चार्टिस्ट आंदोलन
चार्टिस्ट आंदोलन का आरंभ 1832 में हुआ। यह आंदोलन मजदूरों तथा श्रमिकों द्वारा चलाया गया, जो राजनीतिक अधिकार प्राप्त करके अपनी सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं का समाधान करना चाहते थे। महारानी विक्टोरिया के शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों में इस आंदोलन ने जोर पकड़ा तथा यह आंदोलन 1848 तक चलता रहा। इस आंदोलन के प्रमुख नेता विलियम लॉवेट, थामस एट्वुर्ड तथा फीयरगस ओ. कोनर थे। इस आंदोलन के प्रसिद्ध केंद्र लंदन, बर्मिंघम तथा लीड्स आदि नगर थे। विद्वान कालाईल ने कहा है कि “चार्टिस्ट का मामला बड़ा गंभीर और दूर-दूर तक फैलने वाला था। इसका आरंभ केवल कल ही नहीं हुआ और न ऐसे ही किसी ढंग से आज या कल समाप्त किया जा सकता है”।
आंदोलन का कारण:- (सामाजिक तथा आर्थिक) औद्योगिक क्रांति के कारण इंग्लैंड के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में काफी परिवर्तन आया। औद्योगिक विकास तथा मशीनों के प्रयोग से देश के उत्पादन एवं विदेशी व्यापार का आश्चर्यजनक विकास हुआ था परंतु इससे देश में हजारों किसान, कारीगर तथा मजदूर बेकार हो गए थे। कारखानों में लगे मजदूरों की स्थिति भी चिंताजनक हो गई थी। उन्हें बहुत कम वेतन प्राप्त होते थे। देश में प्रचलित अनाज कानूनों के कारण अनाज बहुत महंगा हो गया था। धनी लोग अधिक धनी और गरीब लोग अधिक गरीब होते जा रहे थे। इस प्रकार बेरोजगारी, कम वेतन, काम करने के अधिक घंटे, महंगाई तथा गरीबी इत्यादि ने मजदूर वर्ग को आंदोलन करने के लिए तैयार कर दिया।
राजनीतिक कारण:- 1832 के संसदीय सुधार एक्ट से मजदूरों का असंतोष बढ़ गया। पार्लियामेंट में सुधार हो इसके लिए मध्यवर्गीय के साथ मिलकर मजदूरों ने भी आंदोलन किया था। 1832 के सुधार अधिनियम से मध्यम वर्ग को मताधिकार मिल गया लेकिन मजदूर वर्ग अभी भी से वंचित रखे गए। इससे मजदूरों को जबरदस्त धक्का लगा। परिणामस्वरूप पार्लियामेंट में और सुधार हो इसके लिए मजदूर लोग फिर से आंदोलन करने लगे। इस समय सरकार का रुख उनके प्रति सहानुभूति पूर्ण नहीं था। इसलिए इस आंदोलन को दबाने का प्रयास किया गया। इतना ही नहीं 1837 में प्रधानमंत्री लॉर्ड रसेल ने और संसदीय सुधारों की संभावना का खंडन करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि 1832 का सुधार एक्ट सुधारों के सिलसिले में अंतिम कदम है। अब असंतुष्ट मजदूरों ने अपने आप को संगठित करने का निश्चय किया। मजदूरों ने लॉवेट और ओ.कोनर के नेतृत्व में एक संस्था की स्थापना की। 1837 में इस संस्था ने मजदूरों से संबंधित एक “जन अधिकार पत्र अथवा चार्टर” तैयार किया। इसी अधिकार पत्र या चार्टर के कारण ही इस आंदोलन का नाम चार्टिस्ट आंदोलन पड़ गया तथा इसके समर्थकों को चार्टिस्ट कहा जाने लगा। इस तरह चार्टिस्ट आंदोलन का सूत्रपात हुआ।
चार्टिस्ट की 6 मांगे:-
1.संसद के सदस्यों का वार्षिक चुनाव होना चाहिए।
2.संसद के सदस्यों को निश्चित वेतन प्राप्त होना चाहिए।
3.गुप्त वोट व्यवस्था होनी चाहिए।
4.संसद का सदस्य बनने के लिए संपत्ति की कोई शर्त नहीं होनी चाहिए।
5.सभी बालिगो को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए।
6.चुनाव के लिए समस्त देश को बराबर की जनसंख्या वाले क्षेत्र में बांटना चाहिए।
विद्वान डोरोथी टोमसन ने इनकी 6 मांगों को देखते हुए इसे एक “वर्गीय राजनीतिक युद्ध” कहा है। राजनीतिक समानता को प्राप्त करने के पश्चात चार्टिस्ट आंदोलनकारी सरकार से सामाजिक तथा आर्थिक समानता भी प्राप्त करना चाहते थे।
आंदोलन का विकास:- बाद में चलकर चार्टिस्ट लोग दो दलों में विभक्त हो गए। इसका एक दल “नैतिक शक्ति या अहिंसा” के मार्ग द्वारा अपनी मांगे मनवाने चाहता था। परंतु इस दल को सफलता प्राप्त न हो सकी जिसके परिणामस्वरूप इस आंदोलन का नेतृत्व दूसरे दल के हाथों चला गया जो “शारीरिक शक्ति एवं हिंसा” में विश्वास रखता था।
इस आंदोलन के प्रमुख केंद्र लंदन, बर्मिंघम तथा लीड्स के नगर थे। प्रत्येक नगर में वहां के नेताओं ने इस आंदोलन को अलग-अलग रूप प्रदान किया। लंदन में श्रमिकों का नेतृत्व विलियम लॉवेट तथा जॉन ब्लैक ने किया। यह श्रमिकों को शिक्षा देकर शांतिपूर्ण ढंग से राजनीतिक अधिकार दिलाने में विश्वास रखते थे। परंतु उन्हें विशेष सफलता प्राप्त न हुई और कुछ समय के पश्चात ही उन्हें कैद कर लिया गया। बर्मिंघम में इस आंदोलन का नेतृत्व थॉमस एट्वुड ने किया। परंतु धीरे-धीरे इस आंदोलन में उग्रवादियों का बोलबाला हो गया जिससे एट्वुड का इस पर प्रभाव कायम न रह सका।
लीड्स में इस आंदोलन का नेतृत्व फियरगस ओ. कोनर ने किया। वह उग्रवादी विचारों का समर्थक था और शक्ति प्रयोग करके राजनीतिक सुधार प्राप्त करने के पक्ष में था। उसने इस आंदोलन को नई प्रेरणा प्रदान की।
आरंभ में सरकार ने चार्टिस्ट आंदोलन की कोई परवाह नहीं की। धीरे-धीरे इस आंदोलन ने हिंसक रूप धारण कर लिया। बर्मिंघम में इस आंदोलन के समर्थकों ने हिंसा से काम लेते हुए कई इमारतों को आग लगा दी। 1839 में चार्टिस्टो ने न्यूपोर्ट में विद्रोह कर दिया। जब विद्रोहियों ने नगर पर बलपूर्वक अधिकार करने का प्रयास किया तो पुलिस ने गोली चला दी। जिसस 20 चार्टिस्टों की हत्या हो गई तथा बहुत से जख्मी हो गए। कई नेताओं को कैद कर लिया गया तथा आजीवन कारावास का दंड दिया गया।
1839 में चार्टिस्टो ने अपनी 6 मांगों वाला चार्टर संसद के सम्मुख प्रस्तुत किया। संसद ने इस मांग पत्र को अस्वीकार कर दिया। 1842 में चार्टिस्टो ने एक अन्य चार्टर संसद को पेश किया परंतु इसे भी अस्वीकार कर दिया गया। इसके पश्चात चार्टिस्टो ने देशभर में हड़ताल करना आरंभ कर दिया। परंतु सरकार ने कठोरता का रुख अपनाकर प्रदर्शनकारियों का दमन कर दिया। 1848 का दौर पूरे यूरोप में क्रांतियों का दौर था। इससे प्रेरणा पाकर चार्टिस्टो ने अपना आंदोलन फिर तेज कर दिया। ओ.कोनर के नेतृत्व में चार्टिस्टो ने एक और प्रार्थना पत्र तैयार किया। जिसमें उन्होंने अपनी पुरानी 6 मांगों की स्वीकृति की मांग की। इस प्रार्थना पत्र पर लगभग 55 लाख लोगों के हस्ताक्षर किए तथा इसे संसद में पेश किया गया। इसके निरीक्षण से पता चला कि इस प्रार्थना पत्र में बहुत से हस्ताक्षर जाली थे। इससे चार्टिस्टो की बड़ी बदनाम हुई और इस आंदोलन को भारी ठेस पहुंची। सरकार ने इस प्रार्थना पत्र को अस्वीकार कर दिया और आंदोलनकारियों को कठोरता से कुचल दिया।
असफलता के कारण:- इसकी असफलता का मुख्य कारण इसके संचालकों द्वारा क्रांतिकारी ढंग अपनाया जाना था। चार्टिस्टो द्वारा किए गए झगड़ों, फसादो तथा हड़ताल के कारण साधारण लोगों की सहानुभूति इस आंदोलन के साथ अधिक समय तक न रह सकी।
योग्य नेतृत्व का अभाव:- यह इस आंदोलन की असफलता का महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। इस आंदोलन के नेता आम लोगों में विशेष प्रेरणा उत्पन्न नहीं कर सके। विद्वान वुडवर्ड का कहना है कि इस आंदोलन को कोनर, ओ-ब्रायन आदि नेताओं से कहीं श्रेष्ठ नेताओं की आवश्यकता थी। इन नेताओं में बुद्धिमता तथा अनुभव की कमी थी।
मध्यवर्ग का पृथक्करण:- औद्योगिक विकास के पश्चात मध्यवर्ग ने समाज में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। मध्यवर्ग के पास संपत्ति आ जाने के कारण उसने इस आंदोलन में मजदूर वर्ग के साथ देने की अपेक्षा कुलीन वर्ग के साथ गठजोड़ कर लिया। कई मध्यवर्गीय लोगों ने तो इस आंदोलन से दूर रहना ही सही समझा।
जाली हस्ताक्षर:- चार्टिस्टो के प्रार्थना पत्र पर 55 लाख लोगों के हस्ताक्षर करने का दावा किया गया था। लेकिन जब उसकी जांच हुई तो पता चला कि उसमें बहुत से हस्ताक्षर जाली थे। इसलिए आंदोलन के चलानेवालों के प्रति लोगों का विश्वास उठ गया। यह प्रार्थना पत्र अस्वीकृत कर दिया गया और आंदोलनकारियों का दमन कर दिया। चार्टिस्ट आंदोलन देशभर में बदनाम हो गया इस कारण ही असफल रहा।
आंदोलन का प्रभाव:- चार्टिस्टो की मांग एवं उद्देश्य 1848 के बाद भी किसी न किसी रूप में जीवित रही तथा समय-समय पर इसकी पूर्ति होती रही। अर्थात जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आंदोलन चलाया गया था वह बाद में पूरा हो गया। 1858 से 1911 के मध्य चार्टिस्टो की लगभग सभी मांगे स्वीकार कर ली गई। 1858 के एक्ट के अनुसार वोट के अधिकार के लिए संपत्ति संबंधी योग्यता को समाप्त कर दिया गया। 1885 में देश के चुनाव क्षेत्र जनसंख्या के आधार पर एक समान कर दिए गए। 1911 के कानून के अनुसार इंग्लैंड की सरकार ने संसद के सदस्यों के लिए 400 पाउंड वार्षिक वेतन की मांग को भी स्वीकार कर लिया।
अनाज कानून में संशोधन हुआ जिसके फलस्वरूप अन्न सस्ते हुए और व्यापार में वृद्धि हुई। फैक्ट्री कानूनों के पास होने से मजदूरों की दशा में सुधार हुआ। पार्लियामेंट की वार्षिक बैठक के अतिरिक्त सभी मांगों को स्वीकृत किया गया। इंग्लैंड में गुप्त मत की प्रथा भी प्रचलित हुई। इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को मान लिया गया।
समकालीन साहित्य पर भी इस आंदोलन का गहरा प्रभाव पड़ा तथा आने वाले वर्षों में अनेकों विचारको, कवियों तथा विद्वानों ने इस आंदोलनों के समर्थकों के दयनीय जीवन पर आकर्षक एवं रोचक लेख लिखें। सरकार पर भी इन रचनाओं का असर पड़ा, अतः वह मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए काम करने लगी। जॉन स्टूअर्ट मिल जैसे विचारको पर इस आंदोलन का काफी प्रभाव पड़ा, जिससे देश के प्रजातांत्रिक आंदोलन को काफी प्रोत्साहन मिला।
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