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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

नाजीवाद की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक विशेषताएं

प्रश्न:- नाजीवाद की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। परिचय:- 30 जनवरी 1933 को एडोल्फ हिटलर को जर्मनी का चांसलर नियुक्त किया गया। हिटलर का चांसलर नियुक्त होना एक संवैधानिक कार्य था। उसको संवैधानिक और कानूनी तरीके से चांसलर के पद पर नियुक्त किया गया। चांसलर की पदवी संभालने के बाद तेजी से हिटलर ने सत्ता अपने हाथ में केंद्रित कर ली। अगस्त 1934 में हिंडनबर्ग की मृत्यु के बाद उसने राष्ट्रपति और चांसलर की पदवी एक कर ली और खुद को "फयूरर" कहलवाया। बहुत तेजी के साथ हिटलर और उसके साथियों ने कुछ ऐसे कदम उठाए और कुछ ऐसी नीतियां लागू की कि जर्मनी में प्रजातंत्र अधिनायकवाद में परिवर्तित हो गया। हिटलर ने अपने समस्त विरोधियों को कुचलना आरंभ कर दिया। यहूदियों पर हिटलर ने अत्यधिक अत्याचार किए। नागरिक स्वतंत्रता छीन ली गई। प्रेस, रेडियो, भाषण, स्कूल एवं विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई। समस्त सामाजिक एवं आर्थिक क्रियाकलापों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। विचारों की अभिव्यक्ति पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। जर्मनी के प्रत्येक नगर में गुप्तचरो का जाल बिछाया गया। इन सब ग...

1917 की रूस की क्रांति का विस्तार से वर्णन

प्रश्न:- 1917 की रूस की क्रांति का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- 1917 की रूसी क्रांति बीसवीं सदी की उन महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है जिन्होंने विश्व को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया। इसमें सिर्फ राजनीतिक में ही नहीं सामाजिक- सांस्कृतिक और वैचारिक रूप में भी बदलाव की प्रक्रिया शुरू की।1789 की फ्रांसीसी राज्य क्रांति के बाद यह एक महत्वपूर्ण घटना थी। 1917 में रूस में दो क्रांतियां हुई। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि एक ही क्रांति दो चरणों में पूर्ण हुई। फरवरी-मार्च में हुई राजनीतिक क्रांति के द्वारा रूस में जारशाही का अंत हुआ और अक्टूबर-नवंबर में हुई सामाजिक क्रांति से सर्वहारा गणतंत्र की स्थापना हुई। 1917 की फरवरी क्रांति से पूर्व 1905 में भी रूस में क्रांति हुई जिसे इतिहासकार अक्टूबर की क्रांति का "ड्रेस रिहर्सल" मानते हैं। 1905 की क्रांति तक रूस में राजनीतिक दल और मजदूर संघ जैसे संस्थाओं का अभाव था। रूस में क्रांति से पूर्व उच्च तथा निम्न वर्ग के बीच अत्यधिक सामाजिक और आर्थिक भिन्नता थी। राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर कुलीनों तथा पूंजीपतियों का ही अधिकार था। किसानों की स्...

साम्राज्यवाद पूंजीवाद का उच्चतम चरण है।

प्रश्न:- साम्राज्यवाद पूंजीवाद का उच्चतम चरण है। प्रथम विश्व युद्ध की उत्पत्ति को समझने के लिए इस कथन का उपयोग किस सीमा तक किया जा सकता है? परिचय:- साम्राज्यवाद से तात्पर्य उस साम्राज्य से है जिसका उदय पूंजीवाद के युग में हुआ। साम्राज्यवाद उस पूंजीवादी प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जिसके द्वारा पूंजीवादी देश विश्व के उन देशों पर जो पूंजीवादी नहीं है, अपना अधिपत्य स्थापित करते हैं। विद्वान इसकी व्याख्या के विषय में एकमत नहीं है। 19वीं सदी के अंत तक बीसवीं सदी के शुरू में पूंजीवाद अपनी उन्नति के शिखर पर पहुंच चुका था। पूंजीवादी व्यवस्था में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली औद्योगिक एवं बैंकिंग संगठनों का निर्माण हुआ। उन्होंने पूंजीवाद व्यवस्था के मूलभूत ढांचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर दिए। अर्थव्यवस्था में ठोस परिवर्तनों के साथ ही पूंजीवादी राष्ट्रों के शासक वर्ग की राजनीति में परिवर्तन आए। इस प्रकार पूंजीवादी व्यवस्था अपने विकास की एक नई व्यवस्था में ढल गई। इसे ही "साम्राज्यवाद" कहते हैं। इसके फलस्वरुप उपनिवेशों की छीना-झपटी होने लगी और युद्धों के द्वारा ही यह उपनिवेश प्राप्त ...

डॉ. बी. आर. अंबेडकर द्वारा दलितों के मुद्दे को उजागर करना

प्रश्न:- आधुनिक भारत में दलितों के मुद्दों को डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने किस प्रकार उजागर किया? परिचय:- दलितों के मसीहा और भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर आधुनिक भारत के राजनीतिक विचारक होने के साथ-साथ प्रख्यात विद्वान, विशिष्ट शिक्षाविद, निपुण राजनेता, प्रभावशाली वक्ता, संविधान विशेषज्ञ तथा दलितों के समर्थक थे। अंबेडकर स्वभाव से विवेकशील, व्यंग्यात्मक और तार्किक थे। अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जो एक अस्पृश्य जाती मानी जाती थी। बचपन से ही अंबेडकर कुशल और बुद्धिमान छात्र थे। बड़ौदा के महाराज गायकवाड़ द्वारा दी गई छात्रवृत्ति से अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर और फिर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से पी.एच.डी की उपाधि ली। 1923 में उन्होंने भारत में वकालत शुरू की तथा साथ ही अपना पूरा जीवन जातिप्रथा के विरोध और अछूत मानी जाने वाली जातियों के उत्थान में लगा दिया। इस प्रक्रिया में उन्होंने कई संगठन बनाए जैसे बहिष्कृत हितकारिणी सभा, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी, और अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ, आदि। अपने संदेश को जनता तक पहुंचाने के लिए कई समाच...

"धन का निष्कासन"

प्रश्न:- औपनिवेशिक भारत में "धन के निष्कासन" के सिद्धांत का वर्णन कीजिए। परिचय:- धन के निष्कासन से तात्पर्य भारतीय राष्ट्रीय संपदा का एक बड़ा भाग इंग्लैंड में निर्यात करने से है, जिसके बदले भारत को कोई आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा था। इस सिद्धांत को सर्वप्रथम "दादा भाई नौरोजी" ने अपनी पुस्तक "पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया(1876)" में संकलित किया। नौरोजी के सिद्धांत का समर्थन "रमेशचंद्र दत्त" ने भी अपनी पुस्तक में किया है। "रजनी पाम दत्त" ने निकासी की इस पूरी प्रक्रिया को समझाने के लिए इसे तीन चरणों में विभाजित किया है। जिसे उपनिवेशवाद का तीन चरण कहा गया है। भारत में मौजूद सभी संसाधनों का उपयोग ब्रिटेन द्वारा उनके विकास के लिए किया जा रहा था। इसके अलावा विभिन्न अन्य सेवाओं के लिए भारत अंग्रेजों को भारी भुगतान कर रहा था। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की नकदी द्वारा भारत से सामान खरीदती और उसे ब्रिटेन में व्यापार के लिए भेज देती थी। ब्रिटिश कंपनी ने भारत में कृषि का वाणिज्यकीकरण किया। यह लोग भारत में उगाई गई अफीम का निर्यात चीन को कर रहे थे। बदले...

फासीवादी इटली की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक विशेषताएं

प्रश्न:- फासीवादी इटली की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। परिचय:- 1922 में सत्ता में आने वाला बेनिटो मुसोलिनी पहला तानाशाह था। 1925 तक तानाशाही लागू करने वाले फासीवादी पार्टियां 40 से भी अधिक राष्ट्रों में फैल चुकी थी। महायुद्ध के कारण इटली को जन-धन की अपार हानि हुई थी, जिसकी वजह से उसके ऊपर कर्ज का भारी बोझ लाद दिया गया। इटली ने युद्ध में विशाल धनराशि लगाई। वह युद्ध में लाभ अर्जित करने के लिए शामिल हुआ, लेकिन उसे घोर निराशा मिली। आर्थिक संकट के कारण इटली में अराजकता फैलने लगी। वहीं दूसरी तरफ वहां की सरकार हाथ पर हाथ धरे चुपचाप बैठी हुई थी। इसी परिस्थितियों में इटली में एक ऐसी पार्टी का जन्म हुआ, जिसने इटली के शासन के स्वरूप को बदल दिया। यह पार्टी "फासिस्ट" कहलाती थी और इसके समर्थक फासीवादी। फासीवादी जिस भी बात अथवा व्यवस्था के विरुद्ध होते थे वह उसकी भर्त्सना कर अपनी पहचान करा देते थे। वह स्वयं को एक नई सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्था के निर्माता के रूप में देखा करते थे। इनका आधार राष्ट्र की सेवा हुआ करता था। यह एक अधिक शक्तिशाली राष्ट्र चाहते थे, जो विजय...

अमेरिका के गृह युद्ध के कारण एवं परिणाम

प्रश्न:- अमेरिका के गृह युद्ध के कारण एवं परिणाम का वर्णन कीजिए। परिचय:- अमेरिका ने 1763 से 1793 के बीच तीन दशकों में अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। फलस्वरुप 4 जुलाई 1776 को अमेरिका के 13 उपनिवेशों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। स्वतंत्रता की घोषणा ने सभी उपनिवेशों को स्वतंत्र राज्य घोषित किया। अमेरिका के संविधान में यह घोषणा की गई थी कि "सब मनुष्य जन्म से बराबर है" किंतु यह बात गौरे लोगों पर लागू होती थी कालो पर नहीं। स्वतंत्रता की घोषणा के बाद भी काले लोगों की स्थिति दास जैसी बनी रही। इन काले लोगों को स्वतंत्रता के अधिकार दिलाने के लिए अमेरिका के उत्तरी तथा दक्षिणी राज्यों के बीच 4 वर्ष तक संघर्ष चला। अमेरिका के इतिहास में इसे गृह-युद्ध के नाम से पुकारा जाता है। इस संघर्ष के अंत में अब्राहम लिंकन के प्रयासों के कारण 1863 में दास प्रथा की समाप्ति की घोषणा की गई। लिंकन ने यथार्थ रूप में संयुक्त राष्ट्र का निर्माण किया। इसके अलावा संघ के राज्यों में भी आपसी द्वेष की भावना व्याप्त थी। भौगोलिक और आर्थिक दृष्टि से भी संघ के सदस्यों में असमानता थी। उत्तरी राज्य जहां साधन ...