चीन में साम्यवाद
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प्रश्न:- चीन में साम्यवाद के उदय का वर्णन कीजिए।
परिचय:- चीनी साम्यवादी दल की स्थापना 1921 में हुई। हालांकि साम्यवादी आंदोलन की शुरुआत बंद कमरो में वार्ता, वाद विवाद आदि के रूप में हुई, पर धीरे-धीरे इस आंदोलन ने गति पकड़ी तथा इसके सदस्यों की संख्या बढ़ती गई। माओ त्जतुंग, ज्हूद, चोऊ अनलाए, चन तुशिउ, लिउ शाओछि, शिआंग चिग यी आदि नेताओं ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। परंतु इन नेताओं के व्यक्तित्व से अधिक उनके द्वारा निर्धारित नीतियों और उद्देश्यों ने जनता को प्रभावित और प्रोत्साहित कर साम्यवादी आंदोलन की ओर आकर्षित किया। सी.सी.पी. ने यह तय किया कि उसका उद्देश्य देश को साम्राज्यवादी ताकतों के चंगुल से छुड़ाने के साथ-साथ चीनी जनता को वहां के शासक वर्ग के निरंकुश अधिपत्य से भी मुक्ति दिलाना है। चीनी साम्यवादी दल ने चीनी जनता को नई राजनीतिक चेतना और उनके संघर्षों को नई दिशा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
चीनी जनता पेरिस शांति सम्मेलन से बिल्कुल निराश थी। इस सम्मेलन की शर्तों के तहत षानतुंग में जो अधिकार जर्मनी को उपलब्ध थे, वह चीन को वापिस लौटाने की बजाय, जापान को सौंप दिए गए थे। ऐसे समय में सोवियत संघ उभरकर सामने आया, जहां साम्यवादियों ने अपने जार के निरंकुश शासन के साथ-साथ पश्चिमी साम्राज्यवादियों को उखाड़ फेंका था। मार्च 1919 में सोवियत सरकार ने चीनियों का विश्वास जीतने के लिए मंचूरिया में जार सरकार के प्रवेश को समाप्त कर दिया, जार द्वारा लगाए गए करो से चीनी नागरिकों को मुक्त कर दिया तथा जार की सरकार द्वारा चीन में स्थित रूसी दूतावास में रखे गए सभी सैनिकों को वापस बुला लिया।
सोवियत संघ के इस कार्य केे फलस्वरुप चीन की 10% शिक्षित जनसंख्या का एक भाग मार्क्सवाद की तरफ आकर्षित हुआ।
चीन में मार्क्सवाद के विकास की दिशा में मई चतुर्थ आंदोलन एक महत्वपूर्ण मुकाम था। इस आंदोलन में शहरी आबादी के विभिन्न वर्गों जैसे विद्यार्थियों, बुद्धिजीवियों, मजदूरों तथा बुर्जुआ वर्ग के लोगों ने एक साथ साम्राज्यवादी ताकतों के शोषण के खिलाफ जन प्रदर्शन में भाग लिया। प्रेस के विकास से नए विचारों के प्रसार तथा उनकी स्वीकृति में सहायता मिली। कई मार्क्सवादी रचनाओं का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया, अध्ययन सभाओं की स्थापना की गई तथा मार्क्सवाद को पढ़ने और उसका प्रचार करने के लिए कई पत्रिकाएं प्रकाशित होने लगी। इस प्रकार माई चतुर्थ आंदोलन के नेताओं में से ही कुछ लोग चीन के प्रारंभिक साम्यवादी नेता बने।
चीन में राष्ट्रवादी विचारधारा द्वारा विद्यमान धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्था की कड़ी आलोचना की गई और इस विद्यमान व्यवस्था को आधुनिक एवं स्वतंत्र चीन के विकास में एक अवरोध समझा गया। इस पुरानी व्यवस्था की आलोचना पश्चिमी लोकतंत्रवादी समर्थकों के द्वारा की गई। इस तरह के बुद्धिजीवी पश्चिमी लोकतंत्र को आधुनिक एवं शक्तिशाली विज्ञान तथा संस्कृति से परिपूर्ण मानते थे। 1920 के वर्षों में चीनी समाज में जो नए विचार उदित हो रहे थे और मेहनतकश जनता का जो संघर्ष चल रहा था उसको एक संगठित स्वरूप 1921 में चीन के साम्यवादी दल के गठन ने प्रदान किया। चीन के साम्यवादी दल का गठन इस नई चेतना की अभिव्यक्ति थी।
चीन में मार्क्सवाद ने नए एवं आधुनिक चीन का निर्माण करने की अवधारणा के द्वारा पश्चिमी तथा जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष के मार्ग का अनुसरण किया। वामपंथी गुट ने संपूर्ण व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का निश्चय किया और समाजवाद के निर्माण को अपना एक व्यापक लक्ष्य बना लिया।
चीन में इन विचारों का प्रसार करने में रूस की बोल्शेविक क्रांति ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने चीन के बुद्धिजीवी वर्ग को आकर्षित किया। रूस एक एसे पिछड़े हुए देश का स्पष्ट प्रमाण था, जिसने न केवल अपने पुराने जर्जर व्यवस्था को उखाड़ फेंका था बल्कि पश्चिमी साम्राज्यवाद को भी पराजित कर दिया था। इस तरह से मार्क्सवाद ने चीनी बुद्धिजीवी वर्ग को एक ऐसा दर्शन उपलब्ध कराया जिसके द्वारा वह चीनी अतीत एवं वर्तमान के पश्चिमी प्रभुत्व दोनों प्रकार की परंपराओं का परित्याग कर सका। इस तरह चीन के राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में मार्क्सवाद एक शक्तिशाली स्रोत बन गया।
राजनीतिक वातावरण:- चीन में राजनीतिक वातावरण को मार्क्सवाद की ओर रूपांतरित करने में मई चतुर्थ आंदोलन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक चेन-तू-शू तथा ली-ता-चाओ भी इस आंदोलन के नेता थे। इस आंदोलन के फलस्वरुप कन्फ्यूशियसवाद का विरोध, नई शिक्षा का प्रसार तथा जन साहित्य में वृद्धि, प्रकाशन संस्थान, औषधि एवं आधुनिक न्यायालय की स्थापना हुई। मई चतुर्थ आंदोलन के दौरान चीन में आम हड़ताल हुई। हड़ताल में बुद्धिजीवी वर्ग ने मेहनतकशो के साथ सक्रिय भाग लिया। वामपंथी बुद्धिजीवियों ने अपनी पत्रिका न्यू यूथ में मजदूरों की समस्याओं के विषय में लिखा।
सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियां:- लगभग पूरे चीन में मेहनतकशो के दरिद्र जीवन दशा ने ऐसा सामाजिक वातावरण तैयार किया जिसमें मार्क्सवाद का उदय हुआ। 1920 के वर्ष में कृषि समस्या एक महत्वपूर्ण सामाजिक सवाल बन गया। इस समय जमीदार व्यवस्था पर हमले लगातार बढ़ते जा रहे थे। अब चीन का ग्रामीण क्षेत्र क्रांतिकारी आंदोलन की एक उर्वरक भूमि बन चुका था। वामपंथी बुद्धिजीवियों का यह कार्य था कि वह अपनी योजना के साथ ग्रामीण क्रांतिकारियों को सूत्रबद्ध करे।
मजदूर वर्ग संख्या में कम था, लेकिन वह एक राजनीतिक शक्ति बन गया था क्योंकि बड़े बड़े औद्योगिक केंद्र उन्हीं स्थानों पर थे जो चीन के मुख्य राजनीतिक केंद्र थे। उच्च मजदूरी एवं अन्य भागों के लिए मजदूरों के संघर्ष प्रतिदिन के जीवन से जुड़े थे और इसी के कारण वे राजनीतिक अधिकारियों एवं फैक्ट्री मालिकों के बीच अपने हितों की पहचान करने में सफल हुए। इसलिए उनका राजनीतिक अधिकारियों के साथ संघर्ष होता रहा। इनकी हड़तालो का पुलिस के द्वारा बर्बरता पूर्ण दमन किया गया। औद्योगिकरण में बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों के केंद्रीकरण के कारणवश एक फैक्ट्री में मजदूरों का भी केंद्रीकरण हुआ और इसके कारण एक कारखाना मालिक के विरोध में मजदूरों की भी बड़ी तादाद एकत्रित हो गई। इससे मजदूर वर्ग का अपनी समस्याओं का संयुक्त तौर पर सम्मान करना संभव हो पाया और उनके बीच एकता भी कायम हुई। मई चतुर्थ आंदोलन ने शहरी क्षेत्रों में जो नया राजनीतिक वातावरण उत्पन्न किया उसने मजदूर वर्ग के सामने एक नया परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत किया। मई 1919 में पीकिंग में अध्यापक मजदूरों के साथ हड़ताल में शामिल हुए। 1920 में मजदूरों ने जापान विरोधी बहिष्कार में भाग लिया। 1921 तक युद्ध के बाद फ्रांस से 28,000 शिक्षित मजदूर वापस लौट चुके थे।
इन मजदूरों ने मई चतुर्थ आंदोलन को क्रांतिकारी बनाने में सहायता की। इस तरह की परिस्थितियों में कम्युनिस्ट गुटों एवं इन मजदूरों ने एक दूसरे को अपन सहयोगी के रुप में पाया। इस गठबंधन की अंतिम परिणति चीन में एक कम्युनिस्ट पार्टी के गठन के रूप में हुई।
कम्युनिस्ट पार्टी 1921:- 1920 से चीन के विभिन्न भागों में कम्युनिस्ट राजनीतिक संगठनों की स्थापना के कार्य का प्रारंभ किया गया और इस तरह का प्रथम संगठन शंघाई में अस्तित्व में आया। चेन तू-शू ने शंघाई गुट की स्थापना की तथा उसने न्यू यूथ नाम के गुट के औपचारिक पत्र का प्रकाशन भी शुरू किया। इस गुट ने कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के साथ अपना संपर्क कायम किया। अप्रैल 1921 में इश्कुत्सक में चीनी कामिंटर्न के कार्यालय की स्थापना की गई।
1920 में ली ता-चाओ के नेतृत्व में पीकिंग में कम्युनिस्ट गुटों की स्थापना हुई और शीघ्र ही उनका गठन अन्य नगरों में भी किया गया। अगस्त 1920 में शंघाई गुट ने दी वर्ल्ड ऑफ लेबर के नाम से साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया। पीकिंग से चाओ ने द वॉइस ऑफ लेबरर् प्रकाशित किया और कैंटन गुट ने दि वर्कस तथा मेन एट वर्क को निकालना शुरू किया। इन सभी पत्रिकाओं में मार्क्सवादी सिद्धांतों तथा चीनी मजदूर वर्ग की समस्याओं के विषय में विवेचना की गई। इन गतिविधियों के कारण अधिक से अधिक बुद्धिजीवी एवं विद्यार्थी कम्युनिस्टों के इर्द-गिर्द एकत्रित होने लगे। पुलिस से छुपकर जुलाई 1921 में शंघाई में बालिका छात्रावास में इन गुटों की एक बैठक हुई। पुलिस को इस बैठक का आभास हो गया और फिर बैठक के स्थान को चैकियांग में एक पर्यटक स्थल पर एक नाव में रखा गया।
इसको चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का प्रथम सम्मेलन कहा गया। 12 प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया और वे 57 गुटों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इस सम्मेलन के द्वारा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के गठन का निर्णय किया गया। चेन तू-शू पार्टी का प्रथम महासचिव बना। इस प्रकार चीन के राजनीतिक दृश्य में एक नए तत्व का समावेश हुआ।
मजदूरों के लिए बहुत से स्कूलों को संगठित किया गया। कैंटन में छपाई, तंबाकू तथा कपड़ा उद्योगों में मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से श्रमिक आंदोलन के लिए एक कमेटी की स्थापना की गई। प्रथम चीनी मजदूर यूनियन का सम्मेलन 1 मई 1922 को हुआ। चीन के इतिहास में पहली बार अगस्त 1922 में महिलाओं के द्वारा रेशम कताई मील में महिला मजदूरों की एक व्यापक हड़ताल हुई। इस तरह की गतिविधियों का सामंतों ने विरोध किया तथा दमन किया। यूनियनों को बंद कर दिया गया, हड़तालों में बाधा उत्पन्न की गई, तालाबंदी को घोषित कर दिया गया और मजदूरों की व्यापक स्तर पर हत्याएं की गई। इस तरह से कम्युनिस्ट गतिविधियों तथा मजदूर वर्ग के आंदोलन के प्रथम बहादुराना चरण का अंत हुआ। यद्यपि मजदूरों की यह सभी हड़ताली सफल न हुई, फिर भी सी.पी.सी. ने मजदूर वर्ग के मध्य राजनीतिक चेतना को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
निष्कर्ष:- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का गठन 1921 में हुआ और उसने चीन की जनता को एक नई विचारधारा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। माई चतुर्थ आंदोलन को मार्क्सवादी विचारों को संगठित तौर पर प्रसारित करने का प्रथम प्रयास माना जा सकता है। इस आंदोलन के साथ ही छापेखाने, सार्वजनिक सभाओं तथा नवीन साहित्य आदि का भी प्रसार हुआ और इसने विचारों के विकास में भी योगदान दिया। मजदूर वर्ग में राजनीतिक चेतना की वृद्धि करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी उत्तरदाई थी। मजदूर वर्ग तथा सी.पी.सी. के प्रथम क्रांतिकारी आंदोलन का अंत बर्बर दमन के कारण हुआ।
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