नायक राज्यों का उदय
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नायक राज्यों का उदय
पंद्रहवी तथा सोलहवीं शताब्दी में विजयनगर शासकों, कृष्णदेवराय (1509 -29) तथा अच्यूतदेवराय (1529 - 42) के शासनकाल में बड़ी संख्या में नायकों का उदय हुआ। विजयनगर के राजाओं द्वारा इन नायकों को भू-क्षेत्र आबंटित किये गए थे, जिसके बदले में इन नायकों को सैनिक टुकड़ी रखनी होती थी तथा राज्य की ओर से करों की वसूली करनी पड़ती थी। ऐसे भू-अनुदानों ने ही स्वतंत्र राजनितिक व्यवस्थाओं का आधार तैयार किया, जिन्होंने विजयनगर शासन के दौरान राज्यों का दर्जा हासिल कर लिया। इनमें से कुछ शक्तिशाली नायक राजव्यवस्थायें इक्केरी तथा ओड्यार उत्तरी दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र में, सेंजी, तंजावुर तथा मदुरै के नायक तमिल क्षेत्र में स्थापित थे। इन राज्यों ने शक्तिशाली और स्वतंत्र होने की बावजूद विजयनगर शासको के प्रति स्वामिभक्ति दर्शाकर अपनी निष्ठा का दावा किया। नायक राजव्यवस्थाऐं अठाहरवीं शताब्दी में 1730 के दशक तक अस्तित्व में बनी रही जब प्रमुख नायक राज्यों में से अंतिम, मदुरै का पतन हुआ।
नायक राज्य मूल रूप से तेलगु थे। उन्हें वडूगा या उत्तरी प्रदेश के निवासी कहा जाता था। नायक राजव्यवस्थाऐं उन विशेषाधिकारो से उभरी और विकसित हुई जो विजयनगर के शासन के दौरान उन्हें दिए क्षेत्रों में उन्हें उपलब्ध थी। अभिलेखीय साक्ष्य पंद्रहवी तथा सोलहवीं शताब्दी में, विशाल संख्या में नायक अधिकारीयों की मौजूदगी की पुष्टि करते है। फर्नाओ नूनिज एक पुर्तगाली यात्री हमें सुचना देते है कि "ऐसे दो सौ कप्तान थे जिन्हें विजयनगर राजाओं ने क्षेत्र बांटे हुए थे और नायकों को इसके बदले में अपने क्षेत्रों में राजस्व का संग्रह करना होता था और राज्य को एक निश्चित राशि भेजनी होती थी, साथ ही अपने क्षेत्र में राजा के लिए एक निश्चित आकर में सैन्य टुकड़ियों का प्रबंधन भी करना पड़ता था”।
इन नायक अधिकारीयों के बीच भी एक प्रकार का पदानुक्रम मौजूद था। इनमें से बहुतों को अधिस्वामी का दर्जा प्राप्त था, तो अन्य दूसरे मात्र अधीनस्थ स्वायत सरदार या बड़े नायकों के प्रतिनिधि मात्र थे। किन्तु जब शासकों का राजनितिक वर्चस्व कमजोर होने लगा विशेषकर 1565 ई के बाद, कुछ नायकों ने अपने संबंधित क्षेत्रों में अपनी स्वतंत्रता का प्रदर्शन किया। मदुरै, तंजावुर, सेंजी और इक्केरी के अभिलेखों तथा साहित्यिक ग्रंथो के आधार पर यह पता चलता है कि नायक वंशो के पूर्वजो को सोलहवीं शताब्दी में चिन्हित किया जा सकता है, जब उन्हें कृष्णदेवराय तथा अच्यूतदेवराय के काल में नायक अधिकारीयों के रूप में नियुक्त किया गया था। मिसाल क लिए, मदुरै, सेंजी और इक्केरी के नायक राज्यों का उदय सोलहवीं शताब्दी में कृष्णदेवराय के काल में हुआ था। तंजौर तथा मदुरै के नायक राज्यों की स्थापना अच्यूतदेवराय के काल में हुई थी।
मदुरै, तंजावुर, सेंजी का उद्भव ;-
नगमा नायक और उसका पुत्र विश्वनाथ नायक मदुरै नायक राज्य के संस्थापक थे। मदुरै के नायकों के उदय को इत्तिवृतों में भलीभांति दर्ज किया गया है, यह इतिवृत मदुरै के नायकों के सैन्य कौशल के गौरव को प्रदर्शित करते है, विशेषकर विश्वनाथ के, और उनकी इस क्षेत्र के स्वायत सरदारों से समझौता करने की योग्यता की। विश्वनाथ को दुर्गों, मंदिरों, सिचाई की नहरों के निर्माण और ब्राह्मण बस्तियों की स्थापना तथा मदुरै के आस पास मछवारों के समुदाय के साथ संवाद करने के लिए जाना जाता है। इतिवृत्तों में हमें यह भी बताते है की कृष्णदेवराय उनकी निष्ठा से इतना प्रभावित था कि उसने दुर्गा की एकमात्र मूर्ति को भी उन्हें दे दिया जो विजयनगर साम्राज्य की शक्ति और संरक्षण की प्रतीक थी।
तंजावुर पर रचित इतिवृत इस क्षेत्र के इतिहास को दर्ज करते हुए, अठारहवीं शताब्दी में शिवप्पा की भूमिका के विषय पर चर्चा करते है। शिवप्पा की पत्नी अच्युतराय की पत्नी की बहन थी और इस वैवाहिक सम्बन्ध के माध्यम से उसे तंजावुर प्राप्त हुआ था। वह विजयनगर के शासक की निजी सेवा में संलग्न था। तंजावुर राज्यों के नायकों ने अपनी राजयव्यवस्था को ब्राह्मण सिद्धांतों पर आधारित किया था।
ऐतिहासिक आख्यानों में सेंजी के नायकों के वंश का संस्थापक तुबाकी कृष्णप्पा नायक था। उनके बारे में कई कहानियां है कि किस प्रकार उन्होंने सेंजी की पहाड़ियों पर चमत्कारी ढंग से एक किले का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि यह निर्माण विष्णु के एक अवतार वराह की कृप्या से संभव हुआ था जिसने नायक का कांचीपुरम से सेंजी की और मार्ग प्रशस्त किया था। कुछ दस्तावेजों में कृष्णप्पा नायक का वर्णन विजयनगर साम्राज्य से पूर्व के समय से सम्बन्ध रखने वाले एक गड़रिये-परिवार से बताया गया है। इस प्रकार सेंजी राज्य के नायकों के उद्भव की कथा एक दुर्ग तथा एक राज्य पर आधारित है, जिनका सृजन संसाधनों की उपलब्धता तथा चमत्कारी ढंग से प्राप्त दैवीय मिथ से हुआ था। नायकों ने इसके बाद दुर्ग की मरम्मत करवाई और उसके चारो और एक नगरीय केंद्र का विकास हुआ।
नायक राज्य निर्माण के आधार
नायक राज्यों की उत्पति तथा उनका सढृढीकरण छः मुख्य घटको पर आधारित था। इनमें से प्रथम नकद धन पर आधारित था। स्रोत बताते है कि मदुरै के नगमा नायक ने अपने राजा होने के अधिकार का दावा स्वयं के पास धन की विशाल राशि होने के आधार पर किया था।
दूसरा, राज्य की उत्पत्ति में भाड़े के सैनिको की महत्वपूर्ण भूमिका थी। वह गतिशील थे और शस्त्रों तथा अच्छे घोड़ों से सुसज्जित थे। तीसरा, एक क्षेत्र की उपलब्धता जहां ये स्वयं को आबाद कर सकते थे और अपनी शक्ति को सदृढ़ीकृत कर सकते थे। चौथा, विजयनगर शासको के प्रति निष्ठां भी महत्वपूर्ण थी, वह कमजोर हो चूका थे, तथा इन नए स्थापित राज्यों को मान्यता प्राप्त करता थे। पांचवा, शक्ति का सढृढीकरण दैवीय शक्ति पर आधारित होना चाहिए था तथा इस दैवीय शक्ति के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण था। उदाहरण के लिए देवी मीनाक्षी मदुरै के नायकों की संरक्षिका देवी था। छठा, क्षत्रिय वंश से जोड़ने के लिए वंशवलियों का निर्माण करना और मंत्रियों तथा सलाहकारों के रूप में कार्य करना महत्वपूर्ण था। नायक अपनी स्वतंत्रता का दावा स्वयं कर सकते थे, यदि उनके पास सम्पति हो, गतिशीलता हो, और वे शस्त्रों से सुसज्जित हो, उनका क्षेत्र विशेष पर नियंत्रण हो और साथ ही उन्हें विजयनगर के राजाओं की तथा दैवीय मान्यता प्राप्त हो।रामराय के शासन काल में दक्षिण भारत की राज्यव्यवस्था में एक अन्य लक्षण विकसित हुआ, जिसे बर्टन स्टीन “अनुवांशिकतावाद” के उदय के रूप में व्याख्यित करते है। रामराय ने ब्राह्मण सेनानायकों को हटाकर अपने पारिवारिक तथा नजदीकी सम्बन्धियों की नियुक्ति कर दी। यहां तक की उसने अपने दोनों भाइयों तिरुमल और वेंकटाद्री को सेना का प्रभारी बना दिया। इस तरह अनुवांशिक राज्य व्यवस्था की शुरुआत हुई। नायकों ने अपनी शक्ति का अनुवांशिकता के आधार पर विस्तार करने का प्रयास किया, खासतौर पर मारवाड़ के सरदारों ने जो आगे चलकर 17 वी शताब्दी में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करने में सफल रहे।
विजयनगर शासको के साथ सम्बन्ध
नायकों तथा विजयनगर शासको के बीच सम्बन्ध निष्ठां के प्रदर्शन से विद्रोह में रूपांतरित हुए। ज़्यदातर नायक शासको द्वारा विजयनगर शासको की सहायता आपस में एक दूसरे को दबाने के लिए प्राप्त की जाती था। उदहारण के लिए, सेंजी के नायक विजयनगर के शासको के प्रति 1592 तक निष्ठवान रहे थे।
इसी प्रकार तंजौर के नायक सोलहवीं शताब्दी के दौरान विजयनगर के शासको के प्रति निष्ठावान रहे और उन्होंने विजयनगर के राजा वेंकटपतिदेव को गोलकुंडा की सल्तनत के आक्रमण के विरुद्ध समर्थन प्रदान किया था। मदुरै के नायक भी विश्वप्पा तथा उसके उत्तराधिकारी भी विजयनगर के शासको के प्रति निष्ठावान रहे थे तथा उन्होंने विजयनगर के राय की सहायता पुर्तगालियों के विरुद्ध की थी।
कृष्णदेवराय तथा अच्यूतदेवराय दोनों ही अक्सर नायको को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करते रहते थे। 1592 के बाद विजयनगर के राजा वेंकटपति प्रथम ने नायको पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपनी राजधानी को पेनुकोंडा से चंद्रगिरि में स्थानांतरित किया। इसने नायको के बीच रोश पैदा किया जो अक्सर विजयनगर शासको को भेंट देने में आनाकानी करते थे। जब भी विजयनगर के शासक प्रशासन को केंद्रीकृत करने के लिए अपनी शक्ति में वृद्धि करते थे, तब तब नायक शासको की सत्ता को चुनौती देते थे। उदाहरण के लिए, 1580 के दशक के बाद मदुरै के नायको ने विजयनगर के शासको के विरुद्ध विद्रोह किया और उन्हें करो के भुगतान से इंकार कर दिया। वेंकटपति को मदुरै के नायको को दबाने के लिए अपनी सेना को भेजना पड़ा ताकि राजस्व की वसूली की जा सके।
अकसर विजयनगर के शासक एक नायक को दूसरे नायको के विरुद्ध भड़कते थे ताकि विजयनगर की सत्ता को चुनौती देने के लिए कोई शक्तिशाली विकल्प उठ खड़ा न हो। कुछ नायक राज्य विजयनगर शासको के लिए हमेशा मुश्किल बने रहे। ओडयार के स्वायत शासक जो मैसूर के क्षेत्र में बसे थे, ने विजयनगर के शासको की अधीनता को कभी स्वीकार नहीं किया।
1614 के बाद नायको की राजनितिक दृष्टिकोण में एक परिवर्तन दिखाई देता है। 1614 में विजयनगर के शासक वेंकट द्वितीय की मृत्यु बिना कोई उत्तराधिकारी छोड़े हो गयी थी, इसके बाद सिंहासन पर उत्तराधिकार हेतु दो दावेदार समूहों के बीच लम्बा संघर्ष शुरू हुआ, इनमे से एक समूह को मदुरै तथा सेंजी के नायको का समर्थन तो दूसरी ओर अन्य समूह को तंजावुर के नायको का समर्थन प्राप्त हुआ। इससे बहुत नुकसान हुआ जिससे विजयनगर के शासक कमजोर पड़ गए तथा वास्तव में उनके हाथ में कोई भी शक्ति नहीं रह गयी थी। 1640 के दशक तक नायको और शासको का सम्बन्ध सेवक और स्वामी का बना रहा , किन्तु यह नाममात्र का था।
नायक राज्यों की युद्ध प्रद्योगिकी
यह काल नायको, विजयनगर शासको, स्वायत सरदारों तथा गोलकुंडा और बीजापुर सल्तनतों के बीच संघर्ष का काल था। अतः इस काल में युद्ध प्रोद्योगिकियों के विकास को संरक्षण मिला। नायक राजव्यवस्थायें आग्नेय शस्त्रों के प्रयोग से परिचित थे। साहित्यिक स्रोत युद्धों, शिकार तथा रोमांचक कृत्यों के दौरान आग्नेयशस्त्र तकनीकों के विषय में जानकारी उपलब्ध कराते है। यूरोपीय व्यापारिक कंपनियां नायक राज्यों के लिए आग्नेय शस्त्रों की मुख्य आपूर्तिकर्ता थी।
नायक राजाओं की राजनितिक अर्थव्यवस्था
नायक शासको ने सामुद्रिक व्यापार में दिलचस्पी दिखाई और आयत शुल्कों के संग्रह के लिए एक प्रभावी पद्धति का विकास किया। नायक कई वस्तुओं का आयत–निर्यात करते थे, विशेषकर कीमती धातुओं, युद्ध में प्रयोग हेतु घोड़े तथा हाथियों का व्यापार। नायको ने मुख्य रूप से मोती उत्पादन में रूचि दिखाई। उन्होंने पुर्तगालियों तथा डच लोगो के साथ संवाद स्थापित किया, जो मोती उत्पादन में संलग्न थे। नायक राज्यों ने कई शहरी केन्द्रो का विकास किया।
इतिहासलेखन
संजय सुब्रमण्यम की सिम्बॉल्स ऑफ़ सब्स्टेंस (1992 )कृति तथा इसके बाद आने वाली फिलिप बी. वैग्नर की टाईडिंग्स ऑफ़ किंग कृति नायक शासको के इतिहास को समझने हेतु उपयोगी योगदान है। सिम्बॉल्स ऑफ़ सब्स्टेंस तंजौर, मदुरै, तथा सेंजी के तीन प्रमुख नायक राज्यों की राजनितिक संस्कृति पर विचार करती है। यह युद्ध तथा संघर्षों के विषय और नायकों के राजत्व प्रकृति को भी उजागर करती है।
ऐतिहासिक स्त्रोत
नायक काल के इतिहास के लिए विभिन्न प्रकार के स्त्रोत है। नायक शासको के संरक्षण में निर्मित बहुत से मंदिरों में पत्थरों की दीवारों पर उकेरे गए अभिलेख महत्वपूर्ण स्त्रोत है जो हमें भूमि अनुदान, दान ग्रहण करने वालो के विषय में और विभिन्न प्रशासनिक गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान करते है। सेंजी , मदुरै, तंजावुर और अन्य राज्यों के नायक दरबारों के संरक्षण में रचित बहुत से साहितियक ग्रन्थ भी नायक इतिहास के महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
इन ग्रंथों को तेलगु, संस्कृत और तमिल में लिखा गया है। यह मुख्यतः दरबारियों, पंडितों और शिक्षित अधिकारीयों जो बहुभाषी थे, के द्वारा लिखे गए थे। ऐतिहासिक ग्रन्थ रायवाचकमु की रचना स्थानपति द्वारा की गयी थी, जो मदुरै के शासक विश्वनाथ नायक का प्रतिनिधि था। यह ग्रंथ कृष्णदेवराय के समय की कला, संस्कृति और अर्थव्यवस्था और राजनितिक घटनाओं और गतिविधियों की जानकारी देती है।
नायक दरबार के साहित्यिक ग्रन्थ हमें यह विश्वास दिलाते है कि नायक शासक शक्तिशाली थे और विजयनगर के राजनीत्तिक प्राधिकार से स्वतंत्र थे। जेसुइटो के विवरण तथा डच और पुर्तगाली दस्तवेज एक बिलकुल ही दूसरा चित्र प्रस्तुत करते है। डच और पुर्तगाली दस्तावेज हमें यह सुचना देते है की सत्रहवीं शताब्दी के बड़े नायक नियमित रूप से विजयनगर शासको को भेंट प्रदान करते थे। यदि कोई नायक भुगतान करने से इंकार करता तो शासक सेना भेजकर उस भेंट की उगाही करते थे। ऐसा हमें सेंजी के विषय में देखने को मिलता है जिसने भेंट देने से इंकार कर दिया था और विजयनगर शासक वेंकेट द्वितीय द्वारा उसे सैन्य बल के प्रयोग से अधीनस्थ करना पड़ा।
16वी शताब्दी के दक्षिणी भारत की राजयव्यवस्था युद्धों से घिरी हुई थी। नायक राज्यों का विकास उस समय हुआ जब विजयनगर साम्राज्य कृष्णदेवराय के अधीन अपने शिखर बिंदु पर था। सेंजी, इक्केरी , मदुरै तथा तंजावुर के शक्तिशाली नायक 1565 तक वफादार बने रहे और 17वी शताब्दी के दौरान ही वैंकेट प्रथम की नीतियों ने उन्हें विद्रोह करने पर बाध्य कर दिया। 16वी शताब्दी के विजयनगर की शासन व्यवस्था ने केन्द्रीकरण की तरफ बढ़ने की प्रवृत्ति दर्शाई थी। यह वंशानुगत राजनीति के उदय का काम भी था।
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