1911 की क्रांति
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प्रश्न:- 1911 की क्रांति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
परिचय:- 1911 की चीनी क्रांति आधुनिक विश्व इतिहास की एक महान घटना थी। इस क्रांति से एक पुराने युग का अंत तथा नए युग का आगमन हुआ। इसने हमेशा के लिए निरंकुश शासन के सदियों पुराने राजवंशीय चक्र को समाप्त किया तथा उसके स्थान पर गणतंत्रात्मक सरकार की स्थापना की। परंतु साथ ही यह क्रांति चीनी जनता के लिए हर प्रकार क दुखे तथा मुसीबतें भी लेकर आई। इसने बाद में योद्धासामंतवाद के रूप में अराजकता को जन्म दिया और चीन को साम्राज्यवादी एवं सामंतवादी उत्पीड़न की स्थिति में धकेल दिया। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में छिंग अथवा मांचू राजवंश का पतन एवं ह्मस स्पष्ट दिखाई देने लगा था। अब तक पश्चिमी सभ्यता चीनी समाज एवं संस्थाओं पर गहरे घाव कर चुकी थी। पश्चिमी साम्राज्यवाद ने आम जनता को अपने शासकों से अब और दूर कर दिया था। सरकारी तंत्र हर संभव तरीके से भ्रष्ट हो चुका था।
वी.पी.दत्त:- के अनुसार सरकारी अधिकारी इतने भ्रष्ट हो चुके थे कि “बलपूर्वक धन ऐंठने की प्रथा एक कला नहीं, अपितु एक संस्था बन चुकी थी।
शाही दरबार में विलासिता, फिजूलखर्ची, उतावलापन तथा षड्यंत्र आदि ने गहरा अतिक्रमण कर लिया था। दरबार के सारे भ्रष्ट दस्तूर निचले अफसरों द्वारा बड़ी निष्ठापूर्वक अपना लिए गए थे। केंद्रीय तथा प्रांतीय प्रशासन दोनों में कोई सुधार नहीं किया गया। भ्रष्टाचार के अतिरिक्त अकाल, सूखा, बाढ़, गरीबी, भुखमरी तथा महामारी आदि ऐसे कारण थे जो कई विद्रोह तथा अनेक गुप्त संस्थाओं के निर्माण के लिए उत्तरदाई थे।
देश की इस दुखद स्थिति का सामना करने के लिए छिंग शासकों ने स्वयं को रूढ़िवादी सुधारों के प्रति वचनबद्ध करके अतीत का सहारा लिया। किंतु इसने राजवंश की समस्याओं को बढ़ाया तथा ताकत के बल पर अपने शासन को बनाए रखने के उनके प्रयासों ने बड़ी संख्या में चीनी लोगों के मन में क्रांति की भावना को जन्म दिया।
कारण:-
चीन की अफीम युद्ध में हुई शर्मनाक पराजय के परिणामस्वरुप चीन पर अनेक असमान संधियां थोंप दी गई थी। बाद में चीन की प्रादेशिक, प्रशासनिक तथा आर्थिक एकता का भी दोहन किया गया। चीन टूटे हौसले वाला एक शक्तिहीन राज्य बन कर रह गया। 1904-05 ई• के चीन-जापान युद्ध में चीन की पराजय से साम्राज्यवादी शक्तियों ने चीन में रेलमार्ग तथा बैंकों द्वारा विजय की नीति को अपनाता जो चीनी अर्थव्यवस्था के लिए एक विनाशकारी आघात थी। विदेशियों द्वारा किए जा रहे इस शोषण के कारणं चीनी जनता में एक हिंसक प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई जो 1911 की क्रांति के होने तक चलती रही।
आर्थिक पतन:- खेती योग्य भूमि में बिना किसी वृद्धि के जनसंख्या में होती हुई वृद्धि, विदेशी व्यापार तथा प्राकृतिक आपदाओं से किसानों के जीवन स्तर में गिरावट आई। इसके कारण कई छोटे-छोटे विद्रोह हुए जिन्होंने आर्थिक स्थिति को और भी बिगाड़ दिया। सरकार ने आम लोगों पर कर का बोझ लाद दिया। विदेशी आर्थिक दबाव, भारी मुआवजा एवं युद्ध के खर्चे तथा हर प्रकार के करों में वृद्धि ने कृषि अर्थव्यवस्था को नष्ट करने में सहायता प्रदान की।
राष्ट्रवाद:- चीन में साम्राज्यवादी नियंत्रण से पश्चिमी राजनीतिक दर्शन का प्रभाव पड़ा। चीनी क्रांतिकारी नेताओं ने विदेशों में अध्ययन किया जो क्रांतिकारी अवधारणाओं से प्रभावित थे। देश के भीतर संप्रभुता अधिकारों के हनन से जनता का आक्रोश तीव्र हो गया। अपमानजनक संधियों के बाद ऐसी रियायतें दी गई जिनसे चीनी जनता को धक्का पहुंचा। ऐसी रियासतों के विरुद्ध चीनी प्रतिक्रिया से राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला। राष्ट्रवाद की बढ़ती लहर को रोकने के लिए मांचू सरकार ने कुछ सुधार करने का प्रयास किया। किंतु इसके विपरीत इन सुधारों ने मांचूओं को और भी निर्बल बना दिया। शैक्षणिक सुधारों ने ऐसे हजारों युवकों को उत्पन्न किया जो नई विचारधाराओं तथा विचारों से प्रभावित थे। वह एक नए विश्व के निर्माण के प्रति दृढ़संकल्प थे। सैन्य सुधारों ने भी आधुनिक सेना को राष्ट्रवाद के नाम पर क्रांतिकारी विचारों के प्रति ग्रहणशील बनाया।
विभिन्न वर्गों की भूमिका:- राष्ट्रवाद की उठती लहर ने कई उभरते नए वर्गों को प्रभावित किया। वाणिज्यिक बुर्जुआ वर्ग अपने विदेशी प्रतिस्पर्धीयों द्वारा स्वयं से किए जाने वाले भेदभाव के लिए मांचू सरकार को उत्तरदाई मानते थे। इसके अतिरिक्त नए उभरते सामाजिक वर्ग छात्र, नए सैनिक, महिलाए, प्रवासी चीन तथा सर्वहारा वर्ग जिन्होंने सरकार विरोधी आंदोलन में क्रांतिकारियों का पक्ष लिया। मेरी रेन्किन के अनुसार विदेशों से लौटे चीनी युवा अराजकतावादियों ने जो क्रांतिकारी भावुकता तथा आत्म-बलिदान के विचारों से सराबोर थे, गांवों में क्रांति भड़काने का प्रयास किया। युवतीयों तथा युवा महिलाओं ने साम्राज्यवाद विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेकर “देशभक्त समाज” जैसी संस्थाएं बनाकर प्रमुख भूमिका अदा की।
बुर्जुवा वर्ग:- साम्राज्यवाद तथा सामंतवाद ने बुर्जुआ वर्ग का उत्पीड़न किया। सामाजिक सर्वेक्षण तथा व्यापारिक प्रबंधन की व्यवस्था द्वारा औद्योगिकरण को किसी प्रकार का भी प्रोत्साहन नहीं मिला क्योंकि अधिकारी वर्ग अपने रवैया में बिल्कुल ही गैर-व्यवसायिक तथा सामंती था। स्थानीय अधिकारियों के साथ व्यापारियों के संबंध अच्छे नहीं थे। इससे बढ़कर सामाजिक मूल्यों का कन्फ्यूशिंसवादी ढांचा किसी भी तरह आधुनिक उद्यमी वर्ग के विकास के लिए सहायक नहीं था क्योंकि व्यापारी वर्ग को सामाजिक श्रेणी के सबसे निचले स्तर पर रखा गया था। चीनी व्यापारी वर्ग के लिए एक और बाधा थी अपर्याप्त पूंजी। सरकार व्यापारियों को वित्तीय सहायता देने में असमर्थ थी। वे व्यापार में लगे हुए थे इसलिए साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा चीन के शोषण से सर्वाधिक अवगत थे, जिसने निश्चित रूप से उनके अंदर राष्ट्रीय भावना को पैदा किया।
नए सैनिक:- विदेशी संकट तथा आंतरिक असंतोष के चलते चीनी सरकार को एक नई आधुनिक सेना बनानी पड़ी। चीनी सरकार अपने लगभग 1.2 करोड़ तायलों के राजस्व का आधा भाग केवल सैन्य तंत्र पर ही खर्च कर रही थी। जिसमें से एक बड़ा भाग पुरानी सेना पर खर्च हो रहा था। इस प्रकार ऐसे समय में जब चीन आर्थिक दबाव में डूब रहा था, तब पुरानी सेना एक अनावश्यक वित्तीय बोझ बन गई थी। प्रशिक्षण हेतु जापान गए सैन्य शिक्षार्थी नए विचारों के साथ लौटे। यह सैन्य शिक्षार्थी जापान में क्रांतिकारियों से प्रभावित है जो अत्यधिक सक्रिय थे। इन्होंने क्रांतिकारी प्रचार के लिए काम किया तथा प्रबुद्ध साहित्यकारों, व्यापारियों तथा आधुनिक बुद्धिजीवियों के राष्ट्रवाद के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की।
वाई हतानो:- के अनुसार नई सेनाओं ने कृषक असंतोष को सफलतापूर्वक एक संगठित क्रांतिकारी रूप दे दिया। जब अक्टूबर 1911 में वुछांग में विद्रोह की तोपें गूंजी तो नए सैनिकों ने साम्राज्यिक दरबार की रक्षा के स्थान पर उसे उखाड़ फेंकने के अभियान में हिस्सा लिया।
सुन यातसेन की भूमिका:- यह 1911 की क्रांति के न केवल प्रवर्तक थे बल्कि इसके प्रेरक भी थे। यह कई वर्षों से चीन को भ्रष्ट विदेशी राजवंश के शासन से मुक्त करा कर एक नई जनतांत्रिक सरकार की स्थापना करने का प्रयास कर रहे थे। उनके शिंग चुग हुएइ(चीन जागृत करो संगठन) जिसकी स्थापना 1894 में हुई थी, ने चीन में व्याप्त सामाजिक तथा राजनीतिक अराजकता एवं विदेशी शक्तियों की लूट का मुद्दा उठाया। इस संगठन द्वारा सेन ने मंचूरियाइयों को निष्कासित करने, चीनी शासन की पुनर्स्थापना करे तथा एक गणतंत्रात्मक सरकार की स्थापना करने का झंडा खड़ा किया। 1905 में उन्होंने थुंगमंग हुएइ की स्थापना की, जो चीन में बुर्जुआ जनतांत्रिक क्रांति के प्रारंभ को चिन्हित करती है। फिर उन्होंने तीन जन सिद्धांतों की अपनी कल्पना प्रस्तुत की, जो राष्ट्रवाद, प्रजातंत्र तथा जन आजीविका से बनी थी। सेन ने चीनी जनता को युगों की नींद से जगाया, उन्हें राष्ट्रवाद की एक नई भावना प्रदान की तथा नए राष्ट्र को पुनर्निर्माण का एक व्यापक कार्यक्रम प्रदान किया। धन इकट्ठा करने वाले के रूप में उनकी ठोस भूमिका, क्रांति के दौरान विदेशियों से उनका कुशलतापूर्वक बर्ताव तथा क्रांति के संपूर्ण अराजकतापूर्ण काल में उनके आशावाद ने मांचूओं को उखाड़ फेंकने में एक निर्णायक भूमिका अदा की।
रेलवे संकट तथा क्रांति:- 1906-08 के बीच 3 वर्षों की अवधि में शासन के विरुद्ध सात बड़े विद्रोह हुए, लेकिन वे असफल रहे। एक अन्य बड़ा विद्रोह अप्रैल 1911 में हुआ। यह विद्रोह भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो गया। लेकिन यह विद्रोह को उस सफल क्रांति का उपक्रम बन गया, जो 6 महीने बाद वह वुछांग में आरंभ हुई।
सछुआन रेलवे संकट उन सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था जिसने 1911 की क्रांति को विकसित किया। रेलवे समस्या ने बुर्जुआ तथा भद्रजनों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। इसने मांचूओ के विरुद्ध असंतोष को बढ़ाया तथा इसकी पराकाष्ठा अंतिम विस्फोट में हुई। 9 मई 1911 को पेइचिंग में एक शाही फरमान जारी किया गया जिसने सारे देश के मुख्य मार्गो का राष्ट्रीयकरण कर दिया तथा प्रांतीय व्यापारी से उनके निर्माण के अधिकार को वापस ले लिया। इस विषय में वी.पी.दत्त ने कहा है कि “यह वही चिंगारी थी जिसने घास के मैदानों में आग लगा दी”। विरोध की लहर सछुआन से शुरू हुई तथा इसने देश के अन्य भागों को भी अपनी चपेट में ले लिया। यह क्रांति के तत्कालीन कारणों में से एक से हुआ।
रेलवे राष्ट्रीयकरण के लिए विदेशी बैंकों से दस लाख तथा 60 लाख पौंड के दो ऋण लिए गए। प्रांतीय विधानसभा के उपाध्यक्ष लुओ लुन ने शेयरधारकों की संकटकालीन बैठक बुला कर सूचित किया कि सछुआनवासियों का जीवन और धन-संपदा विदेशियों को बेच दिया गया है। उसने उनके साथ हुए इस अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने का ऐलान किया। अन्य प्रांतों के लोगों ने भी स्वयं को संगठित किया।
विभिन्न प्रांतों में समर्थन प्राप्त करने के लिए तथा रेलवे अधिकारों की पुन:प्राप्ति हेतु संयुक्त मोर्चा खड़ा करने के लिए प्रतिनिधि भेजे जाने लगे। इसमें मांचूओं के पद-त्याग की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया।
चाओ अरफंग को सछुआन का नया गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। इन्होंने संकट की स्थिति में ठंडे दिमाग से कार्य करने का प्रयास किया। लेकिन रेलमार्गों के डायरेक्टर जनरल चाओ के प्रति ईर्ष्या का भाव रखते थे और वह उन्हें किसी ना किसी संकट में डालना चाहते थे। डायरेक्टर जनरल तुआन फंग ने ली चिश्युन को इच्छांग रेलवे कंपनी का मुख्य प्रबंधक नियुक्त कर दिया। फलस्वरूप छंगतु में एक आम हड़ताल हो गई, जिसमें समाज के साभी वर्गं शामिल हो गए। प्रांत में स्थिति गंभीर हो गई, जिसपर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने सैनिकों की दमनकारी नीति को अपनाया। परंतु स्थिति सुधारने के बजाय और बिगड़ गई। हुनान, हपेइ, और कुआंततुग प्रांत के लोग भी इस संघर्ष में शामिल हो गए जिसका सामना करने की शक्ति छिंग दरबार में नहीं थी। रेलवे नीति पूरी तरह असफल हो चुकी थी।
रेलवे का यह विद्रोह राजवंश के विरुद्ध एक अधिक व्यापक क्रांति में तब्दील हो गया। अक्टूबर 1911 को वुहान में हुए बम फटने की घटना ने क्रांतिकारी आंदोलन को और तीव्रता प्रदान की। अंतः 10 अक्टूबर 1911 को वुछांग विद्रोह हुआ। यह विद्रोह पूरे देश में बढ़ती क्रांतिकारी स्थिति का परिणाम था। कुछ ही दिनों में सारा वुहान क्रांतिकारियों के कब्जे में आ गया। इसके बाद एक-एक करके 11 प्रांतों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी। अंतिम उपाय के रूप में मांचू युअन प्रखाय को लाए जिन्होने प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। प्रखाय ने शांति के संधि प्रस्ताव प्रस्तुत किए।
सम्राट ने 12 फरवरी 1912 को सिहासन खाली कर दिया और सम्राट ने युअन को एक अस्थाई गणतंत्रात्मक सरकार बनाने की संपूर्ण शक्ति सौंप दी। सुन यातसेन ने अस्थाई सरकार की अध्यक्षता स्वीकार कर ली। लेकिन आगे चलकर सुन इस्तीफा दे दिया और युअन गणतंत्रात्मक सरकार के अस्थाई अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
परिणाम:-
चीन में पहली बार गणतंत्रात्मक सरकार की स्थापना हुई, जिसने 2000 वर्ष पुरानी संस्था को समाप्त कर दिया। किंतु यह क्रांति सामंतवाद को पूर्णतया समाप्त करने में असफल रही। इसमें केवल सामंतवाद को आघात पहुंचाया क्योंकि इसने छिंग शासन तथा निरंकुश राजतंत्र व्यवस्था का अंत किया।
इस क्रांति का एक महत्वपूर्ण परिणाम व्यवसायी वर्ग का उदय था। जिसके पास पहले की तुलना में ज्यादा शक्ति तथा प्रभाव था। इसके ऊपर से पुराने ढांचे की पाबंदीयां जिन्होंने इसकी गतिविधियों को ढीला कर दिया था, कम हो चुकी थी। कांति से प्रेस को भी गति प्राप्त हुई। प्रेस द्वारा क्रांतिकारी विचार पहले से ज्यादा लोगों तक पहुंचने लगे। क्रांति से राजनीतिक दलों को भी बढ़ावा मिला। चीन में कई राजनीतिक दल उभरकर आए जो शासन में हिस्सेदारी पाने के लिए एक दूसरे से होड़ कर रहे थे। क्रांति में सेना ने निर्णायक भूमिका अदा की तथा गणतंत्र में शक्ति युअन प्रखाय जैसें पहले दर्जे के सैन्यवादी के हाथों में चली गई। इसके परिणामस्वरूप एक विध्वंसकारी योद्धासामंतवाद का प्रारंभ हुआ।
निष्कर्ष:- 1911 की क्रांति ने चीन में एक नए युग का आरंभ किया। इसमें चीन में पहली बार गणतंत्रात्मक सरकार की स्थापना की। चीन में नए-नए स्वतंत्र प्रांतों का उदय हुआ। साम्राज्यवाद तथा सामंतवाद जैसे शोषणकारी विचारधाराओं पर चीन में लगाम लगाई गई। सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह कि इस क्रांति के फलस्वरूप चीन में राष्ट्रवाद का उदय हुआ। जिसने समाज के विभिन्न वर्गों में एकता की भावना को जागृत किया। साथ ही साथ इसने लोगों को उनके राजनीतिक अधिकारों के प्रति भी सचेत किया।
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