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जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

जजिया

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जजिया जजिया एक कर था, जो केवल गैर-मुसलमानों से लिया जाता था। इसके बदले में उन लोगों को राज्य से जीवन व संपत्ति की सुरक्षा तथा सैनिक सेवा से मुक्ति मिलती थी। भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है। इसने भारत के सिंध प्रांत के देवल में जजिया कर लगाया था। इसके बाद जजिया कर लगाने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान फिरोजशाह तुगलक था। मुगल शासकों ने भी इस कर को 1564 तक लागू रखा। मुगल बादशाह अकबर ने 1564 में अपनी धार्मिक उदारता का परिचय देते हुए इस कर को समाप्त कर दिया। जहांगीर, शाहजहां ने भी इस विषय में अकबर का अनुकरण किया। इनके बाद औरंगजेब ने भी अपने शासन के प्रथम 21 वर्षों तक जजिया कर नहीं लगाया। किंतु 1679 में उसने अपने साम्राज्य में जजिया कर फिर से लगा दिया। इतिहासकार डॉ कुरेशी का कहना है कि जजिया गैर-मुसलमानों से लिया जाता था क्योंकि मुस्लिम राज्य में रहने पर उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व उन पर ही आता है। औरंगजेब के इस कदम ने राजपूतों, मराठों और हिंदुओं को मोटे तौर पर मुगल शासन से विमूख कर दिया। साम्राज्य के विघटन को तीव्रत प्रदान क...

शाहजहांनाबाद

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शाहजहांनाबाद शाहजहांनाबाद मुगल साम्राज्य की राजधानी थी। जिसे 1639 में शाहजहां द्वारा बसाया गया। शाहजहां ने 1639 में अपनी राजधानी शाहजहानाबाद स्थानांतरित करने का फैसला किया, अंत: वह 1648 में यहां आकर बसा। यह शहर आज पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता है। यह शहर प्राचीन काल से ही राजाओं और सुल्तानों के शासन का केंद्र रहा है। यह क्षेत्र केंद्र में होने के साथ-साथ, चारों ओर से सुरक्षित तथा व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण था। यहां धार्मिक संतों का भी निवास था, जिसे मुख्य रूप से 22 ख्वाजा की चौखट (22 संतो का निवास) के नाम से जाना जाता है। शाहजहानाबाद की वास्तुकला में यमुना किनारे किला-ए-मुबारक (लाल-किला), जामा मस्जिद तथा प्रमुख बाजार चांदनी चौक शहर में शामिल थे। शाहजहानाबाद की नगर योजना को मीर उस्ताद अहमद और उस्ताद लाहौरी ने तैयार किया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जनसंख्या अधिक होने के कारण शाहजहां ने राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की। वहीं दूसरी ओर डॉ.‌ कन्हैयालाल श्रीवास्तव एवं झारखंडे चौबे कहते हैं कि मुगल सम्राट शाहजहां की अभिलाषा मध्ययुगीन इतिहास में एक नवीन अध्याय को जोड़ना था। इस...

फ्रांसीसी कांति की बौद्धिक पृष्ठभूमि

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फ्रांसीसी कांति की बौद्धिक पृष्ठभूमि 18 शताब्दी यूरोप में एक बौद्धिक आंदोलन चल रहा था। दार्शनिक, वैज्ञानिक तथा विचारक मध्यकालीन अंधविश्वासों से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से विचार करने लगे थे। वे चली आ रही राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक, धार्मिक और न्यायिक संस्थाओं के दोषों को उजागर कर समाज का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रहे थे। ऐसे विचारक यूरोप के सभी देशों में थे, परंतु उनमें सबसे मुख्य फ्रांस के विचारक थे। इन्हीं दार्शनिकों के साहित्य ने फ्रांसीसी क्रांति को लाने में आग में घी का काम किया। फ्रांस की क्रांति में दार्शनिकों का महत्वपूर्ण भाग था। उन्होंने क्रांति का मनोवैज्ञानिक आधार तैयार किया। जनता का ध्यान फ्रांस में फैली हुई बुराइयों की ओर आकर्षित किया। क्रांतिकारी परिवर्तनों के लिए जनता को उन्होंने ही तैयार किया। इस तरह का प्रभाव यूरोप के किसी अन्य देश में नहीं पढ़ रहा था। नवीन और क्रांतिकारी विचारधारा को पढ़ने और समझने के लिए जागृत समुदाय की आवश्यकता होती है और इस तरह का समुदाय फ्रांस में मौजूद था। इसके अतिरिक्त मान्टेस्क्यू, वॉल्तेयर, रूसो तथा दिदरो जैसे विचारको का मुख्य कार्यक्षेत्र फ्रांस...

संथाल विद्रोह

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संथाल विद्रोह परिचय:- 1855-57 के बीच संथाल विद्रोह इस काल का सबसे प्रभावशाली आदिवासी आंदोलन था। संथाल पूरे भारत के विभिन्न जिलों जैसे वीरभूम, बांकुरा, पलामू, छोटानागपुर इत्यादि में फैले हुए थे। जहां संथाल सबसे ज्यादा संख्या में रहते थे उसे दमने-ए-कोह या संथाल परगना के नाम से भी जाना जाता है। 19वीं सदी के आरंभ तक औपनिवेशिक सरकार ने राजस्व नीति में कई सारे परिवर्तन कर दिए। इनके फलस्वरुप संथालो को अपने ही गांव में डीकुओ अर्थात बाहर से आकर बसे हुए लोगों को खिलाने पर मजबूर होना पड़ा। यह बाहरी लोग मैदानों से आए हुए सूदखोर, भूस्वामी और छोटे सरकारी अधिकारी थे। उन्होंने संथालों के जीवन पर ही कब्जा कर लिया। इस इलाके में कर्ज के अदा न कर पाने के कारण आदिवासी संथालो को अपनी जमीनों से बेदखल कर दिया गया। कोर्ट-कचहरी के फैसले भू-स्वामियों के पक्ष में और आदिवासियों के खिलाफ जाने लगे। परिणामस्वरूप संथाल लोग औपनिवेशिक सत्ता को अपना दुश्मन मानने लगे और विद्रोह की शुरुआत सूदखोरों और अनाज व्यापारियों की संपत्तियों पर हमले से हुई। विद्रोह को कुचलने के लिए सेना बुलाई गई। विद्रोहियों को या तो मार डाला गया या ...

18वीं शताब्दी “अंधकार युग”

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18वीं शताब्दी “अंधकार युग” 18वीं शताब्दी में भारत में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए जिसने सत्ता के ढांचे को पूरी तरह बदल दिया। इन परिवर्तनों में प्रमुख थे, मुगल साम्राज्य की सत्ता का क्षेत्रीय शक्तियों में हस्तांतरण तथा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र में आए परिवर्तन। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए मौके की तलाश में थी। मुगल सत्ता के पतन ने इनकी यह महत्वकांक्षी पूरी की। मुगल सत्ता के पतन ने कई क्षेत्रीय शक्तियों को जन्म दिया। आक्रामक ब्रिटिश नीतियों ने आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया। जिससे कृषि उत्पादन में भी बदलाव आया। साथ ही साथ इसने वाणिज्यिक गतिविधियों को भी प्रभावित किया। इस प्रकार 18वीं शताब्दी अंधकार युग था या नहीं इसके लिए हमें इस समय काल के तीन प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालना होगा। प्रथम मुगल साम्राज्य का पतन, दूसरा क्षेत्रीय शक्तियों का उदय तथा तीसरा अंग्रेजी हुकूमत का विस्तार।  मुगल साम्राज्य का पतन:-  मुगल साम्राज्य की एकता तथा सदृढ़ता औरंगजेब के शासनकाल में विखंडित होने लगी थी। 1707 ई• में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल सत्ता कमजोर हो गई और...