जहांगीरनामाआत्मकथा लेखन के मामले में भारत में मुगल सत्ता की नींव रखने वाले बाबर का अनुसरण जहांगीर ने किया। इतिहास लेखन में उनका यह प्रेम अपने पिता अकबर के कारण था। वह प्रथम बादशाह था जिसने साम्राज्य का व्यवस्थित इतिहास लिखवाने का प्रयास किया। जहांगीर ने भी अपने पिता अकबर का अनुसरण किया, जिसका परिणाम तुजुक-ए-जहांगीरी है, जिसे जहांगीरनामा के नाम से भी जाना जाता है। इस ग्रंथ में जहांगीर के शासनकाल के 19 वर्षों का फारसी भाषा में वर्णन है। इसमें प्रारंभिक 16 वर्षों का वर्णन स्वयं जहांगीर की कलम से लिखा गया है जबकी शेष 3 वर्षों का ब्यौरा अर्थात 17 से 19 वर्ष तक का ब्योरा मुदामिद खां की कलम से लिखा गया है। जहांगीर ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण मुदामिद खां को यह कार्य सौंपा। इसका अंग्रेजी में अनुवाद अलेक्जेंडर राजर्स ने किया था तथा उर्दू में अनुवाद मुंशी अहमद अली सीमाब ने किया था।
जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में क्रमबद्धता से वर्णन किया है। जो घटना जब घटती थी उसके तत्काल बाद ही वह इसे लिख लेता था, जिससे उसमें भूल के कारण से कोई गलती नहीं हो पाती थी। इसके अलावा इसके मध्य में किसी घटना का स्मरण आ जाने पर वह उसे वहीं दर्ज कर लेता था। जहांगीर ने अपने वर्णन में पशु-पक्षियों, नदी-नालों, पहाड़ियों, शिकारों, फव्वारों और पुलो आदि का वर्णन किया है। जहांगीर ने अपने ग्रंथ में समकालीन घटनाओं के अतिरिक्त अपने पिता के काल की घटनाओं का भी संकलन किया है।
जहांगीर ने जिन विषयों को अपनी आत्मकथा में स्थान दिया है वह निम्न है:-
समकालीन राजनीतिक घटनाओं का वर्णन। मुगल सेनाओं का विरोधी सेनाओं के साथ युद्ध एवं उनके परिणामों का ब्यौरा। दक्षिण के मोर्चे पर मुगल सेनाओं की पराजय एवं उसके कारण। मुगल अधिकारियों के पारस्परिक झगड़े एवं आपसी फूट। सम्राट के द्वारा अपने मनसबदारी को समय-समय पर किए जाने वाले उनकी मनसब में बढ़ोतरी एवं अन्य सामानों का विस्तार से विवरण। मुगल अधिकारियों की नियुक्ति एवं तबादलों का वर्णन। मेवाड़ की सिसोदिया एवं राजस्थान के अन्य राजपूत शासकों का चित्रण। मेवाड़ - मुगल संधि एवं उनकी शर्तों का विस्तार से वर्णन।
राजनीतिक घटनाओं के अतिरिक्त जहांगीरनामा में हिंदुओं के सामाजिक रीति-रिवाजों का वर्णन मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जहांगीर यहां के सामाजिक रीति-रिवाजों के बारे में विशेष ज्ञान रखता था। इसमें भारत की भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में विस्तार से सूचनाओं का संकलन किया गया है। उदाहरण के लिए जहांगीर ने मांडू की अवस्थिति, स्थानीय भौतिक रचना, वन प्रदेश एवं उसकीे प्राकृतिक संपदा का वर्णन किया है। इसी तरह इस ग्रंथ में अजमेर एवं पुष्कर के बारे में बड़ा दिलचस्प वर्णन है। इस ग्रंथ को प्राकृतिक सूचनाओं का इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है। इस वर्णन के आधार पर ही आधुनिक इतिहासकारों ने उसको प्राकृतिक प्रेमी बादशाह का खिताब दिया है। उसने विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाने वाले वृक्षों, फूलों, फलो आदि का अत्यंत रोचक वर्णन प्रस्तुत किया है। जहांगीर ने प्राकृतिक प्रकोपों और उन से उत्पन्न होने वाले प्रभावों का भी बारीकी से वर्णन किया है।
उदाहरणार्थ 1617-18 में फैली महामारी के बारे में वह लिखता है कि इस साल हिंदुस्तान में महामारी फैल रही है जो पंजाब के कई परगनों में प्रकट हुई थी। वह बढ़ते-बढ़ते लाहौर पहुंची, जिससे बहुत से हिंदू मारे गए। फिर सरहिंद के रास्ते दिल्ली में फैल गई एवं परिणामस्वरूप बहुत से गांव उजड़ गए। इस वर्णन से ज्ञात होता है कि जहांगीर महामारी जैसे प्राकृतिक प्रकोपो के विवेचन के द्वारा उसके प्रभावों को समझाना चाहता था। इसका उद्देश्य संभवत उसके दुष्परिणामों की रोकथाम ही रहा होगा।
इसके अलावा इस ग्रंथ में अपने अमीरों एवं अधिकारियों के जीवन एवं उनकी सोच के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी संकलित की गई है। जहांगीर ने अकबर की सुलहकुल की नीति एवं हिंदू मुसलमानों के संबंधों पर पड़ने वाले उसके प्रभावों को विस्तार से अपने ग्रंथ में अंकित किया है। इसी वर्णन से मुगल सम्राट की धार्मिक उदारता का पता चलता है जो उसके स्वयं के पिता के प्रभाव का परिणाम थी। इस ग्रंथ में अकबर के शासन की महत्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्रित किया गया है। जहांगीर द्वारा मुगल साम्राज्य के प्रांतों की यात्राएं की गई जिनमें मुख्य थे:- अजमेर, मालवा, गुजरात, पंजाब एवं कश्मीर आदि।
इकबालनामा-ए-जहांगीरी:- इस ग्रंथ का लेखक मुदामिद खां था, जो नौकरी की तलाश में ईरान से भारत आया था। इसने इस ग्रंथ की रचना मुगल बादशाह जहांगीर के आदेश पर की थी। लेखक ने तुजुक के कुछ वर्षों का वर्णन अपने कलम से लिखा था, इसलिए जहांगीर उसकी योग्यता से पूर्णता परिचित था इसलिए जब उसने बादशाह के नाम पर 19 साल के पश्चात आगे लिखने में असमर्थता व्यक्त की तो बादशाह ने उसे स्वयं के नाम पर इतिहास लिखने का आदेश दिया।
इसी आदेश के अनुसार उसने इकबालनामा-ए-जहांगिरी की रूपरेखा तैयार की। उसने अपने इस ग्रंथ को तीन भागों में विभाजित किया जो निम्न है:-
1) प्रथम खंड में तैमूर वंश की उत्पत्ति से लेकर बाबर द्वारा भारत में मुगल सत्ता की स्थापना एवं हुमायूं के समय का इतिहास संकलित है।
2) दूसरे खंड में अकबर के राज्य के वर्णन को स्थान दिया गया है।
3) तीसरे खंड में हिमायूं के समस्त दौर के इतिहास को लिखा गया है। इस भाग में मुगल बादशाह के 19 शासनकाल तक का वर्णन है, जो उसने तुजुक-ए-जहांगीरी से लिया है। इस वर्ष से लेकर मुगल बादशाह के स्वर्गवास तक का वर्णन विस्तार से अंकित किया है। तुजुक में वर्णित इतिहास के बाद के सालों के लिए इकबालनामा-ए-जहांगिरी ही एकमात्र स्रोत है।
इतिहासकार आई.एच.कुरैशी कहते हैं कि जहांगीर हर चीज को बारीकी से देखता था, तथा उन चीजों को भी जिस पर अन्य शासक गौर नहीं करते थे। उसने 12 साल में जो भी कानून तथा आदेश जारी किए, उसे किताबों में लिखवाया।
अफजल हुसैन तुजुक-ए-जहांगीरी के संदर्भ में कहते हैं कि जहांगीर ने अपने सूबेदार व कुलीन वर्ग से संबंधित 17 कानून पारित किए। इन कानूनों के तहत किसी भी सूबेदार व कुलीन वर्ग को झरोखे में बैठने, हाथियों की लड़ाई देखने, व कहीं जा रहे हैं तो ड्म बजाने की अनुमति नहीं थी और न यह इजाजत थी कि एक अमीर दूसरे अमीर वर्ग को सलाम करें। यह 17 कानून जहांगीरनामा में लिखे गए हैं।
जहांगीर ने भले ही तूजूक में निजाम-उल-मलिक का जिक्र न किया हो किंतु वह न्याय को बड़ा ही महत्व देता था।
Corinne Lefevre बताते हैं कि जहांगीर का न्याय अमीर गरीब कमजोर व ताकतवर सभी के लिए एक समान था। 1611 में पारित किए गए कानून में उसने कहा कि कोई भी अमीर मनमाने ढंग से नाव पर चुंगी नहीं लगाएगा और किसी भी व्यापारी के समान को बीच रास्ते में नहीं खोलेगा।
जहांगीरनामा में जहांगीर बाबर व हुमायूं की तरह कुदरती सुंदरता को महत्व देता है साथ ही साथ अपने पिता की तरह राजनीति से संबंधित तीन चीजों को भी महत्व देता है:- धार्मिक नीति, प्रशासन तथा साम्राज्य विस्तार। जहांगीर ने धार्मिक नीति तथा प्रशासन पर अपने पिता की तरह ज्यादा महत्व दिया लेकिन साम्राज्य विस्तार की और उसने कम ध्यान दिया।
जहांगीरनामा ग्रंथ के लेखक ने अपने वर्णन में काफी सत्यता का सहारा लिया है। उसने अपने ग्रंथ में क्रमबद्ध रूप से सारी घटनाओं का वर्णन किया है। जिनसे तुजुक इतिहासिक महत्व बढ़ जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जहांगीरयुगीन इतिहास का यह महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान ग्रंथ है।
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