डॉ. बी. आर. अंबेडकर द्वारा दलितों के मुद्दे को उजागर करना
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प्रश्न:- आधुनिक भारत में दलितों के मुद्दों को डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने किस प्रकार उजागर किया?
परिचय:- दलितों के मसीहा और भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर आधुनिक भारत के राजनीतिक विचारक होने के साथ-साथ प्रख्यात विद्वान, विशिष्ट शिक्षाविद, निपुण राजनेता, प्रभावशाली वक्ता, संविधान विशेषज्ञ तथा दलितों के समर्थक थे। अंबेडकर स्वभाव से विवेकशील, व्यंग्यात्मक और तार्किक थे। अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जो एक अस्पृश्य जाती मानी जाती थी। बचपन से ही अंबेडकर कुशल और बुद्धिमान छात्र थे। बड़ौदा के महाराज गायकवाड़ द्वारा दी गई छात्रवृत्ति से अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर और फिर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से पी.एच.डी की उपाधि ली। 1923 में उन्होंने भारत में वकालत शुरू की तथा साथ ही अपना पूरा जीवन जातिप्रथा के विरोध और अछूत मानी जाने वाली जातियों के उत्थान में लगा दिया। इस प्रक्रिया में उन्होंने कई संगठन बनाए जैसे बहिष्कृत हितकारिणी सभा, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, और अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ, आदि। अपने संदेश को जनता तक पहुंचाने के लिए कई समाचारपत्रों का प्रकाशन भी करवाया जैसे मूकनायक, बहिष्कृत भारत और जनता।
इनकी महत्वपूर्ण कृतियों में "जाति प्रथा का उन्मूलन (1936), शुद्र कौन थे (1946) अस्पृश्य जातियां (1948) और बुद्ध और उनका धर्म (1957), विशेष रूप से प्रसिद्ध है। सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण करते हुए अंबेडकर ने जाति प्रथा पर अपना पहला लेख 9 मई 1910 को न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया। "भारत में जातियां" नामक विषय पर लिखा यह लेख जातिप्रथा के व्यवहार और जन्म पर केंद्रित था। इसके अलावा जातिप्रथा और छुआछूत जैसी बुराइयों पर भी उन्होंने पुस्तकें लिखी।
सामाजिक समस्याओं पर अपने विचार प्रकट करते हुए अंबेडकर ने जाति प्रथा को मूर्खतापूर्ण और अत्याचार करने वाली व्यवस्था बताया और ब्राह्मणवाद की तीव्र आलोचना की। उन्होंने कहा कि ब्राह्मणवाद की मान्यताओं के अनुरूप विभिन्न जातियों के बीच ऊंच-नीच, छुआछूत, निम्न जातियों को शिक्षा से वंचित रखना, इन वर्गों द्वारा संपत्ति के सचंय पर प्रतिबंध, आदि जायज है। असमानता ब्राह्मणवाद का मान्य सिद्धांत है। ब्राह्मणवाद की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि आज विद्वता का ठेका केवल ब्राह्मणों के पास है। परंतु किसी ब्राह्मण ने अभी तक "वॉल्टेयर" का स्थान नहीं लिया है जिसने बौद्धिकता की निष्पक्षता दिखाई।
अंबेडकर ने कहा कि छुआछूत की शिकार सभी जातियां पूरी तरह से सवर्ण जातियों की आर्थिक प्रभुत्व में है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार द्वारा सामूहिक खेती और उद्योग के सामाजिकरण की व्यवस्था की जाए। अंबेडकर का मानना था कि जाति भावनाओं से आर्थिक विकास रुक जाता है। इससे वे स्थितियां पैदा होती हैं जो कृषि तथा अन्य क्षेत्रों में सामूहिक प्रयत्नों के विरुद्ध है। जात-पात के रहते हुए ग्रामीण विकास समाजवादी सिद्धांतों के विरुद्ध रहेगा।
जातिवाद के कारण जो बड़े-बड़े जागीरे बन गई हैं, उन्हें तोड़ा जाए और जमीन उन लोगों में बांट दी जाए जो उसे जोतते हैं या सामूहिक खेती कर सकते हैं। जिससे शहरों और गांवों में तेजी से प्रगति हो। अंबेडकर की नजर में अछूत वर्ण जात-पात की उपज थी। जब तक जातियां हैं, तब तक छुआछूत भी रहेगा। जात-पात को समाप्त किए बिना दलितों का विकास करना संभव नहीं है। हिंदू धर्म से इस घृणित तथा दूषित सिद्धांत को निकाले बिना आने वाले संघर्ष में हिंदू भी जीवित नहीं रह सकते और न ही कोई हिंदुओं का मददगार होगा। अंबेडकर का मानना था कि जातिप्रथा ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था की रीढ़ तोड़ डाली है। चतुरवर्ण व्यवस्था सबसे गिरी हुई व्यवस्था है।
यही वो व्यवस्था है जो मानव का विनाश करती है। अंतर्जातीय विवाह तथा सहयोग इसका पक्का इलाज नहीं है। व्यक्ति को गुण से नहीं, जाति के आधार पर समाज में स्थान दिया जाना व्यक्ति व समाज दोनों का उपहास करना है।
अंबेडकर ने मुसलमानों के भांति अछूतों के लिए भी एक पृथक निर्वाचन व्यवस्था की मांग की। उनका तर्क था कि इस देश में अछूत भी अल्पसंख्यक है यदि संख्या के आधार पर मुसलमानों को पृथक निर्वाचन व्यवस्था के द्वारा प्रतिनिधित्व मिल सकता है तो दलितों को क्यों नहीं। इसी तर्क के आधार पर उन्होंने सांप्रदायिक निर्णय में दलितों के लिए हिंदुओं से अलग पृथक निर्वाचन की मांग ब्रिटिश सरकार से की थी। 1940 से लेकर 1946 के बीच अंबेडकर की पुस्तक "पाकिस्तान और पार्टीशन ऑफ इंडिया" के तीन संस्करण बाजार में आए। इसमें अंबेडकर ने कहा कि मुसलमानों की तरह दलित भी अल्पसंख्यक है, और सामाजिक रुप से इनकी एक अलग व्यवस्था है, हिंदू समाज इन्हे अपना अंग नहीं मानता। यदि मुसलमानों को सामाजिक भिन्नता के आधार पर एक अलग क्षेत्र व राष्ट्र दिया जा सकता है, तो सामान आधार पर दलितों के लिए भी यह कार्य किया जा सकता है।
अंबेडकर ब्राह्मणों को हिंदू सभ्यता का संरक्षक मानते थे। उनका मानना था कि ब्राह्मण जिस सामाजिक संरचना की सर्वोच्चता पर बैठे हुए हैं, इसका एकमात्र कारण हिंदू सभ्यता है। और जितनी सामाजिक कुरीतियां या पिछड़े व दलित जातियों के साथ भेदभाव है, वह ब्राह्मण धर्म व्यवस्था के द्वारा खड़ा किया गया है। ताकि सामाजिक व्यवस्था में अन्य कोई जाति ब्राह्मण की सर्वोच्चता को चुनौती ना दे सके। अंबेडकर ने अपनी पुस्तक "द अनटचेबल जो 1948 में प्रकाशित हुई थी में कहा था कि हिंदू सभ्यता अपने आप में कई खामियां लिए हुए हैं तथा यदि दलितों को अपना अधिकार और आत्मसम्मान चाहिए तो इस सभ्यता का त्याग कर एक नए धर्म को स्वीकार करना चाहिए।
अंबेडकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था की आलोचना करते हुए अपनी पुस्तक द अनटचेबल की प्रस्तावना में लिखते हैं कि ब्राह्मण जाति हिंदू व्यवस्था की एक ऐसी संस्था बन गई है, जो अपने वर्ग हित व वर्ग चेतना को संरक्षित करने के लिए काम करती है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि यदि ब्राह्मण हिंदू सभ्यता के संरक्षक है, तो उन्होंने ब्राह्मण साहित्य में जो खामियां थी उसे दूर करने का प्रयास क्यों नहीं किया? क्यों नहीं किसी ब्राह्मण ने आगे आकर वॉल्टेयर की भूमिका का निर्वाह किया।
वॉल्टेयर की प्रसिद्धि इस बात को लेकर है कि उन्होंने फ्रांस में कैथोलिक धर्म के पाखंड को अपने तर्क के आधार पर खंडित किया था। अंबेडकर का मानना था कि ब्राह्मण बुद्धिजीवी नहीं है यह पढ़े लिखे समाज के शिक्षित व प्रबुद्ध वर्ग है। यदि बुद्धिजीवी होते तो आज कोई ब्राह्मण ही आगे आकर वॉल्टेयर की भूमिका का निर्वाह करता और हिंदू समाज की जातीय संरचना के विरुद्ध आवाज उठाता।
अंबेडकर ने अपनी पुस्तक "एनीहिलेशन ऑफ कास्ट" में अपने भाषणों का संकलन किया है। इसमें उन्होंने लिखा है कि "चतुर्वर्ण के आधार पर हिंदू समाज का संगठन संभव नहीं है क्योंकि वह अपने निजी गुण और योग्यता के आधार पर कायम रहने योग्य नहीं है। जात-पात प्रणाली मात्र श्रम का विभाजन ना होकर श्रमिकों का विभाजन है। जात-पात समाज के लिए नासूर है। आर्थिक दृष्टिकोण से जातिभेद प्रणाली से आर्थिक क्षेत्र में किसी प्रकार की कोई योग्यता नहीं आती। जात-पात की संरचना से बिना रक्त संबंध स्थापित हुए हिंदू समाज मुक्त नहीं हो सकते। जात-पात की नींव शास्त्रों में है। शास्त्रों ने ही हिंदू धर्म को जटिल बनाया है और प्रत्येक व्यक्ति को जो हिंदू है, बांध दिया है। अत: यह जरूरी है कि शास्त्रों की पवित्रता और ईश्वरत्व के अंधविश्वास से हिंदू समाज मुक्त हो।
अंबेडकर 1920-30 के मध्य अपने विचारों में राष्ट्रीयता के समर्थक थे। उनका कांग्रेस और गांधी से विरोध था लेकिन विरोध का स्वरूप राष्ट्र विरोधी स्वर नहीं दिखता था। 1950 में अंबेडकर ने कहा था कि शायद वह अपने आप को राष्ट्रवादी मान सकते थे या कह सकते थे यदि ये राष्ट्र सम्मान और स्वतंत्र व्यक्तियों के समूह से बना होता और जाति यहां से लुप्त हो जाती।
एक और जहां अंबेडकर के विचारों का विरोध हुआ वहीं कुछ लोगों में विश्वास भी जगा। गांधी ने हरिजन पत्रिका में अंबेडकर के विचारों का उत्तर दिया था। हालांकि एनीहिलेशन ऑफ कास्ट के दूसरे संस्करण में अंबेडकर ने गांधी के विचारों का खंडन करते हुए अपनी बात की प्रमाणिकता सिद्ध की जो अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई थी। जातिप्रथा, छुआछूत और वर्णाश्रम धर्म की बुराइयों के प्रति दोनों चिंतित थे। लेकिन फिर भी उनमें आपस में इन मुद्दों पर कभी सहमति नहीं बन पाई। अंबेडकर मानते थे कि जाति को समाप्त किए बिना अस्पृश्यता को दूर नहीं किया जा सकता। अंबेडकर का तर्क था कि जाति प्रथा के बने रहने से भारत का सत्यानाश हो जाएगा और इसकी गुलामी का कारण जाति प्रथा ही है।
अंबेडकर ने अपने जीवनकाल में जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कार्य किए। जैसे महाराष्ट्र में 1927 में हजार दलितों को लेकर महाड़ में स्थानीय नगरपालिका के नियंत्रण वाले एक सार्वजनिक तालाब से पानी लेने के अधिकार का दावा करते हुए एक विशाल सत्याग्रह किया। साथ ही एक सार्वजनिक समारोह में दलितों को बलहीन और अधीन बनाने वाले धर्मग्रंथ मनुस्मृति की एक प्रति भी जलाई। इसके बजाय उन्होंने हिंदू समाज और हिंदू धर्मशास्त्र को अमूल परिवर्तन का सुझाव दिया और दलितों को राय दी कि वे अपनी शक्ति और अपने संसाधन राजनीति और शिक्षा पर केंद्रित करें।
निष्कर्ष:- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलितों के मन में आत्मसम्मान की भावना को जागृत किया। इनकी पत्रिका और प्रकाशन को कुछ नेताओं तथा संगठनों की तीखी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। किंतु इसके बावजूद भी अंबेडकर अपने विचारों पर अडिग रहें। कुछ टकराव के बावजूद अपने राजनीतिक के अंतिम दौर में उनका आंदोलन जाति व्यवस्था विरोधी, राष्ट्रीय एकता का समर्थक व आधुनिक भारत के निर्माण का संयोजक बन गया।
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