बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

नवपाषाण काल (Social Formation Ancient World)


नवपाषाण काल

पुरातात्विक शब्दावली में पुरापाषण और मध्यपाषाण युग के बाद नवपाषाण युग का आगमन होता है। यह युग लगभग 12,000 से 2,000 ई•पू• तक फैला है। पौधों को उगाया जाना और पशुओं को पाला जाना तथा खेती पर लगभग पूर्ण निर्भरता, जनसंख्या में वृद्धि, बस्तियों के आकार में वृद्धि, मिट्टी के बर्तनों का उपयोग और कपड़े की बुनाई, व्यापक पैमाने पर होने वाला सामाजिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान नवपाषाण युग की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं। इस युग में कृषि की शुरूआत के क्रांतिकारी महत्व को उजागर करने के लिए विद्वान Vere Gordon Childe ने अपनी पुस्तक Men makes Himself (1936) में 'नवपाषाण क्रांति’ शब्द का इस्तेमाल किया था। उनके अनुसार मनुष्य ने आरंभिक होलोसिन युग की विकट जलवायु संकट को पार करते हुए इस युग की प्रकृति को अपना सहचर बनाया। चाइल्ड के अनुसार आग जलाने की कला सीखने के बाद भोजन उत्पादन मानव इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक क्रांति थी। अब उनके पास भंडार में रखने को अधिशेष भी था जिसे वे अपने मनमर्जी से इस्तेमाल कर सकते थे। इसका इस्तेमाल संकट के समय हो सकता था, यह बड़ी आबादी का पालन पोषण कर सकता था और इसका विनिमय भी किया जा सकता था।


नवपाषाण युग का जनसंख्या पर काफी प्रभाव पड़ा। नवपाषाण युग में लगभग सभी नवपाषाण संस्कृतियों में बस्तियों की संख्या, आकार और कब्रगाहों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। पश्चिम एशिया में 150 प्रारंभिक नवपाषाण स्थल खोजे गए हैं। ये स्थल फलस्तीन इस्राइल, जार्डन घाटी, सीरिया, उत्तर इराक, जागरोस पर्वत और उत्तर-पश्चिम ईरान में स्थित है। प्रारंभिक नवपाषाण बस्तियां पश्चिम एशिया में दो क्षेत्रों फलस्तीन इस्राइल और उत्तर इराक में पाई गई है जिसमे फलस्तीन में पाया गया स्थल जेरिको सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थल है। उत्तर इराक में दो महत्वपूर्ण स्थल जावी चेमी शानीदार और जारमो हैं। दोनों जागरोस पर्वत की तलहटी में स्थित हैं। जावी चेमी शानीदार 11,000 ई•पू• का है। वह शिकारी-संग्राहक की बस्ती थी जब लोग स्थायी जीवन बसर करते थे। वे जंगली पहाड़ी बकरों का शिकार करने के माहिर थे और उन्होंने भेड़ पालना शुरू कर दिया था। जंगली अनाज उनकी खुराक में शामिल थे। इस इलाके में नियमित खाद्यान्न उत्पादन का साक्ष्य अली कोश से मिलता है। उत्तर इराक का यह आवास स्थल 10,000 ई•पू• पुराना है।

जारमो:– जेरिको, जारमो और, क्रीट जैसे द्वीपों की खुदाई में एक ही स्थान पर कई बार बसने के प्रमाण मिले हैं। इससे टीले बनते गए और स्थल के आकार की गोलाई बढ़ती गई। जारमो का नवपाषाण गांव 7000 वर्ष पहले स्थापित हुआ था और लगभग तीन से चार एकड़ में बसा हुआ था। इसमें पक्की मिट्टी के लगभग 24 घर बने हुए थे। जमीन बचाने के लिए और बाढ़ से सुरक्षा के लिए इन्हें एक ही स्थान पर बनाया और मरम्मत किया जाता था। बार-बार एक ही क्षेत्र में बसने के कारण जमीन का स्तर ऊपर उठता चला गया। जारमो में मिट्टी से पुती दीवारों और केयोनु में चूने के पत्थरों से बने रास्ते और पत्थर की दीवारें मिली हैं। ऐसा लगता है कि यह एक बड़ा गांव था जहां एक साथ 150 लोग रहते थे। जारमो में लोगों ने कृषि पर अधिकाधिक गुजारा किया। यहां चौकोर मकान बनाए गए। कृषि के अनुरूप पत्थर के औजार गढ़े गए। वहां हंसिए और अनाज पीसने के पत्थर भी पाए गए हैं।

जेरिको:- यहां नवपाषाण युग की शुरूआत 10,500 वर्ष पहले हुई थी। जेरीको एक अर्ध-स्थायी बस्ती थी जहां शिकारी-संग्राहक समुदाय थोड़ी-बहुत कृषि के जरिए खाद्य पदार्थों का उपयोग करते थे। उन्होंने वहां वृत्ताकार झोंपड़ियां बनाई। बाद में उन झोंपड़ियों की जगह बेहतर ढंग से बने चौकोर मकानों ने ले ली। कुछ मकानों के साथ आंगन जुड़े थे। इतना ही नहीं सुरक्षा के लिए वहां एक लंबी-चौड़ी दीवार भी बनाई गई। यह दीवार वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। साढ़े छह फुट चौड़ी यह दीवार पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़ों से बनाई गई थी। पश्चिम की ओर की दीवार का सिरा अब भी अच्छी हालत में है। वहां उसकी ऊंचाई 12 फुट है। दीवार के अंदर एक बड़ी मीनार बनाई गई थी। मीनार 30 फुट ऊंची है और उसमें बिलकुल ऊपर तक पहुंचने के लिए 30 सीढ़ियां हैं। ये दीवारें क्यों बनाई गई थीं, इसके ठीक-ठीक कारण का तो पता नहीं है परंतु अनुमान लगाया जा सकता है कि सीमित संसाधनों की रक्षा के उद्देश्य से इन्हें बनाया गया होगा। हाल में किए गए भौगौलिक विज्ञान से संकेत मिलता है कि ये दीवारें बाढ़ से रक्षा के लिए बनाई गई थीं।

इतना ही नहीं यहां एक 9 फीट गहरा और 10 फीट चौड़ा एक गड्ढा मिला है जो पत्थर को काट कर बनाया गया है। यहां मृदभांड के इस्तेमाल की शुरुआत प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक विकास है। मृदभांड बनाने के लिए मिट्टी को पानी में गूंथकर उसे एक स्थायी शक्ल दी जाती है। मिट्टी को कोई खास शक्ल देने के बाद उसे आग में पकाया जाता और इस तरह उसकी नमी हटाई जाती थी। जब तक मिट्टी पक नहीं जाती, लगातार उच्च तापक्रम बनाए रखना पड़ता था और उसके लिए भट्टी की जरूरत पड़ती थी। जिरीको के पास सीरिया में अबु हुरेरा और जार्डन में एन गजल से कृषि के साक्ष्य भी मिलते हैं। अबु हुरेरा एक बड़े इलाके लगभग 28 एकड़ में फैला है। जिरीको, अबु हुरेरा और एन गजल के लोगों ने गेहूं और जौ जैसे अनाज उगाने में ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत किया। उन्होंने भेड़ों और बकरियों को भी पालतू बनाया। कृषि के लिए पत्थर के औजार गढ़े गए। उन स्थलों से बड़ी संख्या में हंसिए मिले हैं। अनाजों को पीसने के लिए पत्थर के भारी उपकरण भी इस्तेमाल किए जाते थे। 

कताल हुयुक:- लगभग 8000 से 7000 ई•पू• वर्ष पहले कताल हुयुक की नवपाषाण बस्ती लगभग 32 एकड़ में फैली हुई थी। धूप में सुखाई गई मानक आकार की ईंटों से कई घर बनाए गए थे। घरों की नींव भी कच्ची मिट्टी की ईंटों से बनाई गई थी। घर आयाताकार थे और इनमें एक छोटा सा भंडारगृह भी था। ये घर एक दूसरे से सटे थे। इन्हें आमतौर पर छोटे आंगन अलग करते थे। घर के अंदर आराम करने, खाने और पूजा करने के स्थलों की एक ही तरह की योजना मिलती है। घर में छत से होकर प्रवेश मिलता था जिस पर सीढ़ी लगाकर चढ़ा जा सकता था। बाढ़ और बाहर से आने वालों से सुरक्षा के लिए ऐसा किया गया होगा। 


यूरोप में आरंभ में यूनान में नवपाषाण युग के लोगों ने नौ हजार वर्ष पहले स्थाई जीवन शुरू किया था। वहां घर धूप में सुखाए, मिट्टी के ईंटों, लकड़ी और फूस के बने हुए और रंगे हुए होते थे। चीन में हेनान प्रांत के यांगशाओ की सांस्कृतिक बस्तियों का समय आज से लगभग 7100 से 4900 ई•पू• वर्ष पहले का है। जीवन स्थिर हो चुका था और यहां की बस्तियों का आकार कई हजार से एक लाख और इससे अधिक वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ था। कुछ गांवों में प्रतिरक्षात्मक खाई बनी हुई थी। घर या तो जमीन खोदकर या लकड़ियों से बने हुए थे। घरों के अवशेषों को देखने से यह प्रतीत होता है कि यांगशाओ संस्कृति में घर बनाने की कला उत्कृष्टता पर पहुंच गई थी। करीब 7000 और 6000 ई•पू• के बीच पश्चिम एशिया, दक्षिण यूरोप और उत्तर अफ्रीका के अनेक समुदाय के लिए कृषि मुख्य आजीविका बन गई। नील नदी की घाटी में नवपाषाणी बस्तियां 6500 ई•पू• से बसनी शुरू हुई। दो सबसे मशहूर शुरुआती नवपाषाणी बस्तियां फायुम और मेरिमदे हैं। उन बस्तियों में रहने वाले लोग खेती करते थे लेकिन बड़ी दिक्कतों में जीते थे उनके औजार और मृद्भांड बड़े साधारण थे।

कृषि और पशुपालन:- मानव उस समय कृषि की ओर मुड़े जब उन्हें बीज और पौधों के बीच के संबंध की जानकारी हुई। उन्हें बहुत सावधानीपूर्वक पौधों और पशुओं का अवलोकन करना पड़ता था। उन्हें पूरी जानकारी थी कि साल के किस हिस्से में कौन-कौन से पौधे भोजन के लिए उपलब्ध हैं। वे यह भी जानते थे कि किसी खास पौधे को कहां ढूंढा जाए, किस मौसम में वह पौधा उगता है और उसके उगने के लिए किस तरह की जलवायु उपयुक्त है। 

विद्वान Robert Braidwood ने मानव द्वारा खाद्य-उत्पादन की ओर मुड़ने की व्याख्या सांस्कृतिक संदर्भ में की है। उनकी दलील है कि कृषि कुछ खास क्षेत्रों में विकसित हुई जहां कृषियोग्य पौधे (जंगली अनाज, दालें इत्यादि) और पालतू बनाने योग्य पशु (भेड़, बकरे)भरपूर मात्रा में उपलब्ध थे। मानव उन क्षेत्रों में रहने वाले पौधों और पशुओं से पहले से ही परिचित थे और लंबे समय से उनका दोहन कर रहे थे। जैसे-जैसे अपने प्राकृतिक वास के बारे में उनकी जानकारी बढ़ी उन्होंने जानवरों और पौधों की कुछ खास प्रजातियों को अपने पक्ष में इस्तेमाल करना सीखा। नवपाषाणकाल में अपेक्षाकृत बड़े जानवरों को पालना संभव हुआ। भेड़ और बकरी दो मुख्य जानवर थे जिन्हें पालतू बनाया गया था। भेड़ को करीब 10,500 ई•पू• में पश्चिम एशिया में पालतू बनाया गया। कम उम्र जानवरों और मादाओं को मारा नहीं जाता था। उन्हें बड़ा होने और प्रजनन करने की इजाजत दी जाती थी। कम उम्र भेड़-बकरियों को जीवित रख कर खाद्य आपूर्ति को अधिक स्थिर बनाया गया। स्थिर जीवन शैली से दीर्घकालीन पशुपालन संभव हुआ।

औजार:- पौधों और खाद्य के अन्य संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए औजार के निर्माण में नई प्रौद्योगिकी अपनाई गई। हंसिए जैसे खास काम करने वाले औजार बनाए गए जिसमें छोटे-छोटे दांत बने होते थे और लकड़ी का मूठ लगा होता था। जारमो की हंसिए के ब्लेड धारदार चकमक के बने होते थे। फसल कटाई के समय इन पर लकड़ी या हड्डी की मूठ लगा दी जाती थी। इस इलाके के किसानों ने सबसे पहले लावा कांच के बने औजारों का उपयोग किया। यह एक प्रकार का ज्वालामुखी कांच था जिसकी धार बहुत तेज होती थी और यह पत्थर से भी मजबूत होता था।

कुल्हाड़ी जैसे औजारों की धार को पत्थर पर रगड़कर चिकना किया जाता था क्योंकि लोगों ने यह महसूस कर लिया होगा कि कुल्हाड़ियां जितनी तेज और चमकदार होंगी वे उतनी ही तेजी से पेड़ काटेंगी और बिना चमक वाले औजारों की अपेक्षा ये ज्यादा कारगर सिद्ध होते थे। इन औजारों को पत्थर से घिसकर परतें निकालकर चिकना किया जाता था। चकमक या लावा कांच को नुकीली हड्डी या सख्त लकड़ी पर घिसकर चमकाया जाता था।

मिट्टी के बर्तन और बुनाई:- लोगों ने प्राकृतिक रूप में उपस्थित भौतिक वस्तुओं का सर्वोत्तम उपयोग करना शुरू कर दिया। चिकनी मिट्टी ऐसी ही एक वस्तु थी। फर्श बनाने, खिलौने बनाने और अन्य शिल्प वस्तुओं के निर्माण के लिए इसका उपयोग किया गया। माना जाता है कि चिकनी मिट्टी से बनी गोला, शंकु और चकती जैसी छोटी ज्यामितीय वस्तुओं का उपयोग बदलते मौसम, फसल कटाई आदि की सूचना दर्ज करने के लिए किया जाता था। आग से चिकनी मिट्टी को कड़ा किया जताा था और इससे कटोरा ओर अन्य प्रकार के बर्तन बनाए जाते थे। शिकारी संग्रहकर्ता सामान रखने के लिए चमड़ा, लकड़ी, कद्दू तथा घिया जैसी सब्जियों के खोल का इस्तेमाल करते थे। परंतु इनकी सीमित उपयोगिता थी। इन पर खाना नहीं पकाया जा सकता था। इन बर्तनों में गरी, घास के बीज और अनाज रखा जाता होगा। मिट्टी के बर्तनों को पकाते समय टूटने से बचाने के लिए रेत या जैविक पदार्थ भी मिलाए जाते थे। अधिकांश नवपाषाण समाजों में मिट्टी के बर्तनों और बुनाई का संबंध कृषि के साथ जुड़ा हुआ था। इनके द्वारा उन वस्तुओं का निर्माण किया जाता था जो प्राकृतिक रूप में उपलब्ध नहीं थीं। 

इसके लिए मिट्टी को साफ करना पड़ता था। इसमें भूसा, पत्थर या सीपी के छोटे टुकड़े मिलाने पड़ते थे ताकि आग में पकाते समय इसमें दरार न आए ऐसे बर्तनों को मोड़कर आकार दिया जाता था और गढों में या अविकसित भट्टियों में उच्च तापमान पर पकाकर मजबूती मिलती थी। आरंभ में चिकनी मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाए जाते थे। परंतु छठी सहस्राब्दी ई•पू• में कुम्हार के चाक के ईजाद से पश्चिम एशिया जैसे स्थानों में बेहतरीन बर्तन बनाए जाने लगे। समय के साथ-साथ नवपाषाणयुगीन समुदाय अपने मिट्टी के बर्तनों को अलंकृत करने लगे। शिल्प और आकार में धीरे-धीरे परिवर्तन हुआ। इस प्रकार किसी खास संस्कृति की पहचान और इन संस्कृतियों के तिथि निर्धारण के लिए मिट्टी के बर्तन प्रमुख पहचान बन गए। उदाहरण के लिए अनातोलिया (आधुनिक तुर्की) में कताल हुयुक के आरंभिक बाशिंदों के सेरामिक उत्पादों के कई आकार के बर्तन प्राप्त होते हैं अंडाकार कटोरा, हत्था, मर्तबान और चिकने तल वाला बर्तन।

कई शिकारी-संग्रहकर्ता समाज मिट्टी के बर्तन बनाते थे और पत्थर के औजार भी बनाया करते थे। जबकि कई ऐसे खेतिहर समुदाय भी थे जो इन दोनों में से कुछ भी नहीं करते थे। वादी-ए-नातुफ और दक्षिण पश्चिम एशिया के अन्य स्थानों में रहने वाले कुछ अन्य समुदाय मिलते हैं, जो 11000 ई•पू• में पत्थर के हंसिया, बसूला और कुल्हाड़ी जैसे औजारों का इस्तेमाल किया करते थे साथ ही यह शिकार और मवेशी पालना तथा जंगली गेहूं और जौ की खेती किया करते थे। मेसो-अमेरिका की तेहुकान घाटी में 7000 ई•पू• के आसपास खेती करने के प्रमाण मिलते हैं। वहां 4300 ई•पू• के मिट्टी के बर्तन और 3200 ई•पू• के पत्थर की चिकनी कुल्हाड़ियां मिली हैं। 


जमीन खोदकर बनाए गड्ढों में अनाज सुरक्षित रखा जाता था। फयुम (मिस्र) में 6300 ई•पू• के आसपास के बने गड्ढे मिले हैं जिनमें गेहूं और जौ जैसे अनाज सुरक्षित रखे जाते थे। लोगों के स्थाई रूप से एक स्थान पर बसने के बाद बुनाई जैसे कार्यकलाप भी शुरू हो गए। इसके लिए धागे, ऊन, या रूई जैसे पदार्थों की जरूरत पड़ी। पश्चिम एशिया में बकरी और भेड़ जैसे जानवर पाले जाने से बुनाई और कताई जैसे कार्य शुरू हुए। पशुओं के पालने के परिणामस्वरूप उनके शारीरिक बनावट और खाल आदि में बदलाव होने पर ऐसा हुआ। आरंभ से ही पालतू बनाए गए भेड़ों के बाल लम्बे हुआ करते थे परंतु भेड़ पालन की शुरूआत के बहुत बाद ऊनी कपड़े बनाने की शुरूआत हुई। इससे यह स्पष्ट होता है कि पशुपालकों ने केवल ऊन प्राप्त करने की दृष्टि से जानबूझकर कुछ खास भेड़ों को ही पशुपालन के लिए नहीं चुना। जहां तक इससे संबंधित औजारों का संबंध है इस काल के मनुष्य हड्डी की सुइयां बनाते थे। इसमें जाल बनाने वाली सुइयां, सूआ और मछली मारने के कांटे शामिल है।

इनके बीच उत्पादों का आदान-प्रदान हुआ करता था और मौसम बदलते ही ये अपने जानवरों के साथ अनुकूल मौसम वाले स्थान पर चले जाते थे। अधिशेष बीजों या दूसरी खराब न होने वाली वस्तुओं के बदले बहुमूल्य पत्थरों का विनिमय होता था। उदाहरण के लिए लावाकांच से बने औजार पूरे दक्षिण पश्चिम एशिया में पाए गए हैं। यह लावाकांच बहुत सख्त होता है और इसकी धार बहुत तेज होती है। लगभग 10000 ई•पू• के आसपास शानिदार (ईरान) से लावा कांच के बने औजार मिले हैं। जारमो जैसे स्थलों पर भी ये प्राप्त हुए हैं।

नवपाषाण युग के कताल हुयुक बस्ती में लावा कांच और चकमक दोनों ही प्रकार के पत्थरों का उपयोग छुरा, खुरचनी, आग पत्थर (आग जलाने के लिए) और चाकू बनाने के लिए होता था। विद्वान Gordon Childe के शब्दों में "नवपाषाण क्रांति” ने मनुष्य के अनुभवों के आपस में आदान-प्रदान और बांटने की प्रवृत्ति को तीव्रता प्रदान की"। नवपाषाण युग के आरंभ में ही धातुकर्म की शुरूआत हो चुकी थी। पश्चिम एशिया में 10000 वर्ष पहले से ही तांबे जैसे धातु का उपयोग होने लगा था। हालांकि तांबे ने पत्थर और लावाकांच को पूरी तरह हटाया नहीं। पश्चिम एशिया में तांबा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था। आरंभ में स्थानीय तांबे को पत्त्थर के हथौड़े से पीटकर औजार बनाया जाता था। तांबे से बने साधारण गहनों का पहला प्रमाण जगरोस पहाडियों की शानिदर गुफाओं से प्राप्त होता है। कताल हुयुक की आदिकालीन बस्तियों में तांबे की नलियों और कार्लेनियन मनकों से बने हार मिले हैं। 

नवपाषाण क्रांति के दौरान नए प्रकार के औजारों का आविष्कार हुआ। यहां यह बताना आवश्यक है कि नवपाषाण एक लम्बी और क्रमवार प्रक्रिया है जिसकी शुरुआत लगभग 15700 वर्ष पहले हुई थी, लगभग 12750 वर्ष पहले इसमें तेजी आई और 11000 वर्ष के आसपास पश्चिम एशिया में पेड़ पौधे लगाए जाने और पशु पालने से इसका पूर्ण विकास हुआ। नवपाषाण युग में आमूल सामाजिक परिवर्तन हुआ। मानव समुदाय ने भूमि, श्रम और पूंजी पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए नई व्यवस्था स्थापित की जिससे समाज में विभेद पैदा हुआ। इसके अलावा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जटिलताएं पैदा हुई, तथा सभ्यताओं का निर्माण हुआ।






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