बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका

  फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका
परिचय:- 1789 से लेकर 1795 तक की अवधि में क्रांतिकारी गतिविधियों में समाज की भिन्न वर्गों की महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इन महिलाओं के योगदान के बिना क्रांति और उसकी उपलब्धियों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। क्रांति में महिलाओं की भूमिका सक्रिय और महत्वपूर्ण रही। पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महिलाओं ने एक ऐसे समाज की स्थापना की जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श पर टिका था। किंतु अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए उन्हें पुरुषों के विरुद्ध संघर्ष भी करना पड़ा। उपर्युक्त बातों से हटकर महिलाओं के विषय में सबसे प्रमुख बात यह है कि 1970 तक फ्रांसीसी क्रांति के इतिहास लेखन में महिलाओं को कोई स्थान प्राप्त नहीं था। लंबे समय तक महिलाएं इतिहास में छुपी रहे और उन पर कोई शोध कार्य नहीं हुआ। 1970 के दशक में इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया। 1970 में एक अमेरिकी जेन आबेर द्वारा पहला ऐसा लेख लिखा गया जो क्रांति की महिलाओं से संबंधित था। इस लेख के बाद फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका पर शोध कार्य आरंभ हुए। 

इस लेख के बाद डार्लिंन ए लेवी, हैरिएट ब्रॉन्सन ए्पलवाइट और मेरी डरहम जोंसन के कार्य ने यह स्पष्ट किया कि 1787 से 1795 तक की अवधि में होने वाली गतिविधियों में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान था। नए शोध कार्य ने अभिजात वर्ग की महिलाओं और पेरिस में रहने वाली आम महिलाओं के योगदान पर प्रकाश डाला। 

पुरातन व्यवस्था में राजतंत्रिक सत्ता व्यक्तिगत और पितृसत्तात्मक थी। किंतु इस राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में भी महिलाओ का एक महत्वपूर्ण स्थान था। पुरातन व्यवस्था में कुलीन और साधारण महिलाएं दोनों को ही सार्वजनिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। राजदरबार और सैलोन में कुलीन महिलाओं का वर्चस्व और प्रभाव था। महिलाएं राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेती थी और उसे प्रभावित करती थी। कुलीन महिलाएं सैलोन का संचालन करती थी। अपने घर में यह महिलाएं छोटी सभाएं आयोजित करती थी जहां पर प्रसिद्ध विचारक, चिंतक, वैज्ञानिक आदि को आमंत्रित किया जाता था। इस तरह महिलाओं ने समकालीन संस्कृति और राजनीतिक दोनों को प्रभावित किया। इस तरह की गतिविधियों के फलस्वरुप शिक्षित कुलीन महिलाओं का निजी क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में परिवर्तित हुआ। सैलोन में फ्रांसीसी क्रांति के पूर्व विचारधाराओं और सांस्कृतिक विचारों का आदान-प्रदान होता था जिसकी वजह से यह महिला शक्ति और बौद्धिक गतिविधियों के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा। इसमें पुरातन व्यवस्था की राजनीतिक मान्यताओं और संस्थाओं की आलोचना की गई और समय-समय पर इनका विरोध भी किया गया। 

कुलीन वर्ग की महिला की तुलना में साधारण महिला की स्थिति भिन्न थी। घरेलू महिला कामकाजी महिला थी जो पुरुषों के साथ मिलकर जीविका उपार्जन में योगदान देती थी। यह महिलाएं परिवार की देखरेख के साथ जीवन के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी उठाती थी। महिलाएं स्थानीय बाजार में वस्तुओं के क्रय-विक्रय में भी संलग्न रहती थी। यही कारण है कि साधारण महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में भाग लेने के कई अवसर प्राप्त हो जाते थे।

आर्थिक गतिविधियों के अलावा राजनीति में भी महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। फ्रांस के मुख्य केंद्र पेरिस में मछली बेचने वाली महिलाओं को जनप्रतिनिधि का दर्जा दिया गया था क्योंकि उनके पास राजा के सम्मुख प्रस्ताव रखने का अधिकार था। 

फ्रांसीसी क्रांति महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण थी। 1789-95 के मध्य होने वाले परिवर्तन ने महिलाओं के सोचने, बोलने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित किया। एस्टेट जनरल के अधिवेशन से पहले लुई सोलहवें ने फ्रांसीसी जनता को अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए कहा। लोगों ने अपने विचारों और मांगों को सूचियों के माध्यम से व्यक्त किया, जिन्हें कैहिए (Cahiers) की संज्ञा दी गई। लगभग तीस हजार कैहिए बनाए गए जिसमें महिलाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

1 जनवरी 1789 को तीसरी एस्टेट की महिलाओं ने राजा को एक अधिकार पत्र प्रस्तुत किया। राजा ने एस्टेट जनरल का अधिवेशन बुलाने की घोषणा की। महिलाओं ने मांग की कि सारे देश में खलबली मची हुई है और इस माहौल में महिलाओं को भी अपनी मांग को स्पष्ट करने का अवसर मिलना चाहिए। महिलाओं ने अपनी स्थिति और उन पर होने वाले अत्याचारों पर प्रकाश डाला। उनका मानना था कि तीसरी एस्टेट की अधिकतर महिलाएं गरीबी में जन्म लेती हैं और उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता है तथा अपने निर्वाह के लिए उन्हें छोटी आयु से ही काम करना पड़ता है। पेरिस में मंडी से संबंध रखने वाली महिलाओं ने अनाज की बढ़ती हुई कीमतों, कार इत्यादि का विरोध किया। इसमें महिलाओं की राजनीतिक स्वतंत्रता का मुद्दा भी उठाया गया।

फ्रांसीसी क्रांति प्रारंभ में तीसरे एस्टेट के लोगों ने राष्ट्रीय सभा की स्थापना की थी। जिसको 1789 के ग्रीष्म में प्रथम और द्वितीय एस्टेट ने मान्यता दे दी। इस प्रारंभिक चरण में महिलाएं क्रांतिकारी राजनीति की ओर आकर्षित हुई। नव-निर्मित एस्टेट जनरल के कई सदस्यों का चुनाव महिलाओं के मत के कारण हुआ। अब महिलाएं न केवल मताधिकार का उपयोग कर सकती थी बल्कि प्रशासनिक संस्थाओं में उन्हें निर्वाचित होने का भी अधिकार था। महिलाएं क्रांति के नए परिवेश में सक्रिय राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने लगी। फ्रांस की मध्यवर्गीय महिलाओं ने राजनीतिक क्लब की स्थापना की साथ ही राजनीतिक परिषद में दर्शक के रूप में भी उपस्थित होने लगी। 

फ्रांसीसी क्रांति में मध्यवर्गीय महिलाओं के अलावा साधारण महिलाओं का भी योगदान रहा। इन साधारण महिलाओं की समस्या बेरोजगारी, भूख और मुद्रास्फीति से संबंधित थी। उनकी मुख्य मांग उचित दर पर उचित मात्रा में अनाज की उपलब्धि थी। इस समय के अधिकतर जनआंदोलन का मुख्य मुद्दा अनाज की आपूर्ति से संबंधित था और इसमें महिलाओं की मुख्य भूमिका रही। विद्वान आलविन हफटन ने अपने अध्ययन में दिखाया है कि अक्टूबर 1789 और 1792 में होने वाले जनआंदोलन मुख्यत: महिलाओं द्वारा किए गए थे। अक्टूबर 1789 में बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति ने एक नए जनआंदोलन को जन्म दिया और यह आंदोलन मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया गया। 5 अक्टूबर को पेरिस में इकट्ठी हुई महिलाओं ने वसेर्य जाने का निर्णय लिया। नव स्थापित नेशनल गार्ड के सहयोग से महिलाओं ने शाही परिवार को वसेर्य से पेरिस आने के लिए बाध्य किया। महिलाओं ने राजकीय परिवार का विरोध इसलिए किया क्योंकि लुइ 16वें ने मानवाधिकार संबंधित घोषणापत्र को मान्यता देने से इनकार किया था। 

महिलाओं ने राजा के समक्ष पेरिस में अनाज आपूर्ति से संबंधित लिखित आश्वासन की मांग की। इस समय महिलाओं ने गणतंत्रवादी विचार भी व्यक्त किए। यह वह काल था जब फ्रांस में गणतंत्र की स्थापना की मांग हो रही थी। इसमें कॉन्फ़ेडरेशन तथा कोर्दोलिए जैसे राजनीतिक क्लब प्रमुख भूमिका अदा कर रहे थे। पुरुषों के अलावा महिलाएं भी इसकी सदस्य थी। 

कांफेडरेशन नामक क्लब का प्रारंभ से ही मुख्य उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार लाना था। यह पहला क्लब था जिसने महिलाओं को सदस्यता प्रदान की और उनके लिए एक अलग विभाग भी स्थापित किया। ऐट्टा पांम नामक डच महिला ने अपने भाषण में पुरुषों से महिलाओं के अधिकार से संबंधित मुद्दों पर ध्यान देने का अनुरोध किया। वह निर्धन परिवारों से संबंधित लड़कियों के लिए स्कूल और प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ करवाना चाहती थी। उनके अनुसार सार्वजनिक कल्याण और शिक्षा ऐसा विषय है जो महिलाओं के अधीन होना चाहिए क्योंकि परिवार मुख्य रूप से महिला का क्षेत्र का। 

अगस्त 1789 में मानव और नागरिक अधिकार पत्र की घोषणा की गई। लेकिन घोषणा पत्र में पुरुषों को प्रदान किए गए अधिकार महिलाओं के लिए भी है, यह अस्पष्ट था। साथ ही साथ महिलाएं किस दृष्टिकोण और परिभाषा से नागरिक कहीं जाएंगी यह भी व्याख्या नहीं की गई थी। 1791 में एक उदारवादी संविधान पारित किया गया। इसके बाद बहुत से याचना-पत्र प्रस्तुत किए गए जिनमें महिलाओं के अधिकारों की मांग की गई। कोंंडोर्से नामक एक व्यक्ति ने महिलाओं के लिए आवाज उठाई। उसका मानना था कि पुरुष और महिलाओं में समानता है और उन्हें समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए । 

कोंंडोर्से ने महिलाओं की शिक्षा की भी मांग रखी। वह संपत्ति युक्त महिलाओं को मताधिकार देने के पक्ष में थे। 1791 के संविधान में मताधिकार केवल सक्रिय नागरिकों को प्रदान किया गया और सक्रिय नागरिक का अभिप्राय पुरुष था। पुरातन व्यवस्था में महिलाओं के पास मताधिकार था, लेकिन क्रांति के दौरान इन्हें इस मौलिक अधिकार से वंचित रखा गया। 

ओलेंप दे गूज एक सक्रिय क्रांतिकारी महिला और लेखिका थी, इन्होंने 1791 के मानव और नागरिक अधिकार घोषणा पत्र के समान ही महिलाओं के अधिकारों का घोषणा पत्र प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि परिवार के निजी क्षेत्र और राजनीति के सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार मिलने चाहिए। फ्रांसीसी क्रांति के दौरान महिलाओं को अधिकारों से वंचित रखा गया जिसके पीछे का कारण प्रबोधन के काल से जोड़ा गय, क्योंकि बुद्धिजीवियों ने अपनी विचारधाराओं में महिला, समाज के निम्न वर्ग और अन्य जाति को कोई महत्व नहीं दिया। इनका यह मानना था कि महिलाओं का मुख्य क्षेत्र परिवार और घरेलू कामकाज है इसलिए उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की महिला की निंदा की। 

जनवरी 1792 से फरवरी 1793 के मध्य महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इस पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय अधिवेशन और राजनीतिक क्लबों का आरंभ हुआ। राजनीतिक क्लब मुख्य तौर पर मध्यवर्गीय महिलाओं को गतिविधियों का केंद्र बने। इन्होंने महिलाओं के अधिकारों से संबंधित याचिकाएं प्रस्तुत की। आर्थिक संकट ने निम्न वर्गीय महिलाओं को भी गतिशील बनाया। पेरिस में रहने वाली निम्न वर्गीय महिलाओं ने न केवल बढ़ती कीमतों का विरोध किया बल्कि जनआंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। 

1793 में स्थापित सोसाइटी ऑफ रेवोलुशन अरे रिपब्लिकन वूमेन सिटीजंस सिटोइनीस एक क्रांतिकारी संस्था थी। जिसने सबसे पहले निर्धन श्रमिक महिलाओं की मांगों का प्रतिनिधित्व किया। श्रमिक महिलाएं मुद्रास्फीति और जमाखोरी जैसी समस्याओं का विरोध कर रही थी। इस क्लब की स्थापना पौलाइन लिऔन और क्लैर लाकौम ने की थी। आगे चलकर इसने एक सशस्त्र महिलाओं के समूह का गठन किया था जो देश के आंतरिक शत्रुओं से रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध थे। 

इन सब के बावजूद भी महिलाओं की छवि पुरुष राजनीतिज्ञों के बीच अच्छी नहीं थी। पुरुष राजनीतिज्ञों का मानना था कि महिलाओं की गतिविधियों का केंद्र उनका घर होना चाहिए न कि बाहरी क्षेत्र। इन्होंने महिलाओं के क्लबों पर प्रतिबंध लगाने का समर्थन किया ताकि इनकी सार्वजनिक भूमिका को रोका जा सके। इसी समय महिलाओं द्वारा सक्रिय प्रदर्शन ने कन्वेंशन सरकार को डरा दिया और 30 अक्टूबर 1793 को महिलाओं द्वारा स्थापित सभी राजनीतिक क्लबों को भंग कर दिया गया। 1793-94 के काल में जैकोबिन द्वारा इस बात पर बल दिया गया कि सार्वजनिक क्षेत्र में केवल पुरुष ही भाग ले सकते हैं। इतिहासकार जॉन लैंडिस का मानना है कि फ्रांसीसी क्रांति के दौरान महिलाओं का क्रांति में भाग लेना इतना महत्वपूर्ण नहीं था जितना कि उन्हें सक्रिय राजनीति से वंचित रखना था। 
यह एक ऐतिहासिक विडंबना है कि एक और क्रांतिकारी राजनीतिज्ञ महिलाओं को मूल मानव अधिकारों से वंचित कर रहे थे और उनके द्वारा स्थापित राजनीतिक क्लबों पर प्रतिबंध लगा रहे थे तो दूसरी ओर क्रांति द्वारा स्थापित नई राजनीतिक संस्कृति को दर्शाने के लिए वे महिला प्रतीकों का बड़े पैमाने पर प्रयोग भी कर रहे थे।

इतिहासकार लिन हंट के अनुसार महिलाओं को प्राकृतिक भूमिका में लिप्त होने के लिए बाध्य किया जा रहा था लेकिन दूसरी ओर नवनिर्मित राज्य को दर्शाने के लिए महिलाओं से संबंधित प्रतीकों का भी उपयोग किया जा रहा था। क्रांति के बाद नए फ्रांसीसी राज्य और क्रांति के सिद्धांत स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व को प्रतिबिंबित करने के लिए नारी के रूप में प्रस्तुत किया गया। राज्य को नारी के रूप में प्रस्तुत करने के पीछे मुख्य उद्देश्य राज्य में पितृसत्तात्मक वर्चस्वता का अंत करना था। 1792 में राजकीय मुद्रा पर पुरुष शासक की छवि के स्थान पर एक महिला की छवि भी अंकित की गई थी। 

निष्कर्ष:- क्रांति के आरंभ में होने वाले जनआंदोलनों में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। किंतु क्रांति के बाद यह स्पष्ट था कि महिलाओं को नागरिकता के अधिकार नहीं मिलेंगे। महिलाओं की राजनीतिक भूमिका पर अंकुश लगा दिए गए। किंतु क्रांति महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण थी। आगे आने वाले वर्षों में महिलाओं के विचार, कार्य करने के तरीके, उनके प्रति समाज और विशेष रूप से पुरुषों के विचार काफी हद तक क्रांति के दौरान होने वाले परिवर्तनों से प्रभावित थे। 



















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