मुगलकालीन राज्य की प्रकृति (वाद -विवाद)
परिचय:- राजतंत्र को मध्ययुगीन राज्यव्यवस्था का आधार समझा गया। अबुल फजल के अनुसार “अगर राजतंत्र न रहा तो कलह की आंधी कभी दब नहीं पाएगी, न ही स्वार्थपूर्ण महत्वकांक्षा समाप्त हो पाएगी। लालसा और व्यवस्था के भार से दबा मनुष्य विध्वंस की खाई में गिरता चला जाएगा”। किसी साम्राज्य के प्रशासनिक ढांचे का आकार-प्रकार और राज्य की प्रकृति मुख्य रूप से संप्रभुता के सिद्धांत और राजा की अपनी नीतियों द्वारा निर्धारित होती है। इसलिए मुगल राज्य को सही ढंग से समझने के लिए राज्य संबंधी सिद्धांत और इसके विभिन्न पक्षों को जानना जरूरी है। मुगलों ने तुर्की और मंगोल मध्य एशियाई राज्यव्यवस्था को अपनाया। मंगोल व्यवस्था तुर्क-मंगोल व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। मुगल स्रोतों के मूल्यांकन से पता चलता है कि मुगल शासकों ने राजनीतिक आवश्यकताओं से प्रेरित होकर इसे अपनाया। वे भारत पर आक्रमण करने वाले दो आक्रमणकारियों चंगेज और तैमूर से अपना संबंध सिद्ध करना चाहते थे।
इतिहासकार आर.पी.त्रिपाठी ने मुगल राजसत्ता का गंभीरता से अध्ययन किया है, यह इसे तुर्क-मंगोल सिद्धांत मानते है। इनके अनुसार तुर्को में इसकी दो मूल्य मान्यताएं है, एक तैमूरवंशी तुर्की संस्थाओं और विचारों से इतने अधिक प्रभावित थे कि बाबर खुद को और अपने लोगों को तुर्क कहता था परंतु इस बात में संदेह है कि मुगलों ने किस हद तक तुर्की राजनीतिक विचारों और संस्थाओं को पुनर्जीवित किया था। वस्तुतः अपने को और अपने लोगों को मुगलों से अलग दिखाने के लिए ही उसने तुर्क कहना और कहलाना पसंद किया था।
त्रिपाठी की दूसरी मान्यता है कि मंगोल राजत्व में निरंकुशतावादी प्रवृत्ति थी। तैमूर खुद को धरती पर खुदा का प्रतिनिधि कहता था। बाबर ने पादशाह की उपाधि धारण की थी। वह किसी का प्रभुत्व स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था हुमायूं तो प्रभुसत्ता को निजी संपत्ति मानता था। मंगोल राजतंत्र का कबीलाई स्वरूप और शक्तिशाली अमीर वर्ग- यह दोनों एक शक्तिशाली केंद्रीकृत राजनीतिक ढांचे के आधार थे।
विलियम इरविन, इब्न हसन, आई.एच.कुरैशी, पी.सरन, सतीश चंद्र, नूरुल हसन और अतहर अली जैसे विद्वानों ने अकबर के अधीन मुगल राज्य के केंद्रीकृत राज्य को एक उदाहरण माना है। इस राज्य में लगभग सभी पदों पर मनसबदार नियुक्त थे जो एक व्यापक अफसरशाही या प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण करते थे। साम्राज्य को प्रशासनिक सुविधा के लिए प्रांतों, जिलों और उपजिलों में बांटा गया था। हर स्तर पर सेना, राजस्व और न्याय से संबंधित कर्मचारी व अधिकारी नियुक्त थे जो अपनी-अपनी निश्चित क्षेत्रीय सीमाओं में कार्य करते थे। सभी प्रकार के अधिकारों के विभाजन और वितरण की रेखाएं बड़ी संविधानिपूर्वक खींची गई थी। इन रेखाओं ने केंद्र सरकार की राजधानी में नियुक्त मंत्रियों को छोटे कस्बों में नियुक्त छोटे कर्मचारियों से जोड़ रखा था। हर कर्मचारी अपने से वरिष्ठ अधिकारी के प्रति उत्तरदाई था। इन विद्वानों के मतानुसार ऐसा प्रतीत होता है कि मुगल शासन का निर्माण एक विशिष्ट प्रकार के तर्कप्रधान और सुव्यवस्थापूर्ण सैनिक, प्रशासनिक व न्यायिक ढांचे में रखकर किया गया था।
किंतु मुगल साम्राज्य के बारे में एक केंद्रीकृत राज्य के ढांचे की संकल्पना सभी विद्वानों को मान्य नहीं है। विटफोगल व आइसेनस्टाट का मत है कि मुगल साम्राज्य का महत्वपूर्ण अभिलक्षण उसकी शक्तिशाली केंद्रीकृत निरंकुश अफसरशाही में उम्मीद थी। आइसेनस्टाट के अनुसार अकबर ने एक अधिक केंद्रीकृत एकीकृत राजतंत्र की स्थापना का प्रयास किया ताकि राजनीतिक निर्णयों और उद्देश्यों पर उसका एकाधिकार रहे। एस.पी.ब्लेक, पीटर हार्डी, जे रिचर्ड्सन का विचार है कि मुगलों के शासन को अफसरशाही निरंकुशतावाद के सांचे में रखने की बजाय, उसे पैतृक अधिकारतंत्र वाले साम्राज्य की कोटी में रखना अधिक अच्छा होगा। इस धारणा के अनुसार ऐसा राज्य वह होता है जो शासक के घर परिवार या बंधुओं का ही विस्तार माना जाएगा और शासक के अधिकार को भी किसी भी पितृसत्ता प्रधान परिवार के पिता के अधिकारों का ही विस्तार समझा जाएगा। पैतृक राज्य की सेना शासक की घरेलू सेना से ही निर्मित होती है और उसका प्रशासन भी शासक के घरेलू प्रशासन जैसा ही होता है। किंतु जब राजतंत्र बहुत फैल जाता है और घर परिवार के लिए यह संभव नहीं होता कि वह पर्याप्त सेना या प्रशासन उपलब्ध करा सके तो ऐसी स्थिति में फिर गैर-पैतृक अधिकारियोंं, कर्मचारियों और सैनिकों ने शासक के प्रधान अधीनस्थों के सैनिकों ने प्रशासन में सेवा पा लिया। ज्यों-ज्यों शासक के रिश्तेदार संबंधियों की संख्या के अनुपात में कमी आती गई, त्यों-त्यों राजतंत्र सशक्त होता गया और ऐसी स्थिति में पैतृक अफसरशाह अधिकारियों को अपने अधीनस्थों को अपने अधीनस्थों के साथ संबंध स्थापित करने और बदले में उनसे वफादारी प्राप्त करने के लिए नई-नई कार्यनीतियां निर्धारित करनी पड़ी।
जे. रिचर्ड्सन मुगल साम्राज्य को निरंकुशतावादी केंद्रीकृत बहूप्रांतीय साम्राज्य के रूप में विश्लेषित करते हैं जो अपने संगठन व कार्यशैली में केंद्रिकृत था और विकेंद्रीकृत भी, अधिकारीतंत्रीय भी था और पितृसत्तात्मक भी। यह मुगल साम्राज्य को एक सैनिक राज्य या युद्ध राज्य का स्वरूप भी मानते है। जिसकी गतिशीलता उसकी सेना में निहित थी, जिसके कुलीन वर्ग व शासक वर्ग योद्धा थे और राज्य के कुल राजस्व का बहुत बड़ा भाग युद्ध अथवा युद्ध की तैयारियों पर खर्च होता था।
मुगल राज्य अपने संगठनात्मक रूप में पूर्णत: केंद्रीकृत था। उसमें सर्वप्रभुसत्तासंपन्न एकात्मक राज्य के सभी लक्षण मिलते हैं। जेड.यू.मलिक के अनुसार मुगल साम्राज्य ने अपने प्रभुसत्ता का उपयोग बड़ी स्पष्टता से अपने सभी अधिनस्थ क्षेत्रों पर पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण रखते हुए किया। मुगलकाल में शाही केंद्र असीमित शक्ति का स्रोत थे तथा हर सूबे के प्रशासनिक तंत्र की सभी शाखाओं को प्राधिकारो व शक्ति की प्राप्ति केंद्र से ही होती थी। मुगल शासन एक विस्तृत व्यापक अधिकार तंत्र पर आधारित था जिसमें विभागों व अधिकारियों का श्रेणीबद्ध विभाजन था फिर भी शासक सर्वशक्तिशाली था। नागरिक सेवा से संबंधित पद हो अथवा सैनिक पद कोई भी वंशानुगत नहीं था। अधिकारियों की नियुक्ति, पदच्युति व स्थानांतरण का अधिकार शासक के पास था। अधिकारी भी बादशाह के प्रति ही उत्तरदाई होता था। इन तथ्यों के आधार पर मुगल राज्य को एकात्मक अधिकारीतंत्रीय प्रशासन पर आधारित राज्य भी कहा जा सकता है। शासक वर्ग के अधिकार को व्यापक बनाकर तथा मिली-जुली संस्कृति को लक्ष्य बनाकर अकबर ने इस प्रशासनिक ढांचे को स्थिरता व प्रशासनिक कुशलता प्रदान करने का प्रयास किया।
इतिहासकार बी.पी बाताल्द गोलाबारूद साम्राज्य की धारणा को मुगल साम्राज्य पर लागू करते हुए उसे सैनिक राज्य के रूप में वर्णित करते हैं। उन्होंने मत दिया है कि मुगल, ऑटोमन और सफावी साम्राज्य अपने पूर्ववर्ती साम्राज्यों से आकार, केंद्रीकरण और कालवधि में इसलिए बड़े थे क्योंकि इनके समय में आग्नेय अस्त्रों का विकास हुआ था। मार्शल होजसन, विलियम मैक्लीन तथा हरमन कुलके व डी.रोथरमंड ने इसी परिकल्पना को आधार बनाते हुए मुगल साम्राज्य को गोलाबारूद साम्राज्यों की श्रेणी में रखा। होजसन व मैक्लीन के अनुसार गोलाबारूद के प्रयोग विशेषत: अवरोधक तोपखाने की बदौलत मुगल साम्राज्य अस्तित्व में आया और केंद्रीय शक्ति में वृद्धि हुई क्योंकि अवरोधक तोपखाने के बल पर गढों और किलो पर कब्जा किया जा सका था। इसी के बल पर मुगल एक व्यापक और अधिक केंद्रीकृत साम्राज्य पर शासन कर सके।
किंतु क्रिस्टोफर डफी और इरफान हबीब का मत है कि मुगलों की युद्ध कला अथवा सैन्य शक्ति में तोपखाना ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग था। हबीब की मान्यता है कि तोपखाना मुगल सेना का निर्णायक शस्त्र नहीं था और वे मजबूत किलो के खिलाफ इसका सफल उपयोग नहीं कर सके। इरफान हबीब मानते हैं कि मुगलों की वास्तविक शक्ति तो उनकी अश्वरोही सेना में निहित थी। हबीब द्वारा प्रस्तुत आलोचना का सारांश यह है कि युद्धभूमि में मुगलों की श्रेष्ठता घेरेबंदी वाले युद्ध सामर्थ्य से बढ़चढ़ कर थी। व्यूह रचना युक्त तोपखाने, आग्नेयास्त्रों, सज्जित पैदल सेना तथा घुड़सवार तीरंदाज सेना-तीनों ही केवल मुगलों के पास थे, इसलिए उनकी सेना में श्रेष्ठता बनी रही। केंद्रीय सरकार ने जब तक पैदल सेना और तोपखानों पर अपना नियंत्रण बनाए रखा, तब तक वह पर्याप्त शक्तिशाली रही। उसकी संयुक्त सेना ने जब चाहा विद्रोहियों को हरा दिया।
इतिहासकारों का मानना है कि गैर कट्टरपंथी राज्य नीतियों को लागू करके अकबर ने राष्ट्रीय राजत्व की परंपरा प्रारंभ की। इस मत के अनुसार राजपूतों तथा अन्य हिंदुओं, भारतीय मुसलमानों, अफगानों, ईरानियों और मध्य एशिया मूल की मुसलमानों को शासक वर्ग में सम्मिलित कर अकबर ने उन्हें मुगल साम्राज्य में भागीदार बनाया और इस प्रकार सांप्रदायिक राज्य के विपरीत एक राष्ट्रीय राज्य का निर्माण किया। माइकल पियर्सन और पीटर हार्ड्डी के अनुसार मुगल साम्राज्य में मनसबदार थे और उनकी वफादारी बादशाह के प्रति थी और उनकी वफादारी ने भी साम्राज्य को वास्तविकता प्रदान की। इन इतिहासकारों का विचार बताता है कि अकबर ने उत्तर भारत में मुसलमानों व हिंदूओं की निष्ठा अपने और अपने राजवंश के लिए प्राप्त कर ली थी और इस प्रकार उसने एक स्थिर आधारशीला पर अपने साम्राज्य को खड़ा किया था।
निष्कर्ष:- इतिहासकार मुगल राज्य की प्रकृति को लेकर एकमत नहीं हैं। किंतु उपरोक्त अध्ययन से यह पता लगाया जा सकता है कि मुगल साम्राज्य की प्रकृति केंद्रात्मक थी। बाबर और हुमायूं अपने छोटे से शासनकाल में सैन्य मामलों में उलझे रहने के कारण प्रशासन को व्यवस्थित करने की ओर ध्यान नहीं दिया। अकबर के काल में प्रशासनिक व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया गया। उसके शासनकाल के अंत तक समुचित और व्यापक विभाग स्थापित हो गए और उनके शीर्ष अधिकारियों के सार्वजनिक और निजी जीवन से संबंधित आचार संहिता भी स्थापित कर दी गई ताकि वह साम्राज्य के मजबूत स्तंभ के रूप में काम कर सके।
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