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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन

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बुकर टी. वाशिंगटन और नागरिक अधिकार आंदोलन अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन (1955-1968) का उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के खिलाफ नस्लिय भेदभाव को गैर कानूनी घोषित करना और दक्षिण अमेरिका में मतदान अधिकार को पुन: स्थापित करना था। गृहयुद्ध के बाद अश्वेतों को गुलामी से मुक्त कर दिया गया था लेकिन उसके बावजूद भी उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। पुनर्निर्माण और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच अश्वेतों की स्थिति ओर खराब हो गई। इस दौरान बुकर टी. वाशिंगटन इनके लिए एक प्रभावशाली नेता बनकर उभरे। वाशिंगटन ने अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा और औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ताकि वह आर्थिक रूप से संपन्न और कुशल बन सके। पृषठभूमि दक्षिण अमेरिका में अश्वेतों ने संघर्ष कर अपने आपको दासता मुक्त कराया। अश्वेतों ने अपनी संस्थाएं बनाई जिससे अश्वेत राष्ट्रवाद का उदय हुआ। नेशनल नीग्रो कन्वेंशन जैसे कई नीग्रो संगठन बने। गृहयुद्ध के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं के बीच कट्टरपंथी विचारों का विकास हुआ। बिशप एम. टर्नर, मार्टिन आर. डेलानी और अलेक्ज़ेंडर क्रूमेल ने अश्वेतों के लिए एक स्वायत्त राज्य की...

भारत के विभाजन के राजनीतिक घटनाक्रम

प्रश्न:- 1940 के दशक के राजनीतिक घटनाओं का वर्णन कीजिए जिसने भारत के विभाजन को अनिवार्य बना दिया। परिचय:- भारतीय लोगों को अंग्रेजों से सत्ता प्राप्त करने में हिंदू-मुस्लिम विभाजन में बाधा उत्पन्न की। सांप्रदायिकता के आधार पर होने वाले दंगों ने भारत के विभाजन को स्पष्ट कर दिया। 1940 के लाहौर प्रस्ताव ने भारत के मुसलमानों को एक "राष्ट्र" बना दिया और जिन्ना को उनका नेतृत्व प्रदान किया गया। केंद्र में हिंदुओं की बराबरी करने के लिए जिन्ना ने मुस्लिम लीग में मुसलमानों के हित के लिए अपनी मांगे शामिल की। लीग की इन मांगों को स्वीकार नहीं किया गया। भारत के विभाजन में अंग्रेजों की नीतियां भी जिम्मेदार थी। कांग्रेस ने जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो अंग्रेजों ने अपने आपको भारत में जमाए रखने के लिए जिन्ना और मुस्लिम लीग का समर्थन प्राप्त किया। "चर्चिल" ने खुले तौर पर हिंदू-मुस्लिम टकराव को भारत में अंग्रेजी राज के लिए आवश्यक माना। इसके अलावा किसी एक समुदाय विशेष के हित के लिए स्थापित किए गए संगठनों ने भी विभाजन को अनिवार्य बना दिया।  सबसे पहले "पाकिस्तान" का विचार मो...

भारत में वामपंथ का उदय और विकास

प्रश्न:- भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वामपंथी आंदोलन का वर्णन कीजिए। परिचय:- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में वामपंथी राजनीति का उदय प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुआ। इस समय से 1947 तक का काल वामपंथी और राजनीति आंदोलन दोनों के ही विकास में एक बहुत महत्वपूर्ण समय था। वामपंथियों ने श्रमजीवीयों एवं किसानों की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को उभारने पर बल दिया और इस प्रकार राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के स्वरूप में परिवर्तन का प्रयत्न किया। वामपंथी आंदोलन के उदय और विकास की प्रक्रिया निर्बाध नहीं थी क्योंकि इसे प्रारंभ से ही ब्रिटिश सरकार के रोष का सामना करना पड़ा। अत: अक्सर इसे गुप्त रूप से कार्य करना पड़ता था। वामपंथियों ने पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध आम लोगों को जागरूक किया। परिणाम स्वरूप गांधीजी के राष्ट्रीय आंदोलन में कृषक और श्रमिक दोनों ही सम्मिलित हो गए। इस नए नेतृत्व में समाजवाद का प्रसार करना आसान हो गया। यह लोग कार्ल मार्क्स के क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित थे और उन्होंने स्वयं देखा कि रूस में किस प्रकार साम्यवादी सरकार अस्तित्व में आई। भारत में मुंबई, कोलकाता, कानपुर, लाहौर ...

रूस की प्रबुद्धवादी निरंकुश शासक "कैथरीन"

प्रश्न:- यूरोप में प्रबुद्ध निरंकुश शासक की व्याख्या रूस की कैथरीन महान की नीतियों के संदर्भ में कीजिए। परिचय:- प्रबुद्धवादी विचारक डेनिस दीदरो के अनुसार प्रबुद्ध निरंकुश शासक प्रबुद्धवाद के विचारों के आधार पर प्रशासनिक ढांचे में सुधार करने और नीतियां बनाने के लिए इन नए विचारों को लागू करते थे, वे प्रबुद्ध निरंकुश शासक थे। यह शासक देश के भीतर अराजकता को नियंत्रित करने और विदेशी खतरों से सुरक्षा मुहैया कराने के लिए अपनी सरकारों को मजबूत करना चाहते थे। यह शासक कुलीन वर्ग की दखलअंदाजी को रोकना और नियंत्रित करना चाहते थे। साथ ही वह कभी नहीं चाहते थे कि लोकतंत्र को बढ़ावा दिया जाए या सरकार में लोगों की भागीदारी हो। इस तरह की नीति का अनुसरण रूस की रानी कैथरीन ने किया। वाल्तेर के अनुसार प्रबुद्ध शासक की उपाधि की सर्वश्रेष्ठ दावेदार रूस की कैथरीन द्वितीय थी। वह रूस साम्राज्य की सबसे शक्तिशाली और सक्षम शासक साबित हुई। उनमें समझदारी, व्यवहारिकता, कल्पना और महत्त्वकांक्षा जैसे गुण मौजूद थे। 1745 में कैथरीन ने रूस के पीटर तृतीय के साथ शादी की। विवाह के बाद उन्हें पता चला कि उनका पति उसके विरुद्ध ह...

यूरोप में वाणिज्यवाद का विकास, इंग्लैंड और फ्रांस

प्रश्न:- यूरोप में वाणिज्यवाद के विकास का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- 15वीं सदी के अंत में नए व्यापारिक मार्गों और साम्राज्यों की खोज से व्यापार की मात्रा बढ़ने लगी। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय नौपरिवहन का विस्तार हुआ। नई दुनिया से बड़ी मात्रा में सोने और चांदी के आयात से यूरोपीय राज्यों और यहां के लोगों की किस्मत बदलने लगी। इसका राज्य की नीतियों पर प्रभाव पड़ा। राज्य की आर्थिक ताकत बढ़ाने और नीतियों के मिश्रण को वाणिज्यवाद कहा गया। इसमें व्यावसायिक संबंध पर आधारित संस्थाओं और व्यापार संघ को महत्व दिया जाने लगा। वाणिज्यवाद में राज्य की अर्थव्यवस्था को सरकार द्वारा प्रोत्साहन और संरक्षण दिया जाने लगा। राज्य की शक्ति उसके धन पर निर्भर करती है जिसे सोने और चांदी जैसे बहुमूल्य धातु में व्यक्त किया जा सकता है। बहुमूल्य धातु जैसे सोना- चांदी यूरोपीय वाणिज्यवाद का सबसे महत्वपूर्ण श्रोत था। नए प्रदेशों की खोज से सोने- चांदी का महत्व काफी बढ़ गया था। वाणिज्यवाद में खान, विनिर्माण और उद्योग पर सभी राज्यों में जोर दिया जाने लगा। जरूरत की सभी वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा और निर्यात के लिए इन...

अमेरिका की क्रांति का विस्तार से वर्णन

प्रश्न:- अमेरिका की क्रांति का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- अमेरिकी क्रांति उपनिवेशों तथा ग्रेट ब्रिटेन में नई विचारधाराओं के विकास के कारण हुई थी। ब्रिटिश सरकार ने अमेरिका में अपने कुछ उपनिवेश स्थापित कर लिए थे। अमेरिका ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत अधीनता की स्थिति स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। दूसरी ओर 1763 के बाद से ब्रिटिश सरकारों ने ऐसी नीतियां अपनाई जिनका लक्ष्य उपनिवेशों पर पहले की अपेक्षा अधिक कड़ा नियंत्रण स्थापित करना था। 18 वीं सदी के मध्यकाल में उपनिवेशों ने जो उन्नति की थी उसने अमेरिका के मन में आत्मविश्वास की भावना पैदा की। अनेक अमेरिकी यह समझने लगे कि वह अपनी जीवन शैली का विकास कर सकते हैं और अपनी नियति का स्वयं संचालन कर सकते हैं। शुरुआत में अमेरिका ब्रिटेन के साथ राजनीतिक संबंध समाप्त करना नहीं चाहते थे। वे ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत बने रहना चाहते थे। लेकिन "बेंजामिन फ्रैंकलिन" जैसे कुछ लोग स्वशासन का स्वप्न देखने लगे। कुछ महत्वाकांक्षी लोग इस नई भावना से प्रभावित होने लगे। जैसे दक्षिण उपनिवेशों के बागान मालिक ब्रिटिश व्यापारियों के ऋण से छुटकारा प...

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के कारक

प्रश्न:- इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति की उत्पत्ति के कारको का वर्णन कीजिए। परिचय:- 18 वीं सदी के उत्तरार्ध में अंग्रेजी अर्थव्यवस्था तेजी से बदलने लगी। परिणामस्वरूप कारखानों के स्वरूप वाला औद्योगिकरण हुआ जिसमें कामगार दिहाड़ी मजदूर की तरह एक ही स्थान पर काम करते थे। 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति के परिणामस्वरूप इंग्लैंड में सर्वप्रथम सामंत वर्ग की अवधारणा से मध्यम वर्ग का उदय हुआ। ये मध्यम वर्ग के उद्योगपति और व्यापारी ही थे जिन्होंने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति को सफल बनाया। औपनिवेशिक क्षेत्रों के शोषण व दास व्यापार से पर्याप्त पूंजी उपलब्ध हो सकी। कृषि क्रांति से छोटे कृषक स्वतंत्र मजदूर में परिवर्तित हो गए जिससे सस्ता श्रम उपलब्ध हुआ। तकनीकी व वैज्ञानिक क्षेत्र में व्यापक विकास एवं नए-नए आविष्कार, जैसे- वाष्प इंजन, फ्लाइंग शटल, स्पिनिंग जेनी आदि ने औद्योगिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। लोहा, कोयला व अन्य प्राकृतिक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता ने भी इसमें योगदान दिया।  इंग्लैंड में ही औद्योगिक क्रांति होने का मुख्य कारण वहाँ पर तकनीकों व नवीन व्यापार प्रणालियों का मध्यम वर्ग द्...

यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति की शुरुआत

प्रश्न:- यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- 17 वी सदी में ब्रह्मांड के बारे में मनुष्य की समझ में बहुत बड़ा परिवर्तन आया। एक नया बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ। सदियों पुरानी पृथ्वी केंद्रित अवधारणा का स्थान अब सूर्य केंद्रित अवधारणा ने ले लिया। अब पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने वाले कई ग्रहों में से एक ग्रह माना जाने लगा। यह पता चला कि सूर्य भी लाखों तारों में से एक तारा है। इसके साथ ही यूरोप में नैतिक और धार्मिक मामलों तथा प्रकृति के बारे में मनुष्य के विचारों पर पुनर्विचार किया जाने लगा। जिस प्रक्रिया के द्वारा ब्रह्मांड के बारे में नए नजरिए और विज्ञान के ज्ञान की स्थापना हुई उसे वैज्ञानिक क्रांति कहा जाता है। प्राकृतिक घटनाओं का परीक्षण तथा प्रयोग और निष्कर्ष के आधार पर नियमों या सिद्धांतों का निर्माण वैज्ञानिक क्रांति की प्रमुख विशेषता थी। आधुनिक विश्व के निर्माण में 17वीं सदी के वैज्ञानिक और बौद्धिक परिवर्तन बहुत अहम थे। इस सदी में वैज्ञानिक ज्ञान और खोज में बहुत तेजी से वृद्धि होने लगी। जे.डी. बर्नाल के अनुसार वैज्ञानिक क्रांति की अवधि को तीन चरणों मे...

इंग्लैंड की क्रांति,अंग्रेजी क्रांति ,गौरवपूर्ण क्रांति!

प्रश्न:- इंग्लैंड की क्रांति का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- 1603 में एलिजाबेथ की मृत्यु के पश्चात इंग्लैंड कि सत्ता का हस्तांतरण स्टुअर्ट वंश के हाथों में हुआ। पहले स्टुअर्ट राजा जेम्स प्रथम थे। वह पहले से ही स्कॉटलैंड के शासक थे। जेम्स ने पाया कि इंग्लैंड की सांसद को जिस तरह ट्यूडर राजाओं ने चलाया था उस तरह इसे चलाना बहुत कठिन है। चार दशकों तक जेम्स प्रथम (1603-25) और चार्ल्स प्रथम(1625-49) को राज्यों के मामले में तनाव का सामना करना पड़ा। उनके शासनकाल में 1642 में इंग्लैंड में गृहयुद्ध छिड़ गया जो 1649 तक चला। चार्ल्स प्रथम की हार हुई और उन्हें फांसी दे दी गई। इतिहासकारों ने इस अवधि को क्रांति काल कहा है। विद्वानों और इतिहासकारों ने इसमें गहरी दिलचस्पी ली है और इसके कारणों और प्रकृति पर आज भी बहस जारी है। आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों के कारण इस दौरान इंग्लैंड का सामाजिक वातावरण बहुत तेजी से बदल रहा था। इस क्रांति का प्रमुख कारण राजा और संसद के बीच कुछ प्रमुख मुद्दों को लेकर असहमति थी। यह असहमति कराधान, राज्य के विशेषाधिकार, धार्मिक और विदेश नीति को लेकर थी। जेम्स ने अप...

यूरोप में सत्रहवी सदी का संकट

प्रश्न:- यूरोप के विभिन्न भागों में सत्रहवीं शताब्दी में आए संकट का वर्णन कीजिए। परिचय:- पंद्रहवी शताब्दी में यूरोप का जो व्यापारिक विस्तार हुआ था वह सत्रहवी शताब्दी की शुरआत में यूरोप के कई भागों में समाप्त हो गया। कुछ क्षेत्रों में विकास की गति धीमी पड़ गई, कहीं उसमें ठहराव आया और कई क्षेत्रों में इसमें निरंतर गिरावट आने लगी। आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बदलने लगा। इतावली राज्य तेजी से पतन की ओर बढ़ने लगा। कृषि क्षेत्र के अभाव का वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। यूरोप के कई हिस्सों में विद्रोह, संघर्ष और युद्ध जैसी परिस्थितियां देखी गई। इस संकट का सबसे ज्यादा प्रभाव भूमध्यसागरीय राज्यों पर पड़ा। इतिहासकारों ने इस संकट की उत्पति की अलग अलग व्याख्या की है। इस संकट की तारीख और तीव्रता अलग - अलग क्षेत्रों में अलग - अलग थी। इस संकट के कारण जनसंख्या में भारी कमी, आर्थिक मंदी और सामाजिक तनाव और विनाशकारी युद्ध हुए। जनसांख्यिकी संकट:- इस काल में जनसंख्या में भरी गिरावट आई। कुछ भागो में जनसंख्या वृद्धि रुक सी गई, जबकि अन्य क्षेत्रों में वृद्धि की दर कम हो गई। "पीट...

अकबर की भू - राजस्व के लिए अपनाई गई विधियां

प्रश्न:- अकबर के शासनकाल में भू-कर निर्धारण पद्धति का वर्णन कीजिए। परिचय:- गुजरात विजय के बाद अकबर ने प्रशासनिक समस्याओं पर ध्यान दिया। मालगुजारी प्रशासन की व्यवस्था अकबर के सामने मौजूद सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं में से एक थी। शेरशाह ने ऐसी व्यवस्था बनाई थी, जिसमें कृषि क्षेत्र की पैमाइश की जाती थी और फसल दर तय की जाती थी, जिसके आधार पर किसान को भूमि की उत्पादकता के आधार पर मालगुजारी देनी पड़ते थी। अकबर ने शेरशाह वाली व्यवस्था को अपनाया। किंतु कर निर्धारण सूची में अक्सर देरी हो जाती थी और किसानों को कष्ट पहुंचता था, क्योंकि निर्धारित मूल्य राजधानी में प्रचलित मूल्य होते थे और देहातों वाले मूल्यों से अधिक होते थे। इसलिए किसानों को अपनी उपज का अधिक भाग देना पड़ता था। इस समस्या से निपटने के लिए अकबर ने पहले वार्षिक आकलन की व्यवस्था अपनाई। प्रशासन से जुड़े लोगों को, जो पुश्तैनी भूस्वामी और स्थानीय दशाओं से सुपरिचित अधिकारी होते थे, वास्तविक उपज, स्थानीय मूल्य आदि की सूचना देने का आदेश दिया गया। किंतु बहुत से अधिकारी बेईमान थे और वह वास्तविक उपज को छुपाते थे। वार्षिक आकलन के कारण किसानों को ब...

शेरशाह सूरी द्वारा किए गए सुधार

प्रश्न:- शेरशाह सूरी द्वारा किए गए सुधारों का विस्तार से वर्णन कीजिए। परिचय:- साम्राज्य के कोने-कोने में कानून और व्यवस्था की पुनर्स्थापना शेरशाह के सबसे महत्वपूर्ण योगदान में से एक है। इसलिए इसके शासनकाल को दिल्ली सल्तनत का चरमोत्कर्ष कहा जाता है। उसने डाकूओं का दमन किया और उन जमीदारों का भी, जिन्होंने मालगुजारी देने से मना कर दिया था। शेरशाह के इतिहासकार "अब्बास खान सरवानी" का कहना है कि जमीदार इस कदर डर गए कि उनमें से कोई भी उसके खिलाफ बगावत करने या अपने इलाके से गुजर रहे यात्रियों को सताने का साहस नहीं कर सकता था। शेरशाह ने अपने साम्राज्य में व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने तथा संचार व्यवस्था को सुधारने पर बहुत ध्यान दिया। सिंधु नदी से लेकर बंगाल जाने वाली पुरानी सड़क की उसने मरम्मत कराई और आगरा से जोधपुर और चित्तौड़ तक एक सड़क बनवाई। उसने लाहौर से मुल्तान तक एक तीसरी सड़क बनवाई। यात्रियों की सुविधा के लिए सड़क के किनारे हर दो 2 कोस (8 कि.मी) पर एक सराय का निर्माण करवाया। सराय एक किलेबंद आवास होती थी जहां यात्री रात गुजार सकते थे और अपने सामान को सुरक्षित भी रखवा सकते थ...

कबीर और नानक का सामाजिक सुधार

प्रश्न:- कबीर व नानक के सामाजिक विचारों के सामाजिक संदर्भ का परीक्षण कीजिए। परिचय:- 14वीं तथा 15वीं शताब्दी में जनसामान्य की आस्था और भक्ति के भीतर से एक व्यापक आंदोलन उठ खड़ा हुआ जो सिंध, गुजरात तथा महाराष्ट्र से लेकर बंगाल, असम और उड़ीसा तक फैल गया। भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक जीवन में यही आंदोलन भक्ति-आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इन आंदोलनों ने संतों के एक नए वर्ग को जन्म दिया जिसके अगुवा कबीरदास कहे जाते हैं। इनमें रामानंद, नामदेव, कबीर, नानक, रविदास, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु के नाम प्रमुख है। इन संत भक्तों में से अधिकांश समाज की छोटी जातियों से आए थे। इन्होंने मुस्लिम सूफियों के सिद्धांतों को अपने बहुत निकट पाया। परिणाम यह हुआ कि इन संतों और सूफियों के बीच मेलजोल काफी बढ़ता गया और भेदभाव की दीवार को ढहना पड़ा। मध्यकाल में भक्ति आंदोलन विराट जन आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ। इन आंदोलनों में कबीर और नानक ने भी अपना प्रमुख योगदान दिया। कबीर:- मध्ययुग में कबीरदास की साहित्यिक एवं ऐतिहासिक देन स्मरणीय है। वे मात्र भक्त ही नहीं, बड़े समाज सुधारक थे। उन्होंने इस समाज में व्याप्त कुरीतिय...

जियाउद्दीन बरनी और उनकी रचना तारीख-ए-फिरोजशाही

प्रश्न:- जियाउद्दीन बरनी के इतिहास के सिद्धांत के विशिष्ट तत्वों को उजागर कीजिए और तारीख-ए-फिरोजशाही का सल्तनत काल के स्रोत के रूप में मूल्यांकन कीजिए। परिचय:- बरनी का जन्म सन 1284 या 1285 में हुआ था। उनकी दो महत्वपूर्ण कृति "तारीख-ए-फिरोजशाही" तथा "फतवा-ए-जहांदारी" है। वह स्वयं हमें बताते हैं कि, यह कृतियां उन्होंने दूसरों की सहायता के लिए लिखी थी। उनका बचपन शाही राजधानी के नजदीक बीता और उन्हें बहुत अच्छी शिक्षा मिले। अपनी कृतियों में उन्होंने 46 विद्वानों का उल्लेख किया है जिनसे उन्होंने शिक्षा पाई। एक विद्वान के रूप में उन्हें जो प्रशिक्षण मिला था वह उनके धार्मिक राजनीतिक दृष्टिकोण को निर्धारित करता है। कुछ अमीरों से उनके नजदीकी संबंध थे। बरनी अमीरों के उस वर्ग में शामिल थे, जिसने फिरोजशाह तुगलक के बजाय किसी अन्य राजकुमार को मोहम्मद तुगलक के उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी पर बिठाने की कोशिश की थी। अपने अंतिम दिनों में वह गरीब हो गए थे और उनका सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया गया था। उन्होंने कई बार अपनी दयनीय स्थिति का उल्लेख किया है। बरनी मानते थे कि इतिहास लेखन एक उत...