बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

कन्फूसियसवाद

कन्फूसियसवाद 

प्राचीन काल में चीन के दार्शनिक विचारों ने व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने बजाय सामाजिक जरूरतों को पूरा किया। इस समय में उत्पन्न हुए अधिकतर विचारक नौकरशाही तथा राजनितिक व्यवस्था की उत्पत्ति थे जो राजनितिक समूह से आते थे। आगे चलकर इन विचारकों ने अपने गुट बना लिए और वे उपदेशक हो गए। धीरे धीरे उनके शिष्यों ने उनकी विचारधाराओं को स्थापित किया। इनमे से ही एक विचारधारा कन्फूसियसवाद थी। जिसका अनुसरण चीन ने कई शताब्दियों तक किया। कन्फूसियसवाद एक पश्चिमी नाम है। चीनियों द्वारा इसे जू शियाओ या "विद्वानों का उपदेश" कहा जाता है। कन्फूसियस कब अस्तित्व में आया इसको लेकर विवाद है। चीनी उसके जन्म का समय 551 ई.पू. मानते है तथा वह 479 ई.पू. तक जीवित रहा। उसने एक छोटे अधिकारी के रूप में कई कार्य किये। जैसे कि उसने गोदाम प्रबंधन, अध्यापन, अपराध के लिए दंड देने वाले तथा सामाजिक कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले अधिकारी के रूप में कार्य किया। आगे चलकर उसके यही उपदेश कन्फूसियस सम्प्रदाय में परिवर्तित हो गए। उसको इस सम्प्रदाय का सबसे बड़ा प्रवर्तक माना गया किन्तु अन्य कई उपदेशकों एवं विद्वानों ने भी इसको विकसित करने में विशेष भूमिका अदा की।  

चीनी समाज में कन्फूसियस मत को धार्मिक अनुष्ठानों का मुख्य संवाहक माना गया और इसका उद्भव चाओ वंश के शासन काल में हुआ। कन्फूसियस ने अपने विचारों का प्रचार करने के लिए व्यापक यात्रा की। उसकी मृत्यु के बाद उसके शिष्यों ने उसके उपदेशों को "दि एनालेक्टस" नाम की पुस्तक में संकलित किया। उसके उपदेशों का मुख्य लक्ष्य अपने शिष्यों को राजनिति में प्रवेश प्राप्त करने हेतु आवश्यक निपुणता प्रदान करना था। कन्फूसियस के उपदेश कुलीनों की आधिकारिक शिक्षा के विरुद्ध विरोधी थे। उसका यह मानना था कि प्रकृति से सभी मनुष्य सामान्य है, किन्तु उसका यह मानना उस समय में प्रचलित दासप्रथा के विपरीत था। उसका यह भी कहना था की अच्छे और योग्य लोगों को ही आधिकारिक पदों पर नियुक्त किया जाना चाहिए और उसका यह तर्क उत्तराधिकार के नियमों के विपरीत था। चीन के साम्यवादी इतिहासकरों ने चीन के सांस्कृतिक इतिहास में कन्फूसियस के योगदान को महत्वपूर्ण माना, परन्तु इसको उन्होंने क्रन्तिकारी की अपेक्षा सुधारवादी समझा।  
इतिहासकारों का मानना है की उसने शिक्षक के रूप में लोगो को शिक्षित करना चाहा, किन्तु उसकी शिक्षा कुलीनों तक ही पहुँच सकी। उसने कुलीन वर्ग के पदानुक्रम का समर्थन किया किन्तु उत्तराधकारी व्यवस्था का विरोध नहीं किया। 

कन्फूसियस कभी भी अतिवादी नहीं हुआ उसने सदा समझौतावादी प्रतिमानों को स्थापित किया अर्थात उसने मध्य मार्ग का अनुसरण किया। इस प्रकार कन्फूसियसवाद शासक गुटों के बीच लोकप्रिय हो गया। यह एक परिवर्तनीय दर्शन था। समय समय पर इसमें परिवर्तन होते रहे। राज्य द्वारा लागु किये गए कन्फूसियसवादी सिद्धांत के अनुसार सम्राट राज्य का राजनितिक अध्यक्ष होने के साथ साथ धार्मिक मुखिया भी था। उनका विश्वास था कि सम्राट सम्पूर्ण विश्व का भाग होने के कारण न केवल मानव जाति पर शासन करने आया बल्कि उसको धार्मिक कार्यों को भी पूरा करना था। वह ताइन (स्वर्ग) का पुत्र था और वह स्वर्ग तथा पृथ्वी का सहायक था। चीनवासीयों के अनुसार राजा स्वर्ग पुत्र के रूप में सर्वोच्च शासक होता था और स्वर्ग का आशीर्वाद बने रहने तक उसकी सत्ता बनी रहती थी। जब स्वर्ग की नजरें राजा और साम्राज्य से विमुख हो जाती थी, फिर नया राजा और साम्राज्य उसकी जगह ले लेता था। 

कन्फूसियसवादी विद्वानों का मानना है कि सर्वशक्तिमान मनुष्य हमेशा अच्छाई का पक्ष लेता है, इसलिए सबको धार्मिक संस्कारो को पूरा करना चाहिए। प्रदेशों में सरकारी पदों पर आसीन अधिकारीयों को धार्मिक संस्कारों को पूरा करने का कार्य सौंपा गया। स्थानीय पर्वतों तथा जल-स्रोतों की आत्मा को बलि प्रदान करने की उनसे आशा की जाती थी। वे कन्फूसियस मंदिरों तथा नगर देवता के मंदिरों में आयोजित होने वाले धार्मिक उत्सवों में भाग लेते थे। पूर्वजों का सम्मान करना कन्फूसियस मत की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता थी। इस प्रकार दर्शन के रूप में कन्फूसियस मत की जड़ें चीन में काफी गहरी थी और इसको जीवन शैली के रूप में ग्रहण किया गया। 

इस काल के दौरान कई क्लासिक रचनाओं को भी लिखा गया। इन पुस्तकों को बांस की पट्टियों या रेशम पर लिखा गया है। इन ग्रंथो का चीन के समाज और संस्कृति पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इन रचनाओं में कुछ प्रमुख ग्रंथ है। 

1. शिह चिंग (काव्य पुस्तक) = इनको चाऊ शासन के दौरान लिखा गया था। इसमें विशेष प्रकार की घटनाओं की जानकारी है तथ यह ईश्वर को समर्पित है।  
2. शू-चिंग (इतिहास की पुस्तक) = इस पुस्तक में राजनितिक तथ्यों का संग्रह है। 
3. आई चिंग (परिवर्तनों की पुस्तक) = यह पुस्तक भविष्वाणियों से सम्बंधित है। 
4. लि चि (अनुष्ठान पुस्तक ) = इस पुस्तक में अनुष्ठानों की सूची है। 
5. चुन चिन = इस पुस्तक में बसंत और शरद ऋतुओं का विवरण है और इसके अंदर ऐतिहासिक तिथिक्रम का महत्व है। 

आगे चलकर ये सभी रचनाएं कन्फूसियस ग्रंथो के रूप में प्रसिद्ध हुई। स्वयं कन्फूसियस इन ग्रंथो के पुनर्लेखन, संपादन या संशोधन से जुड़ा था।   
कन्फूसियसवादी समाज और राज्य 

जमींदार वर्ग – चीन समाज में इस वर्ग को भूस्वामी के रूप में परिभाषित करना गलत होगा क्योंकि समय के साथ साथ इस वर्ग के बहुत से सदस्यों ने अनेकों व्यवसायों की शुरुआत की। इस वर्ग के परिवार के बेटे कन्फूसियस दर्शन में गहन शिक्षा की प्रक्रिया से होकर गुजरते थे। उनकी सफलता को मान्यता प्राप्त डिग्रियों के आधार पर आँका जाता था जिनको वो राज्य द्वारा आयोजित अनेक स्तरों की परीक्षाओं के द्वारा प्राप्त करते थे। परीक्षा में अधिक सफलता प्राप्त करने वाले प्रत्याशियों को शाही सरकार के पदाधीकारियों के रूप में नियुक्त किया जाता था। इसको चीनी समाज में सर्वोच्च उपलब्धि माना जाता था। इस वर्ग के परिवार में से एक या एक से अधिक सदस्यों के द्वारा सार्वजानिक पद प्राप्त कर लिए जाने पर वे इस पद का प्रयोग अपनी भू सम्पति को बढ़ाने के लिए करते और अन्य स्रोतों से भी धन प्राप्त करके अपने सामाजिक स्तर को बढ़ाते।  

कृषक वर्ग –चीनी समाज का बहुसंख्यक वर्ग कृषक था। किसानो का शोषण किया जाता था। तीसरी तथा छठी शताब्दी तक विस्थापन के दौर में चीन के केंद्रीय और दक्षिण क्षेत्र में बड़ी संख्या में किसान बस गए किन्तु भूमि के क्षेत्रफल में कोई वृद्धि नहीं हुई। इस कारण भूमि पर आबादी का काफी दबाव बढ़ा। कन्फूसियस सिद्धांत के अनुसार किसान भू दास न थे, किन्तु वास्तविकता में उनकी हालत भू -दासो से अच्छी न थी। कारणवश किसानो को अपनी फसल का आधा भाग जमींदारों को लगान के रूप में देना पड़ता था। उस काल में किसान जमींदारों को देने वाले भू लगान और राज्य को अदा करने वाले भरी करो के बीच फँस गए। किसानो की इस दुर्दशा ने समय समय पर वद्रोह का रूप भी ले लिया जो अधिकारीगण और शासक के विरुद्ध होते थे। किसानो ने अपने हितों की पूर्ति हेतु संस्थाओं का निर्माण किया, जिसके माध्यम से उन्होंने सेनाओं को संगठित किया। ये सेनायें स्थानीय या प्रांतीय सरकारों के केन्द्रो में लूट पाट करती थी या राजधानी की ओर अग्रसर होने का प्रयास करती थी। जब वह शाही मुख्यालयों में उथल पुथल मचाने में सफलता प्राप्त कर लेती, तो उसका निरपवाद अर्थ था शासक वंश का धराशाही होना। इस प्रकार जहां किसान एक ओर शोषित वर्ग था, वहीँ उसने कई बार नए शासक परिवार को चीन के सिंहासन पर बैठा कर कन्फूसियस सिधान्तो का अनुसरण करवाया। 

व्यपारी वर्ग – कन्फूसियस दर्शन के अनुसार व्यपारी वर्ग सामाजिक व्यवस्था के सबसे निचले स्तर पर थे, यहां तक की कृषको से भी छोटे समझे जाते थे। किन्तु व्यपारियों के परिवारों के समृद्ध होने पर कोई प्रतिबंद नहीं था। वे अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा उठा सकते थे। बहुत से व्यपारियों ने अथाह सम्पति एकत्रित कर ली थी। अपने सामाजिक स्तर को बढ़ाने के लिए उन्होंने जमींदार वर्गो के साथ वैवाहिक सम्बन्ध कायम किया और अपने पुत्रो के लिए सरकारी पद प्राप्त किये। लेकिन व्यपार पर राज्य के नियंत्रण के कारणवश व्यपारी वर्ग के आर्थिक एवं राजनितिक विकास में रुकावट आई। चीन में राज्य ने यह भली भांति समझ लिया था की व्यपार राजस्व का एक शक्तिशाली स्रोत है इसलिए इसपर कड़ा नियंत्रण स्थापित किया। व्यपारिक गतिविधयों पर कर लगाने के साथ साथ राज्य ने आवश्यक उपभोग की वस्तुओं जैसे नमक एवं लोहे पर एकाधिकार स्थापित करना शुरू कर दिया था। उसके विपरीत व्यपारी वर्ग ने अपने ऊपर लगाए गए नियंत्रण का विरोध नहीं किया। बल्कि बड़े बड़े व्यपारी वर्ग राज्य के साथ सहभागी का कार्य करते थे। इस प्रकार व्यपारी वर्ग सहायक संस्थाओं के रूप में कार्य करते रहे वे कभी भी स्वतंत्र आर्थिक एवं राजनीति शक्ति तथा संघर्ष के केंद्र न बन पाए। इस प्रकार कन्फूसियस विचारधारा जो की व्यपारी वर्ग को निचले स्तर पर रखती थी, ने इनके ऊपर अंकुश लगाए रखा।  
कन्फूसियसवादी राज्य – कन्फूसियसवादी दर्शन के अनुसार राजा को सम्पूर्ण विश्व की जनता का शासक समझा जाता था। इनके अधीन वे क्षेत्र भी शामिल थे जो चीनी सम्राट की अधीनस्थता को स्वीकार कर लेते थे और स्वतंत्र रूप से अपना शासन चलाते थे। एक अधिकारी साम्राज्यिक प्रतिनिधि के रूप में इन राज्यों में रहता था। इतना ही नहीं विदेशी प्रतिनिधि या व्यपारिक प्रतिनिधि द्वारा चीनी सम्राट को नजराना पेश करने पर उन्हें भी अपना प्रतिनिधि समझ लिया जाता था और उनके साथ इसी प्रकार का व्यवहार किया जाता। इनका इस्तेमाल चीनी सम्राट की आंतरिक स्थिति तथा सम्मान को मजबूत करने के लिए किया जाता। चीनी सम्राट एक विशाल एकीकृत जनता का सम्राट था जिसमे चीनी तथा गैर चीनी जनता शामिल थी। वे चीनी जनता को सभ्य तथा गैर चीनी जनता को बर्बर मानते थे। यह वास्तविकता थी की विभिन्न जातीय उत्पातियों तथा विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आये शासको ने चीनी साम्राज्य में उच्च पदों को प्राप्त किया लेकिन उन्होंने शाही व्यवस्था को धराशाही नहीं किया। जब तक इन शासको ने अपने राज्य में कन्फूसियसवादी सिधान्तो का अनुसरण किया तब तक जीवन सामान्य रूप से जारी रहा। 

सम्राट – चीनी सम्राट कन्फूसियसवादी राजा था। कन्फूसियसवाद के अनुसार सामाजिक और राजनितिक व्यवस्था तथा दूसरी ओर प्रकृतिक व्यवस्था दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए थे। सम्राट का मुख्य कार्य था कि वह विश्वव्यापी व्यवस्था को बनाये रखे। इस प्रकार सम्राट राजनितिक तथा सामाजिक उपद्रवों के लिए ही नहीं बल्कि बाढ़ ,सूखा, भूकंप जैसे प्रकृतिक घटनाओं के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाता था। इस प्रकार के भयंकर अव्यवस्थित समयों में कन्फूसियस परम्परा के अनुसार सम्राट के विरुद्ध विद्रोह को वैध ठहराया गया। एक सफलतापूर्वक विद्रोह को इस बात का प्रमाण माना जाता था कि स्वर्ग ने शासन करने के अपने आदेश को वापस ले लिया था। इस प्रकार चीनी सम्राट प्रतिक मात्र न था, बल्कि भूमि का वास्तविक शासक था। वह एक मात्र विधि निर्माता था और साथ ही सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर था। सम्राट स्वयं को परम्परागत कन्फूसियस राजनितिक व्यवस्था का संरक्षक समझते थे , जिसके कारण चीन को संकट एवं पतन से बाहर निकलने के लिए उन्होंने क्रन्तिकारी परिवर्तनों को करने में संकोच किया। 

नौकरशाही  शाही दरबार के अधिकारीयों से लेकर जिला स्तर के अधिकारीयों तक समूर्ण नौकरशाही का निर्माण एक विशेष प्रकार से किया जाता था। यह सुस्पष्ट नियमों, अधिनियमों के द्वारा शासित होती थी। नौकरशाही को कुछ स्वायत्ता भी प्रदान की गयी थी। इस कारण विभिन्न सम्राटों की सनक पर इसने रोक लगाने का कार्य किया। चीनी नौकरशाही की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसकी भर्ती करने की व्यवस्था थी। किन्तु सरकारी पदों को खरीदकर या दूसरे सदस्य से उत्तराधिकार के रूप में भी प्राप्त किया जा सकता था। इसके बावजूद भी नौकरशाही में भर्ती होने का साधन परीक्षाओं की केंद्रीकृत व्यवस्था थी। हर तीन वर्ष में सम्पूर्ण साम्राज्य में परीक्षा का आयोजन किया जाता था। इस परीक्षा में सैद्धांतिक रूप से सभी पुरुष शामिल हो सकते थे चाहे उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि कोई भी रही हो। इस परीक्षा के द्वारा परीक्षार्थी की कन्फूसियस सम्बन्धी ज्ञान की परीक्षा ली जाती थी। परीक्षार्थी की पहचान गुप्त रखी जाती थी जिससे की परीक्षक को परीक्षार्थी की कोई व्यक्तिगत जानकारी न हो पाती और उनका निर्वाचन निष्पक्ष तौर पर होता था। परीक्षा के द्वारा भर्ती करने से नौकरशाही का महत्त्व काफी बढ़ गया। इससे यह सुनिश्चित था की साम्राज्य के अधिकारीगण बुद्धिमान तथा विद्वान् थे। कन्फूसियस विचारो में लम्बी शिक्षा के कारण राजनितिक मूल्यों के प्रति उनकी निष्ठां सुनिश्चित हो जाती थी। इसलिए उनको उच्च स्तर का आत्म सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त थी। 

कन्फूसियस के दर्शन से चीन वासी भली भांति परिचित थे। पर कुछ कारणों से ऐसे कारण सामने आये जिससे चीनी समाज पर कन्फूसियस दर्शन की न केवल पकड़ ढीली हुई बल्कि इस दर्शन के मूल आधार पर भी आघात किया। आरम्भ में कन्फूसियस दर्शन के घेरे में रहकर सुधर करने की कोशिश की गयी। किन्तु यह प्रयास सफल नहीं रहा। कन्फूसियस दर्शन के अनुसार समाज में कई स्तर थे, कुछ निचले तबके के लोग थे, कुछ ऊँचे तबके के लोग थे। निचले तबके के लोगो की स्थिति श्रेष्ठ थी। इस प्रकार की व्यवस्था से आगे के विकास का मार्ग अवरुद्ध होता था। 

कन्फूसियस दर्शन में युवा की अपेक्षा बुजुर्ग को, वर्तमान की अपेक्षा भूत को, शासित की अपेक्षा शासक को, व्यक्ति की जगह समाज को तरजीह देने की प्रथा विधमान थी। कन्फूसियसवाद किसी भी प्रकार के बदलाव का विरोधी थी। यदि इसमें बदलाव किया गया तो समाज का सौहार्द नष्ट हो जाएगा, समाज बिखर जाएगा, व्यवस्था का स्थान अव्यवस्था ले लेगी और समाज का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। वस्तुतः यह एक अनुचित और कटटरपंथी दर्शन था। 

राजनीतक और सरकार में कन्फूसियसवाद ने नैतिक शासन के विचार को प्रतिपादित किया था। यदि शासक इसका पालन नहीं करेगा तो वह प्रजा को कैसे संभल सकेगा। राजनितिक व्यवस्था का सम्बन्ध अलौकिक दुनिया से जुड़ा हुआ था और राजा स्वर्ग का पुत्र था, अंतः राजा को नैतिक और पवित्र होना था। राजा की आज्ञा मानना प्रजा कर्तव्य था, राजा अपनी प्रजा पर शासन करने के लिए जन्मा है और यह उसका नैतिक अधिकार था। 

कन्फूसियस के अनुसार स्त्री पुरुष को समर्पित थी और युवा बुजुर्गो के प्रति नतमस्तक थे। समाज में स्त्री की कोई भूमिका नहीं थी, घर में वह माँ और पत्नी मात्र थी। बच्चा जानना और उसका पालन करना उसका सामाजिक कर्तव्य था। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। वह सम्पाती का दवा नहीं कर सकती थी। किसी भी चीज पर उनका कोई अधिकार नहीं था। इसके आलावा ऐसी सामाजिक कुप्रथाएं भी प्रचलित थी, जिनके कारण स्त्रियों का जीवन नारकीय हो गया था, जैसे पैर छेदने की प्रथा, दुल्हन को बेंचा जाना और बाल विवाह। 

युवा भी शोषित के दर्जे में आते थे। कन्फूसियस सिद्धांत के अनुसार पिता की मृत्यु के बाद भी पुत्र का कर्तव्य समाप्त नहीं होता था बल्कि उससे अपना सम्मान समय समय पर अनुष्ठानों के माध्यम से व्यक्त करना पड़ता था। इस व्यवस्था से युवाओं के व्यक्तित्व का विकास प्रभावित हुआ। चीन की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित थी। शिक्षा का केवल एक ही उद्देश्य था बादशाह के लिए अधिकारी विद्वानों का निर्माण करना ताकि चीन देश को लगातार नियंत्रण में रखा जा सके। एक शिक्षित व्यक्ति से यह आशा की जाती थी कि उसे प्राचीन ग्रंथ की बातें कंठस्त हो। बेहतर स्मरण शक्ति वाला व्यक्ति अधिक विद्वान माना जाता था। इसकी सबसे बड़ी विडंबना यह थी की इसकी भाषा साहित्यिक और प्राचीन चीनी भाषा थी, जो बोलचाल की भाषा से बिलकुल अलग थी। 

चीन में कन्फूसियसवादी विचारधारा का प्रभुत्व लम्बे समय तक बना रहा। सभी वंशो के शासक वर्गो ने अपने नियंत्रण को जनता पर बनाये रखने के लिए धर्म का प्रयोग किया। 


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