फ्रांसीसी क्रांति में प्रकाशनों की भूमिका
प्रिंटिंग प्रेस ने क्रांतिकारी विचारों का प्रसार करके और व्यापक आबादी को संचार और सूचना प्रसार का साधन प्रदान करके फ्रांसीसी क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे जनता को लामबंद करने और सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने में मदद मिली। इसने समाचारों, राजनीतिक पैम्फलेटों और क्रांतिकारी घोषणापत्रों के तेजी से प्रसार को बढ़ावा दिया और क्रांति के लिए जनता की राय और समर्थन को प्रेरित करने में मदद की। प्रिंटिंग प्रेस ने क्रांति के विचारधारा को आकार देने में भी भूमिका निभाई, क्योंकि विभिन्न समूहों और गुटों ने इसका इस्तेमाल अपने विचारों और एजंडो को बढ़ावा देने के लिए किया। इतिहासकार लिन हंट जिन्होंने फ्रांसीसी क्रांति में प्रिंटिंग प्रेस की भूमिका पर विस्तार से लिखा है। अपनी पुस्तक,"फ्रांसीसी क्रांति में राजनीति, संस्कृति और वर्ग" में, कहा है की प्रिंटिंग प्रेस ने राजनीतिक संचार के एक नए रूप की अनुमति दी, जहां लोग बड़े पैमाने पर एक-दूसरे और राज्य के साथ जुड़ सके। संचार के इस नए रूप ने जनमत को आकार देने में मदद की और क्रांति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्रांति के दौरान प्रचार व संवाद के माध्यमों का भरपूर प्रयोग किया गया। इन माध्यमों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे, प्रशासनिक घोषणायें, आदेश तथा कानून जिन्हें कस्बो तथा देहातो तक अधिकारी वर्ग द्वारा मौखिक व लिखित रूप से पहुँचाया गया।
इस दिशा में 17वी तथा 18वी शताब्दी में प्रेस व प्रकाशित समाग्री, सांस्कृतिक परिवर्तन का शक्तिशाली माध्यम बनें। प्रकाशनों में कई प्रकार की विधाएँ मौजूद थी जैसे धार्मिक प्रकाशन, पाठ्य पुस्तकें, बाल साहित्य, प्रशासनिक अध्यादेश, समाचार पत्र, पोस्टर, पेम्पलेट तथा साहित्यिक रचनाऐं आदि। 18वी शताब्दी में फ्रांस में इन सभी विधाओं का उद्भव हो चूका था। हालांकि राजनितिक पुस्तकों का अनुपात कम था, जबकि धार्मिक ग्रंथों तथा लोकरुचि की 'फेरी पुस्तकें' अधिक थी। क्रांति के दशक में राजनितिक पर्चों और पोस्टरों का प्रकाशन फ़्रांस में तेजी से बढ़ा, क्योंकि नए प्रशासन के साथ साथ अनेक राजनितिक दलों ने अपने प्रस्ताव व मांगे सार्वजानिक क्षेत्र में पेश करना आरम्भ कर दिया।
फ़्रांसिसी प्रकाशनों को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा जा सकता है। पुस्तकें, पत्रिकाएं व समाचार पत्र, पोस्टर व पेम्पलेट, पंचांग, कहानियां और लोकरुचि के सस्ते प्रकाशन। पदरीवर्ग तथा तनाशाही के खिलाफ बढ़ते आक्रोश के कारण धार्मिक प्रकाशनो के अनुपात में गिरावट आई। 1777 में फ्रांस का पहला दैनिक समाचार पत्र पेरिस में छापा और दस वर्षों में यह सिलसिला देश के हर नगर में नजर आने लगा। 18वी शताब्दी में सेक्युलर पुस्तकों, जैसे राजनितिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विश्लेषण की पुस्तकों में लोगो की रूचि भी बढ़ रही थी। इस प्रक्रिया को बल देने वाले कारकों में मुख्य था, बढ़ती साक्षरता, माध्यम वर्ग का विकास, व्यपार का विस्तार आदि। इन सभी कारको ने राजनितिक क्रांति से पहले ही पुस्तकों, पर्चों और पोस्टरों की छपाई को बढ़ा दिया था।
इतिहासकार Hugh Gough के अनुसार, 1720- 80 के बीच पुस्तकों के प्रकाशन में फ्रांस में तिगुनी वृद्धि हुई। क्रांति से पूर्व की संध्या पर लाखों की संख्या में बिकने वाली पुस्तकों में दिदरो की विश्वकोश, रूसों का सोशल कॉन्ट्रैक्ट, मॉन्टेस्क्यू की दी स्पिरिट ऑफ़ लाज एवं वाल्तेयर की लेटर्स कंसर्निंग द इंग्लिश नेशन शामिल थे। उल्लेखनीय है की पुस्तकें खरीद सकने वाला वर्ग फ्रांस में छोटा था क्योंकि आय की तुलना में पुस्तकों की कीमत अधिक थी।
18 वी शताब्दी का अंत होते होते वाल्तेयर की रचनाओं की 15 लाख तथा रूसों की कृतियों की 10 लाख से अधिक प्रतियां फ्रांस में छप चुकी थी। इसके साथ ही बढ़ती साक्षरता तथा जागरूकता के कारण छोटे शहरों में पुस्तकालयों, अध्ययन केंद्रों तथा अकादमियों की संख्या बढ़ रही थी। इन सुविधाओं की वजह से पुस्तक न खरीद सकने वालों के लिए भी पढ़ने के साधन बढ़ गए थे। उन दिन पेरिस के एक पत्रकार ने लिखा था "पहले पुस्तकों से वास्ता रखने वाले बहुत काम होते थे लेकिन आज लगता है की हर आदमी हर चीज के बारे में पढ़ना व जानना चाहता है। पुस्तकों के अलावा प्रकाशनों में पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों का भी विशेष स्थान था। ये प्रकाशन लोकरुचि की जानकारी के साथ स्थानीय, राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय घटनाओं को सरल भाषा में किसी राजनितिक नजरिये के साथ पेश किया जाता था ताकि मुनाफे के साथ राजनीती में भी इसका प्रभाव कायम हो सके।
फ्रांस का पहला समाचार पत्र 1631 में "गजट" के नाम से शुरू हुआ। इसका उद्देश्य सप्ताह भर की खबरों को सरकारी नजरिये से, फ्रांस की जनता को देना था। लुइ चौदहवें के काल में, सरकारी संरक्षण में ही विज्ञान, साहित्य, तथा कलाओं की खबरों को प्रकाशित करने वाले तीन मियादी पत्र आरम्भ हुए। जेरेमी पॉप्किन के अनुसार 17वी तथा 18वी शताब्दी में मियादी पत्र पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ती गयी, 1780 तक आते आते यह 100 का आंकड़ा पार कर चुकी थी। जिसमें 40 पत्र पेरिस से, 50 के लगभग अन्य शहरों से तथा 30 विदेशों से फ्रांस में लाये जा रहे थे। 1777 में जर्नल द पेरिस के नाम से फ्रांस का पहला दैनिक समाचारपत्र छापना शुरू हुआ, 1788 में, जर्नल द पेरिस विज्ञापनों को लाने वाला पहला फ़्रांसिसी पत्र था।
इतिहासकार Hugh Gough के अनुसार 1780 के दशक में प्रकाशनों में वृद्धि हुई तथा 1789 में अख़बार व पत्रिकाओं की करीब 50,000 प्रतियां प्रतिदिन 140 प्रेसों से निकल रही थी। अधिकतम पत्र सप्ताह में दो या तीन बार ही निकलते थे और पत्रिकाएं मासिक या उससे अधिक अंतराल पर आती थी। कुलीन वर्ग जहां अपने अलग पत्र मंगवाते वहीं निम्न वर्ग पुस्तकालयों व शराबघरों में इन्हें पढ़ते या सामूहिक रूप से सुनते थे।
1789 क्रांति से पहले पत्रकारिता का पेशा चुनिंदा पत्रकारों के लिए खासे लाभ का माध्यम बन गया था। जैसे पेनकुक के निर्देशन में सरकार द्वारा प्रोत्साहित गजट दे फ्रांस अपने सम्पादकों को 10,000 लीरे सालाना तथा उससे अधिक तनख्वा प्रदान कर रहा था। दूसरी और गरीब गलियों के ऐसे पत्रकार व लेखक थे जो जीवन यापन के लिए भांडे पर लिखने, कार्टून बनाने, पोस्टर चिपकाने, बेनाम अपमानलेख छापने तथा अवैध प्रकाशन करते थे। परन्तु इन्ही गुमनाम लेखकों में ब्रिसो (Brissot) तथा सैं जुस्त (Saint just) जैसे विचारक पल रहे थे।
क्रांति के दौरान प्रकाशनों का एक महत्वपूर्ण पहलु उन लोकप्रिय पुस्तकालयों का था जो, सस्ती दरों पर, घुम्मक्कड़ फेरी वालों के माध्यम से गाँव गाँव पहुँचती थी तथा मेलों और तीर्थ स्थानों पर बिकती थी। ये फेरी पुस्तकाएं फेरी वालों द्वारा रोजमर्रा की जरुरी चीजों के साथ ही बेंची जाती थी और उन पुस्तकों में किस्से कहानियों के साथ साथ धार्मिक उपदेश, प्रशासनिक आदेश आदि छपे रहते थे। फ्रांस में इन किताबों का प्रचलन नीली पुस्तक माला के नाम से लोकप्रिय था। एक अनुमान के अनुसार 18वि शताब्दी में नीली पुस्तक माला की करीब दस लाख प्रतियां फ़्रांस में हर वर्ष बिक रही थी।
फ़्रांसिसी लोकसाहित्य पर शोध करने वाले डार्नटन (Darnton) तथा शर्तें (Chartier) जैसे इतिहासकार मानते थे की यह सामग्री पलायनवादी थी तथा समाज की असमानताओं को स्वीकार करती थी तथा राजनितिक विकल्पो की सोंच विकसित नहीं करती थी। नीली पुस्तकमाला का एक अन्य नकारात्मक पहलु यहूदियों के खिलाफ झलकती दुर्भवनाएँ थी। फ्रांस की बूर्बों सरकार इस प्रकाशन क्रांति से बेखबर नहीं थी। इसलिए इसके खिलाफ प्रांतों से लेकर केंद्र तक, चर्च एवं न्यायधीशों से लेकर कलाकारों की अकादमियों तक, फ़्रांसिसी शासकों ने सेंसरशिप का इस्तेमाल निरंतर किया। परन्तु सेक्युलर और राजनीती खबरों तथा आलोचनाओं की मांग फ्रांस में इस कदर बढ़ चुकी थी कि प्रकाशनों की बाढ़ को रोकना सम्भव नहीं था।
1788 में फ्रांस में छप रहे समाचार पत्रों की संख्या 140 से बढकर 335 हो गयी थी। विद्वान ऐमेट कनेडी का मानना है कि जहां क्रांति से पहले अख़बार व पत्रिकायें 50,000 प्रतिदिन की दर से छप रहे थे, 1793 तक यह संख्या बढ़कर करीब 1,50,000 हो चुकी थी। लीन हंट के आकलन के अनुसार 1789 से 1799 के बीच 1500 से अधिक पत्र -पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। परन्तु इसमें क्रांतिकारियों द्वारा निकाले जा रहे प्रकाशनों के अतिरिक्त, वैज्ञानिक, तकनिकी प्रकाशन तथा राजतन्त्र समर्थक पत्र भी निकाले जा रहे थे।
क्रांति के दशक में सबसे उग्र अख़बारों में जाक रने एबेर (Jacques Rene Hebert) द्वारा प्रकाशित पत्र ल पेर ड्यूसेन (Le Pere Duschene) था जो पुरातन व्यवस्था का तीखा मजाक उडाता था। सम्राट लुइ सोलहवें को दब्बू सूअर तथा रानी को व्यभिचारिणी कहने की जुर्रत इस पत्र ने ही की थी। साथ ही चर्च तथा धर्म के उन्मूलन, धार्मिक इमारतों के विष्ध्वंस तथा पादरियों के लिए निष्कासन और उन्हें शरण देने वालो के लिए मृत्युदंड की मांग भी इस पत्र नई की थी।
तीखे तेवर वाले एक अन्य अख़बार विय कोर्देलिए (Vieux Cordelier) के संपादक कामिल बिनो देमोले (Camille Benoir Desmoulins) थे जिन्होंने फ़्रांस में गणतंत्र की मांग 1789 में की थी तथा सां कुलोत को नरमपंथी दल के खिलाफ भड़काने व ब्रिसो जैसे गणतंत्रवादियों को भी गिओतीन (Guillotine) तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई। एक अन्य नेता सें जुस्त ने इसी दौर में कहा था कि “हमें केवल गद्दारों को सबक नहीं सीखना है बल्कि उनको भी जो क्रांति के लिए उत्साह नहीं दिखा रहे, कोई हक़ नहीं है ऐसे लोगो को पितृभूमि पर सांस लेने का और यह कि क्रांति के जहाज को आगे बढ़ाने के लिए राजनीती के पानी को पहले खून से लाल करना होगा”।
क्रांति के दौरान राष्ट्र सभा के शासनकाल में पुरानी पुस्तकों के प्रकाशन में गिरावट आयी वहीं दूसरी और क्रन्तिकारी प्रकाशनों में वृद्धि हुई। धार्मिक ग्रंथों को क्रांतिकारियों द्वारा कई जगहों पर जलाया गया। कुल प्रकाशनों में उनका अनुपात घट कर 10 प्रतिशत हो गया।
रूसो, रॉब्सपियेर, मिरबो इत्यादि की रचनाओं का अनुपात तेजी से बढ़ा। ग्रामीण जनता तक पहुँचने के लिए क्रांतिकारियों ने पंचांग तथा प्रश्नोत्तरी जैसे परम्परागत प्रकाशनों का इस्तेमाल किया। पुस्तकों तथा समाचारपत्रों की तुलना में इनका मुद्रण कई बड़े पैमाने पर होता था तथा हर कस्बें में पंचांग व प्रश्नोत्तरी हज़ारों की तादाद में छापे जाते थे। आमजन तक पहुँचने का इससे बड़ा माध्यम उस दौर में कोई और नहीं था।
महान आतंक के दौर में धार्मिक दिवसों के उल्लेख को वर्जित करने की कोशिश हुई परन्तु डायरेक्टरी के काल में लोकरुचि की यह जानकारी पुनः पंचांगों में दिखने लगी। पंचांगों की तरह ही प्रश्नोत्तरी का भी क्रन्तिकारी प्रचार के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास किया गया। जिस तरह चर्च सवाल जवाब के माध्यम से धार्मिक मुद्दों को सरल रूप में आम जन के सामने रखता आया था, इसी तरह क्रांतिकारियों ने भी गणतंत्र क्या है ? लुइ सोलहवें का क्या अपराध था ? इत्यादि सवाल के जवाब आम प्रचार के लिए प्रकाशित करवाए। लोकप्रिय प्रकाशनों के अतिरिक्त चित्रों, मनोरंजक लेखों तथा कार्टूनों, नक्काशी इत्यादि को भी प्रयोग में लाने की कोशिश उस दौर में की गयी, जब आधे से ज्यादा फ़्रांसिसी निरक्षर थे। क्रांति के प्रारम्भि दौर के चित्रों में मुख्य उपहास पादरियों व भूस्वामियों का उड़ाया गया। क्रांति काल में चित्रों व नक्काशियों का प्रयोग कुलीनों तथा क्रांति विरोधी प्रेस द्वारा भी किया गया।
इसके अतिरिक्त क्रांति के दशक में जाक रू तथा देमोल जैसे बागियों ने समाचारपत्रों, राजनितिक पत्रों, तथा पोस्टरों को भी राजनितिक कार्टूनों को आवाम तक पहुँचाने का जरिया बनाया। इसमें राजा को बेवकूफ व रानी को भ्रष्ट प्रमाणित करने का प्रयास किया गया। वे करोड़ो लोग जो पढ़ लिख नहीं सकते थे कार्टूनों या मौखिक भाषणों के जरिये ही नए राजनितिक विचारों तथा आलोचनाओं का ग्रहण कर लेते थे। किन्तु 1793 आतंक के काल के बाद अनेकों मुद्रण कार्यालयों को नष्ट किया गया व कई पत्रकारों को गियोतिन का सामना करना पड़ा। मारे गए लेखकों में कई क्रन्तिकारी तथा सुधारवादी भी थे।
फ़्रांसिसी क्रांति के दौरान बढ़ते प्रकाशकों के माध्यम से राजनितिक व्यंग्य व कार्टून रचना ने फ्रांस के शहरी व ग्रामीण समाज में विषिष्ट जगह बना ली थी। साथ ही साहित्य, दर्शन और सामजिक विश्लेषण से भी अधिक सफलता बागी विचारों को आम जन तक पहुँचने में राजनितिक कार्टूनों को हासिल थी। इन प्रकाशनों ने फ्रांस में एक नए युग का प्रारम्भ किय, जिससे फ्रांस की जनता अपने अधिकारों तथा राजनितिक स्थिति के प्रति जागरूक हुई।
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