बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

गृहयुद्ध के बाद अमेरिका में श्रमिक संघ की भूमिका

अमेरिका में श्रमिक संघ की भूमिका

गृहयुद्ध के बाद अमेरिका में श्रमिक संघों ने देश के राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अमेरिका में लगभग 32 लाख 50 हज़ार लोग बाहर से आकर बेस। सन् 1880 में शिकागो, न्यूयॉर्क और क्लीवलैंड जैसे शहरों में अधिकांश निवासी आप्रवासी थे। इनमें से अधिकतर लोग मज़दूरी के धंधे में लगे हुए थे। यह लोग अलग अलग प्रजाति के लोग थे और इन सबकी धार्मिक मान्यताएं भी अलग अलग थी, जिसकी वजह से इन मज़दूरों में आपसी एकता का अभाव था। अमेरिका में उस समय आर्थिक परिवर्तन चल रहा था और यह मज़दूर लोग राजनीतिक रूप से संगठित होने में असमर्थ थे। संगठित न होने के कई कारण थे जिनमें से एक जैक्सन के कार्यकाल में गोरे मज़दूरो को मताअधिकार दिया जाना था।


अमेरिका में मज़दूरों को संगठित करने का ज़ो पहला प्रयत्न हुआ वह काम के आठ घंटे वाले दिन को लेकर था। इसका नेतृत्व बोस्टन के एक मशीन चालक ईरा स्टीवर्ट ने किया था। स्टीवर्ट ने माँग की कि मज़दूरों की मज़दूरी में कमी किये बिना उनके काम के घंटे क़ानूनी तौर पर आठ घंटों तक सीमित कर दिए जाए। सन् 1868 में इस माँग को स्वीकार कर लिया गया। सन् 1866 में विल्यम एच. सिल्विस के नेतृत्व में राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना हुई। इस संघ ने न केवल मज़दूरों के काम की परिस्थितियों में सुधार लाने की कोशिश की बल्कि मुद्रा सुधार और समितियों की स्थापना पर भी ज़ोर दिया। किंतु 1869 में सिल्विस की मृत्यु हो जाने से यह संगठन कमज़ोर पड़ गया।

सन् 1869 में युरियाह स्टीफेंस ने “Noble order of the knights of labor” नाम की संस्था की स्थापना की, जल्द ही इस संघ की संख्या काफ़ी बढ़ गई। इस संघ में सभी प्रकार के लोग जिनमे कुशल और अकुशल मज़दूर, पुरुष और स्त्रियाँ, गोरे और काले शामिल थे। इस संस्था ने स्त्रियों और अश्वेतों की सहभागिता पर ज़ोर दिया, स्त्रियों के मताधिकारों की माँग की तथा मज़दूरी में स्त्रियों और पुरुषों के भेदभाव को समाप्त करने पर जोर दिया। इस संघ का प्रमुख उद्देश्य एक सहकारी संस्था की स्थापना करना था जिसमें श्रमिकों के परिश्रम से कमाई गई संपत्ति को समानता के आधार पर श्रमिकों में ही वितरित कर देने का लक्ष्य निर्धारित था।

अमेरिका में सन 1873 में घोर मंदी का दौर आया जिसमें हजारों मजदूरों को काम से हाथ धोना पड़ा। तब मजदूरों ने राजनीतिक शरण में जाने के बजाय सीधी कार्रवाई करने पर ध्यान दिया। रेलमार्ग में काम कर रहे मजदूरों ने हड़ताल कर दी जिसमें कई बार खून खराबा भी हुआ। मैककोर्मिक हार्वेस्टर कंपनी के खिलाफ हड़ताल के दौरान पुलिस के हाथों चार श्रमिक मारे गए। इसके बदले में मजदूरों ने हड़ताल के पक्ष में आयोजित एक मजदूर रैली में बम विस्फोट किया जिसमें एक पुलिसकर्मी की मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद सरकार ने षड्यंत्र विरोधी कानून पारित किया जो श्रमिक संगठनों के खिलाफ थे और उनकी हड़तालो को तोड़ने का कार्य करते थे। इसके बाद जब कभी भी मजदूरो में असंतोष पनपता तो उसे दबाने के लिए राज्य सरकार नागरिक सेवा का सहारा लेने लगी।


इसके अलावा कंपनी के मालिक मजदूरों को दंडित करने के लिए “येलो डॉग कॉन्ट्रैक्ट” जैसे कानूनी तरीकों का उपयोग करते थे जिसके अनुसार किसी मजदूर को श्रमिक संगठन का सदस्य बनने से रोका जाता था। कंपनी मालिकों ने एक नोटिस पत्र जारी कर यह घोषणा कर रखी थी कि जो भी मजदूर संघ के साथ सहानुभूति रखेगा, उसका नाम काली सूची में दर्ज कर लिया जाएगा और जब चाहे उसे नौकरी से निकला दिया जाएगा।

कभी-कभी कंपनियों के मालिक मजदूरों की हड़ताल तुड़वाने के लिए प्रजातिय और धार्मिक भेदभाव का सहारा लिया करते थे “यह आयरिश मजदूर है वह हब्सी मजदूर है” ऐसा प्रचार करके वह मजदूरों के बीच भेदभाव प्रकट कर हड़ताल तुड़वा दिया करते थे। दूसरी और मजदूर संगठन राष्ट्रीय स्तर पर संगठित नहीं थे और न ही उनके पास इतनी धनराशि थी कि वह अधिक दिनों तक बिना काम करें रह सकते थे।

The American Federation of Labour 

सन 1890 तक नाइट्स ऑफ लेबर नामक श्रमिक संगठन लगभग समाप्त हो गया। जिसके बाद 1886 में कोलंबस नगर में एक महासंघ “दी अमेरिकन फेडरेशन ऑफ लेबर” का गठन हुआ। यह संगठन वर्तमान स्थिति को बनाए रखते हुए मजदूरों की स्थिति में सुधार लाना चाहता था। इस महासंघ ने कई मुद्दों को उठाया जिनमें प्रमुख था मजदूरी का मुद्दा, श्रमिकों के काम के लिए अनुकूल परिस्थितियों, नियुक्ताओं के साथ सौदेबाजी का मुद्दा तथा आपातकालीन स्थिति के लिए हितकारी निधि का मुद्दा। 

इस महासंघ ने अपने वार्षिक सम्मेलन में उन प्रस्तावों को रखा जिसे राजनीतिक कार्रवाई के द्वारा ही लागू किया जा सकता था। जिसमें उद्योगों में और खदानों में सुरक्षा की व्यवस्था करना, काम के दौरान घायल श्रमिकों को मुआवजा मिलना, बाल मजदूरी प्रथा को समाप्त करना, समान काम करने के लिए पुरुष और स्त्रियों को समान वेतन मिलना तथा श्रम संबंधी विवादों को निपटाने के लिए एक संस्था नियुक्त करना तथा इन सभी के लिए एक कानून बनाया जाना शामिल था। इन सभी गतिविधियों के चलते यह संघ श्रमिकों की एकता का सबसे बड़ा संघ बन गया। सन 1886 में इस संघ की सदस्य संख्या 1 लाख 40 हजार थी जो बढ़कर 1914 में 20 लाख से अधिक हो गई।

The Industrial Workers of World 

सन 1893 में “दि इंडस्ट्रियल वर्कर्स आफ वर्ल्ड” नामक संगठन की स्थापना की गई। यह संगठन विशेषकर खदानकर्मियों का प्रतिनिधित्व करता था। इस संगठन ने सन 1905 में शिकागो में एक सम्मेलन आयोजित किया जिसमें सभी छोटे मजदूर संगठन एवं समाजवादी मजदूर संगठन शामिल हुए। इस सम्मेलन में प्रस्ताव रखा गया कि औद्योगिक क्षेत्रों जैसे विनिर्माण, खदान, परिवहन, भवन निर्माण, आदि कार्यों में लगे सभी कामगरों का एक बड़ा संघ बनाया जाए।

इस संगठन की संवैधानिक विचारधारा में इस तरह के शब्द अंकित थे- “कामगार वर्ग और नियोक्ता वर्ग में कुछ भी सामान्य नहीं है। जब तक लाखों मजदूर भूखे मरते रहेंगे और अभाव में जीते रहेंगे तब तक शांति की बात करना व्यर्थ है नियोक्ता वर्ग के मुट्ठी भर लोगों को जीवन की सभी सुविधाएं मिली हुई है।” इस संगठन के कुछ लोग पूंजीवाद का शोषण समाप्त कर, उत्पादन के साधनों पर मजदूरों का नियंत्रण चाहते थे। इस संघ ने अश्वेत तथा अकुशल प्रवासी श्रमिको के हित के लिए भी आवाज उठाई।

संघ ने कुछ हड़ताले कार्रवाई जिसका उसे लाभ प्राप्त हुआ। इनमें से एक हड़ताल 1907 में पेंसिलवानिया के स्टील निर्माण से संबंधित मेकिज रॉक्स नामक शहर में हुई, दूसरी हड़ताल 1912 में मैसाचुसेट्स के लॉरेंस मीलों में हुई। न्यूजर्सी के पीटरसन शहर में जो बड़ी हड़ताल हुई उसमें भी इस संघ का हाथ था। जब पीटरसन के मिल मालिकों ने कामगारों के काम में बढ़ोतरी करने का निर्णय किया तो यह हड़ताल भड़क उठी। किंतु कुछ समय बाद यह हड़तालें समाप्त हो गई और कामगार अपने-अपने काम पर लौट गए। आंतरिक मतभेदों के कारण संघ भी विभाजित हो गया। सन 1907 में समाजवादी मजदूर पार्टी को संघ से अलग कर दिया गया। इस संघ के कई सदस्यों को जेल की सजा काटनी पड़ी।

महिला मजदूर:- अमेरिकी मजदूरों की श्रेणी में महिलाओं की संख्या लगभग 50 लाख थी। महिलाओं के कार्य क्षेत्र का दायरा बहुत सीमित था। अधिकतर महिलाएं या तो नौकरानियां थी या साफ सफाई का काम करती थी या मीलों में मजदूरी करती थी। सन् 1909 में न्यूयॉर्क के वस्त्र मिल में इन महिला मजदूरों ने हड़ताल कर दी। इन कामगार महिलाओं पर जबरी छुट्टी का नियम लागू किया जाने लगा। अर्थात जब कारखाने में काम की कमी होती थी तो उन्हें काम से हटा दिया जाता था। सन् 1908 में जब मंदी का दौर आया तो इन कामगारों के वेतन में भी कटौती कर दी गई। उस समय “इंटरनेशनल लेडीज गारमेंट्स वर्कर यूनियन” की स्थापना हुई। सन् 1909 में इसकी एक शाखा खुली जिसका नाम “द लेडिज वर्कर्स यूनियन” रखा गया। इन संगठनों से प्रभावित होकर महिलाओं ने हड़ताल की और जब हड़ताल समाप्त हुई तो स्त्रियों को वेतन, काम के घंटे, काम की परिस्थितियों आदि के बारे में रियायतें मिल गई।


इस हड़ताल से यह भी सिद्ध हो गया कि अमीरों और कामगार महिलाओं के बीच लिंग भेद को भुलाकर समझौता किया जा सकता है। इन संगठनों ने विभिन्न प्रकार के व्यवसाय और उद्योगों में काम कर रही महिलाओं को संगठित करने का कार्य किया। इसके अलावा महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए।

विफलताएं:- श्रमिक संघों को कंपनी मालिकों, सरकारी बलों और निजी सुरक्षा एजेंसियों से हिंसक दमन का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर मौतें और संघ की संपत्ति को नुकसान पहुंचता था। श्रमिक संघ अक्सर विचारधारा, नस्लीय और जातीय आधार पर विभाजित रहते थे, जिसने उनकी सामूहिक शक्ति और सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता को कमजोर कर दिया। सरकार द्वारा संघविरोधी कानून लागू किए गए जिसने श्रमिक संघों के संगठन और हड़ताल करने की क्षमता को प्रतिबंधित किया। इससे श्रमिकों के अधिकारों की वकालत करने में उनका प्रभाव सीमित हो गया। कुछ श्रमिक संघों ने अफ्रीकी, अमेरिकियों, अप्रवासियों और अन्य हाशिए के समूहों को सदस्यता से बाहर रखा, जिससे उन्हें संघ की वकालत से लाभ उठाने का अवसर नहीं मिल पाया।

कुल मिलाकर, गृहयुद्ध के बाद अमेरिका में श्रमिक संघों ने देश के श्रम कानूनों को आकार देने और लाखों श्रमिकों के लिए कामकाजी परिस्थितियों में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जबकि उन्होंने महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना किया, उनके प्रयासों ने महत्वपूर्ण विधायी और सामाजिक परिवर्तनों में योगदान दिया जो आज भी अमेरिकी श्रमिकों को प्रभावित करते हैं।







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