बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

मई चतुर्थ आंदोलन

प्रश्न:- मई चतुर्थ आंदोलन का विस्तार से वर्णन कीजिए।

परिचय:- 1919 ई• का मई चतुर्थ आंदोलन बीसवीं सदी के चीन के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास की पराकाष्ठा था। राष्ट्रीय स्वतंत्रता की प्राप्ति, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और एक नई संस्कृति की स्थापना इस आंदोलन के मुख्य उद्देश्य थे। इस आंदोलन ने विश्लेषण और वैज्ञानिक मूल्यांकन के द्वारा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहा। इसने न केवल युवा विद्वानों और मजदूरों को प्रभावित किया बल्कि 1921 में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई। इस आंदोलन की यह विशेषता थी कि चीनी इतिहास में पहली बार एक आंदोलन का उद्देश्य ग्रह और विदेशी दोनों क्षेत्रों से संबंधित थे। इस आंदोलन ने विदेशी शक्तियों की चीन के प्रति नीति और आसमान संधि प्रणाली पर एक साथ कड़ा प्रहार किया। इसने समाज के उन परंपरावादी वर्गों की निंदा की जिन्होंने विदेशी शक्तियों के समक्ष घुटने टेक दिए थे। इसी विशेषता के कारण माओ त्जतुंग ने चीनी क्रांति को साम्राज्यवाद विरोधी और सामंतवाद विरोधी की संज्ञा दी, जो अपने आप में एक नई बात थी।

1911 की क्रांति छिंग वंश को उखाड़ फेंकने में सफल रही, पर आम आदमी की स्थिति में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ। राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक मंदी और तानाशाही शक्तियों ने राष्ट्र में अराजकता का वातावरण उत्पन्न कर दिया था। इसलिए भ्रष्टाचारी आंतरिक राजनीति और चीन की संप्रभुता पर साम्राज्यवादी शक्तियों के प्रभाव के कारण देशभक्त शक्तियां एकजुट होने लगी। अंत: बहुत से विद्वानों ने मई चतुर्थ आंदोलन को 1911 की क्रांति का तार्किक परिणाम आना है। 

विदेशों से पढ़कर लौटे हुए चीनी विद्यार्थी तत्काल सुधारों के पक्ष में थे। इन विद्यार्थियों में से एक हू र्ष था, जो समाज में परिवर्तन लाकर समस्याओं का निदान करना चाहता था। इसने लोगों को क्रांति के प्रति सचेत किया और समाज की पांच बुराइयों गरीबी, बीमारी, निरक्षरता, भ्रष्टाचार और अराजकता को खत्म करने के लिए शांतिपूर्ण और क्रमिक सुधारों पर जोर दिया। 

वर्साय संधि के बाद चीनी विद्यार्थियों ने जापान और उसे मदद करने वाली शक्तियों का विरोध करने का संकल्प किया। 4 मई 1919 को लगभग पांच हजार विद्यार्थी थ्याननमन मैदान पर एकत्रित होकर दूतावास क्षेत्र की ओर अग्रसर हुए। लेकिन उन्हें बीच में ही रोक दिया गया। विद्यार्थियों ने एक अधिकारी त्साओ रूलिन के घर को जला दिया, क्योंकि रूलिन को वे जापान का समर्थक मानते थे। हजारों विद्यार्थियों को गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार के विरोध में आवाज उठने लगी। आंदोलन को चलाने के लिए पेइचिंग विद्यार्थी संघ की स्थापना की गई। अखबार तथा बुर्जुआ वर्ग के उदार दलों ने विद्यार्थियों का पक्ष लिया। पूरे चीन में विद्यार्थी आंदोलन फैल गया। मई और जून 1919 में विद्यार्थियों, औरतों और श्रमिकों ने भी आंदोलन में अहम भूमिका निभाई।

आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने पेइचिंग में मार्शल कानून लागू कर दिया। विद्यार्थियों के पक्ष में शंघाई के व्यापारियों ने हड़ताल की। लगभग 60,000 मजदूरों ने इस हड़ताल में भाग लिया। सरकार को घुटने टेकने पड़े। जेल से अनेक विद्यार्थियों और बुद्धिजीवियों को रिहा किया गया। योद्धासामंत तुआन छिरूएइ द्वारा तीन मंत्रियों को विद्यार्थियों की मांग पर मंत्रिमंडल से निष्कासित कर दिया गया।

आंदोलनकारियों ने सरकार को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने से मना किया। इस आंदोलन ने चीन की बौद्धिक क्रांति में उत्प्रेरक का कार्य किया। वर्साय की संधि से निराश लोग अब मार्क्सवादी समाजवाद की ओर झुकने लगे।

मई चतुर्थ आंदोलन का स्वरूप काफी विवादास्पद है। कुओमिनतांग दल के अनुसार यह आंदोलन योद्धा सामंतवाद और विदेशी शक्तियों के विरुद्ध राष्ट्रवादी भावनाओं का परिणाम था। राष्ट्रीय चीनी युवा दल ने इस आंदोलन को राष्ट्रवादी विद्यार्थियों का आंदोलन माना है। उन्होंने मई चतुर्थ की देशभक्ति और जापान विरोधी भावनाओं को सराहा लेकिन साथ ही इसके नए विचारों की निंदा की।

माओ त्जतुंग का मानना है कि यह आंदोलन चीन में पुराने प्रजातंत्र और नए प्रजातंत्र के बीच की विभाजन देखा था। उन्होंने इसे सांस्कृतिक आंदोलन माना है। उनका मानना था कि अपने सांस्कृतिक पक्ष के कारण मई चतुर्थ आंदोलन एक अप्रत्याशित घटना थी। साथ ही वह यह भी मानते हैं कि रूसी क्रांति और लेनिन के आह्वान के कारण माई चतुर्थ आंदोलन हुआ था। अत: यह आंदोलन सर्वहारा वर्ग के विश्व आंदोलन का एक भाग था। चाओ लतुंग का मानना है कि यह आंदोलन एक बौद्धिक और सामाजिक राजनीतिक आंदोलन था, जो चीन के आधुनिकीकरण द्वारा राष्ट्रीय स्वतंत्रता, एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता और एक उचित समाज की स्थापना करना चाहता था। चाओ के अनुसार यह इसलिए एक बौद्धिक आंदोलन था, क्योंकि यह इस मत पर आधारित था कि आधुनिकीकरण के लिए सांस्कृतिक परिवर्तन आवश्यक थे, इसने अनेकों सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को भी बढ़ावा दिया।

उदारवादियों के अनुसार यह आंदोलन पुरानी धारणाओं, पुराने विचारों और पुराने मूल्यों से स्वतंत्रता को दर्शाता है और मानवीय अधिकारों की पुष्टि करता है। अनुदारवादियों का मानना है कि इस आंदोलन का युवा वर्ग पर गलत प्रभाव पड़ा क्योंकि वह परंपरा विरोधी हो गए थे। फिर भी उन्होंने इस आंदोलन के राष्ट्रीय स्वरूप की सराहना की है। उग्रसुधारवादीयों ने इस आंदोलन को देश प्रेम से ओतप्रोत बताया तथा इसे मानवीय स्वतंत्रता का भाग बताया। इन सभी विवादों के बावजूद वास्तविकता यह है कि यह आंदोलन मुख्यत: बौद्धिक, सामाजिक, राजनीतिक आंदोलन था। जिसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्वतंत्रता, व्यक्तिगत मुक्ति और नई संस्कृति की स्थापना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आंदोलन राष्ट्रीय धरोहर और विदेशी सभ्यता का वैज्ञानिक विश्लेषण और समीक्षा करना चाहता था।

इस आंदोलन के माध्यम से बुद्धिजीवियों ने न केवल पश्चिमी वैज्ञानिक तकनीकी कानून और राजनीतिक संस्थाओं को चीन में लाना चाहा, बल्कि चीनी दर्शन, नीति, प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक सिद्धांतो और संस्थाओं का भी मूल्यांकन करना चाहा। मई चतुर्थ आंदोलन काल में अनेक बौद्धिक विचारों का उदय हुआ जैसे :- धृष्टतावाद, उदारवाद-समाजवाद, प्रकोष्टवाद, आदर्शवाद, अराजकतावाद, मानवतावाद तथा वैज्ञानिक समाजवाद। 

विचारों के क्षेत्र में क्रांति के साथ-साथ मानवतावाद, छायावाद और यथार्थवाद पर आधारित साहित्य का जन्म हुआ और छापाखाना और शिक्षा के विकास ने इसे बढ़ावा दिया। इस आंदोलन का प्रभाव चित्रकारी, मूर्तिकला, संगीत आदि क्षेत्रों पर भी पड़ा। 

इस आंदोलन के फलस्वरुप स्कूलों में आधुनिक शिक्षा दी जाने लगी। नए राष्ट्रीय उद्योगों को जरूरतों के अनुसार औद्योगिक प्रशिक्षण दिया जाने लगा। चीन में आधुनिक अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र की नींव पड़ी। जीव विज्ञान, भूगोल शास्त्र, मौसमविज्ञान, भौतिक विज्ञान, शरीर विज्ञान आदि क्षेत्रों में प्रगति हुई। इस आंदोलन के कारण समाज में अनेक परिवर्तन आए। परंपरा पर आधारित परिवार प्रणाली का पतन हुआ। प्रेम विवाह की शुरुआत हुई। चीनी युवा वर्ग अपने अधिकारों के प्रति अधिक सजग और सचेत हो गए। औरतों की स्थिति में सुधार हुआ। औरतों के अधिकारों की भी रक्षा करने की कोशिश की गई तथा उन्हें पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार शादी करने से मना किया गया। इस आंदोलन के कारण औरतें राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय हो गई।

अर्थव्यवस्था में भी परिवर्तन आया। जमीदारों की शक्ति में कमी आई। किसानों के उपद्रव बढ़ गए, शहरवासी राजनीतिक क्षेत्र में अधिक सक्रिय हो गए और श्रमिकों की समस्याओं को अधिक महत्व दिया जाने लगा। युवा बुद्धिजीवियों के नेतृत्व में श्रमिक आंदोलन अधिक सक्रिय और शक्तिशाली हो गया। राजनीतिक क्षेत्र में इस आंदोलन के कारण राजनीतिक दलों को नए विचारों और सिद्धांतों के आधार पर संगठित किया गया। राजनीतिक दलों ने आम जनता का सहयोग प्राप्त करना चाहा तथा वह सामाजिक समस्याओं पर अधिक ध्यान देने लगे। राजनीतिक दलों ने समाजवाद, प्रजातंत्र, राष्ट्रीय स्वतंत्रता के विचारों को अपनाया और योद्धासामंतवाद, साम्राज्यवाद और औपनिवेशिक नीति की निंदा की। मई चतुर्थ आंदोलन के दो महत्वपूर्ण राजनीतिक परिणाम थे- जापान विरोधी भावना में वृद्धि और चीन के योद्धासामंतवादी सरकार से असंतुष्टि।

निष्कर्ष:- मई चतुर्थ आंदोलन के पश्चात चीन में स्वतंत्र समाजवादी राष्ट्र-राज्य की स्थापना हुई जो देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता के सिद्धांतों पर आधारित था। युवा बुद्धिजीवियों ने विश्व, राजनीति और योद्धा सामंतवाद से टक्कर लेने के लिए जन आंदोलन, संगठन और क्रांतिकारी अनुशासन को आवश्यक बताया। इस आंदोलन ने मौलिक विचारों और सिद्धांतों की जगह पश्चिमी विचारों को अपनाया। इसने चीन और विश्व के प्रति चीनियों के व्यवहार को बदल दिया। इस आंदोलन ने निर्दयता के साथ चीनी वास्तविकता को उभारा। इसलिए समकालीन चीनी इतिहासकार मई चतुर्थ आंदोलन को अपने देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानते हैं।

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