक पूंजीवाद और निवेश पूंजीवाद। साम्राज्यवाद के यह तीन ऐतिहासिक चरण है जिनमें होकर पूंजीवाद और साम्राज्य का विकास हुआ। पूंजीवादी विकास के चरणों का प्रभाव साम्राज्यवाद की बदलती हुई प्रक्रिया पर दिखाई देता है।
वाणिज्यिक पूंजीवाद :- इस प्रथम चरण में साम्राज्यवाद का रूप वाणिज्यवाद ही था। पुर्तगाल तथा स्पेन समुद्र पार साम्राज्य स्थापित करने में अग्रणी थे। पुर्तगाली पूर्व में तथा स्पेनवासी पश्चिम में गए। इनका प्रधान उद्देश्य था जहाजों में माल भरकर लाना तथा यूरोप में बेचना। व्यापारिक साम्राज्य के कारण इन देशों की आर्थिक समृद्धि भी हुई, पर यह स्थाई नहीं रही। 17वीं शताब्दी के समाप्त होते-होते इन देशों का व्यापारिक साम्राज्य ही नहीं, अपितु इनका पूर्व और नई दुनिया में साम्राज्य भी समाप्त हो गया।
औद्योगिक पूंजीवाद:- इस चरण के प्रमुख शक्तियां थी ब्रिटेन, फ्रांस तथा नीदरलैंड। इसमें यूरोपीय शक्तियों ने एक सुनहरी नीति अपनाई। वह थी, बिना शासन के व्यापार करना तथा आधिपत्य तभी स्थापित करना जब आवश्यकता हो। इंग्लैंड का औद्योगिकरण 18 वीं सदी के अंत में हुआ। एकमात्र औद्योगिकरण के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था इंग्लैंड में केंद्रित हो गई। ब्रिटेन नाविक शक्ति, वित्तीय पूंजी, व्यापारिक उघम तथा कूटनीतिक संबंध के कारण विश्व का सर्व शक्तिशाली देश बन गया। किंतु 1860 के दशक के बाद यूरोप में कुछ राजनीतिक तथा आर्थिक परिवर्तन हुए। 1871 में इटली और जर्मनी का एकीकरण हुआ। 1870-71 में फ्रांस और जर्मनी के बीच युद्ध हुआ जिसमें जर्मनी को विजय प्राप्त हुई।
युद्ध के पश्चात जर्मनी को महत्वपूर्ण प्रदेश "ऐल्सेस तथा लोरेन" प्राप्त हुए। जो औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थे क्योंकि जिस देश के पास भी यह दोनों प्रदेश रहते उसकी औद्योगिक शक्ति मजबूत हो जाती थी। इसके बाद यूरोप के शक्ति संतुलन में परिवर्तन हुआ जो अब जर्मनी केंद्रित था। यूरोप में औद्योगीकरण हुआ और शीघ्र ही यूरोपीय देश एक दूसरे को चुनौती देने लगे। औद्योगिक पूंजीवाद के विकास के कारण बाजार, कच्चा माल तथा निवेश के लिए उपनिवेशों की आवश्यकता बढ़ी। उपनिवेशों को प्राप्त करने की दौड़ में जर्मनी, फ्रांस, इटली, अमेरिका, बेल्जियम, रूस और जापान सभी शामिल हो गए। जिसने प्रथम विश्व युद्ध की ओर इन देशों को अग्रसर किया।
निवेश पूंजीवाद:- "ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, रूस, तथा अमेरिका" इन देशों ने औद्योगिक पूंजीवाद तथा मुक्त व्यापार के स्थान पर संरक्षण नीति को अपनाया। यह प्रतिस्पर्धा औद्योगिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की देन थी। साम्राज्यवाद के दौर में अपने अपने बाजार को सुरक्षित रखने के लिए इन देशों ने तटकर को लागू किया। सर्वप्रथम "आर. हिलफंर्डिंग" ने यह मत व्यक्त किया कि संरक्षण तटकर ने पूंजीवाद की चरम स्थिति को उत्पन्न किया। अपने देश में गिरते हुए लाभ और कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने वित्तीय पूंजीवाद को विदेश में अवसर खोजने के लिए प्रेरित किया।
तब साम्राज्यवादी युग का आरंभ वित्त पूंजीवाद की छाया में 1895 में आरंभ हुआ। इसी नीति के चलते विश्व की बड़ी शक्तियों के बीच विश्व का क्षेत्रीय बटवारा हो गया। पूंजीवादी शक्तियों की प्रतिद्वंदिता ने केवल विभाजन ही नहीं किया अपितु प्रथम विश्व युद्ध को भी जन्म दिया। सभी पूंजीवादी शक्तियां यह समझती थी कि समुद्र पार का विस्तार तथा विश्व का शोषण उनके लिए आवश्यक था।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माल, व्यक्ति तथा पूंजी की उपलब्धि में बहुत बड़ी वृद्धि हुई। औद्योगिक विकास के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न देशों के बीच परस्पर भिन्न भिन्न संबंधों के नियम बने। साम्राज्यवादी देशों में नई तकनीकी विकसित हुई: संचार, यातायात, सुरक्षा उपकरण, युद्ध सामग्री आदि। विकसित पूंजीवादी देशों के मध्य तीव्र प्रतिस्पर्धा 1870 से प्रथम विश्वयुद्ध तक रही। यह उग्र रूप से खुलकर सामने आई। ब्रिटेन के अर्थशास्त्री जे.ए.हाॅब्सन का विचार है कि पूंजीवादी व्यवस्था के कारण ही साम्राज्यवाद आया। उनके अनुसार औद्योगिक क्रांति के पश्चात औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई। यूरोपीय देश अपने उद्योगों को स्थिरता प्रदान करने के लिए संरक्षणवादी नीति अपनाने लगे और विदेशी वस्तुओं पर भारी कर लगाने लगे। औद्योगिक क्रांति के कारण पूंजीवादी वर्ग का उदय हुआ, जिसने सरकार पर और अविकसित प्रदेशों पर अधिकार करने के लिए दबाव डाला।
इस पूंजीवादी वर्ग ने अधिक लाभ कमाने के लिए पूंजी लगाई। इस प्रकार हाॅब्सन के अनुसार विदेशी निवेश के कारण साम्राज्यवाद आवश्यक हो गया। अतिरिक्त पूंजी ने ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस तथा अन्य यूरोपीय शक्तियों को अपनी पूंजी अविकसित देशों में लगाने के लिए आकर्षित ही नहीं, प्रेरित भी किया तथा इन अविकसित प्रदेशों पर राजनीतिक अधिपत्य स्थापित करने के लिए भी कदम बढ़ाए। हाॅब्सन का तर्क है कि अतिरिक्त पूंजी के निवेश द्वारा लाभ अर्जित करने की खोज साम्राज्यवाद का कारण थी।
रूस के समाजवादी "वी.आई. लेनिन" ने हाॅब्सन के विचारों से सहमति जताई। अपनी पुस्तक में उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था पर बल दिया। उनकी धारणा थी कि साम्राज्यवाद सामान्यता पूंजीवाद के मूलभूत तत्व का ही विस्तार था और 1914 का युद्ध दोनों पक्षों की ओर से साम्राज्यवादी था। 1860 तक पूंजीवाद में मुक्त प्रतिस्पर्धा का प्रचलन था लेकिन 1900 तक आते-आते यह इसके ठीक विपरीत एकाधिकार में परिवर्तित हो गया। लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद पूंजीवाद का उच्चतम चरण है। उनके सिद्धांत में एकाधिकार 19वीं शताब्दी के यूरोपिय साम्राज्यवाद का केंद्रीय तत्व है। उनका तर्क है कि विकसित देशों का उद्देश्य अविकसित देशों में निवेश करना था क्योंकि घरेलू निवेश से दो कारणों की वजह से लाभ नहीं हो रहा था।
प्रथम घरेलू निवेश में लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें वित्तीय व्यवस्था को विकसित करना होगा। दूसरा श्रमिकों का जीवन स्तर भी अच्छा बनाना होगा और पूंजीपति वर्ग इन दोनों कार्यों में रुचि नहीं दिखा रहा था। लेनिन का विचार है कि अपने देशों की अपेक्षा बाहरी देशों जैसे अफ्रीका और एशिया में धन लगाने वालों को अधिक लाभ था। पूंजीपति उन प्रदेशों से अधिक लाभ कमा सकते थे, जहां प्रत्यक्ष रूप से उनकी सरकार का नियंत्रण था।
ऑस्ट्रेलिया के अर्थशास्त्री जे.शुंपीटर के अनुसार शासन वर्ग ने संरक्षण कर लगाए जिससे कुछ पूंजीपतियों को प्रोत्साहन मिला कि वे गठबंधन बनाएं और साम्राज्यवादी नीतियों का समर्थन करें। वे कहते हैं कि ऐसी परिस्थितियां तब होती है जब पूंजीवाद अपने शांतिपूर्ण चरित्र को छोड़कर आक्रामक बन जाता है। उनके अनुसार पूंजीवाद उन प्रबल और प्रभावशाली सामाजिक गुटों को जन्म देता है जो अत्यधिक लाभ के लिए उपनिवेशों और राज्यों में नियंत्रण पर बल देते हैं। शुंपीटर के अनुसार साम्राज्यवाद प्रमुख रूप से राजनीतिज्ञ, राष्ट्रों और सैन्य कर्मियों का विषय है।
निष्कर्ष:- अत: हम कह सकते हैं कि शुरुआती दौर में पूंजीवादियों ने अपनी असीमित लाभ की प्यास का समाधान उपनिवेशीकरण में पाया। जहां वह परंपरागत उद्योग धंधों को बंद कराकर अपने कारखाने और उस से उत्पादित वस्तुओं को मुनाफे के लिए बेच सकें। उन्होंने इस तरह अपने उपनिवेशों को राजनीतिक और आर्थिक रूप से अपंग कर अपने लिए नए बाजार पैदा किए। ज्यादा से ज्यादा उपनिवेश कब्जे में करना उनके लिए शक्ति और गौरव का विषय बन गया। वास्तव में पूंजीवादी देश की सत्ता और राजनीति चलाने लगे थे। विकास के नाम पर युद्ध, क्षेत्र विस्तार और लोगों का दमन होने लगा था। यह कहा जा सकता है कि आधुनिक इतिहास काल में पूंजीवाद के चलते ही सैनिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और वैचारिक तरीकों से विश्व में साम्राज्यवाद फैला।
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