शाहजहांनाबाद मुगल साम्राज्य की राजधानी थी। जिसे 1639 में शाहजहां द्वारा बसाया गया। शाहजहां ने 1639 में अपनी राजधानी शाहजहानाबाद स्थानांतरित करने का फैसला किया, अंत: वह 1648 में यहां आकर बसा। यह शहर आज पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता है। यह शहर प्राचीन काल से ही राजाओं और सुल्तानों के शासन का केंद्र रहा है। यह क्षेत्र केंद्र में होने के साथ-साथ, चारों ओर से सुरक्षित तथा व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण था। यहां धार्मिक संतों का भी निवास था, जिसे मुख्य रूप से 22 ख्वाजा की चौखट (22 संतो का निवास) के नाम से जाना जाता है। शाहजहानाबाद की वास्तुकला में यमुना किनारे किला-ए-मुबारक (लाल-किला), जामा मस्जिद तथा प्रमुख बाजार चांदनी चौक शहर में शामिल थे। शाहजहानाबाद की नगर योजना को मीर उस्ताद अहमद और उस्ताद लाहौरी ने तैयार किया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जनसंख्या अधिक होने के कारण शाहजहां ने राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की। वहीं दूसरी ओर डॉ. कन्हैयालाल श्रीवास्तव एवं झारखंडे चौबे कहते हैं कि मुगल सम्राट शाहजहां की अभिलाषा मध्ययुगीन इतिहास में एक नवीन अध्याय को जोड़ना था। इसलिए शाहजहां ने अपने पूर्ववर्ती शासकों की तरह यमुना नदी के किनारे शाहजहानाबाद नामांक नगर का निर्माण करवाया।
लाल किले को मिट्टी की दीवारो से घेरा गया था। अत्यधिक बारिश के कारण यह दीवार 1650 में ढह गई। बाद में अपने 26वें शासन काल में शाहजहां ने पत्थर की दीवार का निर्माण शुरू किया। जो कश्मीरी गेट से शुरू होकर मोरी गेट पर खत्म होती थी, जिसके बीच में 11 विशालकाय द्वार थे।
1658 में एक अन्य दरवाजा तुर्कमान गेट जोड़ा गया। किले में 11 बुर्ज (मिनारें), 4 दरवाजे थे। किले के अंदर कई खूबसूरत इमारतें नक्कार खाना, दीवान-ए-आम, दिवान-ए-खास, रंग महल तथा शीश महल शामिल था। मानूकी ने लिखा है कि शहर अर्धचंद्राकार आकार का था और किला अष्टकोणीय था। किले के चारों और 10 गज के गहरी और 20 गज चौड़ी खाई थी। लाहौरी गेट के बाहर एक खुला स्थान था। जहां छोटे राजा जो बादशाह के अधीन थे, जिन्हें किले की सुरक्षा का उत्तरदायित्व दिया गया था, वहां टेंट लगाते थे। इसके अलावा किला कई उद्यानों जैसे उत्तर में अंगूरी बाग, दक्षिण में बुलंद बाग और पश्चिम में गुलाबी बाग से घिरा था। शहर में एक और बाग बाग-ए साहिबाबाद था, जिसे शाहजहां ने अपनी बेटी जहांआरा को उपहार में दिया था। शाहजहानाबाद शहर की योजना इस्लामिक दर्शन पर आधारित थी। क्योंकि किले का मुख पश्चिम में मक्का की दिशा में था तथा जामा मस्जिद का मुख भी पश्चिम की तरफ था।
शहर में खूबसूरत बाजार और राजकुमारों एवं कुलीन अमीरों की हवेलियां थी। राजकुमारो और कुलीन अमीरों ने अपनीे हवेलियां यमुना के किनारे बनवाई थी। इसके अलावा शहर में व्यवसायियों के घर छह से सात मंजिल ऊंचे होते थे। शहर में यात्रियों के लिए शानदार सरायें थी। बेगम की सराय एक स्वतंत्र सराय थी। जिसका निर्माण शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम ने करवाया था। यह किले और चौक के बीच में निर्मित था, जिसमें दो विशालकाय दरवाजे थे एक दरवाजा साहिबाबाद बाग तथा दक्षिणी दरवाजा चांदनी चौक की ओर खुलता था। शहर की दो प्रमुख सड़कें थी, एक लाहौरी गेट से फतेहपुर मस्जिद तक और दूसरी लाहौरी गेट से अकबराबादी गेट तक। सादुल्ला खान चौक किले की ओर जामा मस्जिद के पूर्वी दरवाजे पर स्थित था।
बर्नियर ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि यहां एक बाजार लगता था, जिसमें असंख्य प्रकार की वस्तुएं मिलती थी। साथ ही यह बाजार हकीम, बाजीगरो, ज्योतिषियों के लिए मनोरंजन तथा मिलन का स्थान था। शहर में पानी की आपूर्ति नहर-ए बहिश्त के द्वारा प्रदान की गई थी।
उद्यान/बाग:- शाहजहां के शहर में कई उद्यान थे। सबसे पहले उद्यान का खाका ईदगाह के दक्षिण-पश्चिम में बनाया गया था, करोलबाग उद्यान, जिसका निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था। शाहजहानाबाद के उत्तर- पश्चिम में सब्जी मंडी के निकट रोशनआरा बेगम और सरहिंदी बेगम ने 1653 में दो उद्यान बनवाए। उसी साल अकबराबादी बेगम ने शालीमार उद्यान को इनके उत्तर-पश्चिम में बनाया, जिसे बर्नियर ने राजा का कंट्री हाउस कहा। यह शाहजहां का आनंद बाग था, जहां शीश महल बनवाया गया था और नहर का पानी इसे भी प्राप्त होता था। इसमें फलों के दुर्लभ किस्मों के पेड़ भी थे। यहीं पर राजकुमार औरंगजेब को 1659 में ताज पहनाया गया था। बाग सिहजारी (तीस हजारी बाग) का निर्माण कश्मीरी और काबुली दरवाजों के बीच किया गया था। जहां औरंगजेब की बेटी जीनत-उल निसा की कब्र स्थित है।
उपनगर:- उपनगर शहर के मुख्य मार्ग थे, साथ -साथ प्रमुख व्यापारिक केंद्र और आपूर्ति के मुख्य के केन्द्र भी थे। इसके साथ ही धार्मिक गतिविधियों के भी प्रमुख स्थान थे। 1820 में फोर्टस्क्यू लिखता है कि शाहजहानाबाद के आसपास करीब 52 बाजार और 36 मंडीयां थी। शाहजहानाबाद के उपनगरों में कई मंडिया और बजार थे। अनाज की मंडियां पहाड़गंज, पटपड़गंज, शाहदरा और कोटला मुबारकपुर में स्थित थी।
शाहजहानाबाद के उत्तर-पश्चिम में सब्जी मंडी और इसके पास में घोड़ों का बाजार था। किले के पार यमुना के पूर्व में सलीमगढ़ में बंजारों के लिए आरामगाह एवं अनाज उतारने के लिए स्थान था। जयसिंहपुरा पहाड़गंज के दक्षिणपूर्व में सामानों को लाने-ले जाने का केंद्र था। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि उपनगर व्यापारिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र थे। यात्रियों और व्यापारियों के लिए उपनगरों में कई अच्छी सरायें थी। 1820 में विलियम हैमिल्टन ने अपने विवरण में दिल्ली के निर्यातक केंद्रों की काफी प्रशंसा की। दिल्ली के आसपास कहीं बाजार स्थित है जिनमें मुख्य था:- पलवल, रेवाड़ी, सोनीपत, बागपत, तिलपत, पानीपत, करनाल आदि थ। शहर में सामान की आपूर्ति से पहले सामान सबसे पहले इन सभी बाजारों में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से आता था और यहां वस्तुओं का विनिमय हुआ करता था।
आध्यात्मिक स्थल जिनमें सूफी दरगाह और मजार शामिल है, उपनगरों के एक बड़े क्षेत्र में फैले हुए थे। सूफी गतिविधियों का मुख्य केंद्र ग्यासपुर था, जहां शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह स्थित है। इसी प्रकार शाहजहानाबाद के परिदृश्य में कई मंदिर भी थे। इसमें क्षत्रिय, कायस्थों, बनियों और जनों के 7 मंदिर शामिल है।
औरंगजेब ने किले के साथ-साथ शहर की बनावट में भी कुछ बदलाव किए। दीवान-ए -आम-ओ खास की कार्यवाही को जनता की नजर से दूर रखने के लिए औरंगजेब ने लाहौरी और दिल्ली गेट के बाहर प्राचीर बनाने का आदेश दिया। उसने घुड़सवारों के आने-जाने की सुविधा के लिए लाहौरी गेट को चौड़ा करने का आदेश दिया।
शाहजहानाबाद शिक्षा के भी प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा, जहां न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से बल्कि मध्य एशिया और ईरान से भी लोग पढ़ने-पढ़ाने आते थे। राजकीय कॉलेज दार-उल बका था। शाहजहां के शासनकाल के दौरान मौलाना सदरूद्दीन खान इस कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। इसके अलावा प्रत्येक मस्जिद में एक मदरसा भी था। प्रसिद्ध दिल्ली कॉलेज का निर्माण 1792 में किया गया।
शाहजहानाबाद शहर की सड़कों पर असंख्य लोग मौजूद थे। शहर में आबादी का आकलन करना मुश्किल था। लगभग सभी यूरोपीय यात्री और फारसी इतिहासकारों ने भी यहां की असंख्य आबादी के बारे में वर्णन किया है। सालिह कांबो ने शाहजहानाबाद की तुलना बगदाद से की, जबकि बर्नियर ने इसके आकार की तुलना पेरिस से की। थेवनो ने उल्लेख करते हुए कहा है कि जब सम्राट शहर में होते थे तो शहर की आबादी 4 लाख के करीब पहुंच जाती थी, जबकि सामान्यत: इसका छठा भाग ही होता थी। स्टीफन ब्लेक ने 1659 में शहर के अनुमानित आबादी 5 लाख बतायी लेकिन, यह भी माना कि अकेले शाही परिवार तथा उनसे संबंधित और उन पर आधारित संख्या ही इस आबादी की 80% थी। 1850 में एमिली मेटकाफ के लेख के अनुसार दिल्ली में लगभग 246 मस्जिद, 147 हिंदू मंदिर और 23462 घर थे।
राजकीय केंद्र:- मुगल सामराज्य का केंद्र राजकीय शहर को और शहर का समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक केंद्र राजा को माना जाता था। इसलिए जो इमारतें बनाई जाती थी, उसका केंद्र भी सम्राट होता था। शाहजहानाबाद पितृसत्तात्मक शहर के रूप में बसाया गया था, जहां राजा के महल के अनुसार ही बाकी इमारत भवन, दुकानें, बगीचे, मस्जिद आदि बनाए गए थे। सारा शहर राजा को केंद्र मानकर बसाया गया था।
शाहजहानाबाद की प्रमुख इमारते
किला-ए-मुबारक(लाल किला):- यह किला लाल पत्थर से बना है, जो फतेहपुर सीकरी से लाया गया। यह उत्तर से दक्षिण की ओर चतुर्भुज के आकार का बना हुआ है। इस किले की चौड़ाई 1600 फुट और लंबाई 3200 फुट है। इसके चारों ओर दीवार है जिनमें दो मुख्य द्वार है। पश्चिमी द्वार का नाम लाहौरी दरवाजा और दक्षिणी द्वार का नाम दिल्ली दरवाजा है। किले के अंदर छत्ता बाजार, नौबत खाना, दीवान-ए-आम, रंग महल, खास महल, दीवान-ए-खास, सावन मंडप, मोती मस्जिद, दावत खाना, हिरा महल, मुमताज महल, दिल्ली दरवाजा आदि शामिल है।
मुमताज महल:- इस शाही कक्ष का नामकरण शाहजहां की प्रिय बेगम मुमताज के नाम पर किया गया। अपने गौरवपूर्ण काल में यह शाही हरम का हिस्सा था एवं इसे छोटे रंग महल के नाम से भी जाना जाता था। इसके भीतर छह कक्ष है। दीवारों और स्तंभों का निचला भाग संगमरमर द्वारा निर्मित है।
खास महल:- यह बादशाह का निजी महल था। इसे दीवान-ए-खास भी कहा जाता है। यह बादशाह द्वारा खास दरबारियों एवं मेहमानों से चर्चा हेतु, निजी मुलाकात कक्ष के रूप में प्रयोग किया जाता था। इस कक्ष का प्रयोग बादशाह द्वारा निजी इबादत के लिए भी किया जाता था। कक्ष के मध्य में स्थित संगमरमर की चौकी पर मयूर सिंहासन रखा हुआ था। इसकी दीवार पर फारसी के प्रसिद्ध कवि फिरदौस का शेर है।
“यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो वह यही है, यही है, यही है,।
मोती मस्जिद:- इसका निर्माण औरंगजेब द्वारा अपने निजी उपयोग के लिए करवाया गया। इसका प्रयोग हरम की महिलाओं द्वारा भी किया जाता था। मस्जिद के इबादतखाने का फर्श काले संगमरमर की पटियों से अलंकृत किया गया था।
जामा मस्जिद:- जामा मस्जिद का असल नाम मस्जिद जहांनुमा है। यह मस्जिद शाही और आम दोनों प्रकार के व्यक्तियों के लिए बनवाई गई थी। यह मस्जिद एक ऊंचे चबूतरे पर बनी है जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी है। मस्जिद के चारों ओर चार -चार मंजिला मीनारें और लाल बलुआ पत्थर की धारियों वाले तीन गुंबद है। इस मस्जिद में फूलदार अलंकरण की मेहराब भी बनी है। मस्जिद के भीतर पत्थर के टुकड़ों से जुड़ा हुआ है एक विशाल प्रांगण है। आंगन के तीन और मध्य में प्रवेश द्वार है। इसके बीच में जलाशय बना हुआ है। नमाज पढ़ने से पूर्व लोग इसी जलाशय में हाथ धोते थे। जामा मस्जिद का आकार प्रकार व उसका स्थान बादशाह की ऊंचाई को प्रतिबिंबित करता है।
शाहजहानाबाद को उचित नगर योजना के तहत बसाया गया था। इसको न सिर्फ राजधानी का दर्जा हासिल था बल्कि यह एक बड़ा व्यापारिक केंद्र भी था। इसमें कई बाजार मौजूद थे, करीब-करीब सभी दरवाजों पर एक बाजार था। शाहजहानाबाद की प्रमुख सड़कों के दोनों तरफ कई दुकाने स्थित थी। शाहजहानाबाद शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में भी जाना जाता था। जहां विदेशों से विद्यार्थी पढ़ने-पढ़ाने आते थे। मुगलों की राजधानी नगरों की संरचनाओं में समानताएं दिखाई देती हैं। मुगल अपनी राजधानियों को ज्यादातर नदी तट के किनारे ही बसाते थे। शाहजहानाबाद भी उसका एक उदाहरण है।
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